Tuesday 21 November 2017

 दो महत्त्वपूर्ण सवाल हैं...
१) भंसाली ने  खिलजी के रोल में आज की "कूल डूडनियों" की पसंद रणवीर सिंह को लिया,.. जबकि "हीरो" के रोल में अपेक्षाकृत कमज़ोर और असफल अभिनेता शाहिद कपूर को ... ऐसा क्यों..? 
यदि  "विलेन" पेश करना था, तो  खिलजी के रोल में गुलशन ग्रोवर या नवाज़ुद्दीन  को ले सकता था, लेकिन ऐसा नहीं किया ...
२)  पश्चिमी देश "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ढिंढोरा" सर्वाधिक पीटते हैं, क्या हॉलीवुड में ऐसी फिल्म बनाई जा सकती है, जिसमें  कोई प्रख्यात अभिनेता जिसकी इमेज हीरो की होऔर यूरोपीय औरतें उस पर जान छिड़कती हो,"हिटलर" का रोल करे..?
 यह वामपंथी महबूब खान की मदर इण्डिया से चला आ रहा "सेकुलर" ट्रेण्ड है, जिसमें धूर्त-ठरकी बनिए कन्हैयालाल की भूमिका है, जो हर बात में "राम-राम" कहता है... कुछ समझ में आया..?
 क्या भंसाली ने फिल्म में "आततायी इस्लामी आक्रांता" की जेहादी सच्चाई, और मलिक काफूर नामक हिजड़े के साथ उसके समलैंगिक सम्बन्धों को दिखाने की हिम्मत भी दिखाई है..? ...दरअसल ये वामपंथी गिरोह  ये कहना चाह रहे हैं कि रानी पद्मिनी का मसला सिर्फ राजपूतों का मसला है। जबकि सच्चाई ये है कि ये सभी भारतीय लोगों के लिए अस्मिता का प्रश्न है...

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