Sunday, 22 March 2015

23 मार्च 1931 को भगत सिंह का अंतिम पत्र

23 मार्च 1931 को भगत सिंह का अंतिम पत्र
साथियों,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमे भी होनी चाहिए ! मैं इसे छिपाना नहीं चाहता लेकिन मैं एक शर्त पर ज़िंदा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबन्द होकर जीना नहीं चाहता ! मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के कुर्बानियों और आदर्शों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थित में इससे ऊँचा मैं हरगिज नहीं हो सकता हूँ आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं है अगर मैं फांसी से बच गया तो वो जाहिर हो जायेगी ! और क्रान्ति का प्रतीक चिन्ह मध्यम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तान की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जायेगी कि क्रान्ति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी ! हाँ एक विचार मेरे मन में आज भी आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी उनका हजारवां भाग भी पूरा नहीं हो सका ! अगर स्वतंत्र ज़िंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता ! इसके अलावा सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहना का नहीं आया ! मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा ! आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है अब तो बड़ी बेतावी से अंतिम परीक्षा का इन्तजार है कामना है कि ये और नजदीक हो जाए !
आपका साथी
भगत सिंह

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