Saturday 26 October 2013

पुलिस की ही हात में डंडा क्यों

पुलिस है डंडा लेके घुमती है। आप किसी पुलिस ऑफिसर्स से पूछिए के डंडा क्यों है तुम्हारे हात में या किसी कांस्टेबल से पूछिए के तुम ये डंडा ठक ठक करके घूमते हो ... क्यों डंडा है तुम्हारे हात में ? किसी और अधिकारी के हात में आपने डंडा देखा है ? पुलिस की ही हात में डंडा क्यों? बड़ा ऑफिसर है तो छोटा रूल लेके चलेगा और छोटा अधिकारी है तो लम्बा सा डंडा लेके चलेगा। क्यों ?? कोई भेड़ बखरीओं को चराने जाना है क्या ? गाँव का कोई लकडहारा भेड़ बखरीओं को चराने जाता है तो डंडा लेके जाता है, तो भाई डंडे से भैंस को हांकता है बखरी को हांकता है तो ठीक है लेकिन तुम पुलिसवाले ये डंडा लेके क्यों ठक ठक करते हो ?

पुलिस मैन्युअल में ये लिखा हुआ है के हर पुलिस ऑफिसर को डंडा लेना ही पड़ेगा। 1860 का कानून है Indian Police Act , उस कानून में ये लिखा हुआ है के पुलिस जो है वो अंग्रेजो का है और डंडा जिस पर चलेगा वो भारतीय लोग है, तो अंग्रेजो की पुलिस के हर एक व्यक्ति के हात में डंडा होना चाहिए ताकि वो भारतीय लोगों को जब चाहे तब पिट सके। तो Indian Police Act के हिसाब से हर अंग्रेज पुलिस ऑफिसर को एक अधिकार दिया गया है जिसको अंग्रेजी में कहते है Right to Offence और भारतवासी जिसकी पिटाई हो रही है उसको कोई अधिकार नही है Right to Defense आपको अपने Defense करने का कोई अधिकार नही है। अगर पुलिस ऑफिसर ने डंडा चलाया और आपने उसका डंडा पकड़ लिया तो केस आपके ऊपर बनेगा नाकि ऑफिसर के ऊपर के आपने एक पुलिस ऑफिसर को उसकी ड्यूटी करने से रोका।

यह कानून 1860 का बनाया हुआ आज भी चल रहा है और पुरे देश में लाबू है, उसमे कहीं कोई बदलाव नही हुआ है।

अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें: �
http://www.youtube.com/watch?v=lCQPy6AL5uk

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मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करें – 

हजारों सालोंसे हमारे यहाँ मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता आया है। अभी कुछ सालो पहले तक गाँव की शादियों में तो मिट्टी के बर्तन ही उपयोग में आते थे। घरों में दाल पकाने, ढूध गरम करने, दही ज़माने, चावल बनाने और आचार रखने के लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता रहा है। मिट्टी के बर्तन में जो भोजन पकता है उसमे सुक्ष्म पोषक तत्वों (Micronutrients) की कमी नही होती जबकि प्रेशर कुकर व अन्य बर्तनों में पकाने से सुक्ष्म पोषक तत्वों कम हो जाते हैं जिससे हमारे भोजन की पौष्टिकता कम हो जाती है। खाना धीरे धीरे पकाना चाहिए तभी वह पौष्टिक और स्वादिष्ट पकेगा और उसके सुक्ष्म पौषक तत्वों सुरक्षित रहेंगे।

हमारे शारीर को प्रतिदिन 18 प्रकार के सुक्ष्म पौषक तत्त्व चाहिये जो मिट्टी से ही आते है। जैसे आयरन, केल्शियम, फास्फोरस, मैगनेसियम, सल्फ़र, पोटासियम, कॉपर - आदि। मिट्टी के इन्ही गुणों और पवित्रता के कारण हमारे यहाँ पूरी के मंदिरों (उड़ीसा) के अलावा कई मंदिरों में आज भी मिट्टी के बर्तनों में प्रसाद बनता है। अधिक जानकारी के लिए पूरी के मंदिर की रसोई देखे।

