Friday, 29 July 2016

 आधी हो जायेगी कश्मीर की समस्या !!
कश्मीर की कारस्तानी का अगर जायजा लेना हो तो आपको जम्मू कश्मीर विधानसभा की सीटों का विश्लेषण करना होगा।
J & K का असली क्षेत्रफल 222236 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से भारत के पास सिर्फ 101387 वर्ग किलोमीटर इलाका है जो लद्दाख, जम्मू और कश्मीर तीन हिस्सों में विभक्त है और तीन हिस्सों की अपनी अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत है।
*लद्दाख के लोग बौद्ध पंथ को मानते हैं, जम्मू के लोग हिन्दू धर्म के अनुयायी हैं और कश्मीर घाटी में इस्लाम बहुल वर्चस्व* है। इन तीनो क्षेत्रों में सबसे बड़ा भुभाग है लद्दाख का जिसका कुल इलाका है 59146 वर्ग किलोमीटर यानि कुल क्षेत्र का 58% पर उन्हें राज्य की कुल 87 विधान सभा की सीटों में से सिर्फ 4 सीटें दी गयी है और 6 लोकसभा सीटों में से सिर्फ 1 सीट।
जम्मू का इलाका है 26293 वर्ग किलोमीटर यानि कुल क्षेत्रफल का लगभग 26% पर इसके हिस्से में 2 लोकसभा सीट हैं और 37 विधान सभा सीटें।
अब आइये देखते हैं कश्मीर घाटी की स्थिति।
इसका कुल इलाका है 15948 वर्ग किलोमीटर यानि कुल इलाके का 15% पर इसे 3 लोकसभा हासिल हैं यानि कुल लोकसभा सीटों का 50% और इन *कश्मीरियों ने नेहरू की मूर्खता का फायदा उठा कर 46 विधानसभा सीटें अपने कब्जे में कर रखी* है यानि कुल सीटों का 54% । इस गूंडागर्दी का ही यह फल है की आज तक जितने भी मुख्यमंत्री बने हैं सब घाटी से।केंद्र से जो अनुदान मिलता है उसका 80% भाग कश्मीरी डकार जाते हैं जो अंत में आतंकवादियों के हाथों में पहुँच जाता है। अब समय आ गया है की इस गूंडागर्दी को रोका जाये।
*तीनो क्षेत्रों के बीच विधानसभा की सीटों का बंटवारा उनके क्षेत्रफल के हिसाब से हो* यानि लद्दाख को 58% सीटें मिलें, जम्मू को 26% और कश्मीर को 16% तभी पूरे राज्य के लोगो के साथ न्याय हो पायेगा। धारा 370 तो जब ख़त्म होगी सो होगी पर कम से कम राज्य की विधानसभा की सीटों का तो तर्कसंगत और न्यायसंगत बंटवारा पहले हो सकता हैं ताकि *जम्मू और लद्दाख के साथ जो भेदभाव हो रहा है वो ख़त्म हो

Thursday, 28 July 2016

प्राचीनकाल में संपूर्ण धरती पर फैला था हिन्दू धर्म...

प्राश्न : कुछ अज्ञानी धर्मी और विधर्मी यह सवाल करते हैं कि अगर कई हजार वर्ष पुराना है तो फिर भारत के बाहर इसका प्रचार-प्रसार क्यों नहीं हुआ? 
 
उत्तर : जब संपूर्ण धरती पर ही प्राचीनकाल में सिर्फ हिन्दू ही एकमात्र धर्म था तो इसके प्रचार-प्रसार का क्या मतलब। शिव के सात शिष्यों ने इस धर्म की एक शाखा को विश्व के कोने-कोने में फैलाया था। अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा, अथर्वा, वशिष्ठ, विश्वामित्र, भारद्वाज, मरीचि, कश्यप, अत्रि, भृगु, गर्ग, अगस्त्य, वामदेव, शौनक, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, नारद, विश्‍वकर्मा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, जमदग्नि, गौतम, मनु, बृहस्पति, उशनस (शुक्राचार्य), विशालाक्ष, पराशर, पिशुन, कौणपदंत, वातव्याधि और बहुदंती पुत्र आदि ऋषियों ने वैदिक ज्ञान की रोशनी को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया। प्रारंभिक जातियां सुर (देवता) और असुर (दैत्य) दोनों ही वेदों के ज्ञान को मानती थी।
हिन्दू धर्म की कहानी जम्बूद्वीप के इतिहास से शुरू होती है। इसमें भारतवर्ष जम्बूद्वीप के नौ खंडों में से एक खंड है। भारतवर्ष के इतिहास को ही हिन्दू धर्म का इतिहास नहीं समझना चाहिए। प्राचीनकाल में अफ्रीका और दक्षिण भारत के अधिकतर हिस्से जल में डूबे हुए थे। जल हटा तो यहां जंगल और जंगली जानवरों का विस्तार हुआ। यहीं से निकलकर व्यक्ति सुरक्षित स्थानों और मैदानी इलाकों में रहने लगा। यह स्थान उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के बीचोंबीच था जिसे आज हम अलग अगल नामों से पुकारते हैं। यह क्षेत्र दक्षिणवर्ती हिमालय के भूटान से लेकर हिन्दूकुश पर्वत के पार इसराइल तक था।

इस बीच कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उजबेकिस्तान, किर्गिस्तान, तुर्की, सीरिया, इराक, स्पेन आद‍ि सभी जगह पर हिन्दू धर्म से जुड़े साक्ष्य पाए गए हैं। विद्वानों अनुसार अरब की यजीदी, सबाइन, सबा, कुरैश आदि कई जातियां का प्राचीन धर्म हिन्दू ही था। प्रारंभ में प्राचीन मानव ने प्राचीन काल में जल प्रलय और बर्फ से बचने के लिए ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों और गुफाओं और सुरक्षित मैदानों को अपने रहने का स्थान बनाया। इसमें पामीर, तिब्बत और मालवा के पठारों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। सभ्यताओं के विकास क्रम में सिल्क रुट तो बहुत बाद में बना।
 
'जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित:,
भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतम्‌,
हरिवर्षं तथैवान्यन्‌मेरोर्दक्षिणतो द्विज।
रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्यैवानुहिरण्यम्‌,
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा।
नव साहस्त्रमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम्‌,
इलावृतं च तन्मध्ये सौवर्णो मेरुरुच्छित:।
भद्राश्चं पूर्वतो मेरो: केतुमालं च पश्चिमे।
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव:
 जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने।- (विष्णु पुराण)
 
पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे-
 जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है। जम्बू द्वीप को बाहर से लाख योजन वाले खारे पानी के वलयाकार समुद्र ने चारों ओर से घेरा हुआ है। जम्बू द्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। जम्बू (जामुन) नामक वृक्ष की इस द्वीप पर अधिकता के कारण इस द्वीप का नाम जम्बू द्वीप रखा गया था।
 
रशिया से श्रीलंका और इसराइल से चीन तक फैला जम्बूद्वीप : इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। इनमें भारतवर्ष ही मृत्युलोक है, शेष देवलोक हैं। इसके चतुर्दिक लवण सागर है। इस संपूर्ण नौ खंड में इसराइल से चीन और रूस से भारतवर्ष का क्षेत्र आता है। जम्बू द्वीप में प्रमुख रूप से 6 पर्वत हैं:- हिमवान, हेमकूट, निषध, नील, श्वेत और श्रृंगवान।
 
कैसे भारत बना हिन्दुस्तान :
 पहले संपूर्ण हिन्दू धर्म कई जातियों में विभाजित होकर जम्बू द्वीप पर शासन करता था। अग्नीन्ध्र उसके राजा था। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। फिर कुरुओं और पुरुओं की लड़ाई के बाद आर्यावर्त नामक एक नए क्षेत्र का जन्म हुआ जिसमें आज के हिन्दुस्थान के कुछ हिस्से, संपूर्ण पाकिस्तान और संपूर्ण अफगानिस्तान का क्षेत्र था। लेकिन लगातार आक्रमण, धर्मांतरण और युद्ध के चलते अब घटते-घटते सिर्फ हिन्दुस्तान बचा है।
 
