Monday 13 October 2014

भारतीय इतिहास के साथ इस खिलवाड़ के मुख्य दोषी वे वामपंथी इतिहासकार हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद नेहरू की सहमति से प्राचीन हिन्दू गौरव को उजागिर करने वाले इतिहास को या तो काला कर दिया या धुँधला कर दिया और इस गौरव को कम करने वाले इतिहास-खंडों को प्रमुखता से प्रचारित किया, जो उनकी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के खाँचे में फिट बैठते थे।

ये तथाकथित इतिहासकार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की उपज थे, जिन्होंने नूरुल हसन और इरफान हबीब की अगुआई में इस प्रकार इतिहास को विकृत किया।भारतीय इतिहास कांग्रेस पर लम्बे समय तक इनका कब्जा रहा, जिसके कारण इनके द्वारा लिखा या गढ़ा गया अधूरा और भ्रामक इतिहास ही आधिकारिक तौर पर भारत की नयी पीढ़ी को पढ़ाया जाता रहा।वे देश के नौनिहालों को यह झूठा ज्ञान दिलाने में सफल रहे कि भारत का सारा इतिहास केवल पराजयों और गुलामी का इतिहास है और यह कि भारत का सबसे अच्छा समय केवल तब था जब देश पर मुगल बादशाहों का शासन था। तथ्यों को तोड़-मरोड़कर ही नहीं नये ‘तथ्यों’ को गढ़कर भी वे यह सिद्ध करना चाहते थे कि भारत में जो भी गौरवशाली है वह मुगल बादशाहों द्वारा दिया गया है और उनके विरुद्ध संघर्ष करने वाले महाराणा प्रताप, शिवाजी आदि पथभ्रष्ट थे।

इनकी एकांगी इतिहास दृष्टि इतनी अधिक मूर्खतापूर्ण थी कि वे आज तक महावीर, बुद्ध, अशोक, चन्द्रगुप्त, चाणक्य आदि के काल का सही-सही निर्धारण नहीं कर सके हैं। इसी कारण लगभग 1500 वर्षों का लम्बा कालखंड अंधकारपूर्ण काल कहा जाता है, क्योंकि इस अवधि में वास्तव में क्या हुआ और देश का इतिहास क्या था, उसका कोई पुष्ट प्रमाण कम से कम सरकारी इतिहासकारों के पास उपलब्ध नहीं है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि अलाउद्दीन खिलजी और बख्तियार खिलजी ने अपनी धर्मांधता के कारण दोनों प्रमुख पुस्तकालय जला डाले थे।

लेकिन बिडम्बना तो यह है कि भारत के इतिहास के बारे में जो अन्य देशीय संदर्भ एकत्र हो सकते थे, उनको भी एकत्र करने का ईमानदार प्रयास नहीं किया गया। इसकारण मध्यकालीन भारत का पूरा इतिहास अभी भी उपलब्ध नहीं है।
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चर्च के पैसों पर पलने वाले पिस्सुओं को समर्थन देने वाले वामपंथ को "डिबेट कल्चर" (संवाद हो) तथा "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" जैसे शब्दों की याद तभी आती है, जब हिन्दू धर्म को गरियाने का मामला हो...| अन्यथा सलमान रश्दी की पुस्तक बैन करना हो, तस्लीमा नसरीन पर हैदराबाद में हमले की घटना हो चाहे हिन्दू धर्म को गरियाने वालों का पक्ष लेने का मामला हो... तब ये पूँछ दबाकर बैठ जाते हैं...| इन पाखंडियों को सभी आदर्शवादी, नैतिकतावादी बातें तभी याद आती हैं, जब हिन्दू धर्म के खिलाफ कोई घटना हो, फिर इनकी ठुकाई अथवा गिरफ्तारी की नौबत आ जाए... भले खुद ये लोग लाल सलाम के नाम पर, केरल और पश्चिम बंगाल में लगातार दर्जनों संघ स्वयंसेवकों का खून बहाते रहे हों...

बहरहाल... माँ दुर्गा के खिलाफ अश्लील टिप्पणी करने वालों के विरुद्ध JNU में विद्यार्थी परिषद् के युवा जोरदार लड़ाई लड़ रहे हैं... उन्हें पूर्ण समर्थन देना हम सभी का कर्त्तव्य है. जैसे दिल्ली विवि में ABVP ने परचम लहरा दिया है, उसी प्रकार उम्मीद है कि अगले तीन वर्ष में वामपंथ के अंतिम किले अर्थात JNU को भी ढहा दिया जाएगा... जर्जर तो हो ही चुका है... 

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