कामाख्या मंदिर है सबसे बड़ा तंत्र केंद्र,
ये हैं इसकी खास बातें....
कामाख्या मंदिर गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित है। इसे तंत्र का उग्र पीठ माना ा है। इसके विषय में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। यहां प्रतिवर्ष सौर आषाढ़ माह के मृगशिरा नक्षत्र के तृतीय चरण बीत जाने पर चतुर्थ चरण के मध्य पृथ्वी ऋतुवती होने पर अम्बुवासी मेला भरता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु के चक्र से खंडित होने पर सती की योनि नीलांचल पहाड़ पर गिरी थी।
कामाख्या मंदिर गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित है। इसे तंत्र का उग्र पीठ माना ा है। इसके विषय में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। यहां प्रतिवर्ष सौर आषाढ़ माह के मृगशिरा नक्षत्र के तृतीय चरण बीत जाने पर चतुर्थ चरण के मध्य पृथ्वी ऋतुवती होने पर अम्बुवासी मेला भरता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु के चक्र से खंडित होने पर सती की योनि नीलांचल पहाड़ पर गिरी थी।
51 शक्ति पीठों में कामाख्या महापीठ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि यहां पर योनि की पूजा होती है। यही वजह है कि अम्बुवासी मेले के दौरान तीन दिन मंदिर में प्रवेश करने की मनाही होती है। चौथे दिन मंदिर का पट खुलता है और विशेष पूजा के बाद भक्तों को दर्शन करने का मौका मिलता है। कामाख्या तांत्रिकों के लिए सबसे बड़ा आस्था का केंद्र है। वे इसे माता का सबसे बड़ा सिद्धिदायक शक्तिपीठ मानते हैं। इस मंदिर में लोग मनोकामना पूरी पर होने मुर्गे और बकरे चढ़ाते हैं। यहां उनकी बलि देने का भी रिवाज है।
अम्बुवासी मेले के दौरान उन चार दिनों के अंदर असम में कोई भी शुभकार्य नहीं होता, साधु और विधवाएं अग्नि को नहीं छूते और आग में पका भोजन नहीं करते हैं। पट खुलने के बाद श्रद्धालु मां पर चढाए गए लाल कपड़े के टुकड़े को पाकर धन्य हो जाते हैं। मान्यता यह भी है कि रतिपति कामदेव ने अपना पूर्व रुप भी यहीं पर प्राप्त किया था। इसलिए कामाख्या मंदिर में दर्शन करने के बाद ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में उमानंद मंदिर जाना भी जरूरी समझा जाता है। इसका निर्माण राजा नर नारायण ने करवाया था।
पौराणिक इतिहास- 108 शक्ति पीठों में शुमार होने के अलावा, ये मंदिर और इससे जुडी किवदंती अपने में एक बहुत ही रोचक दास्तां समेटे हुए है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार देवी सती अपने पिता द्वारा किये जा रहे महान यज्ञ में शामिल होने जा रही थी तब उनके पति भगवान शिव ने उन्हें वहां जाने से रोक दिया।
इसी बात को लेकर दोनों में झगड़ा हो गया और देवी सती बिना अपने पति शिव की आज्ञा लिए हुए उस यज्ञ में चली गयी। जब देवी सती उस यज्ञ में पहुंची तो वहां उनके पिता दक्ष प्रजापति द्वारा भगवान शिव का घोर अपमान किया गया। अपने पिता के द्वारा पति के अपमान को देवी सती सहन नहीं कर पाई और यज्ञ के हवन कुंड में ही कूदकर उन्होंने अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी।
जब ये बात भगवान शिव को पता चली तो वो बहुत ज्यादा क्रोधित हुए और उन्होंने दक्ष प्रजापति से प्रतिशोध लेने का निर्णय किया और उस स्थान पर पहुंचे जहां ये यज्ञ हो रहा था। उन्होंने अपनी पत्नी के मृत शरीर को निकालकर अपने कंधे में रखा और अपना विकराल रूप लेते हुए तांडव शुरू किया। भगवान शिव के गुस्से को देखते हुए भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ा जिससे देवी के शरीर के कई टुकड़े हुए जो कई स्थानों पर गिरे जिन्हें शक्ति पीठों के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि देवी सती की गर्भ और योनि यहां आकर गिरे है और जिससे इस शक्ति पीठ का निर्माण हुआ है।
