सातवीं सदी में सायकिल का अविष्कार भारत में हो चुका था
बाईसिकल का 1817 में अविष्कार Karl von Drais द्वारा किया गया बताया जाता है। जिसमें अगला चक्का बड़ा और पिछला चक्का छोटा था। आज जिस रुप में हम सायकिल देखते हैं वैसी नहीं थी। यह सायकिल के क्रमिक विकास का परिणाम है जो हम आज देख रहे हैं।
परन्तु जब हम सातवीं शताब्दी के वोराइयुर पंजवरना स्वामी (तमिलनाडू) (Woraiyur panjavarna Swamy temple) मंदिर के इस शिल्प को देखते हैं तो ज्ञात होता है कि कितना झूठ है कि सायकिल का अविष्कारक कोई विदेशी था। इस मंदिर का निर्माण चोल शासकों के काल में हुआ था।
परन्तु जब हम सातवीं शताब्दी के वोराइयुर पंजवरना स्वामी (तमिलनाडू) (Woraiyur panjavarna Swamy temple) मंदिर के इस शिल्प को देखते हैं तो ज्ञात होता है कि कितना झूठ है कि सायकिल का अविष्कारक कोई विदेशी था। इस मंदिर का निर्माण चोल शासकों के काल में हुआ था।
चित्र में दिखाया गया सायकिल का डिजाईन भी वर्तमान रेंजर सायकिल के डिजाईन को मात दे रहा है।
ऐसे ही महिला द्वारा स्कूटर चलाते हुए चित्र हम्पी के हजारा राम मंदिर की भित्ति से प्राप्त हुआ था। प्राचीनकाल में ऐसे ही भारत को सोने की चिड़िया नहीं कहा जाता था। तो जानिए की सातवीं सदी में सायकिल का अविष्कार भारत में हो चुका था। इसके अविष्कार कोई विदेशी नहीं, भारतीय ही थे।
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