Thursday, 12 March 2015



चाणक्य कल्याणी से : "जिनमें स्थितियों को बदलने का साहस नहीं होता, उन्हें स्थितियों को सहना पड़ता है कल्याणी !
कल्याणी : तो क्या आप की व्यवस्था में भी मेरी मुक्ति का कोई मार्ग नहीं है ?
चाणक्य : यंत्रणाओं से हारकर तो हर कोई मर सकता है, पर यंत्रणाओं पर विजय पा बहुत कम मुक्त होते हैं कल्याणी !
कल्याणी मर जाएगी, मुक्त हो जाएगी ! पर उससे क्या होगा ? क्या तेरी मुक्ति में ही तेरे प्रश्नों का समाधान है ? एक कल्याणी यंत्रणाओं से मुक्त हो जाएगी तो दूसरी कल्याणी दुसरी यंत्रणाओं से ग्रस्त हो जाएगी !
कल्याणी : आपने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया आचार्य !
चाणक्य : तो सुन कल्याणी ! इस समाज की मुक्ति में ही तेरी मुक्ति है !
कल्याणी : यानी मेरी मुक्ति का कोई मार्ग नहीं है ......
चाणक्य : जिन्हें मार्ग दिखाना होता है, आज वे ही मार्ग पूछ रहे हैं ?
कल्याणी : आचार्य ?
चाणक्य : हाँ कल्याणी, तू स्त्री है, इसलिए तेरी ओर मैं और अधिक अपेक्षा से देखता हूँ.
इस संसार को बदलने का सामर्थ्य स्त्री में है !
अपने सामर्थ्य को पहचान !
अगर स्थितियाँ स्वीकार नहीं हैं, तो उन्हें बदल !
ये स्थितियाँ ही तो तेरे गर्भ और ज्ञान को चुनौती दे रही हैं !
उन्हें स्वीकार कर !
याद रख, उत्तर तेरे गर्भ में ही जन्म लेगा !
कल्याणी : क्या वो सामर्थ्य मुझे प्राप्त होगा ?
चाणक्य : जिसके भीतर जितना सत्य होगा, उसे उतना ही सामर्थ्य प्राप्त होगा कल्याणी !
इसलिए कहता हूँ, स्थितियों से भागने का प्रयत्न मत कर !
उनसे लड़ !
यदि पुरानी मर्यादाएँ तेरे मार्ग में आती हैं, तो नवीन संरचना कर; जहाँ तू मुक्त हो !
पुरानी मर्यादाएँ स्वयं तेरा मार्ग छोड़ देंगी !
उठ !
निराश मत हो !
अपने को योग्य बना !
प्रयास कर !
तक्षशिला का भविष्य तो तुझे ही लिखना है !
वह तो तेरे अड्क में ही आकार लेगा !

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पितामह भीष्म के जीवन का एक ही पाप था कि उन्होंने समय पर क्रोध नहीं किया ...
और 
.....जटायु के जीवन का एक ही पुण्य था कि उसने समय पर क्रोध किया.परिणामस्वरुप ................एक को बाणों कि शैय्या मिली और एक को प्रभु श्री राम की गोद.
अतः क्रोध तब पुन्य बन जाता है जब वह धर्म और मर्यादा के लिए किया जाए.और वही क्रोध तब पाप बन जाता है जब वह धर्म और मर्यादा को चोट पहुंचाए.

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