Monday, 23 March 2015

Narendra Modi सरकार को बदनाम करने के लिए भारत को "ईसाई विरोधी" तथा यहाँ के मर्दों को "बलात्कारी" सिद्ध करने, चित्रित करने की होड़ मची हुई है... समय रहते "सेकुलर बुद्धिजीवी दलाल और Presstitutes" सुधर जाएँ अन्यथा इसके बहुत गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे...
 जॉन दयाल... सुन रहा है ना तू...
(तुझे) सरेआम झूठा, धूर्त और पागल कह रहा हूँ मैं...
किसी चर्च की खिड़की भी टूटे तो "हिन्दू संगठनों" को दोषी ठहराने का जो "पागल सेकुलर प्रलाप" आजकल चल रहा है उसकी एक और बखिया उधड़ गई है. मंगलौर (कर्नाटक) के चर्च हमले को लेकर खबीस कुमार जैसों ने जो रुदालीगान मचाया था, उसकी पोल खुल गई है. मंगलौर चर्च हमले के मामले में पुलिस ने जिसे गिरफ्तार किया है, वह चर्च का ही पूर्व कर्मचारी निकला, जो पैसों के लेन-देन को लेकर नाराज था.
ये "प्रगतिशील बौद्धिक नंगई" पहली बार नहीं हुई है. 2014 में एक पादरी केजे थॉमस की हत्याहुई थी, तो "हिन्दू जिम्मेदार, संघ जिम्मेदार.." चीखने वालों के मुँह पर तमाचा पड़ा था, जब उसी पादरी के तीन साथियों ने हत्या करना कबूल किया था. अगस्त 2014 में ही मुम्बई के विले-पार्ले के चर्च का क्रास तोड़ा गया... दल्ले फिर चिल्लाए "संघ-मोदी-हिन्दू-ब्ला-ब्ला-ब्ला-ब्ला-ब्ला"... जब जाँच हुई तो पता चला कि दारू पीकर सात ईसाई लड़कों ने ही नशे में क्रास तोड़ा था. इसी प्रकार 1999 में झाबुआ की एक नन का रेप/मर्डर हुआ था, उसमें भी बारह रेपिस्ट ईसाई ही थे. मोदी सरकार आने के बाद से चर्चों में मामूली चोरियाँ, शॉर्ट सर्किट से आग जैसी दुर्घटनाएँ हुई हैं, लेकिन चर्च पोषित मीडियाई भाण्डों ने इसे "ईसाईयों पर हमले" जैसा चित्रित किया हुआ है. मूर्खता की हद कहिये या मीडिया की "नकारात्मक ताकत" कहिये, देश के प्रतिष्ठित पुलिस अफसर जूलियो रिबेरो भी बिना सोचे-समझे बयान जारी करने लग जाते हैं कि "ईसाई होने के कारण मुझे डर लगने लगा है...". लानत है.

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