Sunday 31 May 2015

deepawali

 कहानी ->
पत्नी ने पती से कहा - आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत निकालना।
पति - क्यों?
उसने कहा - अपनी काम वाली बाई दो दिन काम करने नहीं आएगी।
पति - क्यों?
पत्नी - वो कह रही थी कि इस नवरात्रि को वो अपने नाती से मिलने बेटी के घर जा रही है।
पति - ठीक है, मैं अधिक कपड़े नहीं निकालूँगा।
पत्नी - और हाँ, नवरात्रि के लिए उसे त्योहार के बोनस के नाम पर पाँच सौ रूपए दे दूँ क्या?
पति - क्यों? अभी दिवाली आ रही है, तब दे देना।
पत्नी - अरे नहीं बाबा!! बेचारी, गरीब है। बेटी - नाती के यहाँ जा रही है, तो उसे भी अच्छा लगेगा। और इस महँगाई के दौर में वो इतनी सी पगार से त्यौहार कैसे मनाएगी बेचारी!!
पति - तुम भी ना! कुछ जरूरत से ज्यादा ही भावुक हो जाती हो।
पत्नी - अरे नहीं, तुम चिंता मत करो। मैं आज का पिज्जा खाने का कार्यक्रम रद्द कर देती हूँ। उन बासी पाव के आठ टुकड़ों के पीछे खामख्वाह पाँच सौ रूपए उड़ जाएँगे।
पति - वाह . . . . . क्या कहने हैं आपके! मेरे मुँह से पिज्जा छीनकर बाई की थाली में डाल दिये।
तीन दिन बाद . . . . . पोंछा लगाते हुए काम वाली बाई से पति ने पूछा . . . . .
पति - क्यों बाई? कैसी रही तुम्हारी छुट्टियां?
बाई - बहुत बढ़िया रही साहब। दीदी ने मुझे त्यौहार के बोनस के रूप में पाँच सौ रूपए जो दिए थे ना।
पति - तो हो आई तुम अपनी बेटी के यहाँ? मिल आई अपने नाती से?
बाई - हाँ साहब।इस बार बहुत मजा आया। दो दिन में 500 रूपए खर्च कर दिए।
पति - अच्छा!! तो तुमने इस बार क्या किया 500 रूपए का?
बाई - नाती के लिए 150 रूपए का शर्ट खरीदी। 40 रूपए की गुड़िया ली। बेटी के लिए 50 रूपए के पेड़े लिए। 50 रूपए के पेड़े का मंदिर में प्रसाद चढ़ाया। 60 रूपए किराए के लग गए। 25 रूपए की चूड़ियाँ बेटी के लिए ली। और जमाई के लिए 50 रूपए का अच्छा वाला बेल्ट लिया। बचे हुए 75 रूपए नाती को दे दिए, कॉपी - पेन्सिल खरीदने के लिए।
झाड़ू - पोंछा करते हुए पूरा हिसाब उसकी जुबान पर रटा हुआ था।
पति - 500 रूपए में इतना कुछ?
वह आश्चर्य से मन ही मन विचार करने लगा और उसकी आँखों के सामने आठ टुकड़े किया हुआ बड़ा सा पिज्जा घूमने लगा। एक - एक टुकड़ा उसके दिमाग में हथौड़ा मारने लगा। अपने एक पिज्जा के खर्च की तुलना वह कामवाली बाई के त्यौहारी खर्च से करने लगा। पहला टुकड़ा बच्चे की ड्रेस का। दूसरा टुकड़ा पेड़े का। तीसरा टुकड़ा मंदिर के प्रसाद का। चौथा किराए का। पाँचवाँ गुड़िया का। छठवां टुकड़ा चूडियों का। सातवाँ जमाई के बेल्ट का। और आठवाँ टुकड़ा बच्चे की कॉपी - पेन्सिल का।
आज तक उसने हमेशा पिज्जा की एक ही बाजू देखी थी। कभी पलटाकर नहीं देखा था कि पिज्जा पीछे से कैसा दिखता है। लेकिन आज कामवाली बाई ने उसे पिज्जा की दूसरी बाजू भी दिखा दी थी। आज पिज्जा के वो आठ टुकड़े उसे जीवन का अर्थ समझा गए थे।
“जीवन के लिए खर्च” या “खर्च के लिए जीवन” का नवीन अर्थ एक झटके में उसे समझ में आ गया।

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