Thursday, 30 October 2014

sanskar

This is Indian railway built by Indian engineers from Jammu to. Vaishnodevi Katra station. Newly built & station is as good as airport.
This bridge is almost 85 Mtrs in height.
U might have shared Chinese or any other foreign amazing engineerings like this but now it's time for Indian engineers.






टोपी एवं पगड़ी स्वास्थ्यरक्षक है

नियमित ऋतु के मुताबिक अथवा सामान्यतः टोपी या पगड़ी पहनने से बालों के रोग नहीं होते, सिरदर्द नहीं होता, आँख व कान के रोग नहीं होते।

पहले समय में भारत में पगड़ी का बहुत प्रचलन था और सभी वर्गों के लोग इसे धारण करते थे। अंग्रेजों के आगमन के बाद इसमें धीरे-धीरे कमी आयी।
पूर्व काल में हमारे दादा-परदादा नियमित रूप से टोपी या पगड़ी पहनते थे। महिलाएँ हमेशा सिर को ढक कर रखती थी। अतः उन लोगों को समय से पूर्व बाल सफेद होना, सिर के बाल उड़ना, सर्दी होना, आँख, कान, नाक के रोग आदि कम होते थे। आज फैशन के कारण या अज्ञान के कारण सिर खुले रखने से बाल, सिर, आँख, कान, नाक के रोग बहुत बढ़ गये हैं। सिर में हवा लगने से, गरमी एवं बारिश का पानी लगने से अनेक रोग होते हैं।
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ॐ शब्द का नाद ----
नासा ने वोएजर के नाम से अपना एक मिशन अंतरिक्ष में रवाना किया था जिसका एक उद्देश्य उसके पूरे सफ़र के दौरान सुनाई देने वाली ब्रह्मांडीय आवाजों को रिकॉर्ड करके उनका विश्लेषण करना भी था.
वोयेज़र यान से प्राप्त हुई साउंड रिकॉर्डिंग्स को तीन वर्षों तक अध्ययन करने के बाद नासा ने ब्रह्माण्ड में व्याप्त रहस्यमयी आवाजों का विश्लेषण प्रस्तुत किया.
हम लोग केवल 20 to 20,000 हर्ट्ज़ की ध्वनि को ही सुनने की क्षमता रखते है.
इस फ्रीक्वेंसी से कही ऊपर की ब्राह्मांड में व्याप्त ध्वनि को डिकोड करने पर नासा को जो ध्वनि सुनाई दी, वो थी .....

नासा द्वारा इसे The Sound of Sun अर्थात सूर्य की आवाज़ का नाम दिया गया है, और अब वो इस बात का रहस्य जानने को व्याकुल हैं कि आखिर हिन्दू धर्म में ॐ के शब्द का प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ .. ??
वो भी ईसा के जन्म से भी हज़ारों वर्ष पहले !
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

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किसी के किये गए उपकार को भूल उसे ही नीचा दिखाने वाले लोगों का हश्र ----

बहुत समय पहले की बात है हिमालय के जंगलों में एक बहुत ताकतवर शेर रहता था | एक दिन उसने बारासिंघे का शिकार किया और खाने के बाद अपनी गुफा को लौटने लगा| अभी उसने चलना शुरू ही किया था कि एक सियार उसके सामने दंडवत करता हुआ उसके गुणगान करने लगा |

उसे देख शेर ने पूछा , ” अरे ! तुम ये क्या कर रहे हो ?”

” हे जंगल के राजा, मैं आपका सेवक बन कर अपना जीवन धन्य करना चाहता हूँ, कृपया मुझे अपनी शरण में ले लीजिये और अपनी सेवा करने का अवसर प्रदान कीजिये |” , सियार बोला|

शेर जानता था कि सियार का असल मकसद उसके द्वारा छोड़ा गया शिकार खाना है पर उसने सोचा कि चलो इसके साथ रहने से मेरे क्या जाता है, नहीं कुछ तो छोटे-मोटे काम ही कर दिया करेगा| और उसने सियार को अपने साथ रहने की अनुमति दे दी|

उस दिन के बाद से जब भी शेर शिकार करता , सियार भी भर पेट भोजन करता| समय बीतता गया और रोज भर पेट भोजन करने से सियार की ताकत भी बढ़ गयी , इसी घमंड में अब वह जंगल के बाकी जानवरों पर रौब भी झाड़ने लगा| और एक दिन तो उसने हद ही कर दी |

उसने शेर से कहा, ” आज तुम आराम करो , शिकार मैं करूँगा और तुम मेरा छोड़ा हुआ मांस खाओगे|”

शेर यह सुन बहुत क्रोधित हुआ, पर उसने अपने क्रोध पर काबू करते हुए सियार को सबक सिखाना चाहा|

शेर बोला ,” यह तो बड़ी अच्छी बात है, आज मुझे भैंसा खाने का मन है , तुम उसी का शिकार करो !”

सियार तुरंत भैंसों के झुण्ड की तरफ निकल पड़ा , और दौड़ते हुए एक बड़े से भैंसे पर झपटा, भैंसा सतर्क था उसने तुरंत अपना सींघ घुमाया और सियार को दूर झटक दिया| सियार की कमर टूट गयी और वह किसी तरह घिसटते हुए शेर के पास वापस पहुंचा |

” क्या हुआ ; भैंसा कहाँ है ? “, शेर बोला |

” हुजूर , मुझे क्षमा कीजिये ,मैं बहक गया था और खुद को आपके बराबर समझने लगा था …”, सियार गिडगिडाते हुए बोला|

“धूर्त , तेरे जैसे एहसानफरामोश का यही हश्र होता है, मैंने तेरे ऊपर दया कर के तुझे अपने साथ रखा और तू मेरे ऊपर ही धौंस जमाने लगा, ” और ऐसा कहते हुए शेर ने अपने एक ही प्रहार से सियार को ढेर कर दिया|

किसी के किये गए उपकार को भूल उसे ही नीचा दिखाने वाले लोगों का वही हश्र होता है जो इस कहानी में सियार का हुआ| हमें हमेशा अपनी वर्तमान योग्यताओं का सही आंकलन करना चाहिए और घमंड में आकर किसी तरह का मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए।






