Sunday, 19 April 2015

इंजीनियरिंग छोड़ अपने गांव में गुड बनाने का बिज़नेस शुरू किया

भारत में जिस उम्र में वोट डालने का अधिकार मिलता है उसी उम्र में पुणे के एक युवा ने इंजीनियरिंग छोड़ खेती से जुड़ा बिज़नेस शुरू किया। महज तीन साल की अवधि में बिज़नेस इतना बढ़ा कि आज वो 14 देशों में फ़ैल चुका है। और आज उसका टर्न ओवर करोड़ों में है।

अनिकेत ने 18 वर्ष की उम्र में इंजीनियरिंग छोड़ अपने गांव में गुड बनाने का बिज़नेस शुरू किया।

शुरुआत 10 लाख के इन्वेस्टमेंट के साथ हुई, लेकिन पहले ही साल में उसे जबरदस्त नुकसान झेलना पड़ा। अनिकेत ने हिम्मत नहीं हारी। उसने व्यवसाय से जुड़े किसान और अन्य व्यापारियों से राय मशवरा कर समझा की नुकसान कहां हो रहा है।

इसके बाद अनिकेत ने गुड बनाने वाली मशीनों की तकनीक को समझा। खुद अपनी तकनीक भी विकसित की। जिससे दूसरे ही साल उसे जबरदस्त मुनाफा हुआ। उसने लगभग 150 टन गुड अमेरिका, दुबई, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में एक्सपोर्ट किया। पुणे समेत मुंबई और कई बड़े शहरों में भी अनिकेत की कंपनी का गुड बिकने लगा। आज वो 14 देशों में गुड एक्सपोर्ट करता है।
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अनिकेत की कंपनी में गन्ने की मांग को देखते हुए आस-पास के गांवों के लगभग 200 किसान उसे अपनी फसल बेचने के लिए आते हैं। 

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हरियाणा के दो नौजवान जनेंद्र और सुदीप। दोनों युवा किसान सोनीपत के रहने वाले हैं और इन दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में अपनी फसल की प्रदर्शनी लगा रहे हैं।

बीटेक की डिग्री हासिल की। लेकिन, लाखों की नौकरी छोड़कर खेती को अपने पेशे के रूप में शामिल कर लिया और उस पेशे से नया मुकाम भी हासिल कर लिया है। 

जनेंद्र का कहना है कि वह अकेला ऐसा युवा किसान नहीं हैं बल्कि उनके कई साथी इसी राह पर चल पड़े हैं। जनेंद्र और सुदीप दोनों ने हाल ही में मल्टीनेशनल कंपनी में लाखों रुपए प्रतिमाह वेतन के पैकज को छोड़ा है। खेती के क्षेत्र में उतरे इन युवाओं ने पारंपरिक खेती की वर्जनाओं को तोड़ते हुए खेती में ही लाखों के वारे-न्यारे करने का सफल तर्जुबा भी हासिल किया हैं। दिल्ली के प्रगति मैदान में हाल ही में शुरू हुए 30वें अंतरराष्ट्रीय आहार मेले में हरियाणा के पंडाल में बीटेक की डिग्री हासिल कर आधुनिक खेती में जुटे ये युवा किसान के स्टाॅल आधुनिक खेती की नई मिसाल पेश कर रहे हैं।
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दरअसल इन युवा किसानों की खेती केवल गेहूं, सरसों या बाजरा की नहीं, बल्कि बेबी कॉर्न, स्वीट कॉर्न, मशरूम और ब्रोकली सरीखी आधुनिक सब्जियां हैं। आहार अंतरराष्ट्रीय मेले में फूड एवं फूड प्रोसेसिंग से जुड़े 800 से अधिक स्टाॅल लगे हैं। हरियाणा पवेलियन में भी फूड इंडस्ट्री भी लोगों को खूब आकर्षित कर रही है। ब्रोकली और बेबी कोन की खेती से जुड़े युवा किसान जनेंद्र कहते हैं कि अब समय केवल खेती का नहीं, बल्कि किसान की सफलता फूड प्रोसेसिंग इंडस्टी से जुड़ी है।

किसान सुदीप कहते हैं कि वो मशरूम की खेती ही नहीं करते, बल्कि उनकी पैकिंग और ब्रांडिंग भी करते हैं। हमारी डिब्बा बंद मशरूम की मयाद दो साल तक है। बदलते तौर में किसान की किस्मत भी इस बात से जुड़ी है कि उसे फसल का सही बाजार और कीमत मिले।

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ये "रिप-रिप-रिप-रिप" क्या है? 


