Friday 2 September 2016

बड़ा भाई था पोलीयोग्रस्त 

तो छोटा भाई बना सहारा

दोनों ने साथ पास किया IIT...

देखा जाए तो इस कहानी में दो कोण हैं। एकतरफ जहां यह कहानी सच्ची लगन, हौसला और दिव्यांगता को हरा कर मिशाल पेश करने की है, तो वहीं दूसरी तरफ यह कहानी अपने भाई के लिए त्याग, प्रेम और न टूटने वाले सहारे की है।
बिहार के समस्तीपुर के परोरिया गांव के रहने वाला कृष्णा विकलांग है, लेकिन उसका सहारा बना है छोटा भाई बसंत। और दोनों भाइयों ने आईआईटी की कठिन परीक्षा पास कर ली है।

कृष्णा ने आईआईटी की परीक्षा में ओबीसी, विकलांग कोटा में पूरे भारत में 38वां रैंक 

हासिल किया है, जबकि उसके छोटे भाई बसंत ने ओबीसी कैटेगरी में 3675वां रैंक 

हासिल किया है।

पीठ पर लादकर ले जाता था स्कूल

कृष्णा और बसंत एक ग़रीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। पिता मदन पंडित एक किसान हैं, जिनके पास मात्र 5 बीघा ज़मीन है, तो मां गृहणी है। कृष्णा जब मात्र साल का था, तभी उसको पोलियो हो गया। लेकिन छोटे भाई बसंत ने कभी उसके सपने को मरने नहीं दिया। बसंत ने अपने बड़े भाई का हरसंभव साथ दिया। यहां तक उसे अपने कंधों पर बैठाकर स्कूल ले जाता था।

दोनों ने मिल कर किया सपना पूरा

यह दोनों भाइयों का प्रेम ही था, जो कभी दोनों ने खुद को अलग नहीं होने दिया। दोनों ने एक सपना देखा था इंजीनियर बनने का, जिसे मिलकर किया पूरा।दोनों भाइयों ने अपने सपने को हक़ीकत का जामा पहनाने के लिए 3 साल पहले इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए कोटा का रुख किया। यहां आकर उन्होंने एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया। यहां भी छोटा भाई अपने कंधों पर उठाकर अपने भाई को कोचिंग क्लासेस ले जाता था और दोनों साथ-साथ पढ़ाई करते थे।

सफलता का ये फल बहुत मीठा है, लेकिन अब बिछड़ने से

 हो जाएगा खट्टा...

कृष्णा के लिए उसका भाई पैरों से कहीं ज्यादा था। हमेशा एक दूसरे के साथ रहने वाले इन भाइयों को अब बिछड़ना पड़ेगा। दरअसल, आईआईटी में रैंक के अंतर की वजह आगे की पढ़ाई के लिए इन दोनों का साथ रहना मुमकिन नहीं है। बसंत भावविभोर होकर कहता हैः
‘अपने भाई के लिए ये सब करने का मैं आदी हो चुका हूं। अपने बड़े भाई के बिना रहना मेरे लिए बहुत कठिन है। सफलता का ये फल बहुत मीठा है, लेकिन हम दोनों के बिछड़ने से ये खट्टा हो जाएगा’।

पहला प्रयास हुआ असफल, लेकिन हिम्मत नहीं हारी

हालांकि, इन दोनों भाइयों को यह सफलता इतनी आसानी से नहीं मिली। पहले प्रयास में असफल होने के बाद इनके पिता ने उन्हें वापस लौट आने की सलाह दी थी। लेकिन उनके दो अन्य बड़े भाई जो मुंबई के एक गैराज में काम करते हैं, उनको  विश्वास था कि यह दोनों कुछ खास करने के लिए बने हैं उन्होंने कृष्णा और बसंत को पढ़ाई जारी करने के लिए प्रोत्साहित किया और मदद भी पहुंचाई। इसका परिणाम है कि आज वह अपने परिवार का नाम रोशन कर रहे हैं।कृष्णा ने बताया कि संस्थान के मैनेजमेंट ने उनकी 75% फीस माफ कर दी है और उन्हें स्कॉलरशिप भी मिलेगी। इन दोनों भाइयों के प्रेम त्याग और हौसले को सलाम। इनकी कहानी तमाम युवाओं को दिशा-निर्देश दे सकती है।

No comments:

Post a Comment