अपने आसपास के कुम्हारों से मिट्टी के बर्तन लें व उन्हें बनाने के लिए प्रेरित करें।
यहाँ क्लिक करें: http://www.youtube.com/watch?v=Q2IsL_xpuGY

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गणेशशंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 में अपने ननिहाल प्रयाग में हुआ था। इनके पिताजी का नाम श्री जयनारायण था। पिता एक स्कूल में अध्यापक के पद पर नियुक्त थे और उर्दू तथा फारसी ख़ूब जानते थे। गणेशशंकर विद्यार्थी की शिक्षा-दीक्षा मुंगावली ग्वालियर में हुई थी। पिता के समान ही इन्होंने भी उर्दू-फ़ारसी का अध्ययन किया।

गणेशशंकर विद्यार्थी अपनी आर्थिक कठिनाइयों के कारण अधिक नहीं पढ सके परंतु अपनी मेहनत और लगन के बल पर उन्होंने पत्रकारिता के गुणों को खुद में भली प्रकार से सहेज लिया था। शुरु में गणेश शंकर जी को सफलता के अनुसार ही एक नौकरी भी मिली थी, लेकिन उनकी अंग्रेज अधिकारियों से नहीं पटी, जिस कारण उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी।
इसके बाद कानपुर में गणेश जी ने करेंसी ऑफ़िस में नौकरी की, किन्तु यहाँ भी अंग्रेज़ अधिकारियों से इनकी नहीं पटी। अत: यह नौकरी छोड़कर अध्यापक हो गए। आचार्य महावीरप्रसाद दिवेदी इनकी योग्यता से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने विद्यार्थी जी को अपनी पत्रिका सरस्वती के लिये उन्हें कार्य पर रख लिया। 

एक ही वर्ष के बाद \'अभ्युदय\' नामक पत्र में चले गये और फिर कुछ दिनों तक वहीं पर रहे। इसके बाद सन 1907 से 1912 तक का इनका जीवन अत्यन्त संकटापन्न रहा। इन्होंने कुछ दिनों तक \'प्रभा\' का भी सम्पादन किया था। 1913 अक्टूबर मास में \'प्रताप\' के सम्पादक हुए। इन्होंने अपने पत्र में किसानों की आवाज़ बुलन्द की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं पर विद्यार्थी जी के विचार बड़े ही निर्भीक होते थे। सरदार भगत सिंह को \'प्रताप\' से विद्यार्थी जी ने ही जोड़ा था। विद्यार्थी जी राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा प्रताप में छापी, क्रान्तिकारियों के विचार व लेख प्रताप में निरन्तर छपते रहते।

25 मार्च सन 1931 में कानपुर के हिन्दू-मुस्लिम दंगे में निस्सहायों को बचाते हुए गणेश शंकर विध्यार्थी जी की हत्या हो गयी ,उनका शव सरकारी चिकित्सालय में फूली हुई स्थिति में मिली व अश्रुपूर्ण नेत्रों से उनका दाहसंस्कार कानपुर के राष्ट्रवादी युवाओं के द्वारा किया गया ।

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प्लास्टिक सर्जरी (Plastic Surgery) जो आज की सर्जरी की दुनिया मे आधुनिकतम विद्या है इसका अविष्कार भारत मे हुअ है| सर्जरी का अविष्कार तो हुआ हि है प्लास्टिक सर्जरी का अविष्कार भी यहाँ हि हुआ है| प्लास्टिक सर्जरी मे कहीं की प्रचा को काट के कहीं लगा देना और उसको इस तरह से लगा देना की पता हि न चले यह विद्या सबसे पहले दुनिया को भारत ने दी है|

