Tuesday, 7 April 2015

vichar...............क्या कुछ भी वास्तविक है?

क्या कुछ भी वास्तविक है?
ARE YOU REAL? "आप मैट्रिक्स में रहते हैं"................
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किसी विडियो गेम में दिखने वाली वस्तुए BIT की बनी होती है.. 
आपके आस पास भी पदार्थ है ही कहा?
वैज्ञानिको ने विश्व को तूफानी तरंगो की हलचल मात्र माना है
जो कुछ पदार्थ हम आस पास देखते है वो वास्तव में इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन अर्थात ऊर्जा की छोटी छोटी स्ट्रिंग्स है जिन्हें हम इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रिपल्शन के कारण महसूस करते है
पदार्थ है ही कहा?
सब कुछ ऊर्जा ही है
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विश्व के कंप्यूटर प्रोग्राम होने का सबसे बड़ा सबूत इसका "मैथमेटिकल" होना है
विश्व का प्रत्येक कण गडित की भाषा बोलता है... गडितीय नियमितता ही ब्रह्माण्ड का आधारभूत गुण है
और गडित को Binary Digits में कन्वर्ट किया जा सकता है
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वैज्ञानिको के अनुसार अगले 20 वर्षो के अन्दर हम खुद के डिजिटल ब्रह्माण्ड बनाने में सफल हो पायेगे... बल्कि देखा जाए तो वीडियो गेम्स हमारे बनाए गए छोटे छोटे simulated संसार ही है
क्वांटम कंप्यूटिंग के विकास के साथ अगले कुछ वर्षो में हमारे पास इतने शक्तिशाली प्रोसेसर होंगे की हम एक खुद का ब्रह्माण्ड तैयार कर पाए
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हमें पता है की आप क्या सोच रहे है?
डिजिटल ब्रह्माण्ड तो तैयार हो जाएगा
पर... "चेतना" कहा से लायेगे?
मारियो हमेशा हमारे इशारों पे काम करता है
क्या कभी कोई ऐसा वक़्त आएगा की मारियो बिना हमसे पूछे अपनी आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के आधार पर निर्णय ले पाए?
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WELL.... "वक़्त आ चुका है"
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चेतना तीन तत्वों का संगम है
"खुद के होने का एहसास... Self Awareness"
"भूत और भविष्य के कल्पना की शक्ति... Ability to run simulation and planning"
"प्रश्न पूछने की क्षमता... Ability to Ask"
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चेतना और कुछ नहीं... हमारे दिमाग में मौजूद इलेक्ट्रो केमिकल रियेक्शन से उत्पन्न आत्मबोध का विचार मात्र है
और कृतिम चेतना बनाना... मुश्किल है
असंभव नहीं
In Fact... हम आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस उत्पन्न करने में आंशिक सफलता प्राप्त कर चुके है
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पिछले दिनों जापान में मौजूद विश्व के चौथे सबसे शक्तिशाली K-Super Computer की सहायता से मानव मष्तिष्क के 1 परसेंट हिस्से की एक्टिविटी को सुपर कंप्यूटर के अन्दर उत्पन्न करने का प्रयास किया
40 मिनट की प्रोसेसिंग के बाद 82944 प्रोसेसर की क्षमता के बावजूद एक सेकंड के लिए...
"एक सेकंड"
हम सुपर कंप्यूटर के अन्दर कृतिम चेतना उत्पन्न करने में
"सफल रहे"
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एक सेकंड शायद इतना इम्प्रेस्सिव नहीं
पर.... इससे ये तथ्य नहीं बदलता की 
उन्होंने ये कर दिखाया
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क्वांटम कंप्यूटिंग के विकास के साथ हर दिन कंप्यूटर पहले से अधिक शक्तिशाली होते जा रहे है.. वैज्ञानिको के अनुसार अगर हम ऐसी मशीन तैयार कर पाए जो प्रति सेकंड 10^16 (100000000000000000) ऑपरेशन अंजाम दे दे पाए तो..
