ग्रहों का शरीर में स्थान....
सौर मंडल में जिस तरह नौ ग्रहों का अस्तित्व है, ठीक उसी प्रकार मानव शरीर में भी नौ ग्रह मौजूद हैं। ये ग्रह शरीर के विभिन्न अंगों में मौजूद हैं। ग्रहों का संबंध मानवीय चिंतन से है और चिंतन का संबंध मस्तिष्क से है।
चिंतन का आधार सूर्य है। इसीलिए हमारे आदि ऋषियों ने सूरज का स्थान मानव शरीर में माथे पर माना है। ब्रह्मा रंध्र से एक अंगुली नीचे सूर्य का स्थान है।
इससे एक अंगुली और नीचे की ओर चंद्रमा है। चंदमा इंसान को भावुकता और चंचलता से जोड़ता है, साथ ही कल्पना शक्ति से भी। चूंकि चंदमा को सूर्य से रोशनी लेनी पड़ती है, इसीलिए चंद्रमा का सूर्य के साये में नीचे रहना जरूरी है। सूर्य के तेज का उजाला जब चंद्रमा पर पड़ता है, तब इंसान की शक्ति, ओज, वीरता चमकती है। ये गुण चिंतन की प्रखरता से ही निखरते हैं।
गरुड़ पुराण के मुताबिक मंगल का स्थान मानव के नेत्रों में माना जाता है। मंगल शक्ति का प्रतीक है। यह प्रतिभा और खून से संबंध रखता है। मानव की आंख मन का आईना है, जैसे शिव का तीसरा नेत्र उनके क्रोध का प्रतीक है। इंसान के मन की हालत को भी आंखों से पढ़ा और समझा जा सकता है। हमारे भीतर की मजबूती या कमजोरी का पता आंखों से चल जाता है। इसलिए मंगल ग्रह का स्थान नेत्रों को माना गया है।
बुद्ध का स्थान मानव के हृदय में है। बुद्ध बौद्धिकता का प्रतीक है। यह वाणी का कारण भी है। हमें किसी आदमी का व्यवहार, काव्य शक्ति अथवा प्रवचन शक्ति जाननी हो, तो हम रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र के अनुसार बुद्ध ग्रह को विशेष रूप से देखते हैं।
गुरु या बृहस्पति ग्रह का स्थान नाभि होता है। बृहस्पति वेद-पुराणों के ज्ञाता हैं। ये समस्त शास्त्रों के ज्ञाता होने के साथ ही अथाह ज्ञान के प्रतीक होते हैं। आपने गौर से देखा होगा कि विष्णु की नाभि से कमल का फूल खिला है। उससे ब्रह्मा की उत्पत्ति मानी गई है और इसलिए बृहस्पति का स्थान नाभि में है।
शुक्र ग्रह का स्थान वीर्य में होता है। शुक्र दैत्यों के गुरु हैं। मानव की सृष्टि शुक्र की महिमा से ही गतिमान है। कामवासना, इच्छाशक्ति का प्रतीक शुक्र है।
शनि का स्थान नाभि गोलक में है। नाभि ज्ञान, चिंतन और खयालों की गहराई की प्रतीक मानी जाती है। रमल शास्त्र द्वारा हमें किसी व्यक्ति के चिंतन की गहराई देखनी हो तो हमें उसके शनि ग्रह की स्थिति जाननी होती है। चिंतन की चरम सीमा अथाह ज्ञान है। रमल के अनुसार यदि किसी व्यक्ति में एक ही स्थान पर शनि और गुरु एक निश्चित अनुपात में हों तो व्यक्ति खोजी, वेद-पुराणों का ज्ञाता, शोधकर्ता और शास्त्रार्थ करने वाला होता है।
राहु ग्रह का स्थान इंसान के मुख में होता है। राहु जिस ग्रह के साथ बैठता है, वैसा ही फल देता है। यदि मंगल ग्रह की शक्ति इसके पीछे हो तो जातक क्रोध और वीरतापूर्ण वाणी बोलेगा। यदि बुद्ध की शक्ति पीछे हो तो व्यक्ति मधुर वाणी बोलेगा। यदि गुरु की शक्ति पीछे हो तो ज्ञानवर्धक और शास्त्रार्थ की भाषा बोलेगा। यदि शुक्र ग्रह की शक्ति पीछे हो तो जातक रोमांटिक बातें करेगा।
केतु ग्रह का स्थान हृदय से लेकर कंठ तक होता है। साथ ही केतु ग्रह का संबंध गुप्त चीजों या किसी भी कार्य के रहस्यों से भी होता है।
इंसान के शरीर में ये सभी नौ ग्रह अपनी-अपनी जगह पर निवास करते हैं और रक्त प्रवाह के जरिए एक-दूसरे का प्रभाव ग्रहण करते हैं। इसलिए यदि हम अपने शरीर को स्वस्थ और नीरोग रखेंगे तो सभी ग्रह शांत और मददगार होंगे। और जैसा कि सभी जानते हैं, स्वस्थ शरीर हमें अध्यात्म की ओर बढ़ने में मदद करता है।
