Tuesday, 1 September 2015




Farhana Taj के साथ Shashwat Sharma
मोदी इफेक्ट:
आजाद भारत में मिलना चाहता है गुलाम कश्मीर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन की तारीफ अब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भी होने लगी है। यही वजह है कि वहां के 99 फीसद लोग भारत के साथ आना चाहते हैं। यह कहना है अंजुमन मिनहास ए रसूल के चैयरमेन मौलाना