भारतीय वैज्ञानिको की 20 साल की मेहनत से बनी है परमाणु पनडुब्बी 'अरिहंत !
क्या है इसकी विशेषताएँ जरूर पढ़िये !
15,000 करोड़ की लागत से तैयार हुई है ।
- 6000टन वजन, 367 फुट लंबाई, 49 फुट चौड़ाई।
- 44 किलोमीटर तक जा सकती है 1 घंटे में।
- 95 लोग एक साथ सवार हो सकते हैं सफर के दौरान।
- 700 किमी. तक मार करने वाली स्वदेशी सागरिका मिसाइल से लैस होगी।
-12सागरिका मिसाइल एक साथ लग सकती हैं परमाणु पनडुब्बी में।
-एक बार ईंधन भरा तो 10 साल तक पानी के अंदर रह सकती है !
बार बार ऊपर आकर ईंधन भरने की जरूरत नहीं !
समुन्द्र के अंदर से ही परमाणु मिसाइ छोड़ने की क्षमता रखती है ,
समुंद के अंदर से ही ऊपर उड़ रहे हवाई जहाज को खत्म कर सकती है !!
महासागर में परमाणु पनडुब्बी चलाने वाला भारत अकेला देश होगा।
- अभी तक अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन के पास ही है ऐसी पनडुब्बी।
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इन देशो ने इसे बनाने के लिए भारत को तकनीक देना तो दूर भारत को बनी बनाई पनडुब्बी भी देने से मना कर दिया था ! क्योंकि अपनी आधुनिक तकनीक कोई भी देश किसी को नहीं देता तकनीक का विकास खुद करना पढ़ता है ! भारत सरकार को
भारतीय वैज्ञानिको पर भरोसा ही है ! कटोरा लेकर भिखारियो की तरह पहुँच जाते अमेरिका के पास हमे ये दो हमे वो दो !!
इंदिरा गाँधी की सरकार के दौरान राजशी खजाने की लूट की एक भूली बिसरी कहानी ......

इंदिरा गाँधी की सरकार के दौरान तीन महीने तक चला था खजाना खोजी अभियान ....

कहाँ गया अम्बर पैलेस का सोना चांदी ,,हीरे जवाहरात का खरबो का खजाना ..

राजस्थान के अम्बर पैलेस किले पर इंदिरा गांधी द्वारा देश पैर थोपे गए आपातकाल (1975–1977) के दौरान 10 जून 1976 से नबम्बर 1976 तक चली छापेमारी और उस दौरान सेना की यूनिट और आयकर बिभाग की मदद से चलाया गया खोजी अभियान के साथ सेना के ट्रकों के इस्तेमाल के बाबजूद कुछ भी ना मिलने का संदेहास्पद घटनाक्रम .....

घटना जरा पुरानी है समय था आपातकाल का जब देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संबिधान की धज्जियाँ उड़ाते हुए देश पर आपातकाल ( Emergency ) थोप कर देश में लोकतंत्र की हत्या करते हुए विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को जेल में ठूंस दिया था ...जिसमे उन्होंने राजस्थान के प्रसिद्द किले अम्बर पैलेस पर छापामारी करबाई थी ,,उस दौरान इनकम टैक्स की टीम के साथ सेना की एक यूनिट को किले के खजाने को खोजने के लिये भेजा था ..अम्बर पैलेस किले पर छापे के दौरान प्रशासन ने कर्फ्यू की घोषणा की थी ताकि आम जनता को किसी प्रकार की कोई सूचना और जानकारी ना मिल सके .....अम्बर पैलेस में सरकार का यह खजाना खोजी अभियान 10 जून 1976 से नबम्बर 1976 तक चला जिसमे मेटल डिटेक्टर भी प्रयोग किये गए थे ताकि किले की दीवारों में छिपे खजाने को भी खोजा जा सके ....उस खोजी अभियान के बाद बताया गया की सरकार को उस अभियान में किसी प्रकार का कोई खजाना नहीं मिला था ..... पुराने लोग बताते है की उस दौरान सेना के के ट्रकों का काफिला जयपुर से दिल्ली की ओर गया था और जयपुर दिल्ली रोड को आम जनता के लिये बंद कर दिया गया था ,,,,, अब सबाल ये है की दुनिया के सबसे रईस राजसी परिबारो में शामिल महारानी गायत्री देवी और राजा जय सिंह के शाही किले में सरकार का आयकर बिभाग और सेना की पूरी एक यूनिट कई महीने तक खजाने को खोजती रही ..उस दौरान सेना के ट्रको का काफिला अम्बर पैलेस से निकल कर दिल्ली की ओर भी गया ... सेना की राजस्थान में यूनिट है तों सेना के ट्रक दिल्ली की ओर क्या करने गए थे अगर उन ट्रकों में खजाना नहीं था तों सेना के बे ट्रक अपनी यूनिट में जो राजस्थान में थी की ओर क्यों नहीं गए ,,,,,,,,,,आखिर उस समय छापे में जब्त किया गया ट्रकों खजाना आज किसके पास है ..............ध्यान देने बाली बात ये भी है की जब अम्बर पैलेस किले में इंदिरा गांधी ने छापा डलबाया था तों उस समय उस किले की माहरानी गायत्री देवी को इंदिरा सरकार ने हिरासत में ले रखा था ..ए सब कांग्रेस के गाँधी परिवार के बो काले कारनामे है जिसकी यादे आज के समाज के सामने धूमिल सी हो चुकी है ...!!!

***पवन अवस्थी ***


 .ये सब लफड़ा आखिर है क्या ....?




बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि सुप्रीम कोर्ट में बैठा हुआ जज ..."दत्तू".. वही पुराना खानरेसी दलाल है जो साध्वी प्रज्ञा की जमानत में दो साल से अड़ंगा लगा रहा है यह खुलेआम कहता भी था कुछ भी कर लो जमानत नहीं दूंगा
अब यही भ्रष्ट जज दत्तू ...सुप्रीम कोर्ट में जज बनकर घुसा हुआ है काले धन पर की गयी जाँच से अपने खानरेसी आकाओं को बचाने के चक्कर में है और बार बार लिस्ट मांग रहा था इसीलिए यह इस सरकार को बदनाम करवा रहा है और जल्दबाजी दिखा रहा है 
 जमीन घोटाला .. न्याय के तथाकथित सबसे बड़े बाले देवता जी अपने लिए जमीन का दो दो प्लाट एलाट करबाये थे आप ..बाद में पकडे जाने पर अपने ग्रांड सन मिहिर आदित्य को 21जून , 2010, को गिफ्ट में दे दिए थे ..बह भी तब जब आदित्य की उमर सिर्फ तीन साल की थी ........गलत बात बहुत ही गलत ..!
सबसे पहले इसी की जाँच होनी चाहिए कि यह जज है या दलाल..!!
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सुप्रीमकोर्ट में दिल्ली सरकार के मामला :
केजरीवाल के वकील का भूषण का मुँह तोड़ जबाब दिया आज सरकार के 
सालिसिटर नरसिम्हा ने..
जज दत्तु : कोर्ट में आठ महीने से केश चल रहा है अभी तक केंद्र ने क्या किया?
नरसिम्हा : रास्ट्रपति के पास से परमिशन मिली है बड़ी पार्टी को सरकार के लिए
भूषण टपका : केंद्र सरकार सिर्फ समय खिंच रही है,
जज दत्तु : सरकार कब तक बनेगी .
भूषण : इनके पास विधायक ही नहीं है तो ये सरकार कैसे बनायेंगे .
(फिर नरसिम्हा का दिमाग चढ़ गया )
नरसिम्हा : कोर्ट समय सीमा या सरकार कैसे बनेगी ये तय नहीं कर सकती ..!
भूषण : जब सरकार नही बन सकती तो कोर्ट चुनाव का आदेश दे ..!
नरसिम्हा : यह भी कोर्ट का अधिकार नहीं है यह उप राज्यपाल का अधिकार है.
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..सुप्रीमकोर्ट कोर्ट की बोलती बंद हो गयी ..अब इसकी सुनवाई 30 को होगी ..

