.बौद्धिक खतना :-
बड़ी देर से पाठक सोच रहे होंगे कि यह “बौद्धिक खतना” कौन सा नया शब्द है। मुस्लिमों के धार्मिक कर्म “खतना” के बारे में आप सभी लोग जानते ही होंगे, उसके पीछे कई वैज्ञानिक एवं धार्मिक कारण गिनाये जाते रहे हैं, मैं उनकी डीटेल्स में जाना नहीं चाहता…। खतना करवाने वाले मुस्लिम तो अपने धर्म का ईमानदारी से पालन करते हैं, उनमें से बड़ी संख्या में भारतीय संस्कृति एवं हिन्दुओं के खिलाफ़ दुर्भावना नहीं रखते…।
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जबकि “बौद्धिक खतना” सिर्फ़ हिन्दुओं का किया जाता है, यह एक ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसमें हिन्दुओं के दिमाग की एक नस गायब कर दी जाती है जिससे वह हिन्दू अपने ही हिन्दू भाईयों, भारतीय संस्कृति, भारत की अखण्डता, भारत के स्वाभिमान, राष्ट्रवाद… जैसी बातों को या तो भूल जाता है या उसके खिलाफ़ काम करने लगता है…। इस प्रक्रिया को एक दूसरा नाम भी दिया जा सकता है - “मानसिक बप्तिस्मा”, यह भी सिर्फ़ हिन्दुओं का ही किया जाता है और बचपन से ही “सेंट” वाले स्कूलों में किया जाता है।
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जिस प्रकार “बौद्धिक खतना” होने के बाद ही व्यक्ति को “ग” से गणेश कहने में शर्म महसूस होती है, और वह “ग” से गधा कहता है… उसी प्रकार मानसिक बप्तिस्मा हो चुकने की वजह से ही सरकार में बैठे लोग, सिस्टर अल्फ़ोंसा की तस्वीर वाला सिक्का जारी करते हैं… या फ़िर कांची के शंकराचार्य को ठीक दीपावली के दिन गिरफ़्तार करते हैं… रामसेतु को तोड़ने के लिये ज़मीन-आसमान एक करते हैं, ताकि हिन्दुओं में हीन-भावना निर्माण की जा सके। .
नगालैण्ड में “नागालैण्ड फ़ॉर क्राइस्ट” का खुल्लमखुल्ला अलगाववादी नारा लगाने वाले एवं जगह-जगह इसके बोर्ड लगाने के बावजूद यदि कोई कार्रवाई नहीं होती…, तिरंगा जलाने वाले हुर्रियत के देशद्रोही नेता भारत भर में घूम-घूमकर प्रवचन दे पाते हैं…,
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भारत की गरीबी बेचकर रोटी कमाने वाली अरुंधती रॉय भारत को “भूखे-नंगों का देश” कहती है… एक छिछोरा चित्रकार नंगी कलाकृतियों को सरस्वती-लक्ष्मी नाम देता है और बचकर निकल जाता है… यह सब बौद्धिक खतना या मानसिक बप्तिस्मा के ही लक्षण हैं…
बड़ी देर से पाठक सोच रहे होंगे कि यह “बौद्धिक खतना” कौन सा नया शब्द है। मुस्लिमों के धार्मिक कर्म “खतना” के बारे में आप सभी लोग जानते ही होंगे, उसके पीछे कई वैज्ञानिक एवं धार्मिक कारण गिनाये जाते रहे हैं, मैं उनकी डीटेल्स में जाना नहीं चाहता…। खतना करवाने वाले मुस्लिम तो अपने धर्म का ईमानदारी से पालन करते हैं, उनमें से बड़ी संख्या में भारतीय संस्कृति एवं हिन्दुओं के खिलाफ़ दुर्भावना नहीं रखते…।
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जबकि “बौद्धिक खतना” सिर्फ़ हिन्दुओं का किया जाता है, यह एक ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसमें हिन्दुओं के दिमाग की एक नस गायब कर दी जाती है जिससे वह हिन्दू अपने ही हिन्दू भाईयों, भारतीय संस्कृति, भारत की अखण्डता, भारत के स्वाभिमान, राष्ट्रवाद… जैसी बातों को या तो भूल जाता है या उसके खिलाफ़ काम करने लगता है…। इस प्रक्रिया को एक दूसरा नाम भी दिया जा सकता है - “मानसिक बप्तिस्मा”, यह भी सिर्फ़ हिन्दुओं का ही किया जाता है और बचपन से ही “सेंट” वाले स्कूलों में किया जाता है।
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जिस प्रकार “बौद्धिक खतना” होने के बाद ही व्यक्ति को “ग” से गणेश कहने में शर्म महसूस होती है, और वह “ग” से गधा कहता है… उसी प्रकार मानसिक बप्तिस्मा हो चुकने की वजह से ही सरकार में बैठे लोग, सिस्टर अल्फ़ोंसा की तस्वीर वाला सिक्का जारी करते हैं… या फ़िर कांची के शंकराचार्य को ठीक दीपावली के दिन गिरफ़्तार करते हैं… रामसेतु को तोड़ने के लिये ज़मीन-आसमान एक करते हैं, ताकि हिन्दुओं में हीन-भावना निर्माण की जा सके। .
नगालैण्ड में “नागालैण्ड फ़ॉर क्राइस्ट” का खुल्लमखुल्ला अलगाववादी नारा लगाने वाले एवं जगह-जगह इसके बोर्ड लगाने के बावजूद यदि कोई कार्रवाई नहीं होती…, तिरंगा जलाने वाले हुर्रियत के देशद्रोही नेता भारत भर में घूम-घूमकर प्रवचन दे पाते हैं…,
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भारत की गरीबी बेचकर रोटी कमाने वाली अरुंधती रॉय भारत को “भूखे-नंगों का देश” कहती है… एक छिछोरा चित्रकार नंगी कलाकृतियों को सरस्वती-लक्ष्मी नाम देता है और बचकर निकल जाता है… यह सब बौद्धिक खतना या मानसिक बप्तिस्मा के ही लक्षण हैं…
(इन शब्दों की व्याख्या तो कर ही दी है, उम्मीद करता हूँ कि “शर्मनिरपेक्षता” और “भोन्दू युवराज” की तरह ही यह दोनों शब्द भी जल्दी ही प्रचलन में आ जायेंगे…)
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