Wednesday 20 May 2015

वीर बालक छत्रसाल
(छत्रसाल जयंती : २० मई)
वीर छत्रसाल पन्ना नरेश चंपतराय के पुत्र थे । ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया वि. सं. १७०६ को उनका जन्म मोर पहाडी के जंगल में हुआ था । क्योंकि उस समय मुगल शासक शाहजहाँ की सेनाएँ चारों ओर से घेरा डालने के प्रयत्न में थीं, इसलिए धर्मनिष्ठ चंपतराय ने छिपे रहना आवश्यक समझकर पुत्र के जन्म पर भी कोई उत्सव नहीं मनाया । एक बार तो शत्रु इतने निकट आ गये कि चंपतराय और अन्य लोगों को प्राण बचाने के लिए इधर-उधर भागना पडा । इस भाग-दौड में शिशु छत्रसाल मैदान में अकेले ही छूट गये, कितूूूू शिशु पर शत्रुओं की दृष्टि नहीं पडी । चार वर्ष की अवस्था तक उन्हें ननिहाल में रहना पडा । पाँच वर्ष की अवस्था में इन्होंने श्रीरामजी के मंदिर में भगवान राम और लक्ष्मण की मूर्तियों को अपने जैसा बालक समझकर उनके साथ खेलना चाहा और कहते हैं- सचमुच भगवान इनके साथ खेले ।
छत्रसाल को शौर्य अपने पिता से पैतृक सम्पत्ति के रूप में मिला था । जब छत्रसाल १३-१४ वर्ष के हुए तब तक औरंगजेब दिल्ली के सिंहासन पर बैठ चुका था । उसका अन्याय-अत्याचार का दौर सारे देश को आतंकित कर रहा था । एक बार विंध्यवासिनी देवी के मंदिर में मेला था । चारों ओर खूब चहल-पहल थी । दूर-दूर से लोग भगवती के दर्शन के लिए आ रहे थे । नरेश चंपतराय बुंदेले सरदारों के साथ मंत्रणा कर रहे थे । युवराज छत्रसाल ने अपनी पादुका उतारी, हाथ-पैर धोये और एक डलिया लेकर देवी की पूजा करने के लिए पुष्प चुनने हेतु वाटिका में पहुँचे । उनके साथ उसी अवस्था के दूसरे राजपूत बालक भी थे । पुष्प चुनते हुए वे कुछ दूर निकल गये । कुमार छत्रसाल ने देखा कि कुछ मुसलमान सैनिक हाथों में नंगी तलवारें लिये आ रहे हैं । जब वे लोग समीप आये, तो उनके सरदार ने आगे बढकर पूछा : ‘‘विंध्यवासिनी का मंदिर किधर है ?
छत्रसाल बोले : ‘‘क्यों, तुम्हें भी देवी की पूजा करनी है क्या ?
मुसलमान सरदार ने कडककर कहा : ‘‘बकवास मत करो । हम तो मंदिर को तोडने आये हैं ।
छत्रसाल ने फूलों की डलिया दूसरे बालक को पकडायी और गरज उठे : ‘‘मुह सँभालकर बोल ! फिर ऐसी बात कही तो जीभ खींच लूँगा ।
सरदार हँसा और बोला : ‘‘तू भला क्या कर सकता है ? तेरी देवी भी... लेकिन बेचारे का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ कि छत्रसाल की तलवार उसकी छाती के पीछे तक निकल गयी । उस पुष्प-वाटिका में मुसलमान सैनिकों और युवराज के साथियों के बीच युद्ध छिड गया । जिन बालकों के पास तलवारें नहीं थीं, वे तलवारें लेने दौड पडे ।
मंदिर में इस युद्ध का समाचार पहुँचा । राजपूतों ने कवच पहने और तलवारें सँभालीं, किंतु उन्होंने देखा कि युवराज छत्रसाल एक हाथ में रक्त से सनी तलवार तथा दूसरे में फूलों की डलिया लिये ‘माता विंध्यवासिनी की जय गुंजाते हुए चले आ रहे हैं । युवराज ने अपने साथियों का अकेले नेतृत्व करते हुए शत्रु-सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया । चंपतराय ने पुत्र का स्वागत किया । लोगों ने युवराज छत्रसाल की जय-जयकार से आकाश गुंजा दिया । पन्ना राज्य छत्रसाल को पाकर धन्य हुआ ।
जो कमजोर दिल के हैं वे ही हताश-निराश होते हैं, जुल्मियों का जुल्म सहते हैं । छत्रसाल जैसे वीर जुल्मियों का जुल्म क्यों सहें ?
समाज का शोषण करनेवाले लोगों से एकजुट होकर, बुद्धिपूर्वक लोहा ले सकते हैं ।
(लोक कल्याण सेतु, दिसम्बर २००२)