यह कहना सही नहीं होगा 
कि पहले हिन्दुस्थान का नाम भारतवर्ष था और उसके भी पूर्व जम्बू द्वीप था। कहना यह चाहिए कि आज जिसका नाम हिन्दुस्तान है वह भारतवर्ष का एक टुकड़ा मात्र है। जिसे आर्यावर्त कहते हैं वह भी भारतवर्ष का एक हिस्साभर है और जिसे भारतवर्ष कहते हैं वह तो जम्बू द्वीप का एक हिस्सा है मात्र है। जम्बू द्वीप में पहले देव-असुर और फिर बहुत बाद में कुरुवंश और पुरुवंश की लड़ाई और विचारधाराओं के टकराव के चलते यह जम्बू द्वीप कई भागों में बंटता चला गया।
 
भारतवर्ष का वर्णन 
समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में भारतवर्ष स्थित है। इसका विस्तार 9 हजार योजन है। यह स्वर्ग अपवर्ग प्राप्त कराने वाली कर्मभूमि है।
 
इसमें 7 कुल पर्वत हैं : महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान, ऋक्ष, विंध्य और पारियात्र।
भारतवर्ष के 9 खंड : इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है। 
मुख्य नदियां : शतद्रू, चंद्रभागा, वेद, स्मृति, नर्मदा, सुरसा, तापी, पयोष्णी, निर्विन्ध्या, गोदावरी, भीमरथी, कृष्णवेणी, कृतमाला, ताम्रपर्णी, त्रिसामा, आर्यकुल्या, ऋषिकुल्या, कुमारी आदि नदियां जिनकी सहस्रों शाखाएं और उपनदियां हैं।
 
तट के निवासी : इन नदियों के तटों पर कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए हैं।
 
किसने बसाया भारतवर्ष :
 त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था, तब इसका नाम कुछ और था।
 
जम्बूद्वीप के शासक :
 वायु पुराण के अनुसार महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि राम के कुल में पूर्व में जो भरत हुए उनके नाम पर भारतवर्ष नाम पड़ा। यहां बता दें कि पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नहीं पड़ा।
 
इस भूमि का चयन करने का कारण था कि प्राचीनकाल में जम्बू द्वीप ही एकमात्र ऐसा द्वीप था, जहां रहने के लिए उचित वातारवण था और उसमें भी भारतवर्ष की जलवायु सबसे उत्तम थी। यहीं विवस्ता नदी के पास स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास करते थे।
 
राजा प्रियव्रत ने अपनी पुत्री के 10 पुत्रों में से 7 को संपूर्ण धरती के 7 महाद्वीपों का राजा बनाया दिया था और अग्नीन्ध्र को जम्बू द्वीप का राजा बना दिया था। इस प्रकार राजा भरत ने जो क्षेत्र अपने पुत्र सुमति को दिया वह भारतवर्ष कहलाया। भारतवर्ष अर्थात भरत राजा का क्षे‍त्र। यही पर भरतों की लड़ाई उनके ही कुल के अन्य समुदाय से हुई थी जिसे दशराज्ञ के युद्ध के नाम से जाना जाता है जिसका वर्णन वेदों में है।
 
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)
 
जब भी मुंडन, विवाह आदि मंगल कार्यों में मंत्र पड़े जाते हैं, तो उसमें संकल्प की शुरुआत में इसका जिक्र आता है: ।।जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….अमुक...।
 
* इनमें जम्बू द्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है। इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है, जो कि आर्यावर्त कहलाता है।
 
।।हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्। तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।
* हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है।
 
जम्बू द्वीप का विस्तार
* जम्बू दीप : सम्पूर्ण एशिया
* भारतवर्ष : पारस (ईरान), अफगानिस्तान, पाकिस्तान, हिन्दुस्थान, नेपाल, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, मालद्वीप, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, कम्बोडिया, वियतनाम, लाओस तक भारतवर्ष।
 
आर्यावर्त :
 बहुत से लोग भारतवर्ष को ही आर्यावर्त मानते हैं जबकि यह भारत का एक हिस्सा मात्र था। वेदों में उत्तरी भारत को आर्यावर्त कहा गया है। आर्यावर्त का अर्थ आर्यों का निवास स्थान। आर्यभूमि का विस्तार काबुल की कुंभा नदी से भारत की गंगा नदी तक था। हालांकि हर काल में आर्यावर्त का क्षेत्रफल अलग-अलग रहा।
 
ऋग्वेद में आर्यों के निवास स्थान को 'सप्तसिंधु' प्रदेश कहा गया है। ऋग्वेद के नदीसूक्त (10/75) में आर्यनिवास में प्रवाहित होने वाली नदियों का वर्णन मिलता है, जो मुख्‍य हैं:- कुभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती (गोमल), सिंधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा। उक्त संपूर्ण नदियों के आसपास और इसके विस्तार क्षेत्र तक आर्य रहते थे।
कब शुरू हुआ?
यह सवाल हर हिन्दू इसलिए जानना चाहता है, क्योंकि उसने कभी वेद, उपनिषद, 6 दर्शन, वाल्मिकी रामायण और महाभारत को पढ़ा नहीं। यदि देखने और सुनने के बजाय वह पढ़ता तो उसको इसका उत्तर उसमें मिल जाता, लेकिन आजकल पढ़ता कौन है।
हिन्दू धर्म की शुरुआत पांच कल्पों में सिमटी है। सबसे पहले महत कल्प हुआ। फिर हिरण्य गर्भ कल्प, फिर ब्रह्म कल्प, फिर पद्म कल्प और‍ फिर वर्तमान में चल रहा वराह कल्प है। वराह कल्प में सृष्टि और मानव की रचना फिर से हुई और इसका विकास क्रम जारी है।
 
हिन्दू मानते हैं कि समय सीधा ही चलता है। सीधे चलने वाले समय में जीवन और घटनाओं का चक्र चलता रहता है। समय के साथ घटनाओं में दोहराव होता है फिर भी घटनाएं नई होती हैं। लेकिन समय की अवधारणा हिन्दू धर्म में अन्य धर्मों की अपेक्षा बहुत अलग है। प्राचीनकाल से ही हिन्दू मानते आए हैं कि हमारी धरती का समय अन्य ग्रहों और नक्षत्रों के समय से भिन्न है, जैसे 365 दिन में धरती का 1 वर्ष होता है तो धरती के मान से 365 दिन में देवताओं का 1 'दिव्य दिन' होता है। इसी तरह प्रत्येक ग्रह और नक्षत्रों पर दिन और वर्ष का मान अलग अलग है।
 
हिन्दू काल-अवधारणा सीधी होने के साथ चक्रीय भी है। चक्रीय इस मायने में कि दिन के बाद रात और रात के बाद दिन होता है तो यह चक्रीय है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कल वाला दिन ही आज का दिन है और आज भी कल जैसी ही घटनाएं घटेंगी। राम तो कई हुए, लेकिन हर त्रेतायुग में अलग-अलग हुए और उनकी कहानी भी अलग-अलग है। पहले त्रेतायुग के राम का दशरथ नंदन राम से कोई लेना-देना नहीं है।
 
यह तो ब्रह्मा, विष्णु और शिव ही तय करते कि किस युग में कौन राम होगा और कौन रावण और कौन कृष्ण होगा और कौन कंस? ब्रह्मा, विष्णु और महेश के ऊपर जो ताकत है उसे कहते हैं... 'काल ब्रह्म'। यह काल ही तय करता है कि कौन ब्रह्मा होगा और कौन विष्णु? उसने कई विष्णु पैदा कर दिए हैं कई अन्य धरतियों पर।
 
हिन्दू काल निर्धारण अनुसार 4 युगों का मतलब 12,000 दिव्य वर्ष होता है। इस तरह अब तक 4-4 करने पर 71 युग होते हैं। 71 युगों का एक मन्वंतर होता है। इस तरह 14 मन्वंतर का 1 कल्प माना गया है। 1 कल्प अर्थात ब्रह्माजी के लोक का 1 दिन होता है।
 
विष्णु पुराण के अनुसार मन्वंतर की अवधि 71 चतुर्युगी के बराबर होती है। इसके अलावा कुछ अतिरिक्त वर्ष भी जोड़े जाते हैं। 1 मन्वंतर = 71 चतुर्युगी = 8,52,000 दिव्य वर्ष = 30,67,20,000 मानव वर्ष। ...फिलहाल 6 मन्वंतर बीत चुके हैं और यह 7वां मन्वंतर चल रहा है जिसका नाम वैवस्वत मनु का मन्वंतर कहा गया है। यदि हम कल्प की बात करें तो अब तक महत कल्प, हिरण्य गर्भ कल्प, ब्रह्म कल्प और पद्म कल्प बीत चुका है और यह 5वां कल्प वराह कल्प चल रहा है।
 
