Thursday 16 February 2017

"आज चारों ओर 'विकास' ही चर्चा का विषय है , कारण जो भी हो ; ऐसे में समाज के लिए विकास की वास्तविक समझ महत्वपूर्ण है .
हमारी वैज्ञानिक प्रगति की कीमत हमने अपने आध्यात्मिक विकास के प्रक्रिया से चुकाई है तभी शायद लोगों के फ़ोन स्मार्ट हो गए और लोग मूर्ख ; संवेदनाओं को महसूस करने , समस्याओं को समझने और समाधान सोचने की शक्ति जो नहीं रही !
आध्यात्मिकता कोई धार्मिक हठधर्मिता या दृढ़ विचारधारा का पर्याय नहीं बल्कि चेतना की जागृति का वह आयाम है जो सत्य, अच्छाई, सौंदर्य, प्रेम और करुणा जैसे भावनात्मक मूल्यों की अनुभूति पर आधारित है और जो अंतर्ज्ञान, रचनात्मकता, अंतर्दृष्टि और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को सरल बनाने में सहायक होता है ;
सभी धर्मों के आध्यात्मिक आधार एकता को मजबूत बनाते हैं , इसलिए, आज अगर हमें अपने धार्मिक मतभेदों से ऊपर उठकर मानवीय संवेदनाओं पर आधारित अपनी समानताओं को जानना और उन्हें महत्वपूर्ण बनाना है तो हमें धर्मों से अधिक उन सभी धर्मों के मूल स्रोतों के अध्यन की आवश्यकता होगी ; तभी हम सही अर्थों में किसी भी धर्म का मानवता के सन्दर्भ में वास्तविक औचित्य समझ सकेंगे; फिर धर्म चाहे जो हो।
आज विश्व को एक नए आध्यात्मिक सत्य की आवश्यकता है, एक ऐसा सत्य जिसका उद्देश्य श्रिष्टि का कल्याण और जीवन का सरंक्षण हो न की प्रकृति का शोषण और जीवों का नाश ; वर्त्तमान की इसी पृष्टभूमि ने भारत को विश्व के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण बना दिया है।
यह हिंदुत्व की समग्रता और सहिष्णुता का ही परिणाम है जिसने आज भारत की पुण्य भूमि को विश्व के समस्त धर्मों का समागम स्थल बना दिया है ; इन सभी धर्मों में हिंदुत्व अकेला ही न केवल प्राचीनतम, विशालतम व् जटिल है बल्कि यह एक ऐसी जीवन शैली है जिसे केवल धार्मिक मान्यताओं की परिधि में नहीं समेटा जा सकता ;
यह महान विचारों की विविधता पर आधारित आध्यात्मिक विचारों, अनुभूतियों और आकांक्षाओं का सरल, सहज व् एकीकृत स्वरुप है। अतः स्वाभाविक है की समय की आवश्यकताओं और विश्व की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए भारत को अपना विकास करना अनिवार्य है।
इसके लिए हमें एक समाज के रूप में जीवन के मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक और शारीरिक सभी क्षेत्रों में प्रगति करनी होगी और यही वास्तविक अर्थों में विकास होगा ;
यह तभी संभव है जब समाज यह सुनिश्चित करे की उसका नेतृत्व प्रबुद्ध, आध्यात्मिक व् योग्य हो अन्यथा विकास की दिशा ही विनाश सुनिश्चित कर देगी और प्रयास की निष्ठा का परिणाम पर कोई प्रभाव नहीं होगा ;
वर्त्तमान होने के नाते निर्णय का दाइत्व और विकास के दिशा के निर्धारण का अधिकार हमारा है और यही भविष्य के सन्दर्भ में हमारे वर्त्तमान की भूमिका का महत्व भी।“

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