Friday, 30 September 2016

रिश्वत लेकर न्याय करती थी महिला जज

 सीबीआई ने किया गिरफ्तार ...

नई दिल्ली। तीस हजारी कोर्ट की सीनियर सिविल जज रचना तिवारी लखनपाल और उनके पति आलोक लखनपाल को सीबीआई ने चार लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार कर लिया है. जज साहेबा पर एक विशाल मेहन नाम के वकील से लोकल कमिश्नर बनाने के नाम पर रिश्वत लेने का आरोप है.

पूर्व जज रचना को सीबीआई ने कोर्ट रुप में रंगे हाथों रिश्वत लेते हुए पकड़ा. विशाल को रचना ने विवादित प्रॉपर्टी के एक केस में लोकल कमिश्नर नियुक्त किया था. दोनों ने मिलकर केस जिताने के लिए एक पार्टी से पैसे लिए थे. विशाल ने उसके पक्ष में निर्णय दिलाने के लिए अपने लिए 2 लाख और जज के लिए 20 लाख रुपए मांगे थे. सीबीआई के प्रवक्ता आरके गौड़ ने बताया कि जज को रंगे हाथों पकड़ने के लिए जाल बिछाया गया. एक सूचना पर वकील विशाल को पहले ही पकड़ लिया गया था, जब वह पार्टी से 5 लाख रुपए ले रहा था. इनमें से 4 लाख जज रचना तिवारी के लिए थे. रचना तिवारी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया है, जबकि उनके पति व वकील को 2-2 दिनों की पुलिस हिरासत में रखा गया है. 

सीबीआई ने आरोपी महिला जज के घर की तलाशी भी ली. वहां से तलाशी के दौरान 93 लाख रुपये की नकदी भी बरामद की गई है. सीबीआई और पुलिस आरोपी जज के पति आलोक लखनपाल से भी पूछताछ कर रही है. इस मामले मे हाई कोर्ट ने एक जांच कमेटी बनाई है, जिसकी संस्तुति के बाद हाई कोर्ट ने जज रचना लखनपाल को सस्पेंड पर दिया. उसी के बाद सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. बताया जा रहा है कि जज रचना पहले भी कई मामलों में मन मुताबिक फ़ैसले देने के लिए रिश्वत लेती रही हैं.

इस देश का राजा करते है 'मैकेनिक' का काम, शासन चलाते हैं स्काइप से

 किसी देश का राजा होना बड़े गर्व की बात है। क्या आपने कभी किसी ऐसे राजा का नाम सुना है जो 'डबल रोल' निभाता हो? किसी देश का राजा मजदूर की तरह काम करता हो और देश का शासन भी संभालता हो। अगर नहीं सुना है तो आज हम आपको एक ऐसे ही 67 साल के अफ्रीकन राजा के बारे में बता रहे हैं जो राज चलाने के साथ ही कार मैकेनिक का काम भी करते है।

इस राजा का नाम सीफस बंसाह है। पदवी के साथ उनका पूरा नाम किंग टोगबे न्गोरयिफिआ सीफस बंसाह
है। सीफस बंसाह शायद दुनिया के एकमात्र ऐसे राजा हैं जो कार मेकैनिक भी हैं। ये अफ्रीकन देश घाना और टोगो के 20 लाख लोगों के राजा हैं। इनकी उम्र 67 वर्ष है। सीफस बंसाह स्काइप के जरिए अपना शासन चलाते हैं। उन्हें टोगो में 'सुपीरियर एंड स्पिरिचुएल चीफ आफ इवे पीपुल' कहा जाता है। रिपोर्ट् के मुताबिक, सीफस बंसाह जर्मनी में कार मैकेनिक का काम करते हैं।

जानकारी के अनुसार, राजा नियुक्त होने से पहले 1970 में वो जर्मीन चले गए थे। उनका जन्म घाना में ही हुआ था। उनका शासन पूर्वात्तर घाना के टोगो बॉर्डर के पास है। यहां 3 लाख लोग रहते हैं। सीफस बंसाह साल 2000 में जर्मनी की गैब्रियल से शादी की और उनके कार्ली और कथरीना नाम के दो बच्चे हैं। सीफस के दादा ने उन्हें मैकेनिक की ट्रेनिंग के लिए जर्मनी भेजा था। वे स्काइप से लोगों पर शासन करते हैं और साल में 8 बार घाना जाते हैं।

आपको बता दें मिली जानकारी के अनुसार, 1987 तक वे वहां शांतिपूर्ण जीवन जी रहे थे, तभी उन्हें एक फैक्स मिला, जिसने उनकी लाइफ बदल दी। उनके दादा और होहोई के राजा का निधन हो गया था। उनके पिता और बड़े भाई राजा पद के अयोग्य थे क्योंकि वे लेफ्टहैंडर थे, जिसे इबे के लोग अच्छा नहीं मानते हैं। इसके बाद सीफास को उनके दादा का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया।

दोहरा जीवन जी रहे इस किंग के बारे में दुनिया को बताने के लिए जर्मन फोटोग्राफर क्रिस्टीना ज़ायबिक ने उनके साथ एक पूरा दिन गुज़ारा और उनकी रूटीन लाइफ को कैमरे में कैद किया। बंसाह ने क्रिस्टीना को घाना आने का न्योता भी दिया है, ताकि वे कैसे राजा हैं और उनकी प्रजा उन पर कितना भरोसा करती है, ये देख सकें। क्रिस्टीना इसी साल सितंबर में घाना जा भी रही हैं।
1365 Yrs old Mahishasura Mardini Cave Temple, T.Nadu, is an example of Indian rock-cut architecture, Built by Pallav Kings...!
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Wednesday, 28 September 2016

बिल्डिंग नहीं मिटटी के बर्तन बनाता है ये इंजीनियर, दुबई में जाते है बर्तन

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भिवानी/बहादुरगढ़। बहादुरगढ़ के शिल्पकार अतुल तिवारी को मिट्टी के बर्तन बनाने के हुनर ने विदेशों में भी पहचान दिला दी है। इनकी खासियत है कि मिट्टी से जटिल से जटिल वस्तुओं का निर्माण कर आकार देने में इन्हें महारत हासिल है। हमारी मिट्टी के बने बिरयानी पोट में दुबई के लोग बिरयानी बनाकर खाते हैं।
हाल ही में दुबई से उन्हें एक लाख और बिरयानी पोट बनाने का आर्डर मिला है। मिट्टी के दिए और तवे की डिमांड देश ही नहीं विदेशी शहरों में होने लगी। डिमांड बढ़ती देख उन्होंने कुछ अन्य कारीगरों को भी रख लिया। कुछ समय पहले तक वह मिट्टी के बर्तन बनाकर हाट मार्केट, एक्जीबिशन आदि में बेचते थे, जहां उनके हुनर के कद्रदान मिले और विदेशों से आर्डर मिलने शुरू हुए।
मन में रखें पॉजिटिव सोच
अतुल कहते हैं कि काम के लिए आपका पैमाना जितना अधिक होगा आपको उतनी ही कम समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। हमेशा सकारात्मक सोचें और पूरा मन लगाकर अपना काम करें। बिजनेस के साथ ही सामाजिक जिम्मेदारी भी समझें। मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति पनपने दें।
बिना कैमिकल मिलाए नेचुरल तरीके से बनाते हैं बर्तन
उन्होंने बताया कि वे नेचुरल तरीके से बर्तनों को बनाते हैं। बिना किसी केमिकल के बहुत ज्यादा चिकनाई लाई जाती है। जिससे इनमें बनने वाला खाना शुद्ध पौष्टिक होता है। इसी वजह से गिलास, कटोरी, चम्मच, थाली, टिफिन बॉक्स, बोतल, कुल्हड़, बिरयानी पोट, तवा, दही हांडी, प्लेट, दोने आदि बर्तनों की मांग बढ़ रही है। मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे 100 प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं। इंसान के शरीर को रोज 18 प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व मिलने चाहिए। जो केवल मिट्टी से ही आते हैं।
मिट्टी के दिए बनाने वाले से मिली प्रेरणा
अतुल ने बताया कि पहले वह सिरेमिक्स कंपनियों में मिट्टी का प्लांट लगाने का काम करते थे। 2002 में वह नीमराना की एक कंपनी में प्लांट लगाने गए तो वहां उसे मिट्टी के दिए बनाने वाले से प्रेरणा मिली। घर आकर काम करना शुरू कर दिया। 50 हजार की जमापूंजी इस काम में लगाई और मिट्टी के दिए और तवा बनाने का काम शुरू कर दिया। 2014 में उसने इस कारोबार को मॉडर्नाइज रंग में रंगने की कोशिश की। साइंटिफिक तरीके से मिट्टी की नई-नई चीजें विकसित की। इसके बाद तो यह कारोबार फर्राटे मारने लगा।