1780 मे दक्षिण भारत के कर्णाटक राज्य के एक बड़े भू भाग का राजा था हयदर अली| 1780-84 के बीच मे अंग्रेजों ने हयदर अली के ऊपर कई बार हमले किये और एक हमले का जिक्र एक अंग्रेज की डायरी मे से मिला है| एक अंग्रेज का नाम था कोर्नेल कूट उसने हयदर अली पर हमला किया पर युद्ध मे अंग्रेज परास्त हो गए और हयदर अली ने कोर्नेल कूट की नाक काट दी|

कोर्नेल कूट अपनी डायरी मे लिखता है के “मैं पराजित हो गया, सैनिको ने मुझे बन्दी बना लिया, फिर मुझे हयदर अली के पास ले गए और उन्होंने मेरा नाक काट दिया|” फिर कोर्नेल कूट लिखता है के “मुझे घोडा दे दिया भागने के लिए नाक काट के हात मे दे दिया और कहा के भाग जाओ तो मैं घोड़े पे बैठ के भागा| भागते भागते मैं बेलगाँव मे आ गया, बेलगाँव मे एक वैद्य ने मुझे देखा और पूछा मेरी नाक कहाँ कट गयी? तो मैं झूट बोला के किसीने पत्थर मार दिया, तो वैद्य ने बोला के यह पत्थर मारी हुई नाक नही है यह तलवार से काटी हुई नाक है, मैं वैद्य हूँ मैं जानता हूँ| तो मैंने वैद्य से सच बोला के मेरी नाक काटी गयी है| वैद्य ने पूछा किसने काटी? मैंने बोला तुम्हारी राजा ने काटी| वैद्य ने पूछा क्यों काटी तो मैंने बोला के उनपर हमला किया इसलिए काटी|फिर वैद्य बोला के तुम यह काटी हुई नाक लेके क्या करोगे? इंग्लैंड जाओगे? तो मैंने बोला इच्छा तो नही है फिर भी जाना हि पड़ेगा|”

यह सब सुनके वो दयालु वैद्य कहता है के मैं तुम्हारी नाक जोड़ सकता हूँ, कोर्नेल कूट को पहले विस्वास नही हुआ, फिर बोला ठेक है जोड़ दो तो वैद्य बोला तुम मेरे घर चलो| फिर वैद्य ने कोर्नेल को ले गया और उसका ऑपरेशन किया और इस ऑपरेशन का तिस पन्ने मे वर्णन है| ऑपरेशन सफलता पूर्वक संपन्न हो गया नाक उसकी जुड़ गयी, वैद्य जी ने उसको एक लेप दे दिया बनाके और कहा की यह लेप ले जाओ और रोज सुबह शाम लगाते रहना| वो लेप लेके चला गया और 15-17 दिन के बाद बिलकुल नाक उसकी जुड़ गयी और वो जहाज मे बैठ कर लन्दन चला गया|

फिर तिन महीने बाद ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे खड़ा हो कोर्नेल कूट भाषण दे रहा है और सबसे पहला सवाल पूछता है सबसे के आपको लगता है के मेरी नाक कटी हुई है? तो सब अंग्रेज हैरान होक कहते है अरे नही नही तुम्हारी नाक तो कटी हुई बिलकुल नही दिखती| फिर वो कहानी सुना रहा है ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे के मैंने हयदर अली पे हमला किया था मैं उसमे हार गया उसने मेरी नाक काटी फिर भारत के एक वैद्य ने मेरी नाक जोड़ी और भारत की वैद्यों के पास इतनी बड़ी हुनर है इतना बड़ा ज्ञान है की वो काटी हुई नाक को जोड़ सकते है|

