कोरबा (निप्र)। हसदेव नदी में राम नाम लिखे अद्भुत शिला के मिलने से आस्थावान श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। पंप हाउस के एक बच्चे ने इस पत्थर को हसदेव नदी किनारे रेत में दबे देखा। लगभग 5 किलो वजनी इस पत्थर में राम नाम लिखा हुआ था।
कौतूहलवश पत्थर को जब पानी में फेंका गया, तो वह नदी के पानी में तैरने लगा। बच्चों ने इस पत्थर को लेकर शिव मंदिर के समीप पहुंचे और नहर में डाला। वहां भी पत्थर तैरने लगा। पानी में पत्थर के तैरने की जानकारी मिलते ही लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। लोग इसे नवरात्र पर्व में राम नाम की महिमा मानते हुए पूजा अर्चना में लग गए।
राम कृपा से नर तो क्या पत्थर भी तर जाते हैं। रामचरित मानस की यह अवधारणा सहज ही सामने आने से लोगों की आस्था तैरते पत्थर को देखने उमड़ पड़ी। पंप हाउस झोपड़ी पारा निवासी बसंत खैरवार का 14 वर्ष्ाीय पुत्र चंद्रशेखर खैरवार जो कक्षा दसवीं में अध्ययनरत है, वह रविवार की सुबह अपने एक अन्य मित्र विश्वनाथ के साथ हसदेव नदी किनारे खेल रहा था।
इसी दौरान नदी के रेत में उसने रामनाम लिखे इस पत्थर को देखा। चंद्रशेखर ने बताया कि पत्थर को जब उसने नदी के पानी में फेंका तो वह तैरने लगा। इस पर उसे आश्चर्य हुआ। पानी में बार-बार धक्का देकर डुबाने से भी वह सतह पर आ रहा था। पत्थर की इस विशेषता को देखते हुए वह उसे खेलने के लिए बस्ती किनारे बहने वाली नहर में ले आया।
नहर के पानी में भी पत्थर को डुबाने का प्रयास दोनों बच्चे व अन्य लोगों ने किया, लेकिन पत्थर डूबने की बजाय पानी के ऊपरी सतह पर आ जाता था। इसकी जानकारी मिलते ही आसपास के लोग उमड़ पड़े। पत्थर की पूजा आराधना शुरू हो गई। रामशिला के इस अद्भुत पत्थर को नहर किनारे स्थित शिवमंदिर में रखा गया है। दुर्लभ पत्थर मान कर लोग उसे प्रणाम कर रहे हैं।
लंका में चढ़ाई के दौरान भगवान राम की सेना में शामिल नल व नील ने वानरों के साथ मिल कर समुद्र में सेतु का निर्माण किया था। राम सेतु के अस्तित्व को आज भी इस तरह का पत्थर दर्शाते हैं। बहरहाल इस शिला को मोहल्लेवासियों ने नहर किनारे स्थित शिव मंदिर में रखा है। उनका कहना है कि वे इसे मंदिर में रख कर इसकी पूजा आराधना करेंगे।
सीतामढ़ी व कुदुरमाल में भी है रामशिला
यह पहली बार नहीं जब हसदेव नदी में राम शिला पाया गया हो। सीतामढ़ी गुफा मंदिर के अलावा कुदुरमाल हनुमान मंदिर में भी रामशिला रखा हुआ है। इससे यह स्पष्ट होता है कि शिला की अवधारणा किसी न किसी दृष्टि में हसदेव नदी से जुड़ी हुई है, जहां से इस तरह के विशिष्ट चट्टान के पत्थर पाए गए हैं।
पुरातत्व विभाग ने नहीं ली सुध
एतिहासिक व सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रतिमा व पत्थर प्राप्त होते रहते हैं, किंतु महत्व के वस्तुओं को सहेजने में पुरातत्व विभाग की सुध नहीं होने के कारण कारण आज भी प्राचीन धरोहर असुरक्षित हैं। बहरहाल रामशिला के बारे में पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक को दी गई, किंतु अन्यत्र होने के कारण वे मौके पर उपस्थित नहीं हो सके।
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