अब तक वराह कल्प के स्वयम्भुव मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत मनु, चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वंतर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अंतरदशा चल रही है। मान्यता अनुसार सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी संवत् प्रारंभ होने से 5,632 वर्ष पूर्व हुआ था। 





30 वर्षों की मेहनत के बाद भी जो काम अमेरिका नहीं कर पाया वहीँ करिश्मा कर दिखाया एक भारतीय ने


 अमेरिका ने जिस सिद्धांत पर कार्य करते-करते 30 वर्ष बीता दिए फिर भी हाथ कुछ नहीं लगा. ठीक उसी सिद्धांत को एक भारतीय ने सिद्ध करके दिखा दिया.
असम में जन्मे मैकेनिकल इंजिनियर उद्धव भराली ने 1987 में गरीबी के कारण अपने महाविद्यालय की पढाई को बीच में ही छोड़ दिया. उन्हें अपने परिवार के लोगों द्वारा निकम्मे की उपाधि दे दी गयी क्योंकि वे हमेशा किसी पागल आदमी की तरह नए-नए कामों को करते रहते जो दुनिया ने कभी देखें ही नहीं थे. बाद में इसी पागलपन के कारण उद्धव भराली को नासा द्वारा एक सफलतम नवीन आविष्कारक के लिए नामांकित किया गया.
सन् 2006 में उद्धव द्वारा बनायीं गयी अनार के दाने निकालने वाली मशीन(Pomegranate De-Seeding Machine) को पहली बार अपने आप में एक अनोखी मशीन होने के कारण भारत ही नहीं पुरे विश्व में मान्यता प्राप्त हुई. उनकी इस सफलता को देखते हुए उन्हें चीन, अमेरिका और कई विकसित देशों से ऑफर मिले साथ ही ये देश उन्हें अपने देश की नागरिकता देने के लिए भी तैयार थे. लेकिन उन्होंने भारत के ग्रामीण इलाकों में कृषि और लघु उद्योगों के विकास हेतु अपनी सेवा दी. बाद में उन्होंने देश के ग्रामीण इलाकों के युवाओं को खेती के लिए उपकरण बनाने की ट्रेनिंग दी जिनकी लागत बहुत कम हो जिससे किसानों को अधिक खर्च ना उठाना पड़े.
वर्तमान में भराली को 118 आविष्कार करने का श्रेय प्राप्त है
भराली के जीवन के बारे में:
भराली ने अपनी स्कूल की पढाई अपने गाँव लखीमपुर के सरकारी स्कूल से की. अक्सर उनके शिक्षक उन्हें कक्षा से बाहर खड़ा रखते थे क्योंकि वे हमेशा गणित के कठिन सवालों में अपने शिक्षक को फंसा दिया करते थे.
  घर में एक गाय थी जिसके दूध से पांच लोगो का काम चलता था, कभी-कभी माँ दूध के साथ मूंगफली के दाने भी दे दिया करती थी. यही उनके पुरे दिन का भोजन होता था. भराली परिवार का बैंकों में 18 लाख रुपये बकाया था, छोटे-मोटे काम से एक बड़े परिवार का भरण पोषण करना मुश्किल होता था, इसीलिए दुर्घटनावश वे नई-नई खोजबीन करने लगे.
भराली कहते है कि जब वे कक्षा 8 में थे तब कक्षा 11वीं और 12वीं के पाठ्यक्रम की गणित के कठिन से कठिन सवालों को चुटकियों में हल कर देता था, कई बार तो कॉलेज के विद्यार्थी भी मेरे पास मदद के लिए आते थे. 14 वर्ष की उम्र में मैंने अपनी स्कूल की शिक्षा पूरी की और उसके बाद परिवार की गरीबी के साथ अपनी इंजीनियरिंग की पढाई को पूरी नहीं कर पाया.
भराली के नवीन आविष्कार की शुरुवात यहाँ से हुई (कहते है किसी के मजबूत इरादों और सपनों के आगे हर प्रकार की मुसीबत छोटी होती है.)
1987 में बैंक का पैसा न चूका पाने के कारण बैंक ने उन्हें घर खाली करने का नोटिस दिया. इसी दौरान उन्हें ये जानकारी थी कि किसी कंपनी को पोलीथिन मेकिंग मशीन की आवश्यकता है जिसकी कीमत 5 लाख रुपये थी, “मैं जानता था कि यह डील मुझे पाना है तो मुझे यह मशीन तैयार करना होगी.” और फिर क्या था कुछ ही दिनों में ठीक वैसी ही एक मशीन मात्र 67,000 की लागत में भराली ने तैयार कर दी. बस यही से शुरू हुआ सफ़र आविष्कारों का.
 2005 मे अहमदाबाद के नेशनल इनोवेशन फाउन्डेशन की नजर भराली के आविष्कारों पर पड़ी। और 2006 मे यह सिद्ध हो गया कि उनका अनार के बीज़ निकालने वाला यन्त्र दुनिया मे अनोखा है. उनके नाम पर 39 पेटेन्ट है. उनके कुछ महत्वपूर्ण आविष्कारों में सुपारी व अदरक के छिल्के निकालने वाला यंत्र, चाय के पत्तो को निकालने वाला यंत्र भी शामिल है.
पुरस्कार और सम्मान 
उन्हें मिले कई पुरस्कारो मे कुछ उल्लेखनीय पुरस्कार:
•राष्ट्रीय अन्वेषण संस्था का सृष्टि सन्मान (2007)
•अन्वेषण के लिए प्रेसिडेंट ग्रासरूट इनोवेशन पुरस्कार (2009)
•विज्ञान प्रयुक्ति विद्या मन्त्रालय से मेरिटोरियस इनोवेशन पुरस्कार (2011)
•राष्ट्रीय एकता सम्मान (2013)
•नासा के क्रियेट द फ्यूचर डिज़ाइन प्रतियोगिता मे उन्हें द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ.

Real Intent of Arvind Kejriwal Part 1 AAP DECODED

https://www.youtube.com/watch?v=8UU1KbU3sQM

AAP of Arvind Kejriwal is controlled by Ford Foundation and Gulf Countries

https://www.youtube.com/watch?v=fneWtXH1uU8

ऋषि-मुनि जानते थे विज्ञान को

 तकनीक में बदलने के दुष्परिणाम ...

