Wednesday 6 December 2017

राम जन्म भूमि मामले की सुनवाई टालने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड और उसके वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का बहिष्कार करने के साथ-साथ यह भी धमकी दी कि देश मे चुनाव के समय दंगा भड़क सकता है.कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि, सुनवाई जुलाई 2019 तक टाली जाय क्योंकि मई 2019 में लोक सभा का चुनाव है.
2. इस पर कांग्रेस ने कल कहा था कि कपिल सिब्बल सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील है, वकील के रूप में उनका निजी बयान है।
लेकिन आज सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बयान दिया है कि वक्फ बोर्ड ने कपिल सिब्बल से सुनवाई टालने के लिए कभी नही कहा..? तो प्रश्न यह है कि आखिर कपिल सिब्बल किसके इशारे पर जुलाई 2019 तक सुनवाई टालने के लिए बोले ..?
यदि सुन्नी वक्फ बोर्ड सुनवाई नही टालना चाहता था तो उसके प्रतिनिधि ने कपिल सिब्बल को यह बात क्यो कहने दी। जबकि
सुनवाई टालने का बवाल कपिल सिब्बल और सुन्नी वक्फ बोर्ड 2 घण्टे तक चलाते रहे...
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पहले सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि अगर जांच पड़ताल में वहाँ मन्दिर के अवशेष मिलते हैं तो वक्फ बोर्ड अपना दावा छोड़ देगा।
भारत सरकार की पुरातत्व संस्था एएसआई (आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया) ने खुदाई की और उन्होंने अपनी खुदाई में पाया कि बाबरी मस्जिद मंदिर को गिराकर बनायी गयी है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने रिपोर्ट मानने से इंकार कर दिया। 
फिर सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों के बेन्च ने आर्डर दिया कि किसी स्वतंत्र कंपनी से जीपीएस सर्वे करवाया जाय।
सर्वे में भी यही तथ्य निकलकर सामने आया कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गयी है।
जीपीएस, जीपीआरएस की मदद से दिल्ली की तोजो कंपनी ने बिल्कुल वैज्ञानिक तरीके से यह साबित किया कि वहाँ मंदिर के अवशेष हैं।
जो स्ट्रक्चर मिला है वह मंदिर है, मस्जिद नहीं।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने फिर मानने से इंकार कर दिया।
वो हर माँग करते गये और उनकी हर माँग पर कार्रवाई होती गयी लेकिन जैसे-जैसे कार्रवाई हुई, वैज्ञानिक तरीके से जाँच पड़ताल हुई तो सुन्नी वक्फ बोर्ड का ही दावा खारिज होता गया।
कोई ऐसा वैज्ञानिक या ऐतिहासिक प्रमाण मुसलमानों के पास नहीं है जिससे वो यह साबित कर सकें कि यह मस्जिद मंदिर तोड़कर नहीं बनायी गयी.....
लेकिन एक दावा खारिज होते ही वो दूसरा दावा ठोंक देते हैं।
हकीकत ये है कि उनके पास न कोई कागजात हैं और न ही प्रमाण कि बाबरी मस्जिद का ऐतिहासिक रूप से मुसलमानों से कोई रिश्ता है।
जो रिश्ता है भी वो शिया वक्फ बोर्ड का है जो कि १९४७ तक मस्जिद पर मालिकाना हक रखता था।
उस वक्त नब्बे के दशक में शिया समुदाय भी मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ नहीं जा रहा था इसलिए उसने कभी अपना अलग से दावा नहीं किया।
लेकिन अब हालात बदल गये हैं......
शिया वक्फ बोर्ड ने विवादित स्थान को राम मंदिर के लिए देने का प्रस्ताव कर दिया है इसलिए सुन्नी वक्फ बोर्ड और उनके समर्थक साम्यवादियों को चाहिए कि अदालत से अपने पैर बाहर निकालकर सद्भावना दिखाते हुए विवादित स्थान पर राम मंदिर की पहल कर दें।
लाज बच जाएगी.....
वरना उन्होंने झूठ का जो महल खड़ा किया था अदालती कार्रवाई में वह ताश के पत्तों की तरह बिखर जाये

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