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जूस थेरेपी: करें इन बड़ी बीमारियों का इलाज स्वादिष्ट तरीके के साथ:
आयुर्वेद के अनुसार जूस पीकर भी कई बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है। इसीलिए आयुर्वेद में जूस को बहुत महत्व दिया गया है। प्राकृतिक चिकित्सा में भी रसाहार को विशेष स्थान प्राप्त है। इसमें अलग-अलग फलों और सब्जियों का रस दिया जाता है। करेला जामुन या लौकी के जूस में स्वाद नहीं होता है लेकिन इनका जूस पीने के बहुत फायदे हैं। आइए जानते हैं जूस थेरेपी के कुछ स्पेशल राज जिनसे कर सकते हैं आप इन बीमारियों का इलाज....
खून की कमी- पालक के पत्तों का रस, मौसम्मी, अंगूर, सेब, टमाटर और गाजर का रस लिया जा सकता है।
भूख की कमी- नींबू, टमाटर का रस लें।
फ्लू और बुखार- मौसम्मी, गाजर, संतरे का रस लेना चाहिए।
एसीडिटी- मौसम्मी, संतरा, नींबू, अनानास का रस लें।
कृमि रोगों में- लहसुन और मूली का रस पेट के कीड़ों को मार देता हैं।
मुहांसों में- गाजर, तरबूज, और प्याज का रस लें।
पीलिया- गन्ने का रस, मौसम्मी और अंगूर का रस दिन में कई बार लेना चाहिए।
पथरी- खीरे का रस लें।
मधुमेह- इस रोग में गाजर, करेला, जामुन, टमाटर, पत्तागोभी एवं पालक का रस लिया जा सकता है।
अल्सर में- गाजर, अंगूर का रस ले सकते हैं। कच्चे नारियल का पानी भी अल्सर ठीक करता है।
मासिकधर्म की पीड़ा में- अनानास का रस लें।
बदहजमी -अपच में नींबू का रस, अनानास का रस लें, आराम मिलेगा।
हाइब्लडप्रेशर- गाजर, संतरा, मौसम्मी का रस लें।
लो-ब्लडप्रेशर- अंगूर और सभी मीठे फलों का रस लिया जा सकता है।
पश्चिम बंगाल के बर्दवान में हुए विस्फोट के बाद जिस चरमपंथी नेटवर्क का पर्दाफ़ाश हुआ है उसके बारे में सरकार और ख़ुफ़िया एजेंसियों को कम से कम नौ साल पहले ही जानकारी मिल गई थी.
विकीलीक्स की वेबसाइट में बीबीसी को ऐसे दो संदेश मिले हैं जिनसे इसकी पुष्टि हो रही है.
अमरीकी अधिकारियों ने जो दो गुप्त संदेश वॉशिंगटन भेजे थे उनमें बताया गया था कि बांग्लादेश के कुछ चरमपंथी और जिहादी गुट पश्चिम बंगाल में घुस आए हैं.
ये गुट कुछ मदरसों के ज़रिए हिंसा फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.
बांग्लादेश मदरसा
अमरीकी अधिकारियों ने 2005 में वॉशिंगटन को जो दो गुप्त संदेश भेजे थे वे पश्चिम बंगाल के गृह सचिव, ख़ुफ़िया विभाग के प्रमुख और जाने-माने मुस्लिम व्यक्तियों की बातचीत पर आधारित हैं.
इनमें लिखा गया था कि जमात-उल-मुजाहिदीन जैसे कई गुट पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई की मदद से पश्चिम बंगाल में घुस गए हैं और यहां अपना नेटवर्क फैला रहे हैं और कुछ मदरसों के ज़रिए काम कर रहे हैं.
चार अगस्त, 2005 को भेजा गया पहला गुप्त संदेश पश्चिम बंगाल के पूर्व गृह सचिव प्रभात रंजन राय से बातचीत पर आधारित हैं.
इसमें कहा गया था कि भारत-बांग्लादेश की सीमा पर बहुत सारे मदरसे बनाए जा रहे हैं जिनकी अनुमति नहीं ली गई है और बांग्लादेश से आए कुछ लोग इन्हीं मदरसों से जिहादी विचारधारा का प्रचार कर रहे हैं.
सरकार
उस समय पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे की सरकार थी.
सीपीएम की केंद्रीय समिति के सचिव मोहम्मद सलीम से बीबीसी ने पूछा कि जब इन चरमपंथी समूहों के बारे में पता था तो कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
भारत-बांग्लादेश सीमा, जलांगी बॉर्डर, मुर्शिदाबाद
मोहम्मद सलीम ने कहा, "विकीलीक्स ने यह बात 2005 के केबल के आधार पर यह बात कही हो, लेकिन वाम मोर्चे की सरकार 2001 से ही इसे लेकर चिंतित थी कि सीमा पर कुछ मदरसों से सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश की जा रही थी."
ख़ास बात यह है कि एक अमरीकी केबल में सीपीएम पर यह आरोप लगाया गया था कि वह अपना वोट बैंक मज़बूत करने के लिए बांग्लादेश से आए लोगों की मदद कर रही थी और उन्हें वोटर कार्ड, राशन कार्ड दिलाती थी.
बर्दवान धमाकों के बाद यह आरोप तृणमूल कांग्रेस पर भी लग रहा है.
'बड़ी ग़लती'
अमरीकी अधिकारियों ने 16 दिसंबर, 2005 को दूसरा केबल भेजा था.
हसन मुल्ला
बर्दवान धमाकों का अभियुक्त हसन मुल्ला
यह पश्चिम बंगाल के ख़ुफ़िया विभाग के पूर्व प्रमुख दिलीप मित्रा और रॉ के पूर्व उप निदेशक विभूति भूषण नंदी से बातचीत पर आधारित था.
इसमें विस्तार से बताया गया था कि सीमा पर कैसे जिहादी गुट अपने मदरसे चला रहे थे.
पूर्व ख़ुफ़िया अधिकारी गदाधर चटर्जी से हमने पूछा कि नौ साल तक किसी ने इस पर कार्रवाई क्यों नहीं की?
उन्होंने स्वीकार किया कि इस मामले में चूक हुई है.
ट्रेनिंग
चटर्जी ने कहा, "विदेश से इतने लोग आए, विदेशियों को नियुक्त किया गया. विस्फोटक इकट्ठे किए गए, मदरसों में ट्रेनिंग होती रही और पुलिस या ख़ुफ़िया एजेंसियों को पता भी नहीं चला- यह तो बड़ी ग़लती है."
बांग्लादेशी जिहादी गुटों के अलावा दोनों केबलों में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) पर भी सवाल उठाए गए. इनमें कहा गया कि बीएसएफ़ के कुछ भ्रष्ट कर्मचारी रिश्वत लेकर बांग्लादेश से लोगों को घुसने देते हैं.
बीएसएफ़ के एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि अगर यह पता चल जाए कि किस दिन, किस क्षेत्र से बांग्लादेशी भारत में घुसे थे, तो वहां के ज़िम्मेदार अधिकारी को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए.