किस्से-कहानियों में जो आश्रम होते हैं, उनमें हवनकुण्ड के चारों ओर बैठे ऋषिगण यज्ञोपासना करते दिखाए जाते हैं. वास्तव में वे क्या उपासना करते थे, किसकी उपासना करते थे? इस विषय में सामान्यजन को कोई जानकारी नहीं.
 इन आश्रमों में सृष्टि के रहस्यों पर विचार होता था, वैज्ञानिक सिद्धांत आविष्कृत होते थे. इस परम्परा का आरम्भ हुआ ऋक् के सिद्धांत से. अर्थात् यह जानना कि ऋतुएँ क्यों बदलती हैं, दिन-रात क्यों होते है? विद् का अर्थ हम सभी को पता है, ‘जानने वाला’. ऋक् और विद्, जानना. इसी से ही प्रथम वेद का नाम पड़ा ऋग्वेद. अनुसंधान की यह परम्परा भारतवर्ष में सुदीर्घ काल तक निरंतर चलती रही.
देश पर आर्येतर सभ्यताओं के आक्रमणों के फलस्वरूप इसमें विघ्न पड़ना आरम्भ हुआ. राक्षसों द्वारा आश्रमों को अपवित्र करने की कथाऐं सबने सुनी होंगी. रावण की राक्षस सभ्यता से लेकर हूण, शक, यवन, मुस्लिम आक्रान्ताओं और अभी कुछ सौ साल पूर्व से शुरू हुए ईसाई हमलों तक आश्रमों, हमारे इन ज्ञान-विज्ञान केन्द्रों को नष्ट करने का यह योजनाबद्ध प्रयास चलता रहा है. ईस्ट इंडिया कं. के दिनों में भारत भ्रमण पर आए एक यूरोपियन ने आश्चर्यचकित हो यह लिखा था कि अकेले बंगाल में जितनी पाठशालाएं है, उतने स्कूल तो पूरे यूरोप में भी नहीं होंगे.
विज्ञान और तकनीक दोनों बिलकुल अलग चीजें हैं. विज्ञान हमें कुछ होने या न होने के कारण बताता है. उस वैज्ञानिक सिद्धांत के आधार पर अपनी सुविधा के लिए कोई युक्ति बनाना ही तकनीक है. हम लोग प्राय: विज्ञान और तकनीक में अंतर नहीं कर पाते. ध्वनि हो या प्रकाश! दोनों ही तरंगों के सहारे चलते हैं, यह वैज्ञानिक सिद्धांत है. उन तरंगों के नियंत्रित उपयोग से फोन या टीवी बना लेना, यह उस वैज्ञानिक सिद्धांत के उपयोग की तकनीक है.
गत् दो-ढाई सौ सालों से हम यूरोपियन तकनीक से चमत्कृत, भयंकर हीनभावना से ग्रस्त हैं. ऊपर से मैकाले छाप पढ़ाई ने हमें अपने अतीत से पूर्णत: काट छोड़ा है. ऐसे में जब आर्यसमाजी प्रचारकों के मुँह से जब सुनते कि जर्मन हमारे वेद चुरा ले गए और उन्हें पढ़ कर हवाईजहाज जैसी चीजें बना लीं. तो लोग हँसते, अन्य लोग ही क्यों, हम सभी हँसते थे. किन्तु हवाईजहाज जैसी वस्तुनिष्ठ बात को छोड़ दें, तो इसमें गलत क्या कहा गया है?
पहिये का आविष्कार, ऋतुपरिवर्तन के नियम, शून्य एवं दशमलव युक्त गणना प्रणाली, खगोल और गणित ज्योतिष, कणाद का अणु सिद्धांत, गुरुत्व का नियम, पाई का अतिशुद्ध मान, आयुर्विज्ञान आदि असंख्य बहुपयोगी आविष्कारों का श्रेय भारत को है.
इतनी उन्नत सभ्यता, तो फिर गड़बड़ कहाँ हुई?
कलयुग के प्रभाव में आकर हम जिसे अपना पिछडापन समझ रहे हैं, वह ऋषियों द्वारा निश्चित किया गया अनुशासन था. किसी आश्रम में सम्राट भी निशस्त्र, नंगे सिर ही प्रवेश कर सकता है, यह नियम सोच-समझ कर ही बनाया गया था. आश्रमों में होने वाली खोजों और उनके उपयोग पर ऋषियों का नियंत्रण रहता था, राजसत्ता का नहीं. उन आविष्कारों को तकनीक में बदलने से पहले ऋषिगण अर्थात् तत्कालीन वैज्ञानिक उस खोज के हानि-लाभ का आकलन करते थे.
पश्चिमी विश्व में ऋषियों का राजसत्ता पर नियंत्रण न था. वहाँ के ऋषि/वैज्ञानिक सत्ता के अधीन थे. कोई भी सत्ता हो, उसमें शक्ति की भूख सदा ही प्रबल रही है. कोई अंकुश न होने के कारण पश्चिम में इस ज्ञान-विज्ञान का उपयोग मुख्यरूप से संहार और लघुरूप से मनुष्य की सुविधाओं के लिए किया गया.
अन्यथा जिन दिनों भारत में कोणार्क जैसे चमत्कार घट रहे थे, उस काल में आधे से अधिक यूरोपवासी खाल लपेट कर गुफाओं में रहते थे. भारतीय विज्ञान यहाँ से रिस-रिस कर अरबों के माध्यम से यूनानियों, यवनों तक पहुँचने लगा. प्रसंगवश: अरब लोग इन अंकों को आज भी हिन्दसे कहते हैं. इन्हीं हिन्दसों को यूरोप अरेबियन अंक कहता है. हाहाहा!
भारतीय कपड़े और मसालों के अरबी व्यापारियों की मुनाफाखोरी से तंग आकर यूरोप ने भारत आने का मार्ग खोजना शुरू किया. बस, यहीं से यूरोप के भौतिक वैभव की नींव पड़ी. भारत और अमेरिका से प्राप्त संपदा इतनी अधिक थी कि असीम विलासिता के बाद भी वह धन खत्म नहीं होता था. उसी अतिरिक्त धन का उपयोग और अधिक धन कमाने की नित नयी तकनीक खोजने में किया गया. यह बात अजीब लग सकती है, किन्तु आज भी सर्वोत्तम मानवीय संसाधनों का सर्वाधिक उपयोग दूसरों को गुलाम बनाने के लिए विनाशकारी वस्तुओं के निर्माण/विकास में ही होता है.
पश्चिमी विश्व की लिप्सा के फलस्वरूप पूंजी नाम का एक नया दानव उत्पन्न हो गया. वहाँ की सत्ता और वैज्ञानिक अर्थात आधुनिक ऋषि इस दानव के दास मात्र हैं. इसी लिप्सा की देन है कि आज भूजल पीने योग्य नहीं रहा, हवा साँस लेने योग्य नहीं. बिजली की भूख ने सदानीरा नदियों को विषैले नालों में बदल दिया. जल, वायु, ध्वनि और सूक्ष्म तरंगों के विकिरण से उत्पन्न प्रदूषण ने समस्त जीव जगत का जीना कठिन कर दिया है.
धरती से निकला कोयला, खनिज तेल या परमाणु ऊर्जा कितने विनाशकारी हैं, इसका अनुमान आज सबको हो रहा है. तो भी दुर्भाग्यवश इस अंधी दौड़ में शामिल होने को पूरी मानव जाति अभिशप्त है. प्राचीन ऋषियों के अनुशासन को आज मानें, तो हमारा अस्तित्व ही न रहेगा. फिर दो घंटे में दिल्ली से गोहाटी जाना है तो हवाई जहाज सबको चाहिए. मनुष्य इतना “विकसित” हो गया है कि ज़िंदा रहने के लिए दूसरे के शरीर के अंग तक खरीद रहा है. इस वैज्ञानिक अवनति से बचने का आज कोई उपाय नहीं.
प्राय: प्रश्न उठता रहता है कि तकनीक का ऐसा विकास भारत में क्यों नहीं हुआ. सीधी सी बात है कि भारतीय मनीषी यह जानते थे कि यह विकास नहीं, मुर्गी के सारे अंडे एक बारगी निकाल लेना है. इसीलिए पहिये के आविष्कार के बाद भी उन्होंने तकनीक को मानवशक्ति और पशुशक्ति से आगे नहीं बढ़ने दिया. पृथ्वी में संचित ऊर्जा के बेलगाम उपयोग से होने वाले दुष्परिणाम वे जानते थे.
पश्चिम ने इस क्षेत्र में आगे बढ़ना शुरू किया, तब हम उनके दास थे, क्या कर सकते थे? अंग्रेजों के जाने के बाद भी वही दास बनाए रखने वाली शासन प्रणाली चल रही है. अंग्रेजों की तर्ज पर विकसित नौकरशाही, असंतोष का शमन करने के लिए अनाप-शनाप सरकारी नौकरियां, नौकरी में, पदोन्नति में आरक्षण. लोकतंत्र के नाम पर सिर पर सवार गधे. इनके चलते भारत में कुछ रचनात्मक कर दिखाने की गुंजाइश ही कहाँ रह जाती है. इस व्यवस्था से खिन्न प्रतिभाएँ देश छोड़ जाती हैं. वही लोग बाहर देशों में जाकर चमत्कृत करने वाले कार्य कर दिखाते हैं.
इधर हम प्रश्न करते हैं कि भारत में तकनीकी विकास क्यों नहीं हो रहा है?