सौर मंडल में जिस तरह नौ ग्रहों का अस्तित्व है, ठीक उसी प्रकार मानव शरीर में भी नौ ग्रह मौजूद हैं। ये ग्रह शरीर के विभिन्न अंगों में मौजूद हैं। ग्रहों का संबंध मानवीय चिंतन से है और चिंतन का संबंध मस्तिष्क से है।
चिंतन का आधार सूर्य है। इसीलिए हमारे आदि ऋषियों ने सूरज का स्थान मानव शरीर में माथे पर माना है। ब्रह्मा रंध्र से एक अंगुली नीचे सूर्य का स्थान है।
इससे एक अंगुली और नीचे की ओर चंद्रमा है। चंदमा इंसान को भावुकता और चंचलता से जोड़ता है, साथ ही कल्पना शक्ति से भी। चूंकि चंदमा को सूर्य से रोशनी लेनी पड़ती है, इसीलिए चंद्रमा का सूर्य के साये में नीचे रहना जरूरी है। सूर्य के तेज का उजाला जब चंद्रमा पर पड़ता है, तब इंसान की शक्ति, ओज, वीरता चमकती है। ये गुण चिंतन की प्रखरता से ही निखरते हैं।
गरुड़ पुराण के मुताबिक मंगल का स्थान मानव के नेत्रों में माना जाता है। मंगल शक्ति का प्रतीक है। यह प्रतिभा और खून से संबंध रखता है। मानव की आंख मन का आईना है, जैसे शिव का तीसरा नेत्र उनके क्रोध का प्रतीक है। इंसान के मन की हालत को भी आंखों से पढ़ा और समझा जा सकता है। हमारे भीतर की मजबूती या कमजोरी का पता आंखों से चल जाता है। इसलिए मंगल ग्रह का स्थान नेत्रों को माना गया है।
बुद्ध का स्थान मानव के हृदय में है। बुद्ध बौद्धिकता का प्रतीक है। यह वाणी का कारण भी है। हमें किसी आदमी का व्यवहार, काव्य शक्ति अथवा प्रवचन शक्ति जाननी हो, तो हम रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र के अनुसार बुद्ध ग्रह को विशेष रूप से देखते हैं।
गुरु या बृहस्पति ग्रह का स्थान नाभि होता है। बृहस्पति वेद-पुराणों के ज्ञाता हैं। ये समस्त शास्त्रों के ज्ञाता होने के साथ ही अथाह ज्ञान के प्रतीक होते हैं। आपने गौर से देखा होगा कि विष्णु की नाभि से कमल का फूल खिला है। उससे ब्रह्मा की उत्पत्ति मानी गई है और इसलिए बृहस्पति का स्थान नाभि में है।
शुक्र ग्रह का स्थान वीर्य में होता है। शुक्र दैत्यों के गुरु हैं। मानव की सृष्टि शुक्र की महिमा से ही गतिमान है। कामवासना, इच्छाशक्ति का प्रतीक शुक्र है।
शनि का स्थान नाभि गोलक में है। नाभि ज्ञान, चिंतन और खयालों की गहराई की प्रतीक मानी जाती है। रमल शास्त्र द्वारा हमें किसी व्यक्ति के चिंतन की गहराई देखनी हो तो हमें उसके शनि ग्रह की स्थिति जाननी होती है। चिंतन की चरम सीमा अथाह ज्ञान है। रमल के अनुसार यदि किसी व्यक्ति में एक ही स्थान पर शनि और गुरु एक निश्चित अनुपात में हों तो व्यक्ति खोजी, वेद-पुराणों का ज्ञाता, शोधकर्ता और शास्त्रार्थ करने वाला होता है।
राहु ग्रह का स्थान इंसान के मुख में होता है। राहु जिस ग्रह के साथ बैठता है, वैसा ही फल देता है। यदि मंगल ग्रह की शक्ति इसके पीछे हो तो जातक क्रोध और वीरतापूर्ण वाणी बोलेगा। यदि बुद्ध की शक्ति पीछे हो तो व्यक्ति मधुर वाणी बोलेगा। यदि गुरु की शक्ति पीछे हो तो ज्ञानवर्धक और शास्त्रार्थ की भाषा बोलेगा। यदि शुक्र ग्रह की शक्ति पीछे हो तो जातक रोमांटिक बातें करेगा।
केतु ग्रह का स्थान हृदय से लेकर कंठ तक होता है। साथ ही केतु ग्रह का संबंध गुप्त चीजों या किसी भी कार्य के रहस्यों से भी होता है।
इंसान के शरीर में ये सभी नौ ग्रह अपनी-अपनी जगह पर निवास करते हैं और रक्त प्रवाह के जरिए एक-दूसरे का प्रभाव ग्रहण करते हैं। इसलिए यदि हम अपने शरीर को स्वस्थ और नीरोग रखेंगे तो सभी ग्रह शांत और मददगार होंगे। और जैसा कि सभी जानते हैं, स्वस्थ शरीर हमें अध्यात्म की ओर बढ़ने में मदद करता है।
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