Wednesday, 29 October 2014

कथित बुद्धिजीवियों (कथित इसलिए लिखा, क्योंकि वास्तव में ये बुद्धिजीवी नहीं, बल्कि बुद्धि बेचकर जीविका खाने वाले व्यक्ति हैं) suresh(.)chiplunkar(@)gmail.com 

Tuesday, 28 October 2014

sabskar=jan=भगिनी निवेदिता

भगिनी निवेदिता का पूरा नाम 'मार्ग्रेट एलिज़ाबेथ नोबल' था। इनका जन्म 28 अक्टूबर 1867 को आयरलैण्ड के डेंगानेन में हुआ और मृत्यु 11 अक्टूबर 1911 को दार्जिलिंग, भारत में हुई। वह एक अच्छी पत्रकार तथा वक्ता थीं। 

1895 में मार्ग्रेट स्वामी विवेकानन्द जी से उनकी इंग्लैण्ड यात्रा के दौरान मिलीं। वह वेदान्त के सार्वभौम सिद्धान्तों, विवेकानन्द की मीमांसा और वेदान्त दर्शन की मानववादी शिक्षाओं की ओर आकर्षित हुईं तथा विवेकानन्द जी के 1896 में भारत आने से पहले तक इंग्लैण्ड में वेदान्त आन्दोलन के लिए काम करती रहीं।

उनके सम्पूर्ण समर्पण के कारण विवेकानन्द ने उन्हें निवेदिता नाम दिया, जिसका अर्थ है, जो समर्पित है। आरम्भ में वह एक शिक्षिका के रूप में भारत आई थीं, ताकि विवेकानन्द की स्त्री-शिक्षा की योजनाओं को मूर्त किया जा सके। उन्होंने कलकत्ता के एक छोटे से घर में स्थित स्कूल में कुछ महीनों तक पश्चिमी विचारों को भारतीय परम्पराओं के अनुकूल बनाने के प्रयोग किए। 1899 में स्कूल बन्द करके धन इकट्ठा करने के लिए वह पश्चिमी देशों की यात्रा पर चली गईं। 1902 में लौटकर उन्होंने फिर से स्कूल की शुरुआत की। 1903 में निवेदिता ने आधारभूत शिक्षा के साथ-साथ युवा महिलाओं को कला व शिल्प का प्रशिक्षण देने के लिए एक महिला खण्ड भी खोला। उनके स्कूल ने शिक्षण और प्रशिक्षण जारी रखा।

भारत में विधिवत दीक्षित होकर वह स्वामी जी की शिष्या बन गई और उन्हें रामकृष्ण मिशन के सेवाकार्य में लगा दिया गया। कलकत्ता में भीषण रूप से प्लेग फैलने पर भारतीय बस्तियों में प्रशंसनीय कार्य ने उन्हें आदर्श रूप में स्थापित कर दिया। निवेदिता ने प्रत्यक्ष रूप से कभी किसी आन्दोलन में भाग नहीं लिया, लेकिन उन्होंने भारतीय युवाओं को प्रेरित किया, जो उन्हें रूमानी राष्ट्रीयता और प्रबल भारतीयता का दर्शनशास्त्री मानते थे।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें जननी की संज्ञा दी। निवेदिता की मृत्यु दार्जिलिंग में 44 वर्ष की आयु में हुई। उनकी समाधि पर अंकित है- यहाँ सिस्टर निवेदिता का अस्थि कलश विश्राम कर रहा है, जिन्होंने अपना सर्वस्व भारत को दे दिया।
sanskar जनेऊ पहनने के लाभ

जनेऊ पहनने के लाभ

पूर्व में बालक की उम्र आठ वर्ष होते ही उसका यज्ञोपवित संस्कार कर दिया जाता था। वर्तमान में यह प्रथा लोप सी गयी है। जनेऊ पहनने का हमारे स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। विवाह से पूर्व तीन धागों की तथा विवाहोपरांत छह धागों की जनेऊ धारण की जाती है। पूर्व काल में जनेऊ पहनने के पश्चात ही बालक को पढऩे का अधिकार मिलता था। मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान के पीछे की दो नसे जिनका संबंध पेट की आंतों से है। आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है। जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा कान के पास ही एक नस से ही मल-मूत्र विसर्जन के समय कुछ द्रव्य विसर्जित होता है। जनेऊ उसके वेग को रोक देती है, जिससे कब्ज, एसीडीटी, पेट रोग, मूत्रन्द्रीय रोग, रक्तचाप, हृदय रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते। जनेऊ पहनने वाला नियमों में बंधा होता है। वह मल विसर्जन के पश्चात अपनी जनेऊ उतार नहीं सकता। जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जिवाणुओं के रोगों से बचाती है। जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को होता है।

यज्ञोपवीत (जनेऊ) एक संस्कार है। इसके बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। यज्ञोपवीत धारण करने के मूल में एक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि भी है। शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह कार्य करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कटि प्रदेश तक स्थित होती है। यह नैसर्गिक रेखा अति सूक्ष्म नस है। इसका स्वरूप लाजवंती वनस्पति की तरह होता है। यदि यह नस संकोचित अवस्था में हो तो मनुष्य काम-क्रोधादि विकारों की सीमा नहीं लांघ पाता। अपने कंधे पर यज्ञोपवीत है इसका मात्र एहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से परावृत्त होने लगता है। यदि उसकी प्राकृतिक नस का संकोच होने के कारण उसमें निहित विकार कम हो जाए तो कोई आश्यर्च नहीं है। इसीलिए सभी धर्मों में किसी न किसी कारणवश यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। सारनाथ की अति प्राचीन बुद्ध प्रतिमा का सूक्ष्म निरीक्षण करने से उसकी छाती पर यज्ञोपवीत की सूक्ष्म रेखा दिखाई देती है। यज्ञोपवीत केवल धर्माज्ञा ही नहीं बल्कि आरोग्य का पोषक भी है, अतएव एसका सदैव धारण करना चाहिए। शास्त्रों में दाएं कान में माहात्म्य का वर्णन भी किया गया है। आदित्य, वसु, रूद्र, वायु, अगि्न, धर्म, वेद, आप, सोम एवं सूर्य आदि देवताओं का निवास दाएं कान में होने के कारण उसे दाएं हाथ से सिर्फ स्पर्श करने पर भी आचमन का फल प्राप्त होता है। यदि ऎसे पवित्र दाएं कान पर यज्ञोपवीत रखा जाए तो अशुचित्व नहीं रहता।