सत्य, तप, पवित्रता और करुणा, चार घटकों से ही धर्म का अस्तित्व

 – डॉ. मोहन भागवत जी

करुणा के अभाव में क्या-क्या हो रहा है. ये सब वर्तमान में हम सभी अनुभव कर रहे हैं, समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से पढ़ भी रहे हैं तथा न्यूज़ चैनलों के माध्यम से टीवी स्क्रीन पर देख भी रहे हैं. इसे बताने की आवश्यकता नहीं है. करूणा के बिना धर्म नहीं है अर्थात धर्म का अस्तित्व ही नहीं हो सकता है. धर्म के चार घटक हैं – सत्य, तप, पवित्रता और सबसे महत्वपूर्ण और इसके बिना ये तीनों भी अधूरे हैं, वह है – “करुणा.” करूणा के बिना धर्म टिक भी नहीं सकता. दुःख की बात है कि आजकल की दुनिया में करुणा का लोप हो गया है.
 सत्य की कठोरता को जीवन में उतारने के लिए करूणा की शक्ति रूपी छननी से उतारना होता है. मनुष्य के नाते ये कर्तव्य नहीं कि वो किसी को दुखों से बहार निकाल दे. बल्कि, उसके अन्दर करुणा का भाव भर दे. करुणा जिस मनुष्य के अंतःकरण में विद्यमान हो जाएगी, वह स्वतः ही दुखों का निवारण कर लेगा अर्थात जिसके अन्दर करुणा का भाव होगा, वह कभी भी द्वेष से ग्रसित नहीं होगा. जब द्वेष ही इंसान के अन्दर नहीं होगा तो उसे दुःख कहाँ से ग्रसित करेगा?
 जो सबको ठीक रखता है, एक साथ जो सबको सुख देता है, एक साथ जो सबको प्रेम देता है, उसी को धर्म कहते हैं. उसी को तो खुशी कहते हैं. यानि ये सभी क्रियांएँ मनुष्य के अन्दर सम्पन्न होती हैं सिर्फ और सिर्फ एक ही तत्व से, वह तत्व है करुणा का भाव. ये सभी एक साथ साधने वाली बात ही धर्म है. धर्म के चार घटक हैं. पर, उसका सबसे उत्तम घटक करुणा है. जिस भी मनुष्य में करुणा नहीं है तो उसकी अर्थात धर्म की धारणा ही नहीं है.
 कई बार जड़वाद के चलते धर्म में अतिवादिता उत्पन्न होती है. जो ठीक नहीं है और ये भी सत्य है कि धार्मिक परंपराएँ कर्मकांड नहीं होती हैं. कुछ सौं वर्षों से हमने अपनी परम्पराओं को छोड़कर, भुलाकर ऊपर के छोर को पकड़ना शुरू कर दिया है. जिससे समाज में उत्पात मचा हुआ है. धर्म के तीनों तथ्यों सत्य, तप और पवित्रता को चरित्रार्थ करने के लिए करूणा की आवश्यकता होती है. बौद्ध धर्म बुद्ध को करूणा का अवतार कहते ही नहीं, बल्कि मानते हैं.
 सारे विश्व में करूणा केअभाव में जो स्वार्थ और तांडव चला हुआ है. उसे समाप्त करने के लिए संसार में करूणा का प्रचालन शुरू करना होगा. जिसे संसार में फिर से हिन्दू यानी हिंदुस्तान ही आगे बढ़ा सकता है अर्थात विश्व का मार्गदर्शन करेगा. करूणा को अपने अन्दर लेकर जब हम सभी चलेंगे तो एक दिन ऐसा समय आएगा कि फिर से हम सभी जिस धर्म की स्थापना करना चाहते हैं उसे साकार कर देंगे.
 हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के भावों के बारे में बताया है. इन चारों धर्मों में एक ही भाव है और वही इनका मूल भी है. वह भाव करूणा है और करूणा से ही धर्म है अर्थात धर्म में करूणा है. इन चारों अलग-अलग धर्मों में जिसे भी विश्वास है.जो दूसरे धर्मों की निंदा करता है, वह कभी अपने धर्म का भी हितैषी नहीं हो सकता. क्योंकि, उसके अन्दर करुणा का भाव नहीं होता है. जब कोई भी व्यक्ति सभी धर्मों की विचारधारा को मानते हुए, अपने धर्म की विचारधारा से मिलान कराता है. तो वह कभी भी अपने धर्म को नहीं छोड़ता. बल्कि, वह अपने धर्म की करूणा के भाव को प्रदर्शित करता है.





Wednesday, 27 July 2016

 देश की पहली गौमूत्र रिफाइनरी, यहां बेच सकते हैं 

गाय का गोबर और मूत्र ...


जालोर के सांचौर में गोधाम पथमेड़ा की ओर से देश का पहला गौमूत्र रिफाइनरी प्लांट 
लगाया गया है.
गौमूत्र से आज देशभर में अधिकतर लोगो में फैल रही डाईबिटिस, हद्वयरोग जैसी गंभीर बिमारियों से देश को मुक्त करने को लेकर जालोर जिले के सांचौर की गोधाम पथमेड़ा गौशाला के संत दन्तचरणानन्द ने एक मुहिम शुरू की है. इससे गोधाम पथमेड़ा का सपना है कि आने वाले समय में लोग इन विभिन्न प्रकार की बिमारियों से पूरी तरह स्वस्थ हो पाएगे. इसे सच करने को लेकर संत दत्तचरणानन्द महाराज ने देश की पहली गौमूत्र रिफाईनरी की स्थापना की है. जिसका उद्घाटन चिकित्सा मंत्री राजेन्द्रसिंह राठौड़ ने किया. गौशाला में पहले छोटे स्तर पर गौमूत्र से अर्क बनाकर बिमारियों इलाज किया जा रहा था. लेकिन अब देशभर से बिमारियों को जड़ से भगाने का मिशन लिए देश का सबसे पहला प्लांट शुरू किया गया है.
2 रुपए किलो गोबर और 5 रुपए किलो मूत्र
गाय से लोग सिर्फ दूध ही बेचते हैं और गाय जब दूध देना बंद कर देती हैं मरने के लिए सड़को पर छोड़ देते हैं ऐसे में गोधाम पथमेड़ा के संत दंतचरणानन्द महाराज ने गौरक्षा की पहल करते हुए बिना दूध देने वाले गौवंश को बचाने की पहल करते हुए गोधाम पथमेड़ा में गोवंश के गोबर से गत्ते बनाने का काम बड़े पैमाने पर शुरू कर गोबर को दो रूपए किलो में खरीदना शुरू किया साथ ही साथ गौमूत्र भी पांच रुपए लीटर में खरीदना शुरू किया इससे ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को गोवंश पालने में आसानी होगी वहीं आमदनी भी होगी इसको लेकर गांवो में अब गौमूत्र व गोबर संग्रहण केन्द्र भी खोले जाएगे.
गौरक्षा की मुहिम
संत दन्‍तचरणानन्‍द ने पांच गायों से इस गोधाम पथमेड़ा गौशाला से शुरूआत की थी. और आज यहां हजारों की संख्या में गौवंश का पालन हो रहा है. यह अपने आप में देश के लिए एक मिशाल है. उम्मीद की जानी चाहिए की अब गौवंश को बचाने को लेकर आम लोगो में भी जागरूकता फैलेगी. संत दन्‍तचरणानन्‍द महाराज के इस मिशन को रफ्तार मिल सकेगी.





Tuesday, 26 July 2016

आतंकी हाफिज सईद की नजर में बरखा दत्त और कांग्रेस ‘अच्छे लोग’...

25 July: पाकिस्तान के सबसे खतरनाक आतंकवादी हाफिज सईद ने न्यूज चैनल NDTV की पत्रकार बरखा दत्त और कांग्रेस पार्टी की जमकर तारीफ करते हुए कहा है कि ‘भारत में बरखा दत्त जैसे अच्छे लोग हैं जो कश्मीर की असलियत को दुनिया को दिखाते हैं’
आतंकी ने कांग्रेस की तारीफ करते हुए कहा कि ‘आपने देखा होगा, अभी अभी कांग्रेस ने बीजेपी ने भी कहा है कि आप पाकिस्तान को इल्जामात मत दो, आप अपने घर को देखो, आप क्या कर रहे हो कश्मीर में, कितना जुल्म तुमने धाया है, जो तुम कश्मीर में कर रहे हो उसका इल्जाम आप पाकिस्तान पर डालकर नहीं बच सकते।
हाफिज सईद ने कहा कि बरखा दत्त और कांग्रेस को देखकर देखकर लगता है कि भारत में अच्छे लोग भी हैं।
जैसे ही आतंकी हाफिज सईद की तारीफ वाला वीडियो वायरल हुआ ट्विटर पर बवाल मच गया और लोग बरखा दत्त पर हमला करने लगे, ट्विटर पर ‘हाफिज की बरखा’ ट्रेंड वायरल हो गया और लोग इस ट्रेंड को टैग करके बरखा दत्त पर निशाना साधने लगे।

अलगाववादी विचारधारा के पोषक मीडिया एवं नेता

 देश की सबसे बड़ी समस्या ...


