Tuesday 26 July 2016

अलगाववादी विचारधारा के पोषक मीडिया एवं नेता

 देश की सबसे बड़ी समस्या ...


 ‘ज्यूंही शमशीर कातिल ने उठाई अपने हाथों में,
 हजारों सर पुकार उठे, कहो दरकार कितने हैं? 
     अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की ये पंक्तियां आजादी के पूर्व की मानसिकता दर्शाती हैं। किन्तु आज स्थिति क्या है? आजादी के पूर्व देश एकजुट था, तो आज बिखराव है। उस समय देशभक्ति का ज्वार था तो आज कुर्सी परस्ती का बोलबाला।  क्या यह हैरत की बात नहीं है कि आप सांसद भगवंत मान ने संसद की समूची सुरक्षा व्यवस्था का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर सार्वजनिक कर दिया? जब सांसद इतने गैर जिम्मेदार हों तो देश का तो भगवान् ही मालिक है।  
       देश की सबसे बड़ी समस्या है अलगाववाद। दुर्भाग्य से राजनीति व मीडिया इसे और बढ़ा रही है। मीडिया में वामपंथियों की भरमार है, जो सन सैंतालिस से खंड-खंड भारत का सपना बुन रहे हैं। उनकी कल्पना थी कि सोवियत संघ के समान भारत भी अनेक राष्ट्रों का समुच्चय बन जाएगा और यहां वामपंथ की जड़ें जम जाएंगे। इसलिए उन्होंने पाकिस्तान बनाने का समर्थन किया था।  लेकिन शेष भारत अखंड रहा और उनका ख़्वाब पूरा नहीं हुआ। लेकिन मीडिया में बैठे उनके वित्त पोषित लोग आज भी अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहे। ताजा उदाहरण है गुजरात दलित पिटाई काण्ड का। उसे मीडिया ने हिंदुत्ववादियों द्वारा दलितों पर किया गया अत्याचार निरूपित किया, जबकि वास्तविकता कुछ और भी हो सकती है।  
      सोशल मीडिया पर आज यह समाचार वायरल हो रहा है कि गुजरात के ये दलित किसी मुस्लिम के साथ पशुओं का व्यापार करते थेvv। दलितों के परिवार में किसी कन्या की शादी के लिए लिया गया कर्जा वो तय समय पर नहीं दे पाए और उससे कुछ और समय देने की प्रार्थना की। मुस्लिम मोहम्मद सफी मुस्तखभाई ने और समय देने के बदले लड़की मांगी और कहा कि इसकी शादी तोड़कर मुझसे की जाए। 
     इस पर भन्नाए गुजरात के स्वाभिमानी दलितों ने उस मुस्लिम को बुरी तरह मारा और कमरे में बंधक बना लिया, बाद में कुछ बुजुर्ग मुस्लिम माफी मांगकर छुड़वा ले गए थे। आहत मुस्तखभाई बदला लेने के लिए अम्बेडकरवादी दलित संगठन से मिला और ले-देकर अम्बेडकरवादियों ने मुस्लिम के साथ मिलकर गरीब दलितों की बुरी तरह पिटाई कर दी। ये मामला हमेशा की तरह हिन्दुओं में फूट डालने का वामपंथी मीडिया का षड्यंत्र हो सकता है, जिसकी जांच होनी चाहिए।        हम लोग पहले भी देख चुके हैं, जब झाबुआ नन बलात्कार का आरोप संघ व भाजपा के लोगों पर लगाया गया था, जबकि बाद में उसमें ईसाई ही लिप्त मिले थे। इसी प्रकार झज्जर की घटना प्रचारित की गई, जो बाद में बिन सिर-पैर की निकली। 
        एक तरफ ये अलगाववादी जयचंद हैं, तो दूसरी ओर देश को वैभव संपन्न बनाने को रात-दिन एक कर रहे नरेंद्र मोदी। हमें तय करना है कि हम देश की उन्नति चाहते हैं, या गुलामी के पूर्व की स्थिति बनाना चाहते हैं, जिसमें जयचंदी साजिशें परवान चढ़ती थीं।
     दो दिन पूर्व ही हमारे सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बयान दिया कि कश्मीर में जनमत संग्रह कराया जाना चाहिए।  क्या यह पाकिस्तान के साथ सुर में सुर मिलाना नहीं है। क्या इसपर शर्मिंदा नहीं होना चाहिए? लेकिन हममें से किसी ने इसका विरोध नहीं किया, यह हैरत की बात है। चुनावों में जो भी ज्योतिरादित्य का साथ देता रहा है, तो उसको समझना चाहिए कि वह एक प्रकार से उनकी मानसिकता को समर्थन देता है। 

हरिहर शर्मा


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