फिर उस वैद्य जी की खोंज खबर ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे ली गयी, फिर अंग्रेजो का एक दल आया और बेलगाँव की उस वैद्य को मिला, तो उस वैद्य ने अंग्रेजो को बताया के यह काम तो भारत के लगभग हर गाँव मे होता है; मैं एकला नहीं हूँ ऐसा करने वाले हजारो लाखों लोग है| तो अंग्रेजों को हैरानी हुई के कोन सिखाता है आपको ? तो वैद्य जी कहने लगे के हमारे इसके गुरुकुल चलते है और गुरुकुलों मे सिखाया जाता है|

फिर अंग्रेजो ने उस गुरुकुलों मे गए उहाँ उन्होंने एडमिशन लिया, विद्यार्थी के रूप मे भारती हुए और सिखा, फिर सिखने के बाद इंग्लॅण्ड मे जाके उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी शुरू की| और जिन जिन अंग्रेजों ने भारत से प्लास्टिक सर्जरी सीखी है उनकी डायरियां हैं| एक अंग्रेज अपने डायरी मे लिखता है के ‘जब मैंने पहली बार प्लास्टिक सर्जरी सीखी, जिस गुरु से सीखी वो भारत का विशेष आदमी था और वो नाइ था जाती का| मने जाती का नाइ, जाती का चर्मकार या कोई और हमारे यहाँ ज्ञान और हुनर के बड़े पंडित थे| नाइ है, चर्मकार है इस आधार पर किसी गुरुकुल मे उनका प्रवेश वर्जित नही था, जाती के आधार पर हमारे गुरुकुलों मे प्रवेश नही हुआ है, और जाती के आधार पर हमारे यहाँ शिक्षा की भी व्यवस्था नही था| वर्ण व्यवस्था के आधार पर हमारे यहाँ सबकुछ चलता रहा| तो नाइ भी सर्जन है चर्मकार भी सर्जन है| और वो अंग्रेज लिखता है के चर्मकार जादा अच्चा सर्जन इसलिए हो सकता है की उसको चमड़ा सिलना सबसे अच्छे तरीके से आता है|

एक अंग्रेज लिख रहा है के ‘मैंने जिस गुरु से सर्जरी सीखी वो जात का नाइ था और सिखाने के बाद उन्होंने मुझसे एक ऑपरेशन करवाया और उस ऑपरेशन की वर्णन है| 1792 की बात है एक मराठा सैनिक की दोनों हात युद्ध मे

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पूर्वी लदाख का क्षेत्र जहाँ पर चीनी सेना घुसपैठ कर रही थी वो क्षेत्र प्राकृतिक संसाधन जैसे खनिज और रेडियोधर्मी ईंधन जैसे उरेनियम और थोरियम से समृद्ध है | सामरिक विशेषज्ञों का केहना है के इस क्षेत्र में चीन की रुचि के पीछे के कारणों में से यह एक हो सकता है | 6 साल पूर्व इस क्षेत्र मे रेडियोधर्मी ईंधन का अविष्कार हुआ जिसमे उरेनियम का रिज़र्व बहुत नवीन है पर थोरियम की गुणवत्ता बहुत उत्तम है, प्रयोगशाला के अनुसार थोरियम की उपलब्धता 5.36% है जबकि देश के दुसरे क्षेत्र मे सिर्फ 0.1% है | 10000-15000 वर्गकिलोमीटर मे फैला हुआ श्योक घाटी का क्षेत्र भूतापीय बोरेक्स और सल्फर से समृद्ध है, इसलिए यहाँ जमीन से थर्मल निर्वहन बिजली में परिवर्तित किया जा सकता है | इस क्षेत्र मे जमीन के निचे पारा, लोहा, निकल और कोयला भी हो सकता है |

लद्दाख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के द्वारा नियंत्रित है तो विशेष कानूनों के जरिये खनन और अन्वेषण कार्य नियंत्रित होता है , जिसके लिए राज्य से लाइसेंस की आवश्यकता होती है |

दक्षिण - पूर्व लद्दाख के हानले मे भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान है जिसमे विश्व के सबसे ऊंचे वेधशाला है जो एक रणनीतिक परिसंपत्ति है |