 ‘ज्यूंही शमशीर कातिल ने उठाई अपने हाथों में,
 हजारों सर पुकार उठे, कहो दरकार कितने हैं? 
     अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की ये पंक्तियां आजादी के पूर्व की मानसिकता दर्शाती हैं। किन्तु आज स्थिति क्या है? आजादी के पूर्व देश एकजुट था, तो आज बिखराव है। उस समय देशभक्ति का ज्वार था तो आज कुर्सी परस्ती का बोलबाला।  क्या यह हैरत की बात नहीं है कि आप सांसद भगवंत मान ने संसद की समूची सुरक्षा व्यवस्था का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर सार्वजनिक कर दिया? जब सांसद इतने गैर जिम्मेदार हों तो देश का तो भगवान् ही मालिक है।  
       देश की सबसे बड़ी समस्या है अलगाववाद। दुर्भाग्य से राजनीति व मीडिया इसे और बढ़ा रही है। मीडिया में वामपंथियों की भरमार है, जो सन सैंतालिस से खंड-खंड भारत का सपना बुन रहे हैं। उनकी कल्पना थी कि सोवियत संघ के समान भारत भी अनेक राष्ट्रों का समुच्चय बन जाएगा और यहां वामपंथ की जड़ें जम जाएंगे। इसलिए उन्होंने पाकिस्तान बनाने का समर्थन किया था।  लेकिन शेष भारत अखंड रहा और उनका ख़्वाब पूरा नहीं हुआ। लेकिन मीडिया में बैठे उनके वित्त पोषित लोग आज भी अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहे। ताजा उदाहरण है गुजरात दलित पिटाई काण्ड का। उसे मीडिया ने हिंदुत्ववादियों द्वारा दलितों पर किया गया अत्याचार निरूपित किया, जबकि वास्तविकता कुछ और भी हो सकती है।  
      सोशल मीडिया पर आज यह समाचार वायरल हो रहा है कि गुजरात के ये दलित किसी मुस्लिम के साथ पशुओं का व्यापार करते थेvv। दलितों के परिवार में किसी कन्या की शादी के लिए लिया गया कर्जा वो तय समय पर नहीं दे पाए और उससे कुछ और समय देने की प्रार्थना की। मुस्लिम मोहम्मद सफी मुस्तखभाई ने और समय देने के बदले लड़की मांगी और कहा कि इसकी शादी तोड़कर मुझसे की जाए। 
     इस पर भन्नाए गुजरात के स्वाभिमानी दलितों ने उस मुस्लिम को बुरी तरह मारा और कमरे में बंधक बना लिया, बाद में कुछ बुजुर्ग मुस्लिम माफी मांगकर छुड़वा ले गए थे। आहत मुस्तखभाई बदला लेने के लिए अम्बेडकरवादी दलित संगठन से मिला और ले-देकर अम्बेडकरवादियों ने मुस्लिम के साथ मिलकर गरीब दलितों की बुरी तरह पिटाई कर दी। ये मामला हमेशा की तरह हिन्दुओं में फूट डालने का वामपंथी मीडिया का षड्यंत्र हो सकता है, जिसकी जांच होनी चाहिए।        हम लोग पहले भी देख चुके हैं, जब झाबुआ नन बलात्कार का आरोप संघ व भाजपा के लोगों पर लगाया गया था, जबकि बाद में उसमें ईसाई ही लिप्त मिले थे। इसी प्रकार झज्जर की घटना प्रचारित की गई, जो बाद में बिन सिर-पैर की निकली। 
        एक तरफ ये अलगाववादी जयचंद हैं, तो दूसरी ओर देश को वैभव संपन्न बनाने को रात-दिन एक कर रहे नरेंद्र मोदी। हमें तय करना है कि हम देश की उन्नति चाहते हैं, या गुलामी के पूर्व की स्थिति बनाना चाहते हैं, जिसमें जयचंदी साजिशें परवान चढ़ती थीं।
     दो दिन पूर्व ही हमारे सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बयान दिया कि कश्मीर में जनमत संग्रह कराया जाना चाहिए।  क्या यह पाकिस्तान के साथ सुर में सुर मिलाना नहीं है। क्या इसपर शर्मिंदा नहीं होना चाहिए? लेकिन हममें से किसी ने इसका विरोध नहीं किया, यह हैरत की बात है। चुनावों में जो भी ज्योतिरादित्य का साथ देता रहा है, तो उसको समझना चाहिए कि वह एक प्रकार से उनकी मानसिकता को समर्थन देता है। 

हरिहर शर्मा


Saturday, 23 July 2016

 
भारत के दलित पाकिस्तान से क्यों नहीं सीख लेते ?? आजादी के बाद पाकिस्तान में बहुत से सवर्ण हिंदू रहते थे खासकर सिंध और पंजाब प्रांत में ....फिर मुसलमानों ने हिंदुओं जैसे सिंधी खत्री ब्राम्हण पंजाबियों के लड़कियों पर बुरी नजर रखनी शुरू की, उनके मकानों पर कब्जा करना शुरू किया तो पाकिस्तान के दलित हिंदू खामोशी से चुप-चाप देखते रहे फिर धीरे धीरे पाकिस्तान से सभी स्वर्ण हिंदू पलायन कर गए कुछ गुजरात के कच्छ में आकर रहने लगे कुछ दुबई या लंदन चले गए आज भी कच्छ में माहेश्वरी लोग हजारों की संख्या में रहते हैं और पाकिस्तान के बहुत से सिंधी दुबई भारत और लंदन चले गये अब पाकिस्तान में सिर्फ दलित हिंदू ही बचे हैं अब पाकिस्तान के मुस्लिम दलितों की बेटियों पर रोज़ बलात्कार गुजारते हैं अत्याचार गुजारते हैं उनके मकानों पर कब्जा करते हैं और दलित लोग चुप-चाप खामोशी से अपनी बेटियों पर मुसलमानों के द्वारा गुजारे जा रहे अत्याचारों को देखते हैं
Jitendra Pratap Singh

भारत के ऐतिहासिक युद्ध

 जो महिलाओं के सम्मान 

या उनके प्रेमवश लड़े गए थे ..!

अमर वीर गाथाओं का देश है भारत. यहां आन-बान की रक्षा के लिए लोगों ने जान तक कुर्बान कर दी है. इस देश की महिलाएं भी धरती के सम्मान औेर अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने से कभी नहीं चूकीं. यहां जब-जब महिलाओं का अपमान हुआ, खून की नदियां बही हैं. क्योंकि हमारे लिए स्त्री सदैव आदरणीय और पूजनीय रही है. आज हम आपको देश में हुए उन युद्धों बताने जा रहे हैं, जो औरतों के सम्मान, प्रेम और अस्मिता की रक्षा के लिए लड़े गए.

1. रामायण

रामायण की प्रमुख महिला पात्र देवी सीता का रावण द्वारा अपहरण किए जाने के बाद श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई कर दी. रावण ने सीता का अपहरण करके अपनों बहन शूर्पणखा का बदला लेना चाहा था. शूर्पणखा श्रीराम से विवाह करना चाहती थी, लेकिन वो शादीशुदा होने के कारण ऐसा नहीं कर सकते थे. शूर्पणखा द्वारा लगातार विवाह का दबाव बनाए जाने और सीता को नुकसान पहुंचाने की धमकियों के बीच परेशान लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी थी. इससे चिढ़ा हुआ रावण सीता से जबरन विवाह करना चाहता था. शांति प्रयासों के असफल होने के बाद श्रीराम ने वानर सेना की मदद से लंका पर आक्रमण करके सीता को छुड़ाया. इस दौरान रावण के पूरे साम्राज्य और परिवार का विनाश हो गया और उसके भगवतप्रेमी भाई विभीषण को लंका का नया राजा बनाया गया.

