Sunday, 29 March 2015

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भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए हम सबको काम करना होगा।
 भारत की गौरवशाली परंपरा रही है। इसलिए विश्व में भारत को बड़ा और शक्तिशाली होने की जरूरत है।  सबका सपना भारत को परम वैभव पर ले जाना है। यह तब पूरा होगा, जब हम सबसे पहले अपने भारत को जानें। केवल भौगोलिक स्थिति ही नहीं, अपितु उसकी अस्मिता के मूल स्रोत और उसकी वैज्ञानिक दृष्टि, सांस्कृतिक मूल्य और उज्ज्वल परंपरा को जानना होगा। इसी परंपरा में हमारा हर काम सत्यं, शिवम् सुंदरम् होना चाहिए।
 हमारी सांस्कृतिक धरोहर के कारण ही हम अनेक कालचक्रों का सामना करते हुए टिके रहे, इसका कारण हमारी महान सांस्कृतिक परंपरा है | हमने कभी किसी संस्कृति को नहीं नकारा | हमारी समन्वयवादी परंपरा रही है | इसीलिए सभी क्षेत्रों में अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं | ज्ञान-विज्ञान का प्रारंभ करने का श्रेय भारत को जाता है | खेती हो, विज्ञान हो या आध्यात्म, हम हर क्षेत्र में आगे रहे हैं | चाहे बात लौह स्तंभ की हो या स्टेनलेस स्टील बनाने की, हमारे वनवासी बंधुओं द्वारा बनाया जाने वाला स्टेनलेस स्टील उच्चकोटि का है, जिसका लोहा बड़ी-बड़ी कंपनियां भी मानती हैं | हमने विश्व को ज्ञान दिया | इतना ही नहीं ज्ञान को विश्व में हर किसी तक पहुंचाने के लिए बलिदान देने से भी भारत के लोग पीछे नहीं रहे |

 जब चीनी यात्री नालंदा विश्वविद्यालय से पुस्तकें लेकर चीन लौट रहा था तो नाव द्वारा नदी पार करते समय तूफान आने पर नाविक ने कहा कि तूफान में डटे रहने के लिये नाव से कुछ भार कम करना पड़ेगा | तब चीनी यात्री चिंतित हो गया, कि अब भार कम करने के लिये पुस्तकें फैंकनी पड़ेंगी या किसी को नदीं में कूदना होगा. ज्ञान की धारा को चीन तक पहुंचाने के लिये उनके साथ जा रहे तीन भारतीयों ने चीनी यात्री की चिंता को कम किया, और तीनों भारतीयों ने जान की परवाह किए बिना बारी-बारी से नदी में छलांग लगा दी ताकि ज्ञान की धारा चीन तक पहुंच सके |
तरुणोदय शिविर में हम सब इसलिए एकत्र हुए हैं, क्योंकि हम सबके मन में भारत को परम वैभव पर ले जाने का सपना है | यह सपना तब पूरा होगा, जब हम सबसे पहले अपने भारत को जानें | संघ के स्वयंसेवकों के सामने अनेक बाधाएं और उतार-चढ़ाव आएंगे | झोंकों और बाधाओं के कारण हम अपनी राह नहीं छोड़ेंगे, हमें देश के लिए काम करना है और भारत को विश्वगुरु बनाना है |
उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति का परिचय कराने के लिए यहां पर 15 सेकेंड लगे हैं | भारत में 125 करोड़ जन हैं, इस हिसाब से भारत माता का परिचय कराने के लिये कितना समय लगेगा, यह जानना जरूरी है | भारत को जाने बिना इसके लिए काम कैसे होगा | इसलिए यह आवश्यक है कि देश के लिये कार्य करने से पहले भारत को जानें | जाति व्यवस्था व महिलाओं का गौण स्थान भारत की परंपरा नहीं है | महिलाओ का उच्च स्थान व जाति विहीन समाज की संरचना भारत में सदियों से रही है | अर्थशास्त्र न मुनाफा कमाने का तंत्र है और न ही उपभोग को बढ़ावा देने का, बल्कि सभी का भरण पोषण हो, इसके लिए है | उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक रूप से हम सब एकसूत्र में बंधे हुए हैं, जिसमें जाति का कहीं कोई स्थान नहीं है |
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दुनिया की सभी भाषाओं का विकास मानव, पशु-पक्षियों द्वारा शुरुआत में बोले गए ध्वनि संकेतों के आधार पर हुआ अर्थात लोगों ने भाषाओं का विकास किया और उसे अपने देश और धर्म की भाषा बनाया। लेकिन संस्कृत किसी देश या धर्म की भाषा नहीं यह अपौरूष भाषा है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति और विकास ब्रह्मांड की ध्वनियों को सुन-जानकर हुआ। यह आम लोगों द्वारा बोली गई ध्वनियां नहीं हैं।धरती और ब्रह्मांड में गति सर्वत्र है। चाहे वस्तु स्थिर हो या गतिमान। गति होगी तो ध्वनि निकलेगी। ध्वनि होगी तो शब्द निकलेगा। देवों और ऋषियों ने उक्त ध्वनियों और शब्दों को पकड़कर उसे लिपि में बांधा और उसके महत्व और प्रभाव को समझा।संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनकी पृथ्वी के 8 वसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की 9 रश्मियां और पृथ्वी के 8 वसुओं के आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुईं, वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गईं। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित हैं।
ब्रह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से ही जानकारी मिलती है। इन ध्वनियों को अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के संगठन नासा और इसरो ने भी माना है।
पशु पक्षियों की भाषा कैसे सीखे?रामायण मे वर्णन है श्रीराम जी पशु पक्षियों की बोली जानते थे।क्या हम उस विद्या को जानते है??
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ऋग्वेद हमे बाटकर खाने को कहता है !
हम जो अनाज खेतो मे पैदा करते है उसका बटवारा तो देखीए !
1, जमीन से चार अंगूल भूमी का,
2, गहू के बाली के नीचे का पशूओ का,
3, पहले पेड़ की पहली बाली अग्नी का,
4, बाली से गहू अलग करने पर मूठ्ठी भर दाना पंछीयो का,
5, गहू का आटा बनाने पर मूठ्ठी भर आटा चीटीयो का फीर आटा गूथने के बात
6, चुटकी भर गूथा आटा मछलीयो का,
7, फिर उस आटे की पहली रोटी गौमाता की और
8, पहली थाली घर के बूजूर्गो की और फिर हमारी और
9, आखरी रोटी कूत्ते की ये हमे सीखाता है हमारा धर्म और मूझे गर्व है कि इस धर्म का पालन करने वाला मै हिंदू हुँ।
और यही मानवता का एकमात्र धर्म है

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