Friday, 17 April 2015

महांडित कौन? बेटा या बाप?


महांडित कौन? बेटा या बाप? 
हिन्दुस्तानी लहू से चीन में संभव हुआ वेदवाणी का प्रसारण!
प्रस्तुति: फरहाना ताज
एक थे महापण्डित राहुल सांकृत्यायन। कट्टर सनातनी ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर भी अधिक पढ लिखने के कारण सनातन धर्म की रूढ़ियों को राहुल ने अपने ऊपर से उतार फेंका और जो भी तर्कवादी धर्म या तर्कवादी समाजशास्त्र उनके सामने आते गये, उसे ग्रहण करते गये और शनैः शनैः उन धर्मों एवं शास्त्रों के भी मूल तत्वों को अपनाते हुए उनके बाह्य ढाँचे को छोड़ते गये।
सनातन धर्म से आर्य समाज, आर्य समाज से बौद्ध धर्म और फिर साम्यवाद-राहुल जी के सामाजिक चिन्तन का क्रम है। इस इनसान ने बहुत से देशों की यात्राएं की और यह तिब्बत में चौथी बार 1938 ई. में पहुंचा। उन दिनों तिब्बत में चीनी जासूस बहुत से थे। चीनी जासूसों ने इस इनसान को अपने पक्ष में किया और च्यांगसी नामक युवती से इनका विवाह करवा दिया। उनसे एक बेटा हुआ तो इनकी पत्नी ने पूछा क्या नाम रखें, तो इन्होंने कहा जो हुआ सो हुआ? बेचारे ने दर्जनों भाषा सीखी थी, लेकिन चीनी ढंग से न सीख पाया और वहां से भाग आए, क्योंकि चीन इनके द्वारा भारत की जासूसी भी करवाना चाहता था और रूस की भी।
जीवन के अंतिम दिनों में राहुल सांकृत्यायन की ‘स्मृति लोप’ हो गई। इन्हें इलाज हेतु उन्हें मास्को ले जाया गया, वहां इनका चीनी बेटा और पत्नी आकर मिले तो विष्णु प्रभाकर जी ने राहुल से कहा, ‘‘पहचानते हो यह औरत कौन है?’’
‘‘नहीं!’’
‘‘जरा याददाश्त पर ध्यान दो!’’
‘‘कहीं यह मेरी मां तो नहीं!’’
इतना सुनते ही वह औरत अपने बेटे को लेकर वापस चीन लौट आई। बेटे ने मां से पूछा, ‘‘मेरे पिता का वास्तविक धर्म क्या है?’’
‘‘हिन्दू!’’
‘‘लेकिन इन्होंने बार-बार धर्म क्यों बदला?’’
‘‘हर मजहब की और संप्रदाय की औरतों से शादी करने के लिए ही धर्म बदलता रहा, लेकिन यह व्यक्ति नहीं जानता था कि अपना धर्म ही सर्वश्रेष्ठ होता है, यदि जानता तो आज इसकी यह हालत न होती, अपनी ही औरत को मां न कहता।’
‘‘मां हम भी हिन्दू धर्म में लौटेंगे।’’ बेटे ने कहा।
‘‘क्यों?’’
‘‘क्योंकि आपने ही तो कहा है कि अपना ही धर्म सर्वश्रेष्ठ होता है!’’
और कालांतर में चीन के इस सपूत झयांग सांकृत्यायन ने वेदों के अनेक मंत्रों का अंग्रेजी माध्यम से चीनी भाषा में अनुवाद किया। चीन में इस्लाम की आबादी पर रोक लगाने के लिए इसी महामानव ने नीति तैयार की थी। पेइचिंग में वेद मंदिर की स्थापन की और इनके द्वारा प्रकाशित चीनी भाषा में सत्यार्थ प्रकाश के 12 संस्करण आज तक छपे हैं। यहां चीनी सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम दो पृष्ठों के चित्र दिए जा रहे हैं।
यह वृतांत प्रख्यात साहित्यकार श्री विष्णु प्रभाकर जी ने आज से 15 साल पहले सुनाया था, हमने हिन्दी साहित्य का गौरवशाली इतिहास नामक अपनी पुस्तक में श्री प्रभाकर जी का विशेष धन्यवाद भी अदा किया है

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