2. महाभारत

महाभारत की पटकथा भी जाने-अनजाने एक औरत के कारण ही लिखी गई थी. पांचाल नरेश की बेटी द्रौपदी ने दुर्योधन के गलती से पानी में पैर रख देने पर उसका मज़ाक उड़ाया था. बदला लेने को दुर्योधन ने अपने भाई और द्रौपदी के पति युधिष्ठिर को पासा खेलने में हरा दिया और छल से द्रौपदी को भी जीत लिया. इसके बाद उसने अपने भाई दुशासन से कहा कि भरी सभा में उसे जबरन लाए और उसका चीर हरण करे. इसके बाद जो हुआ सभी जानते हैं. द्रौपदी का सम्मान तो श्रीकृष्ण ने बचा लिया, लेकिन द्रौपदी ने कसम खाई कि जब तक दुर्योधन के रक्त से अपने बाल नहीं धोएगी, अपने बालों को नहीं बांधेगी. परिणाम जो हुआ, वो महाभारत था.

3. श्रीकृष्ण का रुक्म से युद्ध

भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी से उनका विवाह एक युद्ध के बाद हुआ था. विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी भगवान कृष्ण से प्रेम करती थीं और उनसे विवाह करना चाहती थीं. रुक्मिणी के पांच भाई थे- रुक्म, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली. रुक्मिणी सर्वगुण संपन्न तथा अति सुन्दरी थीं. उनके माता-पिता उनका विवाह कृष्ण के साथ करना चाहते थे, किंतु रुक्म चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ हो. यह कारण था कि कृष्ण को रुक्मिणी का हरण कर उनसे विवाह करना पड़ा था. इस दौरान शिशुपाल और रुक्म दोनों से श्रीकृष्ण की सेना को युद्ध करना पड़ा था.

4. पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी के बीच तराइन का युद्ध

कन्नौज के राजा जयचंद और दिल्ली के राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान के बीच नहीं बनती थी. चौहान के शौर्य और साहस से जयचंद को ईर्ष्या होती थी. इस बीच जयचंद की बेटी संयोगिता और पृथ्वीराज के बीच प्रेम पनप गया, जो जयचंद को कतई मंज़ूर नहीं था. उसने संयोगिता का स्वयंवर रचाया और देश के सभी राजकुमारों को इसमें आमंत्रित किया, लेकिन पृथ्वीराज को नहीं. साथ ही उन्हें अपमानित करने के लिए उसने उनकी एक मूर्ति को अपने दरवाज़े पर द्वारपाल के रूप में लगवाया. लेकिन संयोगिता ने सबको दरकिनार करके पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में जयमाला पहना दी.तभी पृथ्वीराज चौहान, जो मूर्ति के पीछे छुपे थे, सामने आ गए और संयोगिता को सबके विरोध के बावजूद भगा ले गए. इसका बदला लेने के लिए जयचंद ने पृथ्वीराज से हारे हुए मोहम्मद गोरी को दुबारा हमला करने को उकसाया और साथ देने का वादा किया. इस कारण तराइन का एक और युद्ध हुआ.

5. चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी का हमला

चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की खूबसूरती से आकर्षित होकर अलाउद्दीन खिलजी किसी भी तरह उन्हें पाना चाहता था. उन्हें पाने के पागलपन में अलाउद्दीन ने चित्तौड़गढ़ पर हमला कर दिया. पद्मिनी के पति महाराजा रतन सिंह और उनके आदमियों ने बहादुरी से युद्ध किया, लेकिन वो खिलजी के हाथों हारे और मारे गए. हालांकि अलाउद्दीन का यह प्रयास विफल रहा क्योंकि चित्तौड़गढ़ किले की अन्य महिलाओं सहित रानी पद्मिनी ने ‘जौहर’ यानि आत्मदाह कर लिया था.



भारतीय सेना 10 सर्वश्रेष्ठ अनमोल वचन: अवश्य पढें।
इन्हें पढकर सच्चे गर्व की अनुभूति होती है...
1.
"मैं तिरंगा फहराकर वापस आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊंगा, लेकिन मैं वापस अवश्य आऊंगा।"
- कैप्टन विक्रम बत्रा,
परम वीर चक्र
2. 
"जो आपके लिए जीवनभर का असाधारण रोमांच है, वो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी है।"
- लेह-लद्दाख राजमार्ग पर साइनबोर्ड (भारतीय सेना)
3. 
"यदि अपना शौर्य सिद्ध करने से पूर्व मेरी मृत्यु आ जाए तो ये मेरी कसम है कि मैं मृत्यु को ही मार डालूँगा।"
- कैप्टन मनोज कुमार पाण्डे,
परम वीर चक्र, 1/11 गोरखा राइफल्स
4.
"हमारा झण्डा इसलिए नहीं फहराता कि हवा चल रही होती है, ये हर उस जवान की आखिरी साँस से फहराता है जो इसकी रक्षा में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देता है।"
- भारतीय सेना
5.
"हमें पाने के लिए आपको अवश्य ही अच्छा होना होगा, हमें पकडने के लिए आपको तीव्र होना होगा, किन्तु हमें जीतने के लिए आपको अवश्य ही बच्चा होना (धोखा देना) होगा।"
- भारतीय सेना
6. 
"ईश्वर हमारे दुश्मनों पर दया करे, क्योंकि हम तो करेंगे नहीं।"
- भारतीय सेना
7.
"हमारा जीना हमारा संयोग है,
हमारा प्यार हमारी पसंद है,
हमारा मारना हमारा व्यवसाय है।"
- अॉफीसर्स ट्रेनिंग अकादमी, चेन्नई
8. 
"यदि कोई व्यक्ति कहे कि उसे मृत्यु का भय नहीं है तो वह या तो झूठ बोल रहा होगा या फिर वो गोरखा ही होगा।"
- फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ
9.
"आतंकवादियों को माफ करना ईश्वर का काम है, लेकिन उनकी ईश्वर से मुलाकात करवाना हमारा काम है।"
- भारतीय सेना
10. 
"इसका हमें अफसोस है कि अपने देश को देने के लिए हमारे पास केवल एक ही जीवन है।"
- अॉफीसर प्रेम रामचंदानी

 
ISIS का टि्वटर अकाऊंट हैंडल करने वाल आतंकीे हसन मेहंदी के अब्बू का यह बयान आपकी आँखे खोल देगा बयान के अन्त मे वो जोर देके कहता है "मेरे बेटे को मीडिया बचा लेगा "
शब्दो से ऐसा लगता है जैसे उसे अपने बेटे या ISIS के आतंकियो से भी ज्यादा इस देश की गद्दार,बिके और अरब के इशारे पर चलने वाले मीडिया हाउस पर यकीन है कि वो तो हसन मेहदी को बचा ही लेंगे

ऐसा भी महसूस होता है कि मीडिया इस देश मे देश की न्याय और कानून व्यवस्था से भी ऊपर हो गया है...बस यह ध्यान देना कि कौन कौन गद्दार मीडिया हाउस मेहदी को बचाने मे लगे है और उन्हे अपनी केबल टीवी से हटवा देना ..शत्रु को हराना है तो पहले उसकी सप्लाई लाइन काट दो
जब सच बर्दाश्त नहीं होता,तो राष्ट्रविरोधी जान लेनेकी धमकी देते हैं।अब कश्मीर में तिरंगा लहराना,भारत की बात करना आपकी जान ले सकता है।
Zee News पर कश्मीर से आज़ाद रिपोर्टिंग के बाद अब वहाँ के अलगाववादी उन कश्मीरी देशभक्तों को जान से मारने की धमकी दे रहें हैं जिन्होंने हमसे कहा था कि वो आज़ादी नहीं चाहते, भारत से प्यार करते हैं। गुरेज़ घाटी के उन देशभक्त परिवारों को खोज कर निकला जा रहा है, मार पीट की जा रही है। अब धमकी मिली है कि अपना बयान बदलो और कहो की कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं, कहो कि हमें भारत से आज़ादी चाहिए और कहो कि हम हिंदुस्तानी नहीं है। नहीं तो जान से मार दिए जाओगे। 
आतंकवादी उनसे ये बयान चाहते हैं कि जी न्यूज़ पर उनकी तमाम बातें झूठ थी  हमारी रिपोर्ट में दिखाए गए लोगों ने घबरायी आवाज़ में फ़ोन किया और कहा- साहेब हमारी शक्ल tv पर न दिखाएँ नहीं तो अलगाववादी हमें चुन चुन कर मार डालेंगे।
 क्या अब इस देश में देशभक्ति के लिए भी रंगदारी देनी होगी टैक्स देना पड़ेगा? आजकल देश से प्यार करना इतना महँगा और ख़तरनाक क्यों होता जाता रहा है। मैं चिंतित हूँ, दुविधा में हूँ…