यज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद= यज्ञ+उपवीत) शब्द के दो अर्थ हैं-
उपनयन संस्कार जिसमें जनेऊ पहना जाता है और विद्यारंभ होता है। मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं। जनेऊ पहनाने का संस्कार

सूत से बना वह पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। यज्ञ द्वारा संस्कार किया गया उपवीत, यज्ञसूत्र या जनेऊ

यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से ग्रन्थित करके बनाया जाता है। इसमें सात ग्रन्थियां लगायी जाती हैं । ब्राम्हणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है। तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। तीन सूत्र हिंदू त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। अपवित्र होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है। बिना यज्ञोपवीत धारण किये अन्न जल गृहण नहीं किया जाता। यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र है

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।

जनेऊ को लेकर लोगों में कई भ्रांति मौजूद है| लोग जनेऊ को धर्म से जोड़ दिए हैं जबकि सच तो कुछ और ही है| तो आइए जानें कि सच क्या है? जनेऊ पहनने से आदमी को लकवा से सुरक्षा मिल जाती है| क्योंकि आदमी को बताया गया है कि जनेऊ धारण करने वाले को लघुशंका करते समय दाँत पर दाँत बैठा कर रहना चाहिए अन्यथा अधर्म होता है| दरअसल इसके पीछे साइंस का गहरा रह्स्य छिपा है| दाँत पर दाँत बैठा कर रहने से आदमी को लकवा नहीं मारता| आदमी को दो जनेऊ धारण कराया जाता है, एक पुरुष को बताता है कि उसे दो लोगों का भार या ज़िम्मेदारी वहन करना है, एक पत्नी पक्ष का और दूसरा अपने पक्ष का अर्थात् पति पक्ष का| अब एक एक जनेऊ में 9 - 9 धागे होते हैं| जो हमें बताते हैं कि हम पर पत्नी और पत्नी पक्ष के 9 - 9 ग्रहों का भार ये ऋण है उसे वहन करना है| अब इन 9 - 9 धांगों के अंदर से 1 - 1 धागे निकालकर देंखें तो इसमें 27 - 27 धागे होते हैं| अर्थात् हमें पत्नी और पति पक्ष के 27 - 27 नक्षत्रों का भी भार या ऋण वहन करना है| अब अगर अंक विद्या के आधार पर देंखे तो 27+9 = 36 होता है, जिसको एकल अंक बनाने पर 36 = 3+6 = 9 आता है, जो एक पूर्ण अंक है| अब अगर इस 9 में दो जनेऊ की संख्या अर्थात 2 और जोड़ दें तो 9 + 2 = 11 होगा जो हमें बताता है की हमारा जीवन अकेले अकेले दो लोगों अर्थात् पति और पत्नी ( 1 और 1 ) के मिलने सेबना है | 1 + 1 = 2 होता है जो अंक विद्या के अनुसार चंद्रमा का अंक है और चंद्रमा हमें शीतलता प्रदान करता है| जब हम अपने दोनो पक्षों का ऋण वहन कर लेते हैं तो हमें अशीम शांति की प्राप्ति हो जाती है|

यथा-निवीनी दक्षिण कर्णे यज्ञोपवीतं कृत्वा मूत्रपुरीषे विसृजेत। अर्थात अशौच एवं मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ रखना आवश्यक है। अपनी अशुचि अवस्था को सूचित करने के लिए भी यह कृत्य उपयुक्त सिद्ध होता है। हाथ पैर धोकर और कुल्ला करके जनेऊ कान पर से उतारें। इस नियम के मूल में शास्त्रीय कारण यह है कि शरीर के नाभि प्रदेश से ऊपरी भाग धार्मिक क्रिया के लिए पवित्र और उसके नीचे का हिस्सा अपवित्र माना गया है। दाएं कान को इतना महत्व देने का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस कान की नस, गुप्तेंद्रिय और अंडकोष का आपस में अभिन्न संबंध है। मूत्रोत्सर्ग के समय सूक्ष्म वीर्य स्त्राव होने की संभावना रहती है। दाएं कान को ब्रमह सूत्र में लपेटने पर शुक्र नाश से बचाव होता है। यह बात आयुर्वेद की दृष्टि से भी सिद्ध हुई है। यदि बार-बार स्वप्नदोष होता हो तो दायां कान ब्रसूत्र से बांधकर सोने से रोग दूर हो जाता है।
बिस्तर में पेशाब करने वाले लडकों को दाएं कान में धागा बांधने से यह प्रवृत्ति रूक जाती है। किसी भी उच्छृंखल जानवर का दायां कान पकडने से वह उसी क्षण नरम हो जाता है। अंडवृद्धि के सात कारण हैं। मूत्रज अंडवृद्धि उनमें से एक है। दायां कान सूत्रवेष्टित होने पर मूत्रज अंडवृद्धि का प्रतिकार होता है। इन सभी कारणों से मूत्र तथा पुरीषोत्सर्ग करते समय दाएं कान पर जनेऊ रखने की शास्त्रीय आज्ञा है।





पीपल 
- यह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है .
- इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का दर्द ठीक हो जाता है .
- पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है .
- पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता है .
- हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए .
- पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फोड़े फुंसी और घाव और जलने से हुए घाव भी ठीक हो जाते है .
- सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें .विष का प्रभाव कम होगा .
- इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है .
- पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें .३-५ दिन तक दिन में दो बार दे .
- कुक्कुर खांसी में छाल का 40 मी ली. काढा दिन में तीन बार पिलाने से लाभ होता है .
- इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है .
- इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है .
- इसके फल और पत्तों का रस मृदु विरेचक है और बद्धकोष्ठता को दूर करता है .
- यह रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सुजन मिटाने वाला ,शीतल और रंग निखारने वाला है .