बिना बिजली के 24 घंटे ठंडा रहने वाला मकान बनाने का प्रयोग कर रहे हैं इंजीनियर अतुल

बेटा करता है तकनीकी सहयोग : अतुल खुद इंजीनियर हैं। अब इंजीनियरिंग कर लौटा उनका बेटा रजत भी इसी काम में लगा है। बेटा मृत्तिका शिल्पी तकनीक, सेरेमिक टेक्नोलॉजी के बारे में जानकारी उपलब्ध करता है। इससे वह अपने कारोबार को और चमकदार बना रहे हैं।
बनाना चाहते हैं मकान : अतुल नया प्रयोग करने में लगे हैं। यह प्रयोग रंग लाया तो ग्रामीण भारत में अपने आप में नया प्रयोग होगा। दरअसल वह एक ऐसा घर बनाना चाहते हैं, जो 24 घंटे ठंडा रहे, लेकिन बिजली की जरूरत न हो। यह मकान सिर्फ नेचुरल लाइट का इस्तेमाल करके मकान को ठंडा रखेगा।
बिकाऊ मीडिया छोड़ो :- फेसबुक समाचार पड़ो

रूस की मीडिया ने भारत की मीडिया को देशद्रोही तक बोल दिया | कारण था की रूस और पाकिस्तान के बीच सैन्य अभ्यास का मुद्दा|
भारत की मुर्ख मीडिया ने रूस को ऐसे पेश किया जैसे रूस ने भारत के साथ धोका किया |
इसपर रूस की मीडिया का कहना है की भारत की मीडिया एंटी इंडिया है | POK में प्रधानमंत्री मोदी जी ने सैन्य अभ्यास न करने के लिए रूस से मांग करी और रूस ने POK में कोई सैन्य अभ्यास नहीं किया |
रूस की मीडिया ने स्पष्ट किया भारत और रूस पिछले ५० वर्षो से अच्छे मित्र है और भारत की एंटी इंडिया मीडिया रूस की छवि भारत की जनता के सामने खराब न करे! रूस की जनता भी भारत देश को अपना सबसे भरोसेमंद मित्र मानती है |
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 बच्चो के अपहरण में आपका योगदान...
एक अनुमान के अनुसार दिल्ली, गुड़गांव और मुंबई जैसे बड़े शहरों मे एक बच्चे भिखारी की दिन की कमाई लगभग 1000 रुपये हो जाती हैं, जबकि एक औरत जिसकी गोद मे छोटा कमज़ोर बच्चा होता है उसकी दिन की कमाई लगभग 2000 रुपये हो जाती है | इसके मुकाबले एक वयस्क भिखारी की दिन की कमाई केवल 100 से 200 रुपये प्रतिदिन होती है |
इसलिए अधिक कमाई के लिए बदमाश गैंग के लोग बच्चो को या तो चोरी करके लाते हैं या फिर किसी बच्चा चुराने वाले गैंग से 50 हज़ार से 1 लाख रुपये दे के खरीद लेते हैं | इस बच्चे को ढंग से खाना नही खिलाया जाता ताकि वो कमज़ोर लगे और उसके हाथ पैर तोड़ कर उसे लाचार बनाया जाता है ताकि आपको दया आ सके ,आपने ध्यान दिया होगा की ये बच्चे हमेशा सोते रहते हैं, ऐसा इसलिए कि इनको सुबह उठा कर दूध के बदले थोड़ी सी वोड्का दी जाती है या अफ़ीम खिला दी जाती है, जिसकी वज़ह से ज़्यादातर बच्चे जिंदगी भर के लिए या तो अपंग हो जाते हैं या फिर मौत का शिकार हो जाते हैं, पर तब तक ये अपने मूल्य से कहीं ज़्यादा कमाई इन लोगों को करवा जाते हैं |
कृपया रेड लाइट पर भिखारियों को भीख में कोई पैसे ना दे और नाही किसी प्रकार के बिस्कुट के पैकेट या पानी की बंद बोतल दे क्योकि ये इनको नहीं मिलेगी और गैंग वाले उनको बाजार में बेच कर पैसा इकठ्ठा कर लेंगे यदि देना ही चाहते है तो घर बचा खाना ही दे जो इन्ही के पेट में जायेगा ध्यान रहे , आपका दिया हुआ हर रुपया एक और बच्चे के अपहरण मे आपका योगदान है |
Sanjay Dwivedy

सुपरक्लास सिटी सहस्रो वर्षपूर्व भारत में थी मोहेंजोदडो ... !


आधुनिक विज्ञान के इस युग के चमचमाते शहरों को भी आश्चर्यचकित करेगी, ऐसी सुपरक्लास सिटी सहस्रो वर्षपूर्व भारत में थी और वह थी मोहेंजोदडो ! इतिहास के पुस्तक से जानकारी मिलती है कि सिंधु संस्कृति के मोहेंजोदडो शहर में हडाप्पा संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं; परंतु इससे भी अधिक विशेषताएं मोहेंजोदडो में प्रत्यक्ष में थी । सहस्रो वर्षपूर्व के इस शहर का निर्माण नियोजनपूर्णता से किया था । मुंबई की ट्रॅफिक जॅम और गढ्ढोंवाली सडकों को भी लज्जा आएगी, ऐसी विशाल सडकें मोहेंजोदडो में थी । पूर्व-पश्चिम और दक्षिण-उत्तर दिशा में फैली ९ मीटर चौडी सडकें एवं उन्हें जोडनेवाले ५ मीटर चौडे उपमार्ग, मोहेंजोदडो की विशेषता थी । पीने के पानी के लिए नदियों के अतिरिक्त प्रत्येक घर के सामने एक अतिरिक्त कुआं, धनिकों की कोठियों के साथ श्रमिक वर्ग के लिए भी विशेष बस्ती, ऐसी अनेक विशेषताएं मोहेंजोदडो में थी । ड्रेनेज लाईन, ईटों से व्यवस्थित पद्धति से ढकी नालियां, व्यापारी, उद्योजकों के लिए भिन्न विभाग, ऐसा योजनाबद्ध और सर्व सुविधाआें से युक्त यह शहर वर्ष १९२७ में उत्खनन के उपरांत विश्व के सामने आया । नगररचना, वास्तुरचना, आधारभूत सुविधाएं और कृषि उद्योग आदि सभी क्षेत्रों में सुनियोजित इस शहर का आदर्श विश्व के किसी भी देश के लिए सामने रखने जैसा ही है; क्योंकि उस समय का वैज्ञानिक कलाकौशल आज के अतिप्रगत देशों को भी आश्चर्यचकित करनेवाला है ।

