Thursday, 9 April 2015


गुरु तेगबहादुरजी इस्लाम कबूल कर लेते है तो फिर
सब हिन्दुओं को मुस्लिम बनना होगा बिना किसी
जोर जबरदस्ती के।गुरुजी का होंसला तोड़ने केलिए
उन्हें बहुत कष्ट दिए गए।तीन महीने से वो कष्टकारी क़ैद
में थे।उनकेसामने ही उनके सेवादारों भाई दयाला जी
,भाई मति दास और उनके ही अनुज भाईसती दासको
बहुत कष्ट देकरशहीदकिया जा चुका था। लेकिन फिर
भी गुरुजी इस्लाम अपनाने के लिए नही माने।
औरंगजेबके लिए भी ये इज्जत का सवालथा ,क्या वो
गिनती में छोटे से धर्म सेहारजायेगा।समस्तहिन्दू
समाज की भी सांसेअटकी हुई थीक्या होगा? लेकिन
गुरु जी अडोलबैठे रहे। किसी का धर्म खतरे में था
धर्मका अस्तित्वखतरे में था। एक धर्म का सब कुछदांव
पे लगाथा।हाँ या ना पर सब कुछ निर्भर था।खुद चलके
आया था औरगजेब लालकिले सेनिकल कर सुनहरी
मस्जिद केकाजी केपास,,,उसी मस्जिद से कुरान की
आयत पढ़ करयातना देनेका फतवा निकलता था..वो
मस्जिदआज भी है..गुरुद्वारा शीस गंज, चांदनी
चौकदिल्ली के पास पुरे इस्लाम के लियेप्रतिष्ठा का
प्रश्न था. आखिरकार जालिमजब उनको झुकाने में
कामयाबनही हुएतो जल्लाद की तलवार चल चुकी
थी। औरप्रकाश अपने स्त्रोत में लीन हो चुका था।
येभारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़था जिसनेपुरे
हिंदुस्तान का भविष्य बदल के रख दिया। हरदिल में
रोष था। कुछ समय बाद गोबिंद राय जी नेजालिम
को उसी के अंदाज़ में जवाब देने के लिएखालसा पंथ
का सृजन की। समाज की बुराइओं सेलड़ाई ,जोकि गुरु
नानक देवजी ने शुरू की थी अबगुरु गोबिंद सिंह जी
नेउस लड़ाई को आखिरी रूपदे दिया था।दबा कुचला
हुआ निर्बल समाज अबमानसिक रूप से तो परिपक्व हो
चूका था लेकिनतलवार उठाना अभी बाकी था।
खालसा की स्थापना तो गुरु नानक देव् जी नेपहले चरण
के रूप में 15 शताब्दी में ही करदी थी लेकिन आखरी
पड़ाव गुरु गोबिंद सिंह जी नेपूरा किया। जब उन्होंने
निर्बल लोगो मेंआत्मविश्वास जगाया औरउनको
खालसाबनाया और इज्जत सेजीना सिखाया।
निर्बल और असहाय की मददका जो कार्य उन्होंने शुरू
किया था वो निर्विघ्नआजभी जारी है।गुरु तेग
बहादुर जी जिन्होंनेहिन्द की चादर बनकर तिलक और
जनेऊकी रक्षा की ,उनका एहसान भारतवर्षको नही
भूलना चाहिए । सुधीजनजरा एकांतमें बैठकर सोचें अगर
गुरु तेग बहादुरजी अपना बलिदान न देते तो हर मंदिर की
जगहएक मस्जिद होती और घंटियों की जगह
अज़ानसुनायी दे रही होती।

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