Monday 11 July 2016

बहुआयामी आतंकवाद एवं समाधान
भारत रक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक सूर्यकांत केलकर 
जब पाकिस्तान बार-बार की पराजय से यह समझ गया कि वह सीधे युद्ध में भारत से नहीं जीत सकता, तब उसने छद्मयुद्ध का सहारा लिया। प्रजातंत्र का सीधा गणित है, जिसका बहुमत उसका शासन। बांग्लादेशी घुसपैठ के पीछे भी पाकिस्तान की यही रणनीति है। 
उपमन्यु हजारिका समिति ने भी इस साजिश की पुष्टि की है। समिति की रिपोर्ट के अनुसार, 2041 तक असम में घुसपैठियों की संख्या, मूल असमिया लोगों से ज्यादा हो जाएगी। सन 1947 के पूर्व अविभाजित भारत में हिन्दुओं की संख्या, कुल आबादी की 85 प्रतिशत थी किन्तु अब जनसंख्या के आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान अलग हो जाने के बाद भी शेष भारत में हिन्दू महज 80 प्रतिशत ही हैं।
घुसपैठ के ही समान आतंकवाद भी पाकिस्तान की रणनीति का ही एक अंग है। भारत के लिए आतंक कोई नई बात नहीं है। पौराणिक काल में असुरों का आतंक था, जिसे दुर्गा ने समाप्त किया। इसी प्रकार रावण के आतंक को राम ने, तो कंस के आतंक को कृष्ण ने मिटाया। कालिया नाग व बकासुर भी आतंक का ही पर्याय थे। मध्यकाल भी आतंकी गतिविधियों से भरा पड़ा है। डर पैदा कर राजनीतिक लाभ लेना आतंक का उद्देश्य होता है।
तैमूरलंग जब जीतकर वापस चला तो अपने साथ एक लाख लोगों को रस्सी से बांधकर गुलाम बनाकर ले जाने लगा। किन्तु रास्ते में उसे लगा कि इतने लोगों को खाना खिलाना पड़ेगा, सो उसने अपने सैनिकों को आदेश दे दिया कि इन लोगों को मार डालो। एक दिन में एक लाख लोगों की हत्या कर दी गई। नादिरशाह ने दिल्ली विजय के बाद आठ दिन तक कत्ले आम करवाया। 
देश में आतंक एक नए रूप में पैदा हुआ है। यह है कमीनिस्ट आतंक। कमीनापन ही जिनका इष्ट है, वह है कमीनिष्ट। इन लोगों ने देश के इतिहास को विकृत करने का षडयंत्र रचा। इन लोगों ने अभियान चलाया हम लोगों को आर्य बताकर बाहरी बताने का और वनवासियों को आदिवासी नाम देकर उन्हें मूल निवासी बताने का। जबकि असलियत यह है कि मुग़ल सेना जब चलती थी, तो लूटमार व महिलाओं का अपहरण आम बात होती थी। उनके भय से गांव के गांव खाली हो जाते थे। लोग जान बचाने के लिए डरकर जंगलों में भाग जाते थे। यही थी वनवासियों की हकीकत। आर्यों को गौरवर्ण का बताया जाता है, जबकि राम और कृष्ण तो श्याम वर्ण के थे। आर्य जाति नहीं विशेषण है, भारतीय वांग्मय में सभ्य और शिष्ट लोगों को आर्य कहा गया है।
भारत में आतंक था, तो उसका डटकर मुकाबला भी हुआ। शिवाजी ने अफजल खां का आतंक मिटाया। आतंक का मुकाबला केवल जन मनोबल से ही संभव है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर के खिलाफ चर्चिल ने ब्रिटेन का मनोबल नहीं गिरने दिया। 15 दिन में फ्रांस को धूल चटा देनेवाले हिटलर के एक हजार जहाज लगातार इंग्लैण्ड पर बमबारी करते थे। लेकिन चर्चिल लगातार कहता रहा कि हम जर्मन राक्षस के सामने घुटने नहीं टेकेंगे। विजय के बाद जब इंग्लैण्ड की जनता ने चर्चिल को शेर कहा तो उनका जबाब था कि शेर तो ब्रिटेन की जनता ही है, मैं तो केवल दहाड़ता था। यह जन मनोबल ही आतंक के खिलाफ सबसे महत्वपूर्ण है। कुत्ता डराने के लिए ही भौंकता है, किन्तु जैसे ही निडर होकर उसका मुकाबला किया जाए वो दुम दबाकर भाग जाता है।
दुर्भाग्य से भारत के सेक्यूलरों के समर्पण ने आतंकियों का मनोबल बढ़ाया है और आमजन का साहस क्षीण कर दिया है। आतंक का सबसे सफल मुकाबला इजराइल ने किया है व उसे दबाकर रखा है। इसलिए आतंकवाद को उसी की भाषा में जबाब देना होगा।
