Monday 29 February 2016



दलित चिंतन के नाम पे लूटतंत्र और विदेशी साजिश .....
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भारत में इस्लाम के नाम पर जब लुटेरे आये तभी से ही इस उपेक्षित वर्ग को धन- बल के
सहारे मुसलमान बनाया गया और जब मुगलों ने देश पर कब्ज़ा किया तो द्विज जातियों
ने भी दलित वर्ग के साथ इस्लाम स्वीकार किया, कही पर यह खेल तलवार के दम पर हुआ
तो कही लालच में तो कही समझोते का खेल। भारत में पिछले 300 सालो की ब्रिटिश
हुकूमत में ईसाईयों ने भी भारत में अपनी पकड़ बनाये रखने के लिये धर्म परिवर्तन के खेल
को खेला और फिर निशाना बने दलित, आदिवासी और गरीब। अंग्रेजो ने उच्च जातियो व
वर्ग को अपनी संस्कृति , भाषा, जीवन शैली और प्रशासनिक व्यवस्था में ढाल लिया और
फिर पूरे शिक्षा तंत्र को ही बदल डाला।
भारत की गुरुकुल शिक्षा पद्धति को निबटाने के बाद अंग्रेजों ने सीमित मात्रा में ही
विद्यालय खोले और देश की अधिकांश आबादी अनपढ़ होती गई और गवांर भी और
अंततः गरीब व दिशाहीन हो कमजोर व गुलाम मानसिकता वाली होती गयी। इसके बीच ही अंग्रेजो के चर्च, स्कूल और एन जी ओ को सक्रिय किया गया। देशभर में इन तीनों के पास लाखों एकड़ जमीन हें और हज़ारों करोड़ की बार्षिक अनुदान भी। इन्होंने देशभर में
आदिवासियों और दलित- पिछड़े वर्ग में हिन्दू धर्म के प्रति नफरत और ईसाईयत के प्रति अनुराग पैदा करने का अभियान चला आज़ादी से पूर्व करोडो हिंदुओं को ईसाई बना लिया।
आजादी के बाद भी नेहरू की कृपा से अंग्रेजी व्यवस्था और धर्म परिवर्तन का ढांचा देश में
बना रहा और आज भी सक्रिय है। चर्च, इंग्लैंड और नाटो देश अपने आर्थिक हितों की पूर्ति
हेतू इस नेटवर्क का इस्तेमाल अपना समर्थक वर्ग खड़ा करने सरकार पर दबाब बना अपने
हित में निर्णय लेने के लिए करते हें। आजादी के बाद भारत में अरब मुल्को ने कट्टरपंथी
इस्लाम और नाटो देशों ने ईसाईयत को बढ़ाबा देने के साथ ही हिंदुओं को विभाजित रखने
के खेल को लोकतंत्र नाम के हथियार से बखूबी वनाये रखा। भारत के सभी दलित
आंदोलनों, बुद्धिजीवियों, राजनितिक दलो, प्रकाशनों आदि को यूरोपियन और अमेरिकी
देश फंडिंग करते रहे है। ईसाई पादरी और लेखक हिन्दू समाज को विभाजित करने और
आपस में खाई बढ़ाने वाला साहित्य प्रकाशित कर नफरत की खेती करता है और फिर
उनके फंड से खड़े हुए राजनीतिक दल मुस्लिम और दलित- आदिवासी वोट के सहारे देश
या प्रदेश बिशेष पर शासन करने लायक वोट बैंक बना चुनाव जीत शासन करते रहते हें।
सरकारें बनने के बाद इनकी सरकार भी नाटो देशो के परोक्ष समर्थन से चलती है और जम
कर भ्रष्टाचार और लूट कर विदेशो में पैसा भेजा जाता रहता है। कोशिश रहती है कि
अधिकतम सामान इन देशो की कम्पनियों से ख़रीदा जाये या उन्हें बाजार उपलब्ध कराया
जाये और ठेके आदि भी। कॉंग्रेस और क्षेत्रीय दलोँ का अल्पसंख्यक, पिछड़ा, आदिवासी
या दलित प्रेम इसी खेल का हिस्सा हे, बाँटो और राज करो क़ी नाटो देशो की नीतियों पर
चले हुए हिंदुओं को बाँटकर लड़ाते रहो , लूटते रहो और विदेशों में भेजते रहो, देशवासी जाएं भाड़ में। इसलिए सेकुलर गैंग और उनके नेताओ, मीडिया, बुद्धिजीवियों, स्लीपर सेलों को राष्ट्रवादियों और हिंदूवादियों से नफरत है।
अब आपको नफरत की राजनीति वाला राहुल, वाम, केजरीवाल और कोंग्रेस का जेएनयू
प्रेम और मायावती का रोहित वेमुल्ला प्रेम समझ आ गया होगा और हरियाणा के जाट
आंदोलन को 1984 के सिख दंगो से भी भयंकर बनाने का खेल भी। यू पी ए के पिछले
दस सालो के कार्यकाल में ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध, सिख और जैन समाज और हिंदुओं के
बीच की खाई को योजनाबद्ध तरीके से बढ़ाया गया और देश में इस्लामी- ईसाई संस्कृति
थोपी गयी, साथ ही बुरी तरह देश को लूटा गया। इस कारण ही देश में भ्रष्टाचार ,कुशासन
तथा हिन्दू विरोधी माहौल के कारण नरेंद्र मोदी की सरकार आयी। मोदी के सुशासन् से
घिरता जा रहा यह सेकूलर गैंग फिर से बाजी पलटने के लिए सारे हथकंडे इस्तेमाल कर
मोदी सरकार को अस्थिर करने के नित नए षड़यंत्र कर रहा है। भारत में सेकुलर खेमे से
जुड़ा एक बड़ा मतदाता समूह अब इस खेमे की सच्चाई जान चूका है किंतु उसे मोदी व
संघ परिवार पसंद नहीं। वह सेकुलर दलों से पीछा छुड़ाना चाहता है, किंतू करे क्या ? ऐसे
में देश में एक नए राष्ट्रवादी विकल्प की आवश्यकता है जो इस अनिश्चय के दोराहे पर खड़े मतदाता को प्रभावी विकल्प दे सके।






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