१. बरतन

मोहेंजोदडो में हड्डप्पन विज्ञान प्रगत था । ईसापूर्व ५ सहस्र वर्षपूर्व भी मिट्टी के बरतनों का प्रयोग होता था । काली, लाल मिट्टी, हड्डप्पा गेरू आदि से ये बरतन बनाए जाते थे । बरतन को आकार देने के लिए कुम्हार उस समय भी चक्के/पहिए का उपयोग करते थे । इन बरतनों को सेकने के लिए ६ x ४ फुटों के भट्टे भी उस समय होते थे । इसके प्रमाण भी उत्खनन से मिले हैं ।

२. अलंकार

मिट्टी के बरतनों के साथ सिरॅमिक से बनाई वस्तुएं, कंगन तथा शंख-सीपों से बनाए आभूषण भी सहस्रो वर्षपूर्व उपयोग में लाए जाते थे ।

३. धातुआें का अतिप्रगत उपयोग

सोना, चांदी, तांबा, जस्ता, लोहा आदि के संदर्भ में शोधकार्य भारत में हुआ । धातुआें के शुद्धिकरण की प्रक्रिया भी सर्वप्रथम भारत को सहस्रो वर्षों से ज्ञात है; इसीलिए पहले मिट्टी, लकडी और धातु का शोध लगनेपर उसका उपयोग चलनी सिक्कों के लिए होने लगा ।

३ अ. तांबा : राजस्थान, उत्तरप्रदेश इन राज्यों में ५ से ६ सहस्र वर्षपूर्व भी तांबे का प्रयोग बडी मात्रा में किया जाता था । १ सहस्र ८३ अंश सेंटिग्रेडतक कच्चे धातु को तपाकर उससे शुद्ध तांबा प्राप्त करने की कला तब कारीगरों को अच्छे से अवगत थी । इसी प्रकार १ सहस्र ६३ अंश सेंटिग्रेड की उष्णता देकर सोनेपर शुद्धिकरण की प्रक्रिया की जाती थी । ईटों से बना लोहे का भट्टा उस समय विशेषकर उपयोग में लाया जाता था ।

३ आ. जस्ता : जस्ता, इस धातु का उपयोग उस समय भी किया जाता था । हिंदुस्थान जंक लिमिटेड, ब्रिटीश म्युजियम और बडोदा के विश्वविद्यालय ने राजस्थान के जावर मेंे संयुक्त तत्त्वावधान में उत्खनन किया । तब उन्हें जस्ते का एक भट्टा मिला था । इस भट्टे में प्रतिदिन २० से २५ किलो जस्तेपर प्रक्रिया की जाती थी । इससे इस गुट ने अनुमान लगाया कि पांचवी और छठी शताब्दि के आसपास ६० सहस्र टन जस्ते का उपयोग किया गया ।

३ इ. धातुआें से मूर्ति बनाना : मूर्ति बनाने के लिए सामान्यतः मोम के सांचे का उपयोग किया जाता था । मोम से मूर्ति बनाकर उसपर रेती और मिट्टी का मिश्रण डालकर सांचा बनाया जाता था । इस सांचे में धातु डालकर मूर्तियां बनायी जाती थी । सेकने तथा पॉलिशिंग का काम भी उस समय होता था । इसी प्रकार केवल १ से २ प्रतिशत कार्बन से युक्त उच्च श्रेणी का लोहा (स्टील) भारत में बनता था । चीन और भारत के कुछ पूर्वी देशों से भारतीय लोह के लिए (स्टील के लिए) विशेषकर वूटज स्टील को बडी मात्रा में मांग होती थी । इराण के लिए भारत कपास और कपडों का बडा हाट (बाजार) था । इसी कपास के कारण इराणसहित अन्य देशों के व्यापारी उस समय भारत में आने लगे । सामग्री की आयात-निर्यात के लिए पर्याप्त यातायात की व्यवस्था भारत के पास थी ।

४. चक्के (पहिए) का शोध

इसका शोध लगनेपर उसका विविध प्रकार से उपयोग भारत में प्रारंभ हुआ । लकडी से चौखट बनाकर उसे चक्का लगाकर बैलगाडी, घोडागाडी बनायी गई । इसी प्रकार कुएं से पानी निकालने के लिए रहँट बनाए गए । ईसापूर्व ३५० में भारत में पानी खींचने के लिए रहँट का प्रयोग किया जाता था ।

५. आटे की चक्की

कश्मीर, हिमाचल प्रदेश में जलप्रपात से तेजी से बहनेवाले पानी का उपयोग कर धान पीस ने की चक्की बनायी गई । इसकी जानकारी देते समय केनेड ने कहा, पत्थर खोदकर उस का दांतवाला चक्का बनाया जाता था । उस में वृक्ष का बडा तना अटकाकर उपर चक्की खडी की जाती थी । अर्थात इसके लिए निकट की दो बडी चट्टानों का आधार लिया जाता था । पानी के वेग से पत्थर का चक्का घूम जानेपर, चक्की के पत्थर घूमा करते थे । यह विश्व की पहली आटे की चक्की थी ।

६. वजन

सिंधु संस्कृति में नाप-तोल (वजन-मापांचा) कर भी उपयोग होता था । १.७, ३.४, १३.६ और १३६ ग्रॅम के वजन तब थे ।

७. अत्याधुनिक शल्यचिकित्सा

शल्यचिकित्सा (ऑपरेशन) अंग्रजों से भारतियों को मिली देन है, ऐसी अनेकों की अनुचित धारणा है । सुश्रुताचार्य के सुश्रुतसंहिता नामक ग्रंथ में ही शल्यचिकित्सा की जानकारी मिलती है । इतना ही नहीं, किंतु युद्धप्रसंगों में घायल योद्धाआेंपर आवश्यकता पडेनपर शल्यचिकित्सा की जाने की जानकारी इतिहास के बखरों में मिल रही है । ४ से ५ सहस्र वर्षपूर्व भी भारत में वैद्योंद्वारा शल्यकर्म किया जाता था । ३०० से अधिक प्रकार के शल्यकर्म शरीरपर होते थे ।

७ अ. शल्यकर्मों के लिए आवश्यक उपकरण : घाव, दुर्घटना आदिपर उस समय भी शल्यकर्म होते थे । इसके लिए आवश्यक यंत्र, उपकरण उस समय बनाकर लिए जाते थे । ये उपकरण प्राणियों के मुख, पक्षियों की चोंच तथा धातुआें से बनाए जाते थे ।
७ आ. प्लास्टिक सर्जरी : किसी अवयवपर प्लास्टिक सर्जरी भी की जाती थी । गाल की त्वचा निकालकर नाक, ठोडी अथवा भालपर जोडकर मुखमंडल सुंदर करने का कौशल कुछ वैद्यों के पास था । इसलिए इस बात की पुष्टि हो रही है कि प्लास्टिक सर्जरी के जनक भारत में थे ।

८. सुगंधी द्रव्य

सुंदरता के साथ सुगंध का भी मानवी जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । इस महत्त्व की पहचान भारतियों को सहस्रो वर्षपूर्व ही थी । अब हाट में (बजार में) विदेशी बनावट के महंगे परफ्युम्स मिलते है, किंतु सुगंधी द्रव्य की धरोहर को भारत ने आरंभ से ही संजोया है । त्वचारक्षक पदार्थों की निर्मिति करते समय सुगंधी फूल, वनस्पती आदि से सुगंधी द्रव्य निर्मित होने लगे । सुगंधी तेल, चूर्ण (पाऊडर) एवं सुगंधी द्रव्य के लिए कन्नौज नामक तत्कालीन शहर विख्यात था । सुगंधी द्रव्य तब भी एक कुटिरोद्योग था ।
– श्री. नीलेश करंजे (संदर्भ : मासिक चित्रलेखा,

Thursday, 22 September 2016

1980 के दशक में केरल के मुख्यमंत्री के करुणाकरण ने गुरुवायूर मंदिर ट्रस्ट पर दबाव बनाकर राज्य कोषालय में दस करोड़ रूपए जमा करवाए थे, ताकि सरकारी राजकोषीय घाटा पूरा किया जा सके. इसी के साथ उन्होंने “भूमि सुधार क़ानून” लागू करके गुरुवायूर मंदिर की 13,000 एकड़ भूमि को केवल 230 एकड़ तक सीमित कर दिया, लेकिन चर्च (जो कि रेलवे के बाद सबसे बड़ा रियल एस्टेट मालिक है) की जमीन को हाथ तक नहीं लगाया.
इसी प्रकार पूर्ववर्ती महाराष्ट्र सरकार ने मुम्बई हाईकोर्ट में 2004 में लिखित में स्वीकार किया है कि समाज कल्याण एवं कपड़ा मंत्री विलासराव पाटिल उन्दालकर ने मुम्बई के सिद्धिविनायक मंदिर से एक लाख नब्बे हजार डॉलर निकालकर, किसी ऐसी चैरिटी ट्रस्ट में डाल दिया जो कि नेताओं के परिजनों द्वारा संचालित है.
ये तो केवल दो ही उदाहरण हैं, मंदिरों के धन की ऐसी लूट के दर्जनों किस्से हैं...

गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अथवा वक्फ बोर्ड की तरह एक "केन्द्रीय देवस्वं बोर्ड" गठित होना चाहिए... जिसकी रूपरेखा मोदी सरकार के समक्ष रखी जा चुकी है, संसद में बिल लाकर क़ानून बनाना शेष है... हमारे मंदिर "शासकीय चंगुल" और खुली डकैती से कब मुक्त होंगे यह देखना है...
 *शराब का नाम जिसने भी रखा है बड़ा सोच समझकर*
*रखा है* !!!
कैसे ? ? ?
*ये देखें, ऐसे - शराब का मतलब*
*श - शत प्रतिशत*
*रा -राक्षसों जैसा*
*ब - बना देने वाला पेय।*
*और क्या कहते हैं शराब को - मदिरा* 
*म - मरघट*
*दि - दिखाने वाला*
*रा - रास्ता*
*शराब को दारू 🍻 भी कहते हैं*
*दा -दांव पर*
*रू-रूह*
*शराब को english में कहते*
*हैं wine*🍾
*W - wisdom (ज्ञान)*
*I - income (आमदनी)*
*N - nature (गुण)*
*E - end (समाप्त)*
*इसलिए ऐसे*
*विष को हाथ ना लगाएं*
Mohan Bhagwat ji
"सत्य को अभिव्यक्ति के लिए न तो किसी स्वीकृति की आवश्यकता होती है और न ही किसी के अनुमति की क्योंकि वह तो यथार्थ होता है, ऐसे में, अगर किसी को सत्य या उसकी अभिव्यक्ति से समस्या हो तो आप क्या कहेंगे?
यही न… की जीवन शैली के लिए धर्म की गुणात्मकता से अधिक बहुमत का गणनात्मक आधार निर्णायक हो गया है ; ऐसा तभी होता है जब सामाजिक जीवन व्यवहारिकता के नाम पर अपना वैचारिक स्तर खो दे क्योंकि तभी सत्य भी बहुमत के समर्थन, समझ और सुविधा द्वारा तय होता है।
इसे जीवन पर अनुकूलन का प्रभाव नहीं तो और क्या कहेंगे जो हम सतत व धीमी गति से चल रहे हमारे सामाजिक व् वैचारिक पतन की प्रक्रिया के आज इतने अभ्यस्त हो चुकें है की हम वर्त्तमान के परिस्थितियों के सन्दर्भ में आवश्यक प्रतिक्रिया करने के लायक भी नहीं रहे ; तभी, आज हम अपने सामाजिक जीवन में सहुलीयत के नाम पर विषमता, भ्रस्टाचार और सिद्धान्तों के समझौते के इतने अभ्यस्त हो चुके हैं की परिवर्तन का प्रयास ही हमारे लिए समस्या बन गयी है। ऐसा इसलिए क्योंकि भ्रस्टाचार भी हमारे लिए तभी समस्या होती है जब हम उसके शोषण का पात्र बनते हैं, अन्यथा, व्यावहारिक जीवन में सहूलयतों के नाम पर भ्रस्टाचार तो कब से हमारी स्वीकृत जीवनशैली है जिससे किसी को कोई शिकायत नहीं !
वास्तव में देखा जाए तो स्वयंसेवक होना ही अपने आप में एक बहोत बड़ा दयित्व है और इसलिए उद्देश्य के प्रति समर्पण और अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठा से कोई भी स्वयंसेवक अपने लिए महत्व अर्जित कर सकता है। केवल संघ से सम्बन्ध अथवा संघ से प्राप्त पद से ही कोई स्वयंसेवक सिद्ध नहीं होता, हाँ, यह सामाजिक उत्थान के संगठित प्रयास के समन्वय व् संतुलन के लिए ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत भूमिका के महत्व को रेखांकित करने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है;
जिस विचारधारा को संघ संगठित रूप में जीता है उसी विचारधारा को जो व्यक्तिगत स्तर पर अपने विचार, व्यव्हार और आचरण से यथार्थ में जीवंत रूप प्रदान करे वही सही अर्थों में व्यावहारिक रूप से आदर्श स्वयंसेवक है इसलिए वह अपने परिचय अथवा प्रयास के लिए किसी औपचारिकता पर आश्रित नहीं होता। ऐसे में, हमारे लिए आज महत्वपूर्ण क्या होना चाहिए, संघ का उद्देश्य और स्वयंसेवकों का लक्ष्य या औपचारिकताएं, सहूलयतें और व्यवहारिकता के नाम पर जीवन मूल्यों से किये जाने वाले समझौते , आप ही बताइये !
राजनीति और राजनीतिक दल के लिए संख्याबल का महत्व हो सकता है गुणवत्ता से अधिक हो पर न तो संघ कोई राजनीतिक दल है और न ही राजनीतिक कार्यकर्ताओं का निर्माण करना संघ का काम; संघ समाज में अग्रसर का निर्माण करता है जो अपने विवेक से अपने कार्यक्षेत्र को चुनने के लिए स्वतंत्र हैं और इसलिए किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं के विपरीत संघ के स्वयंसेवकों मंे विवेक एवं बुद्धि का विकास महत्वपूर्ण होता है ; संघ धर्मनिरपेक्ष नहीं बल्कि धर्मावलंबी है और इसीलिए संघ और स्वयंसेवक नैतिक व् धार्मिक जीवन मूल्यों द्वारा शाषित होते हैं, ऐसे में, आश्चर्य नहीं जो एक स्वयंसेवक के तर्क ही देश के इक्कतीस प्रतिशत जनता के निर्णय पर भारी पड़े;
समस्या यह नहीं की परिस्थितियां विकट है बल्कि समस्या यह है की हम इस विषम परिस्थिति के इतने आदि हो रहे हैं की हमें परिस्थितियों को बदलने की कोई आवश्यकता ही महसूस नहीं होती ; आखिर, संवेदनाओं की कीमत पर ऐसी समझदारी किस काम की जिसके चलते हमारी सभ्यता, वास्तविकता और मानवता ही खतरे में पड़ जाए, कभी समय मिले तो इस विषय पर अवश्य विचार कीजियेगा !”

Wednesday, 21 September 2016

टॉप सीक्रेट वेपन काली...

