Wednesday 8 November 2017

 आज अगर आप ने  पद्मावती फिल्म का विरोध नही किया 
   तो कल आपकी माँ और बहन की बारी है,... 

ऐसा है इतिहास...शर्म आती है जिन्होंने इस वीरांगना को इस तरह दिखाया ...जो राजपूतनियाँ उस समय इन हैवानों की वजह से घूँघट में रहती थीं उनको नग्न अवस्था में हमारे फिल्मकार प्रस्तुत कर देश के भविष्य देश के स्तम्भ हमारे मज़बूत इरादे वाले युवाओं को गुमराह कर रहे हैं..?..जो कि गलत ही नहीं बिल्कुल गलत है ...और ऐसे चित्र रानी पद्मावती के देखकर अत्यंत आश्चर्य होता है...

माँ पद्मावती पर फ़िल्म बनी है, उन्हें खिलजी से प्रेम करते दिखाया गया है, जबकी खिलजी उन्हें हाँथ ना लगा सके इसलिए उन्होंने जौहर (जीते जी खुद को अग्नि के हवाले कर देना) किया था, वो (भंसाली) ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करके पद्मावती को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। कोई भी इसे बर्दाश्त नहीं करेगा।
इतिहासकारों के पास खिलजी का प्रमाण है, पद्मिनी का नही। ऐसे इतिहासकारों को चुल्लू भर पानी दे देना चाहिये। पद्मावती खिलजी की कल्पना हो सकती है ये भी माना जा सकता है; किंतु उस कल्पना का सीधा सम्बंध आप चितौड़ से दिखा रहे हो और फिर ये भी कह रहे हो कि वो काल्पनिक है। काल्पनिक चीजों का किसी वंश विशेष से सम्बंध कैसे हो दिखाया जा सकता है ? ये शुद्ध झोल नही तो और क्या है .?.
 अब राजस्थान के फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर्स ने राज्य में मूवी रिलीज करने से मना कर दिया। डिस्ट्रीब्यूटर्स का कहना है कि अगर फिल्म में इतिहास के साथ छेड़छाड़ की वजह से लोगों की भावनाएं आहत होती हैं तो वे लोग डिस्ट्रीब्यूशन राइट्स नहीं लेंगे। राजस्थान के बड़े फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर राज बंसल ने कहा, ‘राजपूत करणी सेना और फिल्ममेकर संजय लीला भंसाली को एक समाधान पर पहुंचने दो। उसके बाद ही हम लोग डिस्ट्रीब्यूशन राइट्स खरीद लेंगे।’ अन्य फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर्स ने भी बंसल की बात का समर्थन किया।
वहीं दूसरी ओर जयपुर राजपरिवार की राज कुमारी और भाजपा विधायक दीया कुमार ने भी फिल्म का विरोध किया  कहा कि फिल्म में इतिहास के साथ छेड़छाड़ को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। 
अब सर्व ब्राह्मण महासभा ने भी भंसाली की फिल्म के रिलीज होने का विरोध किया है। राज्य अध्यक्ष सुरेश मिश्रा ने कहा है कि वो इस फिल्म के खिलाफ तब तक विरोध करेंगे जब तक कि आम लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए इसकी स्क्रिनिंग को रोका नहीं जाता। यह लड़ाई भारत के इतिहास की लड़ाई है, यह लड़ाई भारतीय नारी के सम्मान की लड़ाई है, माँ पद्मावती जितनी राजपूतो की है उससे कहि अधिक ब्राह्मणों , अन्य जातियों की है ,
आज अगर आप महारानी पद्मावती के लिए खड़े नही हुए तो कल आपकी माँ और बहन की बारी है, ये किसी को नही छोड़ेंगे, और एक दिन हिन्दू औरतों को बदचलन करार दे दिया जाएगा, ये सिर्फ एक शुरुआत है, इसलिए सावधान हो जाइए और पूरी ताकत के साथ विरोध कीजिये ।
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बात जब आन बान शान की होती तो न ठाकूर न बनिया न हरिजन हम सब हैं हिंदू ...
महारानी पदमावती का अपमान .......नहीं सहेगा हिंदू स्तान....//
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 आतातायियों के महिमामंडन के बराबर के दोषी है............



