Monday 4 September 2017

अकबर एक चरित्रहीन आक्रांता के सिवाय कुछ भी नही था

बीकानेर के संग्रहालय में लगी यह तस्वीर देश के सभी शहरों के चौराहों पर लगवाई जानी चाहिए ताकि अकबर को महान घोषित करने वाले और समझने वालों की आँखें खुल सकें! 

अकबर एक चरित्रहीन आक्रांता के सिवाय कुछ भी नही था और इस सत्यकथा में यह स्पष्ट है। राजस्थान वीरों ओर योद्धाओं की धरती है। यहां के रेतीले धोरों का वीरता और शौर्य से बहुत पुराना रिश्ता रहा है। इतिहास आज भी ऐसे वीरों और वीरांगनाओं की कहानी कहता है जिनके त्याग और बलिदान ने इस धरा की शान बढ़ाई।

ऐसी ही कहानियों में एक वीरांगना किरण देवी का जिक्र आता है। कहते हैं कि उसने शहंशाह अकबर को झुकने के लिए मजबूर कर दिया था। अकबर ने किरण देवी से प्राणों की भीख मांगी थी। इस घटना का संबंध नौरोज मेले से है। यह मेला अकबर आयोजित करता था। ऐसी मान्यता है कि अकबर इस मेले में वेश बदलकर आता और यहां सुंदर महिलाओं की तलाश करता था। एक दिन उसकी नजर मेले में घूम रही किरण देवी पर पड़ी।

वह किसी भी कीमत पर उसे हासिल करना चाहता था। उसने अपने गुप्तचरों से उसका पता मालूम करने को कहा। गुप्तचरों ने बताया कि वह मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह के छोटे भाई शक्ति सिंह की बेटी है। उसका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ से हुआ है। अकबर ने पृथ्वीराज को किसी युद्ध के बहाने बाहर भेज दिया और किरण देवी को एक सेविका के जरिए संदेश भेजा कि बादशाह ने आपको बुलाया है। किरण देवी ने बादशाह के हुक्म का पालन किया और वह महल में गई। वहां जाकर उसे अकबर के इरादों का पता चला। यह देखकर किरण देवी को क्रोध आ गया। जिस कालीन पर अकबर खड़ा था, उसने वह खींचा और बादशाह धराशायी हो गया।

किरण देवी हथियार चलाने और आत्मरक्षा में भी पारंगत थी। वह अकबर की छाती पर बैठ गई और कटारी निकालकर उसकी गर्दन पर रखते हुए बोली- बोलो बादशाह, तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है? बाजी इतनी जल्दी पलट जाएगी, इसका अंदाजा अकबर को भी नहीं था। वह किरण से माफी मांगने लगा, बोला- किरण, तुम यकीनन दुर्गा हो। मुझे माफ करो। अगर मैं मर गया तो देश में कई समस्याएं हो जाएंगी। मैं कसम खाकर कहता हूं कि अब कभी नौरोज मेला नहीं लगाऊंगा और न कभी किसी महिला के बारे में ऐसी सोच रखूंगा।

अकबर को काफी खरी-खोटी सुनाने के बाद किरण ने उसे माफ कर दिया और चेतावनी देकर वापस अपने महल में आ गई। कहा जाता है कि अकबर ने फिर कभी नौरोज मेला नहीं लगाया। इस घटना का चित्रण राजस्थान के कई कवियों ने किया है।

साभार: रितेश जी

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