भारत का अदृश्य तरंगों वाला यह ब्रह्मास्त्र टॉप सीक्रेट वेपन काली कितना खतरनाक और महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने राष्ट्रहित का हवाला देकर लोकसभा तक में इससे संबंधित कुछ भी जानकारी देने से साफ इनंकार कर दिया है।
5 अप्रैल 2012 में पाकिस्तान के कब्जे वाले सियाचिन के ग्यारी सेक्टर में भयानक बर्फानी तुफान आया था और वहां एक ग्लेशियर का बड़ा हिस्सा गिर गया था, जिसमें पाकिस्तान आर्मी का बेस कैंप पूरी तरह तबाह हो गया था और उसके करीब 140 सैनिक भी मारे गए थे। 

पाकिस्तान के रक्षा वैज्ञानिकों का दावा है कि इतना बड़ा पहाड़ तब तक नहीं गिर सकता था जब तक कि उसको काटा न जाए. उनका शक भारत पर है कि उसने अपने काली वेपन के जरिए इसको काटकर गिराया है.
इसको आम जुबान में इस प्रकार समझा जा सकता है जिस प्रकार स्कूल के दिनों में बच्चे मैग्नीफाइंग ग्लास के जरिए सूर्य की किरणों से दूर बैठकर कागज के टुकड़े को आग से जला देते थे। काली भी कुछ इसी प्रकार काम करता है।
यही कारण है कि उरी हमले के बाद अब पाक को डर सता रहा है कि कहीं भारत इस बार भी इस गोपनीय अस्त्र से ऑपरेशन वाइटवॉश की पुनरावृति न कर दे। बताया जाता है कि उस वक्त एअरक्राफट से काली के जरिए ग्लेशियर पर बीम डालकर 300 किमी प्रति घंटे का तूफान पैदा किया गया था। जबकि पाकिस्तानी सेना का दावा है कि पूरा ग्लेशियर एकाएक पिघल कर नीचे आ गिरा,  जो आमतौर पर नहीं होता है।
बहराल, टॉप सीक्रेट वेपन काली हवाई जहाज और मिसाईल के इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिक सर्किट और चिपों को इलेक्ट्रॉन माईक्रोवेव तरंगों के शक्तिशाली प्रहार से फेल कर सेकंडों में गिरा सकता है। यही नहीं, इसकी बीम के जरिए यूएवी और सेटेलाइट को भी गिराया जा सकता है।
भारत गोपनीय तरीके से वर्ष 1989 से टॉप सीक्रेट वेपन काली मिशन पर अनुसंधान कर रहा है। वर्ष 1985 में भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर (बार्क) के डायरेक्टर डॉ. आर. चिदंबरम ने इसकी योजना बनाई थी. डीआरडीओ इस मिशन में बार्क के साथ मिलकर काम कर रहा है।
इस सीक्रेट योजना के तहत जिस सीक्रेट वेपन को बनाने की कोशिश की जा रही है, उसका नाम है काली (किलो एंपीयर लीनियर इंजेक्टर). काली एसीलिरेटर इलेक्ट्रान की ऊर्जा को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन में बदल कर हाई एनर्जी वाली तरंगों में बदल देता है।
हम आपको बता दें कि यह टॉप सीक्रेट वेपन काली लेजर गन नहीं है जैसा कि लोगों को भ्रम है। यह हाई पावर माइक्रोवेव गन है, जो 200 गीगावाट ऊर्जा पैदा कर सकती है। इसके कुछ प्रोटोटाइप तैयार भी किए जा चुके हैं, लेकिन पूरी हथियार प्रणाली का विकास अभी भी जारी है। 

इंडियन आर्मी ने POK से सटे त्राल जंगलों में ज्‍वाइंट ऑपरेशन चलाकर
 आतंकियों का पहला ठिकाना ख़तम कर डाला ...



भारतीय फौज ने उरी अटैक के बाद 18 जवानों की शहादत का बदला लेना शुरु कर दिया है। मंगलवार को पहले भारतीय सेना ने घुसपैठ की कोशिश कर रहे दस आतंकियों को एनकाउंटर के बाद मार गिराया। इसके बाद पाक अधिकृत कश्‍मीर से सटे इलाकों में सर्च ऑपरशेन शुरु कर दिया था। इसी सर्च ऑपरेशन और ज्‍वाइंट ऑपरेशन में त्राल के जंगलों में इंडियन आर्मी ने आंतकियों के एक बड़े ठिकानों को पूरी तर‍ह नेस्‍तेनाबूत कर दिया है। सेना के जवानों ने यहां से भारी मात्रा में गोला बारुद और हथियार भी बरामद किए हैं। सेना का ये ऑपरेशन क्‍लीन लगातार जारी है। माना जा रहा है कि पहले सेना भारतीय सीमा में घुसपैठ कर चुके आतंकियों को शमशान पहुंचाएगी इसके बाद पीओके में हमला किया जाएगा।
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उरी अटैक के बाद कश्‍मीर के सीमावर्ती इलाकों के जंगलों में सेना, जम्‍मू-कश्‍मीर पुलिस और सीआरपीएफ ने एक विशेष अभियान छेड़ा हुआ है। इंडियन आर्मी, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ की ओर से चलाए गए इस ज्‍वाइंट ऑपरेशन में बुधवार को त्राल जिले के कमला फॉरेस्ट में सेना की टुकड़ी ने आतंकियों के एक महत्‍वपूर्ण ठिकाने को पूरी तर‍ह बरबाद कर दिया। आतंकियों ने कमला फॉरेस्‍ट में जिस जगह पनाह ले रखी थीं वहां से भारी मात्रा में आधुनिक हथियार भी बरामद किए गए हैं। जिसमें गोला बारुद भी शामिल हैं। इसके अलावा वॉकी टॉकी और जीपीएस सिस्‍टम भी मिला है। बताया जा रहा है कि आतंकी ठिकाने से बरामद हथियार पाकिस्‍तान मेड हैं। जिस पर पाकिस्‍तान की मुहर भी लगी हुई है।
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आर्मी ने कमला फारेस्‍ट से आतंकियों के ठिकाने से जो हथियार बरामद किए हैं उसमें एके-47 राइफल, स्नाइपर राइफल, मशीन गन के अलावा भारी मात्रा में जिंदा कारतूस शामिल हैं। सेना, जम्‍मू-कश्‍मीर पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों ने ये ज्‍वाइंट ऑपरेशन मंगलवार देर शाम शुरु किया था। जिसके बाद लगातार इन के ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है। जिस इलाके में आर्मी का ये मूवमेंट और ऑपरेशन चल रहा है वो पाक अधिकृत कश्‍मीर से बिलकुल सटा हुआ है। सू्त्र बताते हैं कि आतंकी पाकिस्‍तान से घुसपैठ के बाद जंगलों के रास्‍ते होते हुए इन्‍हीं जंगलों में छिप जाते हैं। जंगलों के काफी घने होने के कारण आंतकी यहां पर आसानी से पनाह ले लेते हैं।
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साथ ही, अपने हथियार और गोला बारुद भी यहीं पर छिपा देते हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इन्‍हीं जंगलों से कश्‍मीर के बहके हुए युवाओं को भी हथियार सप्‍लाई किया जाता है। जिस पर अब आर्मी ने हमला करना शुरु कर दिया है। इसी पहले उरी अटैक के बाद मंगलवार को उरी सेक्‍टर में ही भारतीय फौज ने दस आतंकियों को मुठभेड़ के बाद मार गिराया था। आर्मी का कॉबिंग ऑपरेशन अब भी जारी है। आर्मी के प्रवक्‍ता का कहना है कि कॉबिंग ऑपरेशन तब तक जारी रहेगा जब तक कि इस इलाके से पूरी तरह आतंकियों का सफाया नहीं कर दिया जाता। सरकार ने भी आतंकियों के खिलाफ कडी कार्रवाई के लिए पूरी और खुली छूट दे दी है। ताकि आतंकियों को मुहतोड़ जवाब मिल सके। (- india trending now)
Hardik Savani
2 घंटे 
 
