Monday 13 February 2017

| पंडित और ग्वालिन |

एक पंडित जी थे। उन्होंने एक नदी के किनारे अपना आश्रम बनाया हुआ था। पंडित जी बहुत विद्वान थे। उनके आश्रम में दूर-दूर से लोग ज्ञान प्राप्त करने आते थे।
नदी के दूसरे किनारे पर लक्ष्मी नाम की एक ग्वालिन अपने बूढ़े पिताश्री के साथ रहती थी। लक्ष्मी सारा दिन अपनी गायों को देखभाल करती थी। सुबह जल्दी उठकर अपनी गायों को नहला कर दूध दोहती, फिर अपने पिताजी के लिए खाना बनाती, तत्पश्चात् तैयार होकर दूध बेचने के लिए निकल जाया करती थी।
पंडित जी के आश्रम में भी दूध लक्ष्मी के यहाँ से ही आता था। एक बार पंडित जी को किसी काम से शहर जाना था। उन्होंने लक्ष्मी से कहा कि उन्हें शहर जाना है, इसलिए अगले दिन दूध उन्हें जल्दी चाहिए।
लक्ष्मी अगले दिन जल्दी आने का वादा करके चली गयी।

अगले दिन लक्ष्मी ने सुबह जल्दी उठकर अपना सारा काम समाप्त किया और जल्दी से दूध उठाकर आश्रम की तरफ निकल पड़ी। नदी किनारे उसने आकर देखा कि कोई मल्लाह अभी तक आया नहीं था। लक्ष्मी बगैर नाव के नदी कैसे पार करती ? फिर क्या था, लक्ष्मी को आश्रम तक पहुँचने में देर हो गयी। आश्रम में पंडित जी जाने को तैयार खड़े थे। उन्हें सिर्फ लक्ष्मी का इन्तजार था। लक्ष्मी को देखते ही उन्होंने लक्ष्मी को डाँटा और देरी से आने का कारण पूछा।

लक्ष्मी ने भी बड़ी मासूमियत से पंडित जी से कह दिया कि नदी पर कोई मल्लाह नहीं था, वह नदी कैसे पार करती ? इसलिए देर हो गयी।
पंडित जी गुस्से में तो थे ही, उन्हें लगा कि लक्ष्मी बहाने बना रही है। उन्होंने भी गुस्से में लक्ष्मी से कहा, ‘‘क्यों बहाने बनाती है। लोग तो जीवन सागर को भगवान का नाम लेकर पार कर जाते हैं, तुम एक छोटी सी नदी पार नहीं कर सकती ?’ पंडित जी की बातों का लक्ष्मी पर बहुत गहरा असर हुआ। दूसरे दिन भी जब लक्ष्मी दूध लेकर आश्रम जाने निकली तो नदी के किनारे मल्लाह नहीं था। लक्ष्मी ने मल्लाह का इंतजार नहीं किया। उसने भगवान को याद किया और पानी की सतह पर चलकर आसानी से नदी पार कर ली। इतनी जल्दी लक्ष्मी को आश्रम में देख कर पंडित जी हैरान रह गये, उन्हें पता था कि कोई मल्लाह इतनी जल्दी नहीं आता है। उन्होंने लक्ष्मी से पूछा कि तुमने आज नदी कैसे पार की ?

लक्ष्मी ने बड़ी सरलता से कहा—‘‘पंडित जी आपके बताये हुए तरीके से। मैंने भगवान् का नाम लिया और पानी पर चलकर नदी पार कर ली।’’
पंडित जी को लक्ष्मी की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने लक्ष्मी से फिर पानी पर चलने के लिए कहा। लक्ष्मी नदी के किनारे गयी और उसने भगवान का नाम जपते-जपते बड़ी आसानी से नदी पार कर ली।

पंडित जी हैरान रह गये। उन्होंने भी लक्ष्मी की तरह नदी पार करनी चाही। पर नदी में उतरते वक्त उनका ध्यान अपनी धोती को गीली होने से बचाने में लगा था। वह पानी पर नहीं चल पाये और धड़ाम से पानी में गिर गये। पंडित जी को गिरते देख लक्ष्मी ने हँसते हुए कहा, ‘‘आपने तो भगवान का नाम लिया ही नहीं, आपका सारा ध्यान अपनी नयी धोती को बचाने में लगा हुआ था।’’
पंडित जी को अपनी गलती का अहसास हो गया। उन्हें अपने ज्ञान पर बड़ा अभिमान था। पर अब उन्होंने जान लिया था कि भगवान को पाने के लिए किसी भी ज्ञान की जरूरत नहीं होती। उसे तो पाने के लिए सिर्फ सच्चे मन से याद करने की जरूरत है।
अगर सच्चे मन से भगवान को याद किया जाये, तो भगवान तुरन्त अपने भक्तों की मदद करते है। दोस्तों।

" ,पोथी पढ़ पढ़ , जग मुया।
पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो
पंडित होय ।।।
शुभ रात्रि का नमस्कार । प्रिय मित्रों।
प्रेम से बोलिये ।

जय श्री राम। जय माता जानकी।।

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