रानी पद्मिनी के जौहर को इतिहास से मिटा कर “पद्मावती” करने की कुत्सित साजिशों के दौर में याद दिलाते चलें कि तीन जौहर का साक्षी सिर्फ चित्तौड़ ही नहीं रहा। तीन जौहर भोपाल के पास मौजूद रायसेन के दुर्ग की दीवारों ने भी देखे हैं। गौरतलब है कि एक भारतीय राजा के दुसरे पर आक्रमण करने और जीतने पर “जौहर” कभी नहीं हुए। आखिर विदेशी हमलावरों के ही हमले पर “जौहर” क्यों होते थे ? इतिहास को लुगदी साहित्य से नीचे के स्तर पर धकेल ले गए आयातित विचारधारा के पोषक इसका जवाब नहीं देंगे।

सिर्फ वही दोषी हों, ऐसा भी नहीं है। जब उन्होंने “द ग्रेट मुग़ल्स” कहा तो चुप रहकर मुस्कुरा कर सुन लेने वाले भी आतातायियों के महिमामंडन के बराबर के दोषी है। मेरे बस में क्या है, फण्ड नहीं, संस्था नहीं, संगठन नहीं, जैसी सोच के साथ रुके, हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने वाले भी उतने ही कायर हैं। रायसेन का किला बिलकुल भोपाल के पास है। ऊँची पहाड़ी पर है, और दुर्गम रास्ते से वहां अभी भी पैदल जाना पड़ता है। वहां एक दशक से किसकी सरकार है ये याद दिलाना जरूरी नहीं।

स्थानीय नागरिकों ने वहां जाकर उसकी सौ पचास तस्वीरें इन्टरनेट पर क्यों नहीं डाली, किसने उनका हाथ पकड़ रखा था पता नहीं। मुग़ल हुमायूँ के कारण यहाँ तीन जौहर हुए थे। पहला 1528 में रानी चंदेरी के नेतृत्व में हुआ। मुग़ल सेना के लौटते ही इलाके के लोगों ने फिर मुग़ल हुक्म मानने से इंकार कर दिया। फिर हमला हुआ और लम्बे समय किले की घेराबंदी के बाद रानी दुर्गावती के साथ रायसेन के सात सौ वीरांगनाओं ने 1532 में दूसरी बार जौहर किया, लक्ष्मण तुअर के नेतृत्व में पुरुषों ने साका किया। मुग़ल सेनाओं के लौटते ही फिर बगावत का बिगुल फूंक दिया गया। रानी रत्नावती के नेतृत्व में तीसरा जौहर 1543 में हुआ था।

आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः।
आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्।। (भगवद्गीता 2.29)

जौहर की बात आते ही भगवद्गीता का श्लोक याद आता है जिसमें कहा गया है कि कोई इसे आश्चर्य की तरह देखता है। कोई इसका आश्चर्य की तरह वर्णन करता है फिर कोई इसको आश्चर्यकी तरह सुनता है और इसको सुन करके भी कोई जानता-विश्वास नहीं कर पाता। रानी चंदेरी, रानी दुर्गावती, रानी रत्नावती और उनके साथ वीरगति को प्राप्त हुई वीरांगनाओं के लिए जो श्रद्धा होती है उसके लिए शब्द कम होंगे।

हाँ, अपने ही इतिहास के प्रति ऐसे गाफ़िल पड़ी कौम के लोगों को भी मेरा पाव भर नमन रहेगा।

http://baklol.co/three-jauhar-bhopal-raisen-hindu-persecution/------------

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