1897 में अधीन भारत की उत्तर पश्चिम सीमा पर सारग्राही नाम के एक छोटे से गाँव में रणनीति के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण दुर्ग स्थित था। वहाँ के कबाइली बाग़ी हमलों से दुर्ग की रक्षा का दायित्व 36th Sikh रेजिमेंट के 21 सिख जवानों को सौंपा गया। 12 सितम्बर, 1897 को जो वहाँ घटित हुआ वह आज भी विश्व में साहस और सेवानिष्ठा की उपमा के रूप में प्रयोग किया जाता है। 
उस दिन तड़के ही कबाइली बाग़ियों के एक विशाल दल ने सारग्राही दुर्ग पर हमला बोल दिया। अनुमानित है कि आक्रमणकर्ता 10,000 से 20,000 की संख्या में थे। 19 वर्षीय गुरमुख सिंह रेजिमेंट के सबसे कम आयु के सैनिक थे। उन्होंने तत्काल सैन्य प्रबलीकरण के सन्देश भेजे, जिसका उत्तर नकारात्मक आया, क्योंकि इतने बड़े स्तर के आक्रमण में सहायता किसी काम ना आती। निश्चित मृत्यु को प्रत्यक्ष देख रेजिमेंट के सभी सैनिकों ने निर्णय लिया कि आत्मसमर्पण कोई विकल्प नहीं।
सभी समीकरणों को धता बताते हुए दुर्ग की रक्षापंक्ति सक्रीय हो उठी, और आक्रमण का प्रत्युत्तर दिया जाने लगा। भीषण हमलों के बीच दुर्ग क्षतिग्रस्त होता रहा, और जवान प्रत्युत्तर देते रहे। उधर तीखे और सधे हुए जवाबी हमले से कबाइली दल को अनपेक्षित हानि होने लगी। हमला और तीव्र हो गया और कई घंटों के संघर्ष के उपरान्त दुर्ग की एक दीवार ढह गयी और दुश्मन को अंदर आने का अवसर मिल गया। अन्दर पाँच सिख जवान अभी जीवित बचे थे और फिर आमने सामने की लड़ाई हाथों से शुरू हो गयी। कहा जाता है कि अंतिम जीवित सिख जवान गुरमुख सिंह ने अकेले 20 कबालियों को मौत के घाट उतार दिया। अंततः कबालियों ने दुर्ग में आग लगा कर गुरमुख सिंह को मृत्यु के सुपुर्द कर दिया। "जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल" की युद्ध ललकार से जो दुर्ग गूँज रहा था, वह अब शान्त हो चुका था। मगर सहस्रों कबालियों के प्राण हरने के साथ ही साथ उन वीर सिखों ने आक्रमणकर्ताओं का आवेग भी तोड़ दिया। घंटों चले इस संघर्ष से यह अभियान विफल हुआ, और दो दिन के पश्चात वह दुर्ग पुनः सेना के कब्ज़े में आ गया।
वीरता की यह गाथा विश्व में आग की तरह फैली। यहाँ तक कि अंग्रेजी संसद को बीच में रोक कर सांसदों ने खड़े हो कर सम्मान दिया।
इस ऐतिहासिक तिथि पर आइये इन महावीरों को याद करें।

genaral v k singh

v k singh


एक घर पर बहुत दिनों तक कुछ परदेसी दबंगों का कब्ज़ा था। किसी तरह मकानमालिकों ने काफी संघर्ष के बाद उन्हें घर से बाहर निकाला। मकानमालिकों को उनका घर तो मिला मगर आपसी असहमति के कारण घर का बॅटवारा करना पड़ा। दो भाइयों के बीच घर के दो हिस्से हो गए।
अब घर में दो गृहस्थियाँ अपने अपने तरीके से चलने लगीं। जहाँ बड़े भाई की गृहस्थी अपने परिवार की खुशहाली पर केन्द्रित थी, वहीँ छोटा भाई अपने परिवार को अनदेखा कर बड़े भाई की गृहस्थी को ईर्ष्या से देखता रहता था। किस प्रकार बड़े भाई के परिवार को दिक्कत हो, यही सोचता रहता था।
इसी ईर्ष्या के चलते, छोटे भाई ने देखा कि बड़े भाई ने अपने परिवार के लिए धन और पदार्थ अर्जित कर लिया है। इस समृद्धि पर हमला करने के लिए उसने अपने घर में चूहे पालने शुरू कर दिए। छोटे भाई ने अपना धन चूहे के बिल बनाने और उन्हें खिलाने पिलाने में लगाना शुरू कर दिया। उसने यह आशा की थी कि चूहे जाकर बड़े भाई की समृद्धि नष्ट कर देंगे।
छोटे भाई के घर में अनुकूल परिस्तिथियों में चूहे पनपे। हालाँकि अपने घर में चूहे कौन पालता है? घर के सदस्य छोटे भाई के रवैये से परेशान थे। जो धन बच्चों की पढाई लिखाई में लगने चाहिए थे, वह चूहों की परवरिश में लग रहे थे। खैर चूहे जब मोटे तगड़े हो गए तो छोटे भाई ने उन्हें बड़े भाई के घर का रास्ता दिखाया। चूहों ने बड़े भाई के घर में उत्पात मचाना शुरू किया। बड़ा भाई पहले चकित रह गया पर छोटे भाई की ईर्ष्या को समझ कर उसने अपने घर की सुरक्षा बढ़ा दी।
जब बड़े भाई के घर में चूहों की दाल नहीं गली, तो वही मोटे तगड़े चूहे छोटे भाई के घर लौट आये और वहाँ उत्पात मचाने लगे। छोटा भाई बौखला गया और सोचा कि शायद ये चूहे दलबदलू हैं क्योंकि ये भूल गए कि मैंने ही तो इन्हें पाला था ! सनकी छोटे भाई ने और नए चूहे पालने शुरू कर दिए। नतीजा यह हुआ कि छोटे भाई का घर चूहों से भर गया, उसके घर वाले विद्रोह करने लगे। कभी कभी बड़े भाई के घर चूहे घुस आते और नुक्सान कर देते। बड़े भाई को दुःख होता और क्रोध भी आता। आस पड़ोस में छोटा भाई चूहे पालने वाले के नाम से बदनाम हो गया और लोग उससे कन्नी काटने लगे। छोटा भाई यह कहता, अरे मैं भी तो चूहों से परेशान हूँ! वह यह भी कहता कि मैं चूहों से खुद निपट लूँगा, ये मेरे घर के अन्दर का मामला है।
लेकिन यह बहाने अब दुनिया पहचान चुकी थी। बड़े भाई को लगने लगा था कि छोटा भाई और चूहे एक दूसरे से अभिन्न हो चुके हैं। कभी कभी तो लगता था कि छोटे भाई के घर के मुखिया चूहे ही हैं।
शायद समय आ चुका था कि बड़ा भाई छोटे भाई के घर में घुस कर उसे चपत लगाए, और चूहों की समस्या से खुद निपटे।

Tuesday, 20 September 2016

tarik fateh...

http://satyavijayi.com/amazing-speech-tarek-fatah-dont-commit-mistake-gandhi/
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http://www.therebel.media/tarek_fatah_in_every_mosque_imams_call_for_the_defeat_of_the_very_people_whose_land_they_are_living_in
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http://www.therebel.media/tarek_fatah_anyone_worried_about_western_civilization_vote_trump
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Monday, 19 September 2016

आंखों में आंसू थे लेकिन पढ़ लिखकर अपने पिता की तरह बनने का सपना भी था -https://goo.gl/l4hZfk


#Dalit_Politics

आपको याद होगा, कुछ माह पूर्व चेन्नई रेलवे स्टेशन पर एक लड़की की चाकुओं से गोदकर हत्या की गई थी. पुलिस ने उसके हत्यारे रामकुमार को पकड़ लिया. चेन्नई रेलवे स्टेशन से भागते हुए रामकुमार की CCTV फुटेज, रामकुमार के खून सने कपड़ों और उसके इकबालिया बयान के बाद यह सिद्ध हो गया कि हत्या उसी ने की है... रामकुमार को जेल भेज दिया गया. परसों जेल में रामकुमार ने आत्महत्या कर ली. यहाँ तक तो आपको इस मामले में कोई ट्विस्ट नहीं दिखाई दिया होगा... सीधा-सीधा मामला है... लेकिन नहीं, आप चूक कर रहे हैं.. आप "भारतीय लोकतंत्र"(??) और वोट बैंक की ताकत कम करके आँक रहे हैं... -- असली पेंच तो अब शुरू हुआ है, क्योंकि हत्यारा रामकुमार "दलित" निकला... और लड़की ब्राह्मण थी.

