Wednesday 6 May 2015

‘‘विश्व में हिन्दू धर्म एक मात्र ऐसा धर्म है

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यूरोप के प्रसिद्ध ब्रह्माण्डवेत्ता ‘कार्ल वेगन’ ने उनकी पुस्तक“COSMOS” में लिखा है कि ‘‘विश्व में हिन्दू धर्म एक मात्र ऐसा धर्म है,जो इस विश्वास पर समर्पित है कि  इस ब्रह्माण्ड में उत्पत्ति और लय की एक सतत प्रक्रिया चल रही है और यही एक धर्म है जिसने समय के सूक्ष्मतम से लेकर वृहदतम नाप, जो सामान्य दिन-रात से लेकर 8 अरब 64 करोड़ वर्ष के ब्रह्मा के दिन-रात तक की गणना की है, जो संयोग से आधुनिक खगोलीय नापों के निकट है।’’
आपको ये कथा मालूम होगी जिसमे श्री कृष्ण मिट्टी खाने के बाद माता यसोदा को मुह खोलकर बताते है तो उसमे आकाश, दिशायें, पहाड़, द्वीप और समुद्रों के सहित सारी पृथ्वी, बहनेवाली वायु, वैद्युत, अग्नि, चन्द्रमा और तारों के साथ सम्पूर्ण ज्योतिर्मण्डल,जल, तेज,पवन, वियत्, वैकारिक अहंकार के देवता, मन-इन्द्रिय, पञ्चतन्मात्राएं और तीनों गुण श्रीकृश्ण के मुख में दीख पड़तेहै। जहाँ ये हुआ था आज भी वह स्थान ‘‘ब्रह्माण्ड’’ के नाम से बृज में तीर्थ रूप में स्थित है।
इसका सीधा सा अर्थ इतना ही है कि जिस ब्रह्माण्ड को आज वैज्ञानिक खोज रहे हैं,वह हजारों-लाखों वर्ष पूर्व हिन्दूओं को मालूम थे।
सनातन धर्मं हमेशा से ही कहता आ रहा है की कण कण में भगवान् है(कण का अर्थ आप कंकण मे रह कर ही उलझ गए, और स्विट्ज़रलैंड की प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने उस असली कण का भावार्थ समझ लिया, जिसे कण कहा गया) और आज स्विटज़रलेंड में दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला में वैज्ञानिक उसी भगवान् कण (God Particle) की खोज कर रहे है। और उस प्रयोगशाला के सामने एक बहुत बड़ी मूर्ति है, जो भगवान नटराज की है....
‘‘ततो दिनकरैर्दीप्तै सप्तभिर्मनुजाधिय।
पीयते सलिलं सर्व समुद्रेशु सरित्सु च।।’’ -महाभारत (वन पर्व 188-67)
इसका अर्थ है कि ‘‘एक कल्प अर्थात् 1 हजार चतुर्युगी की समाप्ति पर आने वाले कलियुग के अंत में सात सूर्य एक साथ उदित हो जाते हैं और तब ऊष्मा इतनी बढ़ जाती है कि पृथ्वी का सब जल सूख जाता है। हमारी कालगणना से एक कल्प का मान 4 अरब 32 करोड़ वर्ष है।
देखिये आज का विज्ञान क्या कहता है ‘‘नोबल पुरूस्कार से सम्मानित चन्द्रशेखर के चन्दशेखर सीमा सिद्यांत के अनुसार यदि किसी तारे का द्रव्यमान 1.4 सूर्यों से अधिक नहीं है, तो प्रारम्भ में कई अरब वर्ष तक उसका हाईड्रोजन, हीलियम में संघनित होता रहकर, अग्नि रूपी ऊर्जा उत्पन्न करता रहेगा। हाईड्रोजन की समाप्ति पर वह तारा फूलकर विशाल लाल दानव (रेड जायन्ट) बन जायेगा। फिर करीब दस करोड़ साल तक लाल दानव की अवस्था में रहकर तारा अपनी शेष नाभिकीय ऊर्जा को समाप्त कर देता है और अन्त में गुठली के रूप में अति सघन द्रव्यमान का पिण्ड रह जाता है।
जिसे श्वेत वामन (व्हाईट ड्वार्फ) कहा जाता है। श्वेत वामन के एक चम्मच द्रव्य का भार एक टन से भी अधिक होता है। फिर यही धीरे-धीरे कृष्ण वामन (ब्लेक हॉल) बन जाता है।
लगभग 5 अरब वर्ष में हमारा सूर्य भी लाल दानव बन जायेगा, इसके विशाल ऊष्मीय विघटन की चपेट में बुध और शुक्र समा जायेंगे। भीषण तापमान बढ़ जाने से पृथ्वी का जीवन जगत लुप्त हो जायेगा और सब कुछ जलकरराख हो जायेगा।
महाभारत युग में यह कल्पना कर लेना कितना कठिन था मगर इस पुरूषार्थ को हमारे पूर्वजों ने सिद्ध किया।
मूलतः सूर्य सिद्धांत ग्रंथ सतयुग में लिखा माना जाता है, वह नष्ट या स्पष्ट काहू तो चोरी भी हो गया, मगर उस ग्रन्थ के आधार पर ज्योतिष गणना कर रहे गणनाकारों के द्वारा पुनः सूर्य सिद्धान्त गं्रथ लिखवाया गया, इस तरह की मान्यता है।
अस्मिन् कृतयुगस्यान्ते सर्वे मध्यगता ग्रहाः।
बिना तुपाद मन्दोच्चान्मेषादौ तुल्य तामिताः।।
इस पदका अर्थ है ‘कृतयुग’ (सतयुग) के अंत में मन्दोच्च को छोड़कर सब ग्रहों का मध्य स्थान ‘मेष’ में था। इसका अर्थ यह हुआ कि त्रेता के प्रारम्भ में सातों ग्रह एक सीध में थे। मूलतः एक चतुर्युगी में कुल10 कलयुग होते हैं,जिनमें सतयुग का मान 4 कलयुग, त्रेतायुग का मान 3 कलयुग, द्वापरयुग का मान दो कलयुग और कलयुग का मान एक कलयुग है।
वर्तमान कलियुग,महाभारत युद्ध के 36 वर्ष पश्चात प्रारम्भ हुआ। (अर्थात् ई.पू. 3102 वर्ष में 20 फरवरी को रात्रि 2 बजकर 27 मिनिट, 30 सेकेण्ड पर कलियुग प्रारम्भ हुआ।)

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