Friday, 20 March 2015

sanskar.........

कानपुर का असली नाम कान्हापुर !
दिल्ली का असली नाम इन्द्रप्रस्थ !
हैदराबाद का असली नाम भाग्यनगर !
इलाहाबाद का असली नाम प्रयाग !
औरंगाबाद का असली नाम संभाजी नगर !
अहमदाबाद का असली नाम कर्णावती !
अलीगढ़ का असली नाम
हरीगढ़ !
मिराज का असली नाम शिवप्रदेश !
मुजफ्फरनगर का असली नाम लक्ष्मीनगर !
आजमगढ का असली नाम आर्य गढ !
अजमेर का असली नाम अजय मेरु !
सुल्तानगँज का असली नाम चम्पानगरी !
बुरहानपुर का असली नाम ब्रह्म पुर !
ओसामानाबाद का असली नाम धारा शिव ( महाराष्ट्र मे ) !
ये सभी नाम मुगलो , अंग्रेजो ओर आज तक
की सभी सरकार ने बदले है !
हम सोशल मीडिया में
ही इनका असली नाम लिखा करे !

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पंचतंत्र वाली "बगुला भगत" की कहानी 

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एक बगुला तालाब के किनारे खडा हो गया और लगा आंखों से आंसू बहाने। एक केकडे ने उसे आंसू बहाते देखा तो वह उसके निकट आया और पूछने लगा 'मामा, क्या बात है भोजन के लिए मछलियों का शिकार करने की बजाय खडे आंसू बहा रहे हो?'

बगुले ने केकडे को बताया कि यह बात उसे एक त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई कि 'इस प्रदेश में सूखा पडने वाला हैं'.... फिर ये बात सुन कर उस तालाब के सारे जीव मछलियां, कछुए, केकडे, बत्तखें व सारस आदि दौडे-दौडे बगुले के पास आए और बोले 'भगत मामा, अब तुम ही हमें कोई बचाव का रास्ता बताओ। अपनी अक्ल लडाओ तुम तो महाज्ञानी बन ही गए हो।'

बगुले ने कुछ सोचकर बताया कि वहां से कुछ कोस दूर एक जलाशय हैं जिसमें पहाडी झरना बहकर गिरता हैं। वह कभी नहीं सूखता। यदि जलाशय के सब जीव वहां चले जाएं तो बचाव हो सकता हैं। अब समस्या यह थी कि वहां तक जाया कैसे जाएं? बगुले भगत ने यह समस्या भी सुलझा दी 'मैं तुम्हें एक-एक करके अपनी पीठ पर बिठाकर वहां तक पहुंचाऊंगा क्योंकि अब मेरा सारा शेष जीवन दूसरों की सेवा करने में गुजरेगा।'
सभी जीवों ने गद्-गद् होकर ‘बगुला भगतजी की जै’ के नारे लगाए।
अब बगुला भगत के पौ-बारह हो गई। वह रोज एक जीव को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता और कुछ दूर ले जाकर एक चट्टान के पास जाकर उसे उस पर पटककर मार डालता और खा जाता। कभी मूड हुआ तो भगतजी दो फेरे भी लगाते और दो जीवों को चट कर जाते तालाब में जानवरों की संख्या घटने लगी। चट्टान के पास मरे जीवों की हड्डियों का ढेर बढने लगा और भगतजी की सेहत बनने लगी। खा-खाकर वह खूब मोटे हो गए। मुख पर लाली आ गई और पंख चर्बी के तेज से चमकने लगे। उन्हें देखकर दूसरे जीव कहते 'देखो, दूसरों की सेवा का फल और पुण्य भगतजी के शरीर को लग रहा है।

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