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जितना बड़ा अन्याय और धोखा इतिहासकारों ने ''महान पोरस'' (पुरु) के साथ किया है उतना बड़ा अन्याय इतिहास में शायद ही किसी के साथ हुआ होगा ! एक महान ''नीतिज्ञ'', ''दूरदर्शी'',''शक्तिशाली'' ''वीर'' ,'' विजयी'' राजा को निर्बल और पराजित राजा बना दिया गया !
खुद विदेशी (ग्रीक के फिल्म-निर्माता ओलिवर स्टोन) ही फिल्म बनाकर ''सिकंदर की हार'' को स्वीकार कर रहे रहे हैं और हम अपने ही वीरों ( ''महान पोरस'') का इस तरह अपमान कर रहे हैं!
इतिहास सिकन्दर को विश्व-विजेता घोषित करती है पर अगर ''सिकन्दर'' ने ''महान पोरस'' को हरा भी दिया था तो भी वो ''विश्व-विजेता'' कैसे बन गया..? पौरस तो बस एक राज्य का राजा था !भारत में उस तरक के अनेक राज्य थे तो पौरस पर सिकन्दर की विजय भारत की विजय तो नहीं कही जा सकती और भारत तो दूर ''चीन'',''जापान'' जैसे एशियाई देश भी तो जीतना बाँकी ही था फिर वो विश्व-विजेता कहलाने का अधिकारी कैसे हो गया ?
जब सिकन्दर ने सिन्धु नदी पार किया तो भारत में उत्तरी क्षेत्र में ''तीन राज्य'' थे !
झेलम नदी के चारों ओर ''राजा अम्भि'' का शासन था जिसकी राजधानी ''तक्षशिला'' थी ! पौरस का राज्य ''चेनाब नदी'' से लगे हुए क्षेत्रों पर था ! तीसरा राज्य ''अभिसार'' था जो कश्मीरी क्षेत्र में था.अम्भि का पौरस से पुराना बैर था इसलिए सिकन्दर के आगमण से अम्भि खुश हो गया और अपनी शत्रुता निकालने का उपयुक्त अवसर समझा ! ''अभिसार'' के लोग तटस्थ रह गए ! इस तरह पौरस ने अकेले ही सिकन्दर तथा अम्भि की मिली-जुली सेना का सामना किया !
"प्लूटार्च" के अनुसार सिकन्दर की बीस हजार पैदल सैनिक तथा पन्द्रह हजार अश्व सैनिक पौरस की युद्ध क्षेत्र में एकत्र की गई सेना से बहुत ही अधिक थी ! सिकन्दर की सहायता ''फारसी सैनिकों'' (पारस देश के कुछ हिस्सो को को यवनो ने लुट कर बर्बाद कर दिया था ! उसको आगे फारस कहा जाने लगा ) ने भी की थी !