एक भी वानी जिंदा न बचें, पूरी दिलेरी से कहा आर्मी चीफ दलबीर सिंह ने!
हाल ही में आर्मी चीफ दलबीर सिंह ने श्रीनगर का दौरा किया, और फौजी भाइयों की हौसला अफजाई करी. यह गौर तलब है की जबसे सुरक्षा कर्मियों ने आतंकवादी बुरहान वानी को मार गिराया है, तबसे कश्मीर में हिंसा की वारदातें रुकने का नाम नहीं ले रही हैं,
उन्होंने सेना के वरिष्ट अफसरों से वार्ता करी और हालात की पूरी खबर ली. इस बातचीत में उत्तरी कमांड के जनरल हूडा और चिनार कोर्प्स के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ भी मौजूद थे. बातचीत काफी लम्बी चली. आपको याद होगा की इस विषय पर मोदीजी ने भी पिछले हफ्ते लम्बी वार्ता करी थी और चिंता जताई थी. जनरल दलबीर सिंह ने कुपवाड़ा आर्मी बेस  का भी दौरा किया. उन्होंने सेना की व्यवस्था पर संतोष जताया, और सैनकों की सब बातें बहुत ध्यान से सुन्नी. इस दौरे में उन्होंने सेना को आम आदमी की तरफ और ज़िम्मेदार होने पर जोर दिया.
उन्होंने सैनिकों से कहा की वो बॉर्डर से एक दम नजर न हटाये और कोई भी आतंकवादी इस पार आने न पाए. उन्होंने सेना की आतंकवादियों के खिलाफ सफलता की प्रशंसा की, और उन्होंने एक बार फिर इस बात पर ज़ोर दिया की सेना पहला वार ना करें. उन्होंने सेना को आवाहन किया की कोई भी वानी जैसा आतंकी  जिंदा बचने ना पाए. उनके इस दौरे से सैनिकों को बहुत हिम्मत मिली और उनका आत्मविश्वास बहुत गुना बढ़ गया.


Friday, 22 July 2016

अरविन्द केजरीवाल Exposed, कोंग्रेस से भी ज्यादा खतरनाक पार्टी भारत मैं जन्म ले रही हैं!

अगर आज आप लोग इस बात को छोटा समझ रहे हो तो इतना भी याद रखना जब आप लोगों को इस बात की अक्ल आएगी , उस समय ये समय निकल चूका होगा!
जो पढ़े लिखे मूर्ख अपने आप को ज्यादा होशियार समझते हैं वो केजरीवाल का सच जरूर जाने, ऑफिस से घर और पब तक की जिन्दगी जीने वालों अपनी जड़ों को मजबूत करो रॉ के पूर्व अधिकारी आरएसएन सिंह का सबसे बड़ा ख़ुलासा, दुबई में देश के दुश्मनों से मिले थे केजरीवाल!
http://www.logicalbharat.com/former-raw-officer-rsn-singh-exposed-arvind-kejriwal/

बेटी को ससुराल में खुश देखना चाहते हो तो

 दिन में 10 बार फोन मत करो...

कोटा. महिला आयोग का उद्देश्य पीडि़त महिलाओं को न्याय दिलाना ही नहीं, बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर, जागरूक करना व सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाना है। यह बात राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा ने कही। वह रविवार को गीता भवन में राजस्थान महिला आयोग के जिला मंच के कार्यकर्ता सम्मेलन को सम्बोधित कर रही थी।
सदस्यों की जिम्मेदारी है कि वह पीडि़त-शोषित महिलाओं की पीड़ा सुनकर न्याय दिलाने का प्रयास करें, साथ में महिलाओं को आत्मनिर्भर, स्वावलम्बी, जागरूक बनाने का प्रयास भी करें। केंद्र व राज्य सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से लाभांवित कराने में सहयोग करें। प्राइवेट कम्पनियों व सरकारी दफ्तरों में भी महिलाओं की इंटरनल कमेटी बनाई जाए। अगर कहीं शोषण हो रहा है तो उसकी शिकायत करनी है। 
शादी के बाद बेटी के परिवार में दखल मत दो
सम्मेलन में वरिष्ठ अधिवक्ता कल्पना शर्मा ने कहा कि शादी के बाद महिलाएं बेटी के परिवार में दखल देती हैं। मोबाइल से दिन में दस बार बातचीत करती हैं। एेसे में बेटी अपने ससुराल की शिकायत करती है। उन्होंने महिलाओं को संदेश दिया कि अगर बेटी का परिवार सुखी देखना चाहते हो तो उसके परिवार में दखल देना बंद कर दो। 

दिन में दस बार बात करना बंद कर दो। समारोह में रंगकर्मियों ने नुक्कड़ नाटक के जरिए महिला उत्पीडऩ, महिला सुरक्षा की जानकारी दी। इसके बाद कई महिलाओं ने घरेलू हिंसा, उत्पीडऩ के मामलों में अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर शर्मा को ज्ञापन सौंपे।
 भारत के ऋषि-मुनि टेस्ट ट्यूब बेबी पद्धति से परिचित थे,
 धृतराष्ट्र के 100 पुत्रों का जन्म वास्तव में इसी तकनीक से हुआ था. जब गांधारी ने पहली बार गर्भ धारण किया, तो दो वर्ष बीतने के बाद भी उन्हें कोई संतान नहीं हुई. तब एक ऋषि ने उन्हें गर्भ को 101 मिट्टी के बर्तनों में डालने का उपाय बताया, क्योंकि गांधारी के लिए बच्चे को जन्म दे पाना संभव नहीं था. इसके बाद गांधारी के गर्भ को 101 मिट्टी के बर्तनों मे डाल दिया गया, जिसे हम टेस्ट ट्यूब तकनीक से जोड़ कर देख सकते है. गर्भ को मिट्टी के बर्तनों में डालने के बाद उसमें से ‘सौ’ पुत्र और एक ‘पुत्री’ ने जन्म लिया था. 
भले ही हम आज विज्ञान के आविष्कारों में से एक क्लोनिंग और टेस्ट ट्यूब के ज़रिये बच्चे को पैदा करने की पद्धति को जानते हों, लेकिन भारत के प्रसिद्ध महाकाव्य ‘महाभारत’ में 3000 ईसा पूर्व पहले ही इस पद्धति के ज़रिये कौरवों का जन्म हुआ था. ‘Stem Cell Research’ पर आयोजित सम्मेलन में एक वैज्ञानिक ने कहा कि ‘कौरवों का जन्म उसी तकनीक से हुआ था, जिसे आधुनिक विज्ञान अब तक विकसित नहीं कर पाया है’. महाभारत में गांधारी को 100 पुत्रों की मां बताया गया है, जिन्हें कौरव कहा जाता है. उनका सबसे बड़ा पुत्र दुर्योधन था.
हाल ही में Southern Chapter of The All India Biotech Association द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में दिल्ली के मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज के सर्जन B G Matapurkar ने बताया कि‘कोई भी महिला अपने पूरे जीवन में एक ही उम्र के 100 पुरुषों को जन्म नहीं दे सकती.’Matapurkar ने कहा कि 'Organ Regeneration की जिस तकनीक को 10 साल पहले विकसित कर अमेरिका ने पेटेंट लिया था, उसका वर्णन महाभारत के अध्याय ‘आदिपर्व’ में किया गया है. इसमें बताया गया है कि कैसे गांधारी के एक भ्रूण से कौरवों का जन्म हुआ'. उन्होंने कहा कि कौरवों का जन्म गांधारी के भ्रूण के अलग-अलग हिस्सों से हुआ है. उनके भ्रूण को 101 हिस्सों में बांटकर उन्हें मिट्टी के बर्तनों में रख दिया गया था, जिनमें से कौरवों के साथ एक पुत्री ने जन्म लिया. इन सभी का विकास अलग-अलग बर्तनों में हुआ था. वे सिर्फ़ टेस्ट ट्यूब बेबी और भ्रूण को बांटना ही नहीं जानते थे, बल्कि वे उस तकनीक से भी परिचित थे जिसकी मदद से महिला के शरीर से अलग या बाहर मानव के भ्रूण को विकसित किया जा सकता है. हालांकि आज भी आधुनिक विज्ञान इस तकनीक के बारे में नहीं जान पाया है.