भारत में दो प्रकार के धर्म हैं। एक वे जो भारत में ही पैदा हुए, जिनमें हिन्दू आर्यसमाजी, सिख, बौद्ध, जैन आदि शामिल हैं। ये सभी धर्म “व्ही” धर्म हैं। हम भी ठीक आप भी ठीक माननेवाले। ये किसी अन्य धर्मं पर सख्ती नहीं करते। किसी को डरा धमकाकर या बहला-फुसलाकर अपने धर्म में शामिल करने का प्रयत्न नहीं करते। जबकि विदेशी धर्म “ही” धर्म हैं। ये डंके की चोट पर कहते हैं कि हमारे अलावा सब पापी हैं,  काफिर हैं, जिन्हें सही रास्ते पर लाना है। इसका एक बड़ा जबरदस्त उदाहरण है।
आपातकाल के दौरान मैं भोपाल जेल में निरुद्ध था। जमायते इस्लामी के लोग भी हमारे साथ मीसा बंदी थे। जमायते इस्लामी के अध्यक्ष मौलाना इनादुर्रहमान के साथ मैं अक्सर शतरंज, कैरम आदि खेलता था। एक दिन शाम के समय टहलते हुए हम लोग आपस में बात कर रहे थे। मैंने उनसे पूछा कि आप लोग कहते हो या इलाह इल्लिल्लाह, अर्थात ईश्वर एक है और सर्व व्यापक है, यह हम भी मानते हैं। आप कहते हो मोहम्मद रसूल्लिल्लाह अर्थात मोहम्मद उसके पैगम्बर है। हम भी मानते हैं कि ईश्वर समय-समय पर अवतार भेजता है। तो इस लिहाज से तो मैं भी मुसलमान हुआ। आप मुझे मुसलमान मानोगे क्या?  
उन्होंने जबाब दिया, “नहीं। तुम मुसलमान नहीं हो, क्योंकि हमारे यहां माना गया कि मोहम्मद साहब आखिरी पैगम्बर थे, जबकि आप तो अन्य अवतार भी मानते हो।”
मैंने कहा, “जब भी इंसान रास्ता भूलता है, उसे रास्ता बताने को ईश्वर अपने अवतार भेजता है, जब पहले भेजता था, तो अब क्यों बंद कर दिया? क्या अल्लाह बांझ हो गया?”
मौलाना बोले, “क्या काफिराना बात करते हो!”
मैंने कहा कि आप मुझे काफिर कह रहे हो, और आपकी कुरआन में तो रमजान ख़तम होने के बाद काफिरों पर हमला करने, उन्हें सताने, जलाने, उनकी औरतों को उठाने की बात लिखी हुई है।
आपको जानकर हैरत होगी कि उन्होंने इससे इनकार नहीं किया, बल्कि कहा- हां, लिखा हुआ है। जिस समय हमारी हुकूमत होगी हम यही करेंगे।
मैंने कहा, “किसी को सताने, जलाने, उनकी औरतें जबरन उठाने की बात भगवान् तो क्या कोई इंसान भी नहीं कर सकता, यह तो हैवानियत है। अगर यही व्यवहार हम आपके साथ करें तो आपको कैसा लगेगा?”
मौलाना ने जो जबाब दिया, उसने मुझे चोंका दिया, आपको भी हैरत होगी। मौलाना बोले, “नहीं, आप यह नहीं कर सकते। बताओ आपके किस धर्म ग्रन्थ, किस खुदाई किताब में यह लिखा हुआ है।”
एक पल को तो मैं लाजबाब हो गया, किन्तु फिर मैंने कहा कि यह सही है कि हमारे किसी धर्म शास्त्र में ऐसा करने को नहीं कहा गया, किन्तु हमारी गीता जरूर यह सन्देश देती है कि ऐसी गंदी हरकत करनेवालों को दण्ड दो। न केवल अन्यायी को, बल्कि उसके सहयोगियों को भी मत छोड़ो। दुर्योधन आतताई था, उसके सहयोगी थे गुरू द्रोण, पितामह भीष्म, उनके साथ युद्ध के लिए भी कृष्ण ने अर्जुन को प्रेरित किया। इसके बाद जब भीष्म पर अर्जुन के प्रहार कमजोर हो रहे थे, तब कृष्ण स्वयं अपनी शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा त्यागकर रथ का पहिया उठाकर अत्यंत आवेश में भीष्म को मारने को उद्यत हो गए। आतताइयों का साथ देनेवाले भी बध्य हैं, दण्ड देने योग्य हैं, भले ही वे अपने स्वजन ही क्यों न हो!
 ईसाई कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट में धर्म के नाम पर अनेक वर्षों तक हत्याकांड चला। इस्लाम में तो यह आज भी चल ही रहा है। शिया और सुन्नी एक-दूसरे को बर्दाश्त नहीं कर पाते। सेक्यूलर के नाम पर हिंसाचार को प्रश्रय मिल रहा है, जबकि सहिष्णु हिन्दू भयभीत है। यह सेक्यूलर आतंकवाद मिटना भी जरूरी है।

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