Thursday, 30 April 2015

अग्निहोत्र(हवन) द्वारा वायु प्रदूषण ही नहीं, अपितु जलप्रदूषण भी कम

 पुणे (महाराष्ट्र) : वैज्ञानिको ने साबित किया है कि अग्निहोत्र(हवन) द्वारा वायु प्रदूषण ही नहीं, अपितु जलप्रदूषण भी कम किया जा सकता है। प्रदूषित जल पर अग्निहोत्र(हवन) की राख का परिणाम जांचने पर पता चला कि जल का प्रदूषण८० प्रतिशत कम हो गया. इस राख मे सूक्ष्म-जीवप्रतिबंधक (एंटिमायक्रोबियल) होती है। ‘इंटरनैशनल जर्नल ऑफ एग्रिकल्चर साइन्स एंड रिसर्च’ ने भी (आइ.जे.ए.एस.आर.) इस संशोधन पर ध्यान केंद्रित किया है। श्री. प्रणय अभंग एवं श्रीमती मानसी पाटिल ने राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोग शाला के (एन.सी.एल्) निवृत्त शास्त्रज्ञ डॉ. प्रमोद मोघे केमार्गदर्शन में यह संशोधन किया है।फर्ग्युसन महाविद्यालय के
बायोटेक्नोलोजी विभाग एवं रमणबाग
विद्यालय में अग्निहोत्र के प्रयोग
किए गए।
श्री. प्रणय अभंग ने कहा कि
अग्निहोत्र की ताजी राख एक
‘कॉलम’ में ली गई। इस में नदी का
५०० मिलीलिटर प्रदूषित जल छोडा
गया। बाद मे जल का प्रदूषण ८० प्रतिशत कम हो गया. फसल बढना तथा बीजोंको अंकुर फुटने के संदर्भ में अग्निहोत्र का प्रयोग करने पर उसके अच्छे
परिणाम मिले। एक ही प्रकार की,
समान उंचाई की, समान पृष्ठ रहनेवाले
दो पौधे रोपे को अलग अलग रखा गया। दोनों पौधों को समान सूर्यप्रकाश एवं जल उपलब्ध कराया गया. इस में एक
कक्ष में अग्निहोत्र किया गया।
परिणाम दिखाई दिया कि जिस कक्ष
में अग्निहोत्र किया गया, उस कक्ष
में पौधोंकी बाढ भली-भांति हुई है। .मंत्रोच्चार के साथ किया गया
अग्निहोत्र एवं बिना मंत्रोच्चार के
किया हुआ अग्निहोत्र का भी पौधोंके
बढनेपर होनेवाले तुलनात्मक परिणाम
का अभ्यास किया गया। इस समय
ऐसा पाया गया कि मंत्रोच्चार के साथ
किए गए अग्निहोत्र के कारण पौधे
की बाढ भली भांति हो गई। अग्निहोत्र के कारण सल्फर डायऑक्साईड तथा नायट्रोजन डायऑक्साईड इन प्रदूषकों का प्रमाण
भी ९० प्रतिशत कम हो गया है तथा
वातावरण के रोगजंतु भी कम हो गए.
श्री. अभंग ने आगे ‘अग्निहोत्र’ इस
विषय पर संशोधन करनेकी इच्छा
की; किंतु धन के अभाव मे नही कर पा रहे.

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