पूर्वी लद्दाख पश्मीना फाइबर में भी समृद्ध है जो जम्मू और कश्मीर के सरकार को सालाना 30-40 करोड़ रूपए राजस्य देता है |

अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखे : http://www.sunday-guardian.com/news/area-under-chinese-control-rich-in-thorium
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मानव शरीर के कई रहस्य अभी भी अनसुलझे हैं। 
अपना शरीर होते हुए भी हम इसके बारे में बहुत कुछ नहीं जानते.
आईए इसके कुछ रोचक तथ्यों का जायजा लेते हैं।

# हमारा दिमाग अभी भी वैज्ञानिकों के लिए एक अबूझ पहेली है.

# दस वाट के बल्ब की ऊर्जा के बराबर शक्ति प्रदान करने वाले हमारे दिमाग से भेजे गए संदेशों की गति 170 मील प्रति घंटे होती है.

# अक्सर सुबह को काम के लिएज्यादा उपयुक्त समझा जाता है पर दिमाग रात को ज्यादा एक्टिव होता है.

# हमारी कलाई से कोहनी की लम्बाई हमारे पैर के बराबर होती है.

# यदि दोनों हाथों को फैलाया जाए तो यह शरीर की लम्बाई के बराबर की लम्बाई होगी.

# चौबीस घंटों में हमारा दिल करीब एक लाख बार धड़कता है. जो पूरे जीवन में करीब तीस करोड़ का आंकड़ा पार करते हुए 400 मिलियन लीटर खून पंप कर शरीर को गतिमान बनाए रखता है.

# जन्म के समय हमारे शरीर में 300 हड्डियां होती हैं जो समय के साथ जुड़ कर 206 रह जाती हैं.

# हमारे सर में ही 22 हड्डियां होती हैं।

# औसतन हम दिन भर में 23000 बार सांस लेकर करीब0.6 ग्राम कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन करते हैं।

# औसतन हर आदमी करीब एक मिनट तक सांस रोक सकता है. जबकि इसका कीर्तीमान 21 मिनट 29 सेकेण्ड का है.

# हम एक दिन में करीब 5000शब्द बोल लेते हैं।

# यदि शरीर में एक प्रतिशत पानी की कमी होती है तो हम प्यास महसूस करने लगते हैं।

# आश्चर्य की बात है की आँखें खुली रख कर छींका नहीं जा सकता.

# विश्वास करेंगे कि किसी को जम्हाई लेते देख 55 प्रतिशत लोगों को पांच मिनट में जम्हाई आ जाती है.

# कोई भी इंसान बिना खाए एक महीना रह सकता है पर बिना पानी पिए एक सप्ताह निकालना भी मुश्किल हो जाता है.

# पेट में बनने वाला एसिड इतना तेज होता है की वह रेजर ब्लेड को भी गला सकता है। इसीलिए पेट के अन्दर का अस्तर हर तीसरे-चौथे दिन बदल जाता है.

# हम अपने पूरे जीवन काल में करीब 75000 लीटर पानी पी जाते हैं।

# आम इंसान के सर पर करीब एक लाख बाल होते हैं। चेहरे के बाल शरीर के अन्य हिस्सों के बालों से ज्यादा तेजी से बढ़ते हैं।

# पुरुषों तथा महिलाओं के 70 से 90 बाल रोज झड जाते हैं।

# पुरुष दिन भर में करीब 15000 बार आँखें झपकाते हैं जबकि महिलाएं इसकी दुगनी बार।

# अभी तक खोजे गए 118 पदार्थों में से 24 हमारे शरीर में भी पाए जाते हैं।

# हमारे मुंह में रोज करीब एक लीटर लार का निर्माण होता है और पूरे जीवन काल में दस हजार गैलन का।

# सुनने के मामले में हम कई जीव-जन्तुओं से पीछे हैं

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