Tuesday 5 May 2015


गांधीजी की हजामत बनाते
हुए कहा।
‘‘क्या शिक्षा ली!’’
‘‘माफ करें तो कह दूं।’’
‘‘ठीक है माफ किया!’’
‘‘जी चाहता है गर्दन पर उस्तरा चला दूं।’’
‘‘क्या बकते हो?’’
‘‘बापू आपकी नहीं, बकरी
की!’’
‘‘मतलब!’’
‘‘वह मेरा हरिजन अखबार खा गई, उसमें कितनी सुंदर
बात आपने लिखी थी।’’
‘‘भई कौनसे अंक की बात है ??
‘‘बापू आपने लिखा था कि "छल से बाली का वध करने वाले
राम को भगवान तो क्या मैं इनसान भी मानने को तैयार
नहीं हूं " और आगे लिखा था "सत्यार्थ प्रकाश
जैसी घटिया पुस्तक पर बैन होना चाहिए, ऐसे
ही जैसे शिवा बावनी पर लगवा दिया है
मैंने।’’
आंखें लाल हो गई थी पुन्नीलाल
की। ‘‘तो क्या बकरी को यह बात
बुरी लगी ?"
‘‘नहीं बापू अगले पन्ने पर लिखा था "सभी
हिन्दुओं को घर में महाभारत नहीं रखनी
चाहिए, क्योंकि इससे झगड़ा होता है और रामायण तो कतई
नहीं, लेकिन कुरान रखनी चाहिए"
बकरी तो इसलिए अखबार खा गई, हिन्दू की
बकरी थी ना,
सोचा हिन्दू के घर में कुरान होगी तो कहीं
मेरी संतान को ये हिन्दू भी
बकरीद के मौके पर काट कर न खा जाएं।’’
पुस्तक: मधु धामा लिखित, इतिहास की
अनकही प्रामाणिक कहानियां, का एक अंश

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