Friday 5 February 2016

डॉ ईश्वर चन्द्र करकरेजीकी लेखनीसे, ( ईश्वर का अनुभव )
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* माननीय डॉ एस के श्रीवास्तव, जी आर एम सी के १९५७ बैच के विद्यार्थी हैं. १९६२ में एम बी बी एस और १९६५ में एम एस करने के बाद , वे अनेक वर्षों तक सर्जरी विभाग में प्रोफेसर और हेड रहे। डॉ श्रीवास्तव एक सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं और उन्हें पैसे की लालच नहीं है। अब तो उन्होंने प्राइवेट प्रैक्टिस भी छोड़ दी है। आज [११/१०/२०१५] मैं किसी मरीज के बारे में उनसे चर्चा करने गया था , चर्चा के बाद वे स्वयं होकर ही मुझे बोले =" करकरे, मुझे याद नहीं मैंने अपने जीवन में कितने मरीज देखे , हजारों तो ऑपरेशन किए , हरप्रकार के छोटे
बड़े ऑपरेशंस किए ,लेकिन मेरे इस पूरे जीवन में मैंने तीन घटनाएं ऐसी देखीं जो मुझे आज तक याद है , वे तीनों ही घटनाएं बड़ी आश्चर्य कारक है!
आज तुम्हे सुनाता हूँ... "
*१। एक बार एक कार्सिनोमा लिवर का मरीज मेरे पास आया थर्ड स्टेज थी ,मुझे लगा अब
ये ७/८ दिनों का ही मेहमान है। मैंने उसे सहज ही कहा " बाबा, अब तो तुम भजन करो बस !" मैंने तो सहज ही कहा था लेकिन पता नहीं क्या हुआ उसने मुझे प्रणाम किया और सामने ही बने हुए मंदिर में जाकर भजन करने लगा। बात आई गयी हो गयी। लेकिन मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब वही मरीज तीन महीने बाद मेरे पास आया , वह एकदम प्रसन्न था, मैंने एक्सामिन किया तो पाया की उसका तो कैंसर पूरा ठीक हो गया है ! तब मैंने उसे पूछा यह करिश्मा कैसे हुआ ? वह बोला "साहब , मैंने आपसे इलाज पूछा था ,आप बोले अब तो बस भजन करो , सो मैं घर गया ही नहीं , तब से लेकर आज तक एक मंदिर में ही रहता हूँ , हरदम भजन करता रहता हूँ !"
*२। एक बार की बात है ,एक महिला मेरे पास आयी , उसका दुधमुंहा बच्चा भी साथ था ,
मैंने उस महिला को एक्सामिन किया और कहा की तुम्हे तो ब्रैस्ट का कैंसर है जो दुग्ध पान की अवस्था के कारण बहुत जल्दी बढ़ गया है।[ मुझे ऐसा लगा की अब ये महिला शायद १/२ वर्ष ही जी सकेगी।], उस महिला ने अपने छोटे से बच्चे की तरफ देखा , फिर उसे उठाया , बिना कुछ बोले एक मंदिर में चली गयी। बच्चे को भगवान की मूर्ती के सामने रखा , फिर बच्चे को लेकर मेरे पास आयी और बोली "मैंने भगवान से प्रार्थना कर दी है , इस बच्चे के खातिर २० वर्ष मांग लिए हैं ! "वह कभी कभार मुझसे मिलने आती थी परन्तु दवाई नहीं लेती थी , भगवान से बात जो हो गयी थी ! फिर कुछ वर्षों बाद वह मेरे पास आयी और उसने कहा " डॉक्टर साब ,मैंने जिस तारीख को भगवान से उम्र माँगी थी , उसे २० वर्ष होने में सिर्फ ७ दिन शेष हैं ,अब आप बताइये क्या किया जाए ? " मैंने कहा भर्ती हो जाओ , उसे एडमिट कर लिया , मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा , ठीक सातवें दिन वह चल बसी !
*३। मेरे वार्ड में दो मरीज बिलकुल आस पास के ही पलंगों पर थे ,एक इतना सीरियस था
की मैंने आर एस ओ को कहा संभवतः कल सुबह तक ये चल बसेगा , दूसरा एकदम ठीक
हो चुका था सो मैंने आर एस ओ को कहा कल इसका डिस्चार्ज टिकट बना देना ! लेकिन दूसरे दिन सुबह जब मैं ड्यूटी पर पहुंचा तो देखा की वह सीरियस मरीज तो एकदम तंदुरस्त होकर बगीचे में घूम रहा है फिर मैं वार्ड में गया तो आर एस ओ ने बताया "सर, जिसे आज डिस्चार्ज टिकिट देना था उसका मैं डेथ सर्टिफिकेट बना रहा हूँ !" मैं आश्चर्य चकित रह
गया !
** बहरहाल , ये तीनों किस्से सुनाने के बाद उस बूहुर्ग सर्जन जो कहा वह कम महत्वपूर्ण नही है , वे बोले ... " चमत्कार होते हैं ,कई लोगों को ऐसे अनुभव आए होंगे लेकिन चमत्कार कब होगा , होगा भी या नहीं कोई नहीं जानता ,इसीलिए हमें तो भगवद गीता में कहे अनुसार अपना कार्य करते रहना चाहिए और फल उस दाता पर छोड़ देना चाहिए ! "
*** फिर मैं उठा और अपने उस सर्जरी के गुरु को प्रणाम कर उनसे विदा ली !
**** लेखक = डॉ ईश्वरचंद्र रामचन्द्र करकरे। एम बी बी एस , डी सी पी [ पैथोलॉजी ]
सौजन्य मुकुल भावे बंगलुरु ...

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