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पानी तेरे कितने नाम..........
पानी आकाश से गिरे तो...........बारिश,
आकाश की ओर उठे तो.............भाप,

अगर जम कर गिरे तो................ओले,
अगर गिर कर जमे तो.................बर्फ,
फूल पर हो तो........................ ओस,
फूल से निकले तो.....................इत्र,
जमा हो जाए तो...................... झील,
बहने लगे तो............................ नदी,
सीमाओं में रहे तो.................. जीवन,
सीमाएं तोड़ दे तो....................प्रलय,
आँख से निकले तो.................. आँसू,
शरीर से निकले तो................ पसीना,
और
महादेव के शीश से निकले तो...........गंगा,
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'''शिवतराई के धनुर्धर.. काश हरियाणा में होते तो देश का नाम ऊँचा होता,,!!
छतीसगढ़ के गाँव शिवतराई'में तीन दर्जन तीरंदाज छात्र-छात्राएं ऐसी हैं जिन्होंने कई बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता में शिकरत की और यश अर्जित किया पर संसधानों की कमी के कारण ये अंतर राष्ट्रीय स्पर्धा में अपनी प्रतिभा नहीं देखा पाते ..!
बिलासपुर से अमरकंटक जाने वाले मार्ग के कोई चालीस किमी दूर ये गाँव अचानकमार टाइगर रिजर्व का प्रवेश द्वार है,,एक दशक से इस गाँव के पहचान यहाँ के तीरंदाजों के अलग बना दी है. गाँव आदिवासी बाहुल्य है जो सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी धनुर्धर रहे..आज इन्होने आखेट का परित्याग कर दिया है और परम्परागत इस विद्या का अभ्यास शाला के मैदान में करते दिखाई देते हैं..कल पत्रकार सत्यप्रकाश पाण्डेय,रवि शुक्ला और मुकेश के साथ मैं भी लाग ड्राइव पर इस गाँव से होते हुए गए छात्र अभ्यास कर रहे थे.कोई चार घंटे बाद वापस आये तो इनकी संख्या काफी थी..! जिज्ञासा ने यहाँ रोक दिया..!
स्कूल के मैदान में घांस कीचड़ था पर अभ्यासरत इन छात्रों के जुजून को इससे कोई परेशानी नहीं थी ..तीस मीटर पर उनका टारगेट लगा था और कतारबद्ध वे लगन से अपने इस रेंज पर टारगेट पर तीर चला रहे थे..ये आदिवासी आज भी शर संधान में अंगूठे का उपयोग नहीं करते..एकलब्य का अंगूठा जो गुरु द्रोण ने जो मांग लिया था अथवा ये तीरंदाजी के नियमों के विपरीत है ,,!
छह साल की एक बालिका जब तीर चला रही थी तो उसकी आखों की पुतली में जरूर टारगेट दिखाई देता होगा पर हमारे कैमरे उतने शक्तिशाली नहीं थे की वो आईबाँल को फोटो ले सकते..तीर जिस गति से लक्ष्य को भेदते वो गोली की गति से कम न थी ,,!
जिन निशानेबाजों से बात हुई उन्होंने बताया कोच इतवारी राज अनुभवी है..पर हमारे पास स्तर का धनुष-बाण और जरुरी दीगर सामान नहीं ,,पर जुजून है जो राष्ट्रीय स्पर्धा में यश दिलाता है ..लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा के लिए संसाधनों की कमी है ..!
छतीसगढ़ की रमन सरकार राज्योत्सव पर करोर्ड़ो फूंक देती है, अगर इन प्रतिभाओ के लिए कुछ करे तो ये गाँव छतीसगढ़ का नाम रोशन करेगा जैसे हरियाणा का नाम भिवानी ने पहलवानी में रोशन किया है ,,! काश इस गाँव के बच्चे हरियाणा में होते अथवा ये गाँव शिवतराई हरियाणा में होता ,,!!








Monday, 27 October 2014

sanskar-dec14‘ताजमहल’ नहीं, तेजोमहालय का ८५० वर्ष पुराना सच्चा इतिहास ...


'ताजमहल' वास्तु मुसलमानों की नहीं, अपितु वह मूलतः हिंदुओं की है । वहां इससे पूर्र्व भगवान शिवजी का मंदिर था, यह इतिहास सूर्यप्रकाश के जितना ही स्पष्ट है । मुसलमानों ने इस वास्तु को ताजमहल बनाया । ताजमहल  के इससे पूर्र्व शिवालय होने का प्रमाण पुरातत्व विभाग के अधिकारी, अन्य पुरातत्वतज्ञ, इतिहास के अभ्यासक तथा देशविदेशके तज्ञ बताते हैं । मुसलमान आक्रमणकारियों की दैनिकी में (डायरी) भी उन्होंने कहा है कि ताजमहल हिंदुओं की वास्तु है । तब भी मुसलमान इस वास्तु  पर अपना अधिकार जताते हैं । शिवालय के विषय में सरकार के पास सैकडों प्रमाण धूल खाते पडे हैं । सरकार इसपर कुछ नहीं करेगी । इसलिए अब अपनी हथियाई गई वास्तु वापस प्राप्त करने हेतु यथाशक्ति प्रयास करना ही हिंदुओंका धर्मकर्तव्य है ।
मुसलमान आक्रमणकारियों ने भारत के केवल गांव एवं नगरों के ही नामों में परिवर्तन नहीं किया, अपितु वहां की विशाल वास्तुओं को नियंत्रण में लेकर एवं उसमें मनचाहा परिवर्तन कर निस्संकोच रूपसे  मुसलमानों के नाम दिए । मूलतः मुसलमानों को इतनी विशाल एवं सुंदर वास्तु बनाने का ज्ञान ही नहीं था । परंतु हिंदुओं ने इस्लाम पंथ की स्थापना से पूर्व ही अजिंटा तथा वेरूल के साथ अनेक विशाल मंदिरों का निर्माण कार्य किया था । मुसलमान आक्रमणकारियों को केवल भारत की वास्तुकला  के सुंदर नमुने उद्ध्वस्त करना इतना ही ज्ञात था । गजनी द्वारा अनेक बार उद्ध्वस्त श्री सोमनाथ मंदिर से लेकर तो आजकल में अफगानिणस्तान में उद्ध्वस्त बामयान की विशाल बुद्धमूर्ति तक का इतिहास मुसलमान आक्रमणकारियों की विध्वंसक मानसिकता के प्रमाण है ।आक्रमणकर्ताओं की दैनिकी में ताजमहल के विषयमें सत्य !
आग्रा की ताजमहल वास्तु की भी कहानी इसी प्रकार की है । डॉ. राधेश्याम ब्रह्मचारी ने ताजमहल का तथाकथित निर्माता शहाजहान के ही कार्यकाल में लिखे गए दस्तावेजों का संदर्भ लेकर ताजमहल का इतिहास तपास कर देखा है । अकबर के समान शहाजहान ने भी बादशहानामा ऐतिहासिक अभिलेख में अपना चरित्र एवं कार्यकाल का इतिहास लिखकर रखा था । अब्दुल हमीद लाहोरी ने अरेबिक भाषा में बादशहानामा लिखा था, जो एशियाटिक सोसायटी ऑफ बेंगाल ग्रंथालय में आज भी उपलब्ध है । इस बादशहानामा के पृष्ठ क्रमांक ४०२ एवं ४०३ के भाग में ताजमहल वास्तु का इतिहास छिपा हुआ है । इस भाग का स्वच्छंद भाषांतर आगे दिया है ।
'शुक्रवार दिनांक १५ माह जमदिउलवल को शहाजहान की पत्नी मुमताजुल जामानि का पार्थिव बुरहानपुर से आग्रामें (उस समय का अकबराबाद) लाया गया । यहां के राजा मानसिंह के महल के रूपमें पहचाने जानेवाले अट्टालिका में गाडा गया । यह अट्टालिका राजा मानसिंह के नाती राजा जयसिंह के मालिकी की थी । उन्होंने यह अट्टालिका शहाजहानको देना स्वीकार किया । इसके स्थान पर राजा जयसिंह को शरीफाबाद की जहागिरी दी गई । यहां गाडे गए महारानी का विश्वको दर्शन न होने हेतु इस भवन का रूपांतर  किया गया ।

