Monday 8 February 2016


भोजशाला पर आक्रमण के काले इतिहास में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात, 12.05.1997 को एक नया मोड़ आया, जब कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एक अध्यादेश जारी कर अपना हिंदू द्वेष प्रकट किया. इस अध्यादेश के अनुसार भोजशाला की सभी प्रतिमाओं को हटा दिया गया. वहां हिंदुओं का प्रवेश वर्जित कर दिया गया. दिग्विजय सिंह का हिंदू द्वेष इतने पर ही नहीं थमा, उन्होंने भोजशाला को मस्जिद होने की मान्यता दे डाली. भोजशाला के अंदर नमाज पढने की अनुमति देकर उसे भ्रष्ट भी किया गया.
इस अध्यादेश से पहले भोजशाला में हिंदुओं की पूजा-अर्चना पर प्रतिबंध था; परंतु प्रवेश की अनुमति थी. यह अनुमति भी दिग्विजय सरकार के इस अध्यादेश द्वारा समाप्त कर दी गई. हिंदुओं को वर्ष में केवल एक दिन वसंत पंचमी पर विविध "प्रतिबंधात्मक नियमों के साथ" भोजशाला में प्रवेश की अनुमति दी गई. परिवर्तित नियम के अनुसार वसंत पंचमी के दिन हिंदुओं को दिन के १ बजे तक ही पूजा-अर्चना करने की तथा मंदिर में अकेले प्रवेश करने की अनुमति दी गई.
सवाल यह नहीं है कि दिग्विजय सिंह ने क्या किया... उन्होंने जो किया वह उनकी और काँग्रेस की "नीयत और धर्म" के आधार पर किया... बड़ा सवाल यह है कि पिछले बारह साल से सत्ता में रहते हुए भाजपा ने भोजशाला को मुक्त करने के लिए क्या-क्या किया, इसका कोई विवरण नहीं है... अलबत्ता सभी को इतना अवश्य पता है कि भाजपा के शासनकाल में ही वसंत पंचमी के दिन हिंदुओं की जमकर तुड़ाई हुई थी. सरस्वती के भक्तों को कुत्ते की तरह दौड़ा-दौडाकर पीटने वाली भाजपा की ही सरकार थी...
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(प्रस्तुत चित्र में भोजशाला के वाग्देवी मंदिर के गर्भगृह में स्तंभ पर उकेरी गई घंटी स्पष्ट दिखाई दे रही है...)
सुप्रभात मित्रों...
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