तो... हम एक कृतिम चेतना बना सकते है
और अगर हम 10^36 ऑपरेशन प्रति सेकंड अंजाम दे पाए तो
हम पृथ्वी जैसा एक डिजिटल गृह तैयार कर सकते है
और ऐसा होने में समय सीमा 20-30 वर्ष से ले कर अधिकतम सन 2192 तक आंकी गई है
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पर ये सब सुन के मेरा दिमाग एक दुसरा सवाल पूछता है
अगर हम भविष्य में कभी Post Human सभ्यता बन पाए जो इस प्रकार के कृतिम डिजिटल ब्रह्माण्ड बनाने में सक्षम हो
तो... क्या गारंटी है?
की... ऐसा भूतकाल में नहीं हुआ ?
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हो सकता है की भूतकाल में किसी उन्नत प्रजाति ने हमारे लिए इस ब्रह्मांड की रचना की और हम उस प्रजाति के हाथ के खिलोने मात्र है
और
क्या गारंटी है की वो प्रजाति वास्तविक होगी?
शायद वो भी किसी और के द्वारा बनाए प्रोग्राम का हिस्सा हो
"स्वप्न के अन्दर स्वप्न" की अवधारणा के अनंत आयाम हो सकते है
अंतिम सत्य किसे पता?
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दूसरी बात... उस प्रजाति ने एक बेहतर दुनिया क्यों नहीं बनाई?
एड्स से मरते लोग... बलात्कार का शिकार होती बच्चियों... युद्ध की विभीषिका झेल रहे लोगो... जंग पर जाते एक सिपाही के बिछड़ने से उसकी प्रेमिका को होने वाली पीड़ा का जिम्मेदार कौन है?
क्यों हमें इस आभासी दुनिया में सुख और दुःख के चक्र में फंसा कर इस असीमित ब्रह्माण्ड के अनसुलझी पहेलियो के बीच एक ऐसे दिमाग के साथ छोड़ दिया गया है... जो... "सवाल करना जानता है"
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क्या हम उनके हाथ के खिलोने मात्र है?
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Well... सभी सवालों का जवाब मिलना शायद कभी संभव ना हो
पर सवालों से भरी इस दुनिया में भटकना
और... जो हमें देख रहा है... उसे जिन्दादिली से जी कर... हमने होने का एहसास कराना ही... शायद अंतिम सत्य है
कहते है ना.. जिन्दगी का मजा... "सफ़र में है" ना की अंत में...!
smile इमोटिकॉन
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तो कभी वो वक़्त आ पायेगा जब हम प्रत्यक्ष माया के वास्तविक सत्य तक पहुच पाए?
शायद हाँ...पर उस "परम सत्य" के बाद क्या है?उम्म्म... इसका जवाब हमें "मारियो" दे सकता है wink इमोटिकॉन
 "आप मैट्रिक्स में रहते हैं"
विडियो गेम्स हम सभी ने कभी ना कभी खेले ही होगे... एक गेम ऐसा है जिससे ज्यादा पॉपुलर गेम शायद ही दुनिया में कभी आया हो "MARIO" जी हां... उसी बेहद मासूम मूछों वाले किरदार की बात कर रहा हूँ जिसका लक्ष्य coins इकट्ठे करना.. लम्बी लम्बी छलांग लगा लकड़ी के ब्लॉक्स के अवरोध पार करना.. अपनी जिन्दगी के लिए खतरे बन कर आने वाले ducks और दुसरे कीड़ो को मार कर अंत में अपने लक्ष्य...यानी प्रिंसेस तक पहुचना होता था हर स्टेज में अनेको बाधाओं को पार करने के बाद मारियो अंत में जब अपनी रानी से मिलता है तो... उसे पता चलता है की रानी नकली है... असली रानी तो किसी और आयाम में है और उसका सफ़र चलता रहता है

