Tuesday, 1 September 2015


जिहाद और धर्मयुद्ध :---
बहुत समय से दिशाहीन हिंदुओं को ये भ्रम है कि जिस प्रकार से सनातन धर्म में धर्मयुद्ध होता है । जिसमें कि अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना की जाती है । ठीक वैसे ही जिहाद भी मुसलमानों का एक प्रकार से धर्मयुद्ध ही है जिसमें कि दुष्टाचारी को मारकर सज्जनों की और मानवता की रक्षा की जाती है । लेकिन जब हम इस्लाम की समीक्षा करते हैं तो पाते हैं कि जिहाद में धर्मयुद्ध जैसा कुछ भी नहीं है । जिहाद को धर्मयुद्ध का प्रर्यायवाची नहीं कह सकते हैं । क्योंकि दोनों के नियम ही बिलकुल अलग अलग हैं । जैसा कि महाभारत के युद्ध से लेकर राजपूताना की लड़ाईयों में धर्म युद्ध के नियम इस प्रकार के थे :--
• निःशस्त्र से युद्ध नहीं करना
• शरणागत पर वार नहीं करना
• असावधान सैनिकों के शिविरों पर आक्रमण नहीं करना
• प्राणरक्षा के लिए भागते हुए शत्रुओं से युद्ध नहीं करना न ही उनकी पीठ पीछे वार करना
• पराजितों की नारियों, उनके धर्माचार्यों और उनके धर्मस्थलों को अपवित्र नहीं करना तथा न ही उन्हें किसी प्रकार का नुकसान पहुँचाना
ये सारे धर्मयुद्ध के लक्षण हैं । जो अरब में इस्लाम के आने से पहले तक विद्यमान थे । लेकिन मुहम्मद के जिहाद के लक्षण सर्वथा इससे विपरीत हैं :--
• निहत्थों पर वार किया जा सकता है ।
• जो अल्लाह के दीन से विमुख हैं वो अपराधी हैं । उनसे लड़ाई कर उनकी जमीनों पर कब्जे करके इस्लाम की शरीयत लागू करना ।
• शरण में आए काफिर की हत्या जायज़ है ।
• असावधान सैनिकों या मासूम लोगों पर बुरी तरह टूट पड़ो
• प्राण रक्षा के लिए भागे हुए लोगों की पीठ पीछे भी वार करो और बुरी तरह कत्ल करो तांकि जब तक अल्लाह का दीन कायम न हो लड़ते रहो
• पराजितों की औरतों को अपने हरम में लो, उनसे सामूहिक बलात्कार करो, उनको बाजार में अच्छी कीमतों के साथ बेचो, उनको अपवित्र करके रखैल बनाओ या शादियाँ करो । उनके धार्मिक स्थलों को अपवित्र करके तोड़ो और वहाँ पर मस्जिदें बनाओ । उनके धर्मगुरूओं का बुरी तरह निरादर करो ।
इन सब बातों से जिहाद कदापी धर्मयुद्ध की कोटी में नहीं आता जैसा कि भ्रम हिंदू पालते हैं ।
क्योंकि काफिर का अर्थ कुरान के अनुसार यही है कि जो अल्लाह को न माने, मुहम्मद को रसूल न माने, फरिश्तों को न माने, आखिरियत को न माने । वो चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो वो काफिर ही है और कत्ल करने के योग्य ही है ।

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