आजकल देखने में आया है कि किसी मृतात्मा के प्रति RIP लिखने का "फैशन" चल पड़ा है. ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि कान्वेंटी दुष्प्रचार तथा विदेशियों की नकल के कारण हमारे युवाओं को धर्म की मूल अवधारणाएँ, या तो पता ही नहीं हैं, अथवा विकृत हो चुकी हैं...

RIP शब्द का अर्थ होता है "Rest in Peace" (शान्ति से आराम करो). यह शब्द उनके लिए उपयोग किया जाता है जिन्हें कब्र में दफनाया गया हो. क्योंकि ईसाई अथवा मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार जब कभी"जजमेंट डे" अथवा "क़यामत का दिन" आएगा, उस दिन कब्र में पड़े ये सभी मुर्दे पुनर्जीवित हो जाएँगे... अतः उनके लिए कहा गया है, कि उस क़यामत के दिन के इंतज़ार में "शान्ति से आराम करो".


लेकिन हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है. हिन्दू शरीर को जला दिया जाता है, अतः उसके "Rest in Peace" का सवाल ही नहीं उठता. हिन्दू धर्म के अनुसार मनुष्य की मृत्यु होते ही आत्मा निकलकर किसी दूसरे नए जीव/काया/शरीर/नवजात में प्रवेश कर जाती है... उस आत्मा को अगली यात्रा हेतु गति प्रदान करने के लिए ही श्राद्धकर्म की परंपरा निर्वहन एवं शान्तिपाठ आयोजित किए जाते हैं. अतः किसी हिन्दू मृतात्मा हेतु "विनम्र श्रद्धांजलि", "श्रद्धांजलि", "आत्मा को सदगति प्रदान करें" जैसे वाक्य विन्यास लिखे जाने चाहिए. जबकि किसी मुस्लिम अथवा ईसाई मित्र के परिजनों की मृत्यु पर उनके लिए RIP लिखा जा सकता है...

होता यह है कि श्रद्धांजलि देते समय भी "शॉर्टकट(?) अपनाने की आदत से हममें से कई मित्र हिन्दू मृत्यु पर भी "RIP" ठोंक आते हैं... यह विशुद्ध "अज्ञान और जल्दबाजी" है, इसके अलावा कुछ नहीं... अतः कोशिश करें कि भविष्य में यह गलती ना हो एवं हम लोग "दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि" प्रदान करें... ना कि उसे RIP (apart) करें. मूल बात यह है कि चूँकि अंग्रेजी शब्द SOUL का हिन्दी अनुवाद "आत्मा" नहीं हो सकता, इसलिए स्वाभाविक रूप से "RIP और श्रद्धांजलि" दोनों का अर्थ भी पूर्णरूप से भिन्न है.


धार्मिक अज्ञान एवं संस्कार-परम्पराओं के प्रति उपेक्षा की यही पराकाष्ठा, अक्सर हमें ईद अथवा क्रिसमस पर देखने को मिलती है, जब अपने किसी ईसाई मित्र अथवा मुस्लिम मित्र को बधाईयाँ एवं शुभकामनाएँ देना तो तार्किक एवं व्यावहारिक रूप से समझ में आता है, लेकिन "दो हिन्दू मित्र" आपस में एक-दूसरे को ईद की शुभकामनाएँ अथवा "दो हिन्दू मित्रानियाँ" आपस में क्रिसमस केक बाँटती फिरती रहें... अथवा क्रिसमस ट्री सजाने एक-दूसरे के घर जाएँ, तो समझिए कि निश्चित ही कोई गंभीर "बौद्धिक-सांस्कारिक गडबड़ी" है...

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"हिन्दू श्मशान एवं शवयात्रा" पर बहुत समय पहले तीन भागों में लेख लिखे थे... यदि वाकई समझना चाहते हों तो इन लेखों को भी पढ़ें...

http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2008/05/less-wood-hindu-cremation-environment.html

http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2008/05/less-wood-hindu-cremation-environment_06.html

http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2008/05/less-wood-hindu-cremation-environment_07.html






0000सेकुलरों द्वारा निर्मित दुनिया का सबसे बड़ा व्यंग ...
"आतंकवाद का कोई 'मज़हब' नहीं होता"
000सोनिया - किसानों की जमीन को छुने तक ना देंगे
Me - सहीं है मैडम बचाओगे तभी तो दामाद को मौका मिलेगा लुटने का l
000तुष्टिकरण की हद उस वक्त पार हो गयी जब चक्रवर्ती सम्राट अशोक के जीवन पर दिखाए जा रहे धारावाहिक में भी मुल्ला तुष्टिकरण के लिए ‪#‎मीर‬ और ‪#‎नूर‬ नाम के पात्र घुसा दिए गए जबकि अशोक के कोई 900 साल बाद जाकर कहीं इस्लाम नाम की खरपतवार पैदा हुई थी।

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