मुमताजुुल की मृत्यु !

शहाजहान की पत्नी का मूल नाम था अर्जुमंद बानू । वह १८ वर्षों तक शहाजहान की रानी थी । इस कालावधि में उसे १४ अपत्य हुए । बरहानपुर में अंतिम जजगी में उसकी मृत्यु हो गई । उसका शव वहीं पर अस्थायी रूप से गाडा गया ।

ताजमहल शिवालय होनेका सरकारी प्रमाण !

ताजमहलसे ४ कि.मी. दूरीपर आग्रा नगरमें बटेश्वर नामक बस्ती थी । वर्ष १९०० में पुरातन सर्वेक्षण विभाग के संचालक जनरल कनिंघम द्वारा किए गए उत्खनन में वहां संस्कृत में ३४ श्लोक में मुंज बटेश्वर आदेश नामक पोथा पाया गया, जो लक्ष्मणपुरी के संग्रहालयमें संरक्षित है । इसमें श्लोक क्रमांक २५, २६ एवं ३६ महत्त्वपूर्ण हैं । इनका स्वच्छंद भाषांतर आगे दिया है ।
'राजाने एक संगमरवरी मंदिर का निर्माण कार्य किया । यह भगवान विष्णु का है । राजा ने दूसरा शिवका संगमरवरी मंदिरका निर्माण कार्य किया । ' यह अभिलेख विक्रम संवत १२१२ माह आश्विन शुद्ध पंचमी, शुक्रवार को लिखा गया । (वर्तमान समय में विक्रम संवत २०७० चालू है । अर्थात शिवालय का निर्माण कार्य कर लगभग ८५० वर्षोंकी कालावधि बीत गई है ।) (यह कालावधि लेख लिखने के समय का अर्थात वर्ष १९०० के संदर्भ के अनुसार है – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

शिवालयके प्रमाणको पुरातत्व शास्त्रज्ञों का समर्थन !

१. प्रख्यात पुरातत्वशास्त्रज्ञ डी.जे. काले ने भी उपरोक्त दस्तावेज को समर्थन दिया है । उनके संशोधन के अनुसार राजा परमार्दीदेव ने २ विशाल संगमरवरी मंदिरों का निर्माण कार्य किया, जिसमें एक श्रीविष्णु का तो दूसरा भगवान शिवजी का था । कुछ समय पश्चात मुसलमान आक्रमणकर्ताओं ने इन मंदिरों का पावित्र्य भंग किया । इस घटना से भयभीत होकर एक व्यक्ति ने दस्तावेज को भूमि में गाडकर रखा होगा । मंदिरों की पवित्रता का भंग होने के कारण उनका धार्मिक उपयोग बंद हो गया । इसीलिए बादशहानामा के लेखक अब्दुल हमीद लाहोरी ने मंदिर के स्थान पर महल ऐसा उल्लेख किया होगा ।
२. प्रसिद्ध इतिहासकार आर.सी. मुजुमदार के अनुसार चंद्रात्रेय (चंदेल) राजा परमार्दिदेव का दूसरा नाम था परमल एवं उसके राज्य का नाम था बुंदेलखंड । आज आग्रा में दो संगमरवरी प्रासाद हैं, जिसमें एक नूरजहां के पिता की समाधि (श्रीविष्णु मंदिर) है एवं दूसरा (शिवमंदिर) ताजमहल है ।

ताजमहल हिंदुओं का शिवालय होनेके और भी स्पष्ट प्रमाण !

प्रसिद्ध इतिहासकार आर.सी. मुजुमदार के मत का समर्थन करने वाले प्रमाण आगे दिए हैं ।
१. ताजमहल के प्रमुख गुंबज के कलश पर त्रिशूल है, जो शिवशस्त्र के रूपमें प्रचलित है ।
२. मुख्य गुंबज के उपर के छत पर एक संकल लटक रही है । वर्तमान में इस संकल का कोई उपयोग नहीं होता; परंतु मुसलमानों के आक्रमण से पूर्व इस संकल को एक पात्र लगाया जाता था, जिसके माध्यम से शिवलिंग पर अभिषेक होता था ।
३. अंदर ही २ मंजिल का ताजमहल है । वास्तव समाधि एवं रिक्त समाधि नीचे की मंजिल पर है, जबकि २ रिक्त कबरें प्रथम मंजिलपर हैं । २ मंजिल वाले शिवालय उज्जैन एवं अन्य स्थानपर भी पाए जाते हैं ।
४. मुसलमानों की किसी भी वास्तु में परिक्रमा मार्ग नहीं रहता; परंतु ताजमहल में परिक्रमा मार्ग उपलब्ध है ।५. फ्रांस देशीय प्रवासी तावेर्नियारने लिखकर रखा है कि इस मंदिरके परिसरमें बाजार भरता था । ऐसी प्रथा केवल हिंदु मंदिरोंमें ही पाई जाती है । मुसलमानोंके प्रार्थनास्थलोंमें ऐसे बाजार नहीं भरते ।

शिवालय होने की बात ,वैज्ञानिक प्रयोग द्वारा भी सिद्ध...