स्टेज दर स्टेज... आठवी स्टेज में उसे उसकी वास्तविक रानी मिलती है... अंतिम लक्ष्य मिल जाता है और
वही... ●GAME OVER लिखा आ जाता है●
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यही वजह है की शायद हमने अब तक किसी और सभ्यता के चिन्ह इस दुनिया में नहीं देखे शायद ब्रह्माण्ड पर नजर रखने वाले चाहते ही नहीं की कोई वास्तविक सत्य को जान पाए क्युकी जैसे ही इन्सान अपने वास्तविक सत्य को जान पाता है वैसे ही... गेम ओवर हो जाता है
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मीडिया वाले कैसे देश में हिन्दू विरोधी और सेक्युलर वातावरण बनाने में लगे हे बड़ी चालाकी से हिन्दू को बहका रहे उनके अंदर डर का माहोल पैदा कर रहे हे मुस्लिमो को प्रोत्साहित कर रहे हे
परसो से दो भ्रामक दलाल न्यूज मीडिया हिन्दुओ को खूब घुमा रहा,, एक तो ये इस्कॉन वाला और दूसरा 2050 तक इंडिया में मुल्लो का ही साम्राज्य.... हिन्दू लगभग साफ़ ,,
इस न्यूज द्वारा मुल्लो का मनोबल बढ़ाया गया है कि जम के इंडिया में बच्चे बनाओ ताकि 2050 तक टारगेट पूरा हॉवे ..
ज्यादा खुश ना होवो ~ ये सब ‪#‎NWO‬ या ‪#‎NewWorldOrder‬ के तहत ही है ~ इस कथित प्रतियोगिता का आयोजन ‪#‎Ford‬ की टैक्स फ्री कमाऊ संस्था ‪#‎Iskcon‬ ने किया था ~ मतलब पूरी दाल ही काली है
ये लड़की ‪#‎GCL‬ कप जीतते ही बयान देती है कि "कुरान-गीता एक सामान है एक ही शिक्षा देती हैं दोनों अल्लाह की भेजी हुई किताब हैं" !
क्या गीता और कुरान की शिक्षा एक हे दिमाक लगा के सोचना हो सकता हे क्या ? जिसने गीता और कुरान पढ़ी होंगी वो कभी नहीं कह सकता दोनों शिक्षा एक हे मकशद एक हे सबसे बड़ा महाझूट
वाह क्या मस्त सेक्युलर वातावरण बना है देश में।
‪#‎इस्कॉन‬ की स्थापना श्री प्रभुपाद जी ने बहुत अच्छे उद्देश्य से किया था ~ लेकिन श्रद्धालु हिन्दुओ द्वारा मन्दिर में श्रीकृष्ण को ‪#‎चढ़ावा‬ देख अमरीकियों की आँखे फ़टी की फ़टी रह गई और उन्होंने इस्कॉन में अपने आदमी घुसेड़ दिए - श्री प्रभुपाद जी की विष द्वारा हत्या (गूगल-यूट्यूब कर लो .. मरने से पहले स्वयं प्रभुपाद जी क्या बोल रहे है) दी गयी और इस्कॉन को हाईजैक कर के ‪#‎कमाऊ‬ संस्था बना दिया गया ~ आज इस्कॉन और साईं मन्दिर में ज्यादा फ़र्क़ नही है ?
हिन्दू पब्लिक के ‪#‎श्रद्धा‬ पर ही इस्कॉन और साईं मन्दिर का बिजनेस टिका एवं फलफूल रहा है,, दोनों फोकट के टैक्स फ्री पैसे कमा रहे है और दोनों का पैसा सरकार को नहीं जाता है ! जैसे किसी हिन्दू मन्दिर के पैसो पर इंडिया सरकार कुंडली मार के बैठी है और उस पैसे का करीब 80% मुल्लो और ईसाइयो के हित पर सरकार खर्च करती है..! बस इसी कारण मैंने इस्कॉन और साईं मन्दिर को लगभग एक समान ही माना है...!





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