अब तमिलनाडु में (जहाँ 69-73% आरक्षण है), रामकुमार की मौत को लेकर "दलित राजनीति" शुरू हो गई है. कहा जा रहा है कि -

१) रामकुमार को जेल में षड्यंत्रपूर्वक मरवा दिया गया...
२) चूँकि वो दलित था, इसलिए ब्राह्मण लड़की के घरवालों ने ही "ऑनर किलिंग" की और "बेचारे" रामकुमार को फँसा दिया...
३) चूँकि जयललिता ब्राह्मण हैं, इसलिए वे इस मामले की जाँच में रूचि नहीं ले रहीं...
४) नारे भी लग रहे हैं.... "रामकुमार के परिवार को मुआवज़ा दो... दलित अत्याचार बन्द करो..."

मुसलमानों के साथ "प्रेम की पींगें" बढ़ाकर, अब दलित नेता भी उन्हीं के समान "Tactics" सीखने लगे हैं... जय हो... जय हो...
Suresh Chiplunkar
पिता के शहीद होने पर घर में मचा था कोहराम, आंसू पोंछ परीक्षा देने स्कूल पहुंची बेटियां
सेना प्रमुख का बयान
 केंद्र से पहली बार पूरी छूट
अब बदले का वक़्त और जगह  हम तय करेंगे ...
वर्ष 2016 में घुसपैठ के 17 प्रयास हो चुके हैं। उन्हें नाकाम कर दिया गया और उसमें 110 आतंकी मारे गए। इनमें से  31 नियंत्रण रेखा पार करने के दौरान मारे गए। 
सैन्य शिविर पर हुए हमले में 18 जवानों के शहीद होने के  बाद सैन्य संचालन महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने संवाददाताओं से यहां कहा- भारत सीमा पार के आतंकी हमले का जवाब अपने चुने हुए स्थान और समय पर देने का अधिकार आरक्षित रखता है।  हमारे पास वह इच्छित क्षमता है कि हिंसा के ऐसे घोर कार्य का जवाब हम जिस अंदाज में उचित समझें वैसे दे सकें।”

भारत में हर साल होती है 67 लाख टन खाने की बर्बादी...
भारत जैसे देश में खाने की बर्बादी दोनों हाथों से होती है। ताजा रिपोर्ट कहती है कि हम जितना एक साल में बर्बाद कर देते हैं, उतना ब्रिटेन उगा भी नहीं पाता.... 
शादी समारोह हो या फिर रेस्त्रां में खाना। खाना छोड़ने की बुरी आदत एक आम बात है। लेकिन यही आम सी लगने वाली बात पर एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। भारत में हर साल 67 लाख टन खाना बर्बाद हो जाता है।
कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट की माने तो भारत में हर साल जितना खाना बर्बाद होता वो ब्रिटेन के राष्ट्रीय उत्पादन से ज्यादा है। साथ ही  बर्बाद हुए खाने की कीमत 92 हजार करोड़ रुपये है। ये रकम भारत सरकार की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के तहत खर्च की जाने वाली रकम का दो-तिहाई है।
कृषि उत्पादों की बड़ी मात्रा खाने की थाली तक पहुंच से पहले ही बर्बाद हो जाती है। तीन साल पहले संयुक्‍त राष्ट्र ने भी कहा था कि भारत में चीन के बाद सबसे ज्यादा अनाज बर्बाद होते हैं। अनाज का सड़ना,  कीट, मौसम और स्टोरेज की कमी बर्बादी के सबसे बड़े कारण हैं। अगर बात फसलों की करें तो 10 लाख टन प्याज खेतों से मार्केट में आने के रास्ते में ही बर्बाद हो गया। वहीं 22 लाख टन टमाटर भी रास्ते में ही खराब हो गए।

पहले यहां था रावण का महल
 अब इस जंगल से निकल रहे हीरे-जवाहरात ...

एक जंगल की मिट्टी में हीरे-जवाहरात मिल रहें हैं। श्रीलंका की राजधानी कोलंबो से 200 किमी दूर राग्गला नाम के एक छोटे से जंगल में कुछ ऐसा ही देखने को मिला है।  ये जंगल वर्तमान में चाय के खूबसूरत बागानों से सजा हुआ है।पहले यहां था रावण का महल इस बारे में श्रीलंकाई सरकार के बहुत से दस्तावेज भी गवाही देते हैं। इस जंगल के पास में लोगों की छोटी-छोटी बस्तियां हैं और इस इलाके में बाहर के किसी भी व्यक्ति की एंट्री पर भी बैन लगा हुआ है यानी यहां पर बाहर का कोई भी व्यक्ति नहीं जा सकता है। 

लोगों का मानना है कि इस जगह पर कभी रावण का महल हुआ करता था और इसलिए इस जगह से लोगों को काफी पुराने समय के बने हुए हीरे-जवाहरात और आभूषण मिल रहें हैं। बताया जा रहा है कि इस जंगल में आज भी रावण से जुड़े बहुत से रहस्य जिंदा हैं। रावण के राज लंका में एक लंबा अरसा हो चला है। इस दौरान उसके बहुत से महल और बहुत सी बनाई दुर्लभ कृतियां बनवाई थी, जो आज जमींदोज हो चुकी हैं।
 कहा  जाता है कि रावण का महल सोने का था और उसके पास काफी दौलत थी। माना जा रहा है कि अब उसी सोने के कुछ भाग यहां के स्थानीय निवासियों को मिल रहे हैं।

Sunday, 18 September 2016

यदि इस ब्राह्मण को जाति से न निकाला जाता तो आज बांग्लादेश हिन्दूराष्ट्र होता ...