इस युद्ध के शुरु होते ही ''महान पोरस'' ने ''महाविनाश'' का आदेश दे दिया !
उसके बाद ''महान पोरस'' के सैनिकों ने तथा हाथियों ने जो विनाश मचाना शुरु किया कि सिकन्दर तथा उसके सैनिकों के सर पर चढ़े विश्वविजेता के भूत को उतार कर रख दिया !
पोरस के हाथियों द्वारा यूनानी सैनिकों में उत्पन्न आतंक का वर्णन ''कर्टियस'' ने इस तरह से किया है => "इनकी तुर्यवादक ध्वनि से होने वाली भीषण चीत्कार न केवल घोड़ों को भयातुर कर देती थी जिससे वे बिगड़कर भाग उठते थे अपितु घुड़सवारों के हृदय भी दहला देती थी ! इन पशुओं ने ऐसी भगदड़ मचायी कि अनेक विजयों के ये शिरोमणि अब ऐसे स्थानों की खोज में लग गए जहाँ इनको शरण मिल सके ! उन पशुओं ने कईयों को अपने पैरों तले रौंद डाला और सबसे हृदयविदारक दृश्य वो होता था जब ये स्थूल-चर्म पशु अपनी सूँड़ से ''यूनानी सैनिक'' (यवन-सैनिक ) को पकड़ लेता था,उसको अपने उपर वायु-मण्डल में हिलाता था और उस सैनिक को अपने आरोही के हाथों सौंप देता था जो तुरन्त उसका सर धड़ से अलग कर देता था.इन पशुओं ने घोर आतंक उत्पन्न कर दिया था !"
इसी तरह का वर्णन "डियोडरस" ने भी किया है => विशाल हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए ! उन्होंने अपने पैरों तले बहुत सारे सैनिकों की हड्डियाँ-पसलियाँ चूर-चूर कर दी! हाथी इन सैनिकों को अपनी सूँड़ों से पकड़ लेते थे और जमीन पर जोर से पटक देते थे ! अपने विकराल गज-दन्तों से सैनिकों को गोद-गोद कर मार डालते थे !
ई.ए. डब्ल्यू. बैज का वर्णन देखिए => '' झेलम के युद्ध में सिकन्दर की अश्व-सेना का अधिकांश भाग मारा गया था ! सिकन्दर ने अनुभव कर लिया कि यदि अब लड़ाई जारी रखूँगा तो पूर्ण रुप से अपना नाश कर लूँगा ! अतः सिकन्दर ने पोरस से शांति की प्रार्थना की -"श्रीमान पोरस मैंने आपकी वीरता और सामर्थ्य स्वीकार कर ली है ! मैं नहीं चाहता कि मेरे सारे सैनिक अकाल ही काल के गाल में समा जाय !मैं इनका अपराधी हूँ ! और भारतीय परम्परा के अनुसार ही पोरस ने शरणागत शत्रु का वध नहीं किया! ये बातें किसी भारतीय द्वारा नहीं बल्कि एक विदेशी द्वारा कही गई है !
इसके बाद सिकन्दर को पोरस ने उत्तर मार्ग से जाने की अनुमति नहीं दी ! विवश होकर सिकन्दर को उस ''खूँखार जन-जाति'' के कबीले वाले रास्ते से जाना पड़ा जिससे होकर जाते-जाते सिकन्दर इतना घायल हो गया कि अंत में उसे प्राण ही त्यागने पड़े ! इस विषय पर "प्लूटार्च" ने लिखा है कि ''मलावी'' नामक ''भारतीय जनजाति'' बहुत खूँखार थी ! जिससे होकर जाते-जाते सिकन्दर इतना घायल हो गया कि अंत में उसे प्राण ही त्यागने पड़े !

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Henry Ford एकदम अंगूठा टेक अनपढ़ थे । अखबार उन्हें अनपढ़ duffer जाहिल लिखते थे । उन्होंने एक स्थानीय अखबार पे मानहानि का दावा कर दिया । मामला कोर्ट में आया । जज ने अखबार के वकील से पूछा इनको अनपढ़ क्यों बोलते हो भैया ?
वकील बोला ...... अजी जज साहब जब है अनपढ़ तो क्या बोलें ? आप कहें तो मैं दो मिनट में ये सिद्ध कर दूंगा की ये आदमी निपट जाहिल है ।
Henry Ford कटघरे में आये । वकील ने उनसे 4 - 6 सामान्य ज्ञान GK के प्रश्न पूछे । Ford को एक का भी जवाब नहीं आता था ।
Ford ने बस एक बात कही । ये सही है कि मुझे इन सवालों के जवाब नहीं पता । पर मुझे ये पता है कि किसको इन सवालों के जवाब पता है । कहाँ मिलेंगे सवालों के जवाब । कैसे मिलेंगे ? मैं सवालों और समस्याओं पे focus नहीं करता । मैं सिर्फ जवाबों और समाधान पे focus करता हूँ ।
I am not a problem oriented person . I believe in finding solutions . I can make a team who can find solutions for me .
इतिहास गवाह है की अकेले दम पे henry ford ने पूरी दुनिया की automobile industry को बदल के रख दिया ।

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पिता बिल्डिंग से गिरे,
भाई को ब्लड कैंसर ,
खुद आठ घरों में काम करते हुए
कर्नाटक की वैशाली ने
12वी की परीक्षा 85% के साथ उतीर्ण की
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