वर्ष १९७३ में न्यूयार्क के प्रैट संस्था के प्राध्यापक मर्विन मिल्स द्वारा ताजमहल के दक्षिण में स्थित लकडी के दरवाजे का एक टुकडा अमेरिका में ले जाया गया । उसे ब्रुकलिन महाविद्यालय के संचालक डॉ. विलियम्स को देकर उस टुकडेकी आयु कार्बन-१४ प्रयोग पद्धति से सिद्ध करने को कहा गया । उस समय वह लकडा ६१० वर्ष (अल्प-अधिक ३९ वर्ष) आयु का निष्पन्न हुआ । इस प्रकार से ताजमहल वास्तु शहाजहान से पूर्व कितने वर्षों से अस्तित्व में थी यह  सिद्ध होता है ।

शिवालय (अर्थात तेजोमहालय) ८४८ वर्ष पुराना !

यहां के मंदिर में स्थित शिवलिंग को 'तेजोलिंग' एवं मंदिर को तेजोमहालय कहा जाता था । यह भगवान शिव का मंदिर अग्रेश्वर नाम से प्रसिद्ध था । इससे ही इस नगर को आग्रा नाम पडा । मुंज बटेश्वर आदेश

के अनुसार यह मंदिर ८४८ वर्ष पुराना है । इसका ३५० वां स्मृतिदिन मनाना अत्यंत हास्यजनक है ।
(संदर्भ : साप्ताहिक ऑर्गनायजर, २८.११.२००४)

sanskar-dec14 जहां समुद्र खुद महादेव का जलाभिषेक करने के लिए आता है...

गुजरात में एक ऐसा मंदिर है, जहां समुद्र खुद
महादेव का जलाभिषेक करने के लिए आता है ।
गुजरात के भरुच जिले की सम्बूसर तहसील में एक
गांव है कावी कम्बोई । समुद्र किनारे बसे इस
गांव में स्तंभेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है ।
भगवान शिव के इस मंदिर की खोज लगभग 150



साल पहले हुई । इस प्राचीन मंदिर
की विशेषता इसका अरब सागर के मध्य कैम्बे तट
पर स्थित होना है ।
मंदिर के शिव लिंग के दर्शन केवल ‘लो टाइड’ के
दौरान ही होते हैं क्योंकि ‘हाई टाइड’ के वक्त
यह समुद्र में विलीन हो जाता है । इस समुद्र तट
पर दिन में दो बार ज्वार-भाटा आता है । जब
भी ज्वार आता है तो समुद्र का पानी मंदिर के
अंदर पहुंच जाता है । इस प्रकार दिन में दो बार
शिवलिंग का जलाभिषेक कर वापस लौट
जाता है ।
लोकमान्यता
लोकमान्यता के अनुसार स्तंभेश्वर महादेव मंदिर
में स्वयं शिवशंभु विराजते हैं इसलिए समुद्र
देवता स्वयं उनका जलाभिषेक करते हैं ।
ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न
हो जाता है और यह परंपरा सदियों से सतत
चली आ रही है । यहां स्थित शिवलिंग
का आकार 4 फुट ऊंचा और दो फुट के घेरे वाला है
। इस प्राचीन मंदिर के पीछे अरब सागर का सुंदर
नजारा नजर आता है ।
यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खासतौर से
परचे बांटे जाते हैं जिसमें ज्वार-भाटा आने
का समय लिखा होता है । ऐसा इसलिए
किया जाता है जिससे यहां आने वाले
श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार
समस्या का सामना न करना पड़े ।
मान्यता– स्कंदपुराण के अनुसार शिव के पुत्र
कार्तिकेय छह दिन की आयु में ही देवसेना के
सेनापति नियुक्त कर दिये गये थे । इस समय
ताड़कासुर नामक दानव ने देवताओं को अत्यंत
आतंकित कर रखा था । देवता, ऋषि-मुनि और
आमजन सभी उसके अत्याचार से परेशान थे ।
ऐसे में भगवान कार्तिकेय ने अपने बाहुबल से
ताड़कासुर का वध कर दिया । उसके वध के बाद
कार्तिकेय को पता चला कि ताड़कासुर
भगवान शंकर का परम भक्त था । यह जानने के
बाद कार्तिकेय काफी व्यथित हुए । फिर
भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा कि वे
वधस्थल पर शिवालय बनवाएं । इससे उनका मन
शांत होगा । भगवान कार्तिकेय ने
ऐसा ही किया । फिर सभी देवताओं ने मिलकर
महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ
की स्थापना की ।
शांत और आध्यात्मिक वातावरण
पश्चिम भाग में स्थापित स्तंभ में भगवान शंकर
स्वयं विराजमान हुए । तब से ही इस तीर्थ
को स्तंभेश्वर कहते हैं । यहां पर महिसागर
नदी का सागर से संगम होता है । स्तंभेश्वर के
मुख्य मंदिर के नजदीक ही भगवान शिव का एक
और मंदिर तथा छोटा सा आश्रम भी है
जो समुद्र तल से 500 मी । की ऊंचाई पर है ।
यहां पर श्रद्धालुओं के लिए हर तरह की सुविधाएं
मौजूद हैं जैसे- कमरे, छोटी सी रसोई जो साल भर
पारंपरिक गुजराती भोजन मुफ्त में प्रदान
करती है । इस मंदिर का वातावरण बहुत शांत और
आध्यात्मिक रहता है ।
अगर कोई श्रद्धालु ध्यान और योगा में
दिलचस्पी रखता है तो यह बेहतर स्थल है । यहां के
आश्रम में एक रात रुकने पर श्रद्धालु को रात्रि के
शांत वातावरण में भगवान शिव के संपूर्ण वैभव के
दर्शन मिल सकते हैं ।
पर्व-त्योहार इस मंदिर में महाशिवरात्रि और
हर अमावस्या पर मेला लगता है । प्रदोष पूनम और
एकादशी पर यहां दिन-रात पूजा-
अर्चना होती रहती है । दूर-दूर से श्रद्धालु समुद्र
द्वारा भगवान शिव के जलाभिषेक
का अलौकिक दृश्य देखने यहां आते हैं ।
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सबसे बड़ा खुलासा
पेप्सी कंपनी अपने शीतल पेय में मिलाती है मानव भ्रूण
यह एक केमिकल युक्त पेय ही नहीं रहा बल्कि मांसाहारी पेय भी है , इसके अन्दर किसी और का नहीं बल्कि मनुष्य का ही भ्रूण डाला गया है
यह सब मैं नहीं बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा प्रशासन की एक एजेंसी ने सर्वे किया और दो साल तक पेप्सी के सैंपल एकत्रित किये , उसके बाद एजेंसी ने यह पाया की पेप्सी में खतरनाक रसायन ही नहीं बल्कि मानव भ्रूण की किडनी के उत्तक पेप्सी में मिलाये जाते है ,
इस खबर के उजागर होने के बाद पेप्सी कम्पनी के शेयर होल्डरस ने अपने शेयर वापस लेने शुरू कर दिए है
ज्यादा जानकारी के लिए यह वेबसाईट देखें -
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