भारतीय इतिहास की भंयकर भूलों की अगर आप सूची बनाने बैठ जाए, तो शायद बनाते बनाते आपका यह जीवन छोटा पड़ जाएगा. इन्हीं भूलों का परिणाम है कि विलक्षण प्रतिभाएं और क्षमताएं होने के बावजूद हम आज भी समस्याओं से भी जूझ रहे हैं. ऐसी ही एक बहुत बड़ी समस्या है हिंदू मुस्लिम की. धर्म के नाम पर देश बंटने के बावजूद स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है.
ऐसी ही एक ऐतिहासिक भूल के चलते पूर्वी पाकिस्तान जो आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है एक अलग देश बन गया. आजादी से पहले बांग्लादेश पश्चिम बंगाल का ही हिस्सा हुआ करता था. बंगाल में एक ऐसी ही भूल का नाम काला पहाड़ है. बंगाल के इतिहास में काला पहाड़ एक अत्याचारी शासक के रूप में जाना जाता है.
क्या आपको मालूम है कि काला पहाड़ का असली नाम कालाचंद राय था और वह एक बंगाली ब्राहम्ण युवक था.
पूर्वी बंगाल के उस वक्त के मुस्लिम शासक की बेटी को कालाचंद राय से प्यार हो गया. दरअसल, कालाचंद राय बांसुरी बहुत अच्छी बजाता था. बादशाह की बेटी को उसकी बांसुरी की धुन बहुत पंसद थी. धीरे धीरे उसको कालाचंद राय से प्रेम हो गया और शहजादी ने उससे शादी की इच्छा जाहिर की. वह उससे इस कदर प्रेम करती थी कि इस्लाम छोड़कर हिंदू विधि से शादी करने को तैयार हो गई.उस दिन यदि इस ब्राह्मण को जाति से न निकाला जाता तो आज बांग्लादेश हिन्दूराष्ट्र होतालेकिन हमेशा की तरह उस वक्त भी हिन्दू धर्म के ठेकेदार अड़ गए. उनको जब पता चला कि कालाचंद राय एक मुस्लिम राजकुमारी से शादी कर उसे हिंदू बनाना चाहता है, तो उन्होंने कालाचंद का विरोध करते हुए उसे धर्म और जाति से बेदखल करने की चेतावनी दे दी.
लेकिन कालाचंद राय ने धर्म के ठेकेदारों के सामने से झुकने से मना कर दिया और राजकुमारी से शादी करने को तैयार हो गया. इस पर उस मुस्लिम युवती के हिंदू धर्म में आने का हिंदू धर्म के ठेकेदारों ने न केवल विरोध किया, बल्कि धर्म व जाति बहिष्कृत कर कालाचंद राय और उसके परिवार को भी समाज से बेदखल कर अपानित भी किया.
अपने और परिवार के अपमान से बौखलाकर कालाचंद गुस्से से आग बबुला हो गया और उसने इस्लाम स्वीकारते हुए उस युवती से निकाह कर लिया. निकाह करते ही वह राज सिंहासन का उत्तराधिकारी हो गया.
उसके बाद धर्म के ठेकेदारों से अपने अपमान का बदला लेने के लिए कालाचंद राय ने तलवार के बल पर हिन्दुओं को मुसलमान बनाना शुरू कर दिया. उसका एक ही नारा था मुसलमान बनो या मरो. पूरे पूर्वी बंगाल में उसने इतना कत्लेआम मचाया कि लोग तलवार के डर से मुस्लिम धर्म स्वीकार करते चले गए. बंगाल को इस अकेले व्यक्ति ने तलवार के बल पर इस्लाम में धर्मांतरित कर दिया. उसकी निर्दयता के कारण लोग उसे काला पहाड़ कहने लगे थे.
कालाचंद राय ने ऐसा केवल इस लिए किया था कि वह उन मूर्ख, जातिवादी, अहंकारी व हठधर्मी हिन्दू धर्म के ठेकेदारों को सबक सिखना चाहता था. इतिहास इस प्रकार के एक नहीं कई उदाहरणों से भरा पड़ा है जब हिंदूओं ने अपनी संकीर्ण सोच से न जाने कितने कालाचंद राय का अपमान कर भारत को इस्लाम में परिवर्तित कर उसको इतिहास बदलने पर मजबूर कर दिया.
आपको क्या लगता है???
मोदी इस समय मुँह ढंककर सो रहे होंगे??? राजनाथ और डोभाल उन हाई प्रोफाइल मीटिंग्स में फ्राइड काजू और स्नेक्स ठूस रहे होंगे???
पर्रिकर और दलबीर सिंह सुहाग कहीं मुन्नी बाई के कोठे पर बैठकर हाथ में मोगरे का गजरा लपेटे हुए मुजरा देख रहे होंगे???
यकीन मानिये, कोई सेनापति अपने सैनिक की लाश देखकर चुपचाप नही बैठ सकता....कोई रक्षामंत्री अपनी सेना के कैम्प पर इस तरह का हमला नही सह सकता....कोई प्रधानमंत्री अपने देश पर इस तरह के हमले बर्दाश्त नही कर सकता...और मोदी जैसा तो कत्तई नही...
और रही बात पाकिस्तान से युद्ध की....तो , युद्ध तो उसी दिन शुरू हो गया था जिस दिन नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी...
6 महीने से रोज कश्मीर में रोज 4-6 आतंकियों के मरने की खबर आ रही है...हम बलूचिस्तान को आजाद करवाने की बात कर रहे हैं...अफ़ग़ानिस्तान से दोस्ती कर रहे...सिंध और पंजाब में पाक विरोध की घटनाएं रोज सामने आ रही....पाक अधिकृत कश्मीर खुद को भारत का हिस्सा मानना चाहता है...
पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रायोजित आतंक के खिलाफ हम लगभग आधे विश्व को एक साथ खड़ा कर चुके हैं...
ये सब क्या है??? ये युद्ध ही तो चल रहा है...एक अघोषित युद्ध...वो अपने तरीके से लड़ रहे हैं और हम अपने तरीके से..
और हाँ, एक बात और.....मेरी जाँ....हर राज नही होते बताने वाले...कुछ बातें पर्दे के पीछे ही रहे तो हमारे लिये बेहतर होगा...!!
आँखे खोलो इंडिया
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 इस हमले के पीछे जो भी हैं उन्हें बख्शा नहीं जाएगा ....प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 
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Saturday, 17 September 2016

बॉम्बे हाई कोर्ट क्या इस बात का जवाब देगा ...


बॉम्बे हाई कोर्ट क्या इस बात का जवाब देगा कि उन्होने मुंबई में रेजिडेंशियल सोसाइटीज में बकरीद के जानवर काटने की अनुमति क्यूँ दी और इस पर ban की मांग करने वाली याचिका को क्यूँ रिजेक्ट कर दिया ?
UAE जैसे देश तक में रेजिडेंशियल premises में बकरीद की कुर्बानी देने की इजाजत नही है, यहाँ भारत में ही हिन्दुओ को छोड़कर सबको धार्मिक आजादी के नाम पर हद दर्जे की गंदगी और बाकी धर्मो के निवासियों में दहशत फैलाने का अधिकार है ?
हिन्दुओ के हर त्यौहार पर विदेशी पैसा पाने वाली NGO की PIL पर उनकी मर्जी के अनुसार ban लगाने और जबर्दस्ती के नियम बनाने के लिए ही बैठे हैं क्या हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक के जज ?
जल्लीकट्टु बंद करो, दीवाली होली पर नियम बनाओ, गणेश जी की मूर्ति भले ही घुलनशील हो पर नदी में मत डालो, दही हांड़ी पर रोक लगा दो, ये सब क्या है?
हिन्दू धर्मो के अलावा जब अन्य धर्मो की किसी बात के खिलाफ PIL पड़ती है तो अदालत के मालिको को बेहद गलत लगती है जिसमे अधिकांश को वो रिजेक्ट कर देते हैं जो रिजेक्ट नही कर पाते उसे लटका देते हैं।
हाँ, विदेशी फंडिंग वाली NGO जब हिन्दू त्योहारों के खिलाफ PIL डालती है तब तो जज साहब सरकार तक को लताड़ लगा देते हैं कि हिन्दू त्योहारों के पिछड़ेपन को ढको मत जैसा कि दही हांड़ी के लिए जज ने कह दिया था कि क्या कोई ओलिंपिक जीत जायेगा इसे खेल कर। साफ़ दीखता है कि अमीर विदेशी पैसे वाली संस्थाओं से जज कितने प्रभावित (फायदे में) रहते हैं।
बंद करो अब ये हिन्दू धर्म के त्योहारों परम्पराओं के खात्मे की सुपारी लेना।
और हिन्दूओ को क्या कहा जाए, आधे तो यूँ ही अपने धर्म की हंसी उड़ाते हैं बाकी बचे लोगो के आधे अपना frustration मोदी पर निकालते हैं। एकता या dedication तो है नही, जो विदेशी पैसे खाने वाले गद्दारों को सबक सिखा सकें।
कुर्ला में रहने वाले एक नॉन मुस्लिम की सोसाइटी में पिछले साल 40 और इस साल 200 बकरी काटी गयीं और वो जगह जानवर के अवशेषों और खून से भर गयी। नॉन मुस्लिम बच्चे दहशत में घर से बाहर तक नहीं निकले।
इस्लाम वालो की बढती जनसंख्या और हिन्दुओ के बिखराव लालच और कायरता का अंजाम भारत का साइलेंट इस्लामीकरण है जो देश के हर हिस्से को अपने कब्जे में ले रहा है धीरे धीरे। क्या कुछ कर सकते हैं इस देश के असली अल्पसंख्यक (सच्चे हिन्दू) ?
Sanjay Dwivedy