कैसे पड़ा नाम- कामाख्या एक बार एक श्राप के चलते काम के देव काम देव ने अपना पौरुष खो दिया। जिन्हें बाद में देवी शक्ति के जननांगों और गर्भ से ही इस श्राप से मुक्ति मिली। तब से ही यहां कामाख्या देवी की मूर्ति को रखा गया और उसकी पूजा शुरू हुई। कुछ लोगों का ये भी मानना है की ये वही स्थान हैं जहां देवी सती और भगवान शिव के बीच प्रेम की शुरुआत हुई। संस्कृत भाषा में प्रेम को काम कहा जाता है अत: इस मंदिर का नाम कामाख्या देवी रखा गया।
कैसे पहुंचे- कामाख्या मंदिर असम की राजधानी गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर नीलाचल पर्वत पर स्थित है। सड़क, वायु या रेलमार्ग से गुवाहाटी पहुंचकर आसानी से कामाख्या माता मंदिर पहुंचा जा सकता है।
अम्बुवासी मेले के दौरान उन चार दिनों के अंदर असम में कोई भी शुभकार्य नहीं होता, साधु और विधवाएं अग्नि को नहीं छूते और आग में पका भोजन नहीं करते हैं। पट खुलने के बाद श्रद्धालु मां पर चढाए गए लाल कपड़े के टुकड़े को पाकर धन्य हो जाते हैं। मान्यता यह भी है कि रतिपति कामदेव ने अपना पूर्व रुप भी यहीं पर प्राप्त किया था। इसलिए कामाख्या मंदिर में दर्शन करने के बाद ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में उमानंद मंदिर जाना भी जरूरी समझा जाता है। इसका निर्माण राजा नर नारायण ने करवाया था।
पौराणिक इतिहास- 108 शक्ति पीठों में शुमार होने के अलावा, ये मंदिर और इससे जुडी किवदंती अपने में एक बहुत ही रोचक दास्तां समेटे हुए है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार देवी सती अपने पिता द्वारा किये जा रहे महान यज्ञ में शामिल होने जा रही थी तब उनके पति भगवान शिव ने उन्हें वहां जाने से रोक दिया।
इसी बात को लेकर दोनों में झगड़ा हो गया और देवी सती बिना अपने पति शिव की आज्ञा लिए हुए उस यज्ञ में चली गयी। जब देवी सती उस यज्ञ में पहुंची तो वहां उनके पिता दक्ष प्रजापति द्वारा भगवान शिव का घोर अपमान किया गया। अपने पिता के द्वारा पति के अपमान को देवी सती सहन नहीं कर पाई और यज्ञ के हवन कुंड में ही कूदकर उन्होंने अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी।
जब ये बात भगवान शिव को पता चली तो वो बहुत ज्यादा क्रोधित हुए और उन्होंने दक्ष प्रजापति से प्रतिशोध लेने का निर्णय किया और उस स्थान पर पहुंचे जहां ये यज्ञ हो रहा था। उन्होंने अपनी पत्नी के मृत शरीर को निकालकर अपने कंधे में रखा और अपना विकराल रूप लेते हुए तांडव शुरू किया। भगवान शिव के गुस्से को देखते हुए भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ा जिससे देवी के शरीर के कई टुकड़े हुए जो कई स्थानों पर गिरे जिन्हें शक्ति पीठों के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि देवी सती की गर्भ और योनि यहां आकर गिरे है और जिससे इस शक्ति पीठ का निर्माण हुआ है।
कैसे पड़ा नाम- कामाख्या एक बार एक श्राप के चलते काम के देव काम देव ने अपना पौरुष खो दिया। जिन्हें बाद में देवी शक्ति के जननांगों और गर्भ से ही इस श्राप से मुक्ति मिली। तब से ही यहां कामाख्या देवी की मूर्ति को रखा गया और उसकी पूजा शुरू हुई। कुछ लोगों का ये भी मानना है की ये वही स्थान हैं जहां देवी सती और भगवान शिव के बीच प्रेम की शुरुआत हुई। संस्कृत भाषा में प्रेम को काम कहा जाता है अत: इस मंदिर का नाम कामाख्या देवी रखा गया।
कैसे पहुंचे- कामाख्या मंदिर असम की राजधानी गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर नीलाचल पर्वत पर स्थित है। सड़क, वायु या रेलमार्ग से गुवाहाटी पहुंचकर आसानी से कामाख्या माता मंदिर पहुंचा जा सकता है।
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