Tuesday 6 September 2016

एक स्वतंत्रता सेनानी ‘ठाकुर बाबू बंधू सिंह’ जो अंग्रेजों का सर कलम कर चढाते थे तरकुलहा देवी को !

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर से थोड़ी ही दूरी पर एक मंदिर है जिसका नाम ‘तरकुलहा देवी मंदिर’ है ! यह मंदिर गोरखपुर से 20 किलो मीटर की दूरी पर एवं चौरी चौरा से 5 किलो मीटर दूर स्थित है ! तरकुलहा देवी मंदिर हिन्दू भक्तो के लिए एक प्रमुख धार्मिक स्थल हैं !

इस मंदिर के साथ डुमरी रियासत के राजा बाबू बंधू सिंह का अनोखा इतिहास जुड़ा है ! 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम से पूर्व इस इलाके में जंगल हुआ करता था एवं यहां से से गुर्रा नदी होकर गुजरती थी ! इस इलाके की रियासत के राजा ‘ठाकुर बाबू बंधू सिंह’ थे ! बाबू बंधू सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे ! राजा ठाकुर बाबू बंधू सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ रखी थी ! बाबू बंधू सिंह गुर्रा नदी के तट पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर वह देवी की उपासना किया करते थे ! तरकुलहा देवी बाबू बंधू सिंह कि इष्ट देवी थी ! 

उन दिनों हर भारतीय के मन में अंग्रेजों के प्रति गहरा रोष व्याप्त था, जो कि अंग्रेजों के द्वारा किये जाने वाले जुल्मों के कारण बेहद तीव्र गति से उबल रहा था !बंधू सिंह के मन में भी अंग्रेजो के खिलाफ आग जलने लगी ! बंधू सिंह गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे ! राजा ठाकुर बाबू बंधू सिंह की रियासत से जब भी कोई अंग्रेज गुजरता था तो वो उसका धड़ काट डालते थे और उस धड़ को देवी मां की मूर्ति के आगे चढ़ा देते थे ! भारत की धरती उनकी मां है और कोई भी शख्स उनकी मां के सीने पर अपना पैर रखेगा तो वो उसका धड़ काट देंगे कुछ इसी तरह का जज्बा राजा ठाकुर बाबू बंधू सिंह के दिल में भी था !

लगातार अपने गुम होते सैनिकों से हैरान अंग्रेजी हुकूमत को अचानक इस बात का पता चल गया कि अंग्रेज सिपाही बंधू सिंह के शिकार हो रहे हैं ! अंग्रेजों ने उनकी तलाश में जंगल का कोना-कोना छान मारा लेकिन बंधू सिंह उनके हाथ न आये ! इलाके के एक व्यवसायी की मुखबिरी के चलते बंधू सिंह अंग्रेजों के हत्थे चढ़ गए !अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जहां उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी, 12 अगस्त 1857 को गोरखपुर में अली नगर चौराहा पर सार्वजनिक रूप से उन्हें फांसी पर लटकाया गया !

विचित्र बात यह कि अंग्रेजों द्वारा उन्हें फांसी पर लटकाने के अनेक प्रयास किये गए परन्तु हर बार रस्सी टूट जाती थी और प्रयत्न असफल हो जाता था ! अंत में स्वयं ठाकुर बाबू बंधू सिंह ने देवी मां का नाम लेते हुए अपने प्राण त्यागने का निश्चय किया और शहीद हो गए ! जिस स्थान पर बंधू सिंह को फांसी दी गयी आज भी वहां उनका स्मारक है !

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