"जिस पेड़ की जड़ें जितनी गहरी होती हैं उस वृक्ष की शाखाएं भी उतनी ही विस्तृत होती हैं ; तात्पर्य स्पष्ट है, भारत को अगर एक समृद्ध , संपन्न और सुरक्षित राष्ट्र बनाना है तो सबसे पहले समाज को अपने संस्कृति के मूल तत्व से जुड़ना होगा ; बाह्य संस्कृति को जबतक हम आधुनिकता की परिभाषा मान कर उसका अनुसरण करते रहेंगे, हम प्रगति चाहे जितनी भी कर लें पर हमारे समाज का विकास सभव ही नहीं।
आज समय को 'स्मार्ट सिटी' से अधिक 'स्मार्ट सोसाइटी' की आवश्यकता है क्योंकि जब तक सोसाइटी स्मार्ट न हो कोई भी सिटी स्मार्ट हो ही नहीं सकता ; अगर युगानुकूल ही आधुनिक है तो क्यों न हम अपने प्रयास से अपनी संस्कृति के अभ्युत्थान में सहायक हों ;
एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र की प्राथमिकताओं का पता नहीं , क्या करें , अनुभव ही कुछ ऐसा रहा है पर एक हिन्दू राष्ट्र के लिए धर्म ही सर्वोपरि है ; स्वयं कृष्णा ने गीता में अर्जुन के माध्यम से हिन्दुओं को बताया है ;
जब तक हमें एक राष्ट्र के रूप में अपनी वास्तविकता की स्वीकृति से ही शिकायत हो हमारे उत्क्रांति की प्रक्रिया ही ठहर जायेगी ; अतः भारत का हिन्दू राष्ट्र घोषित होना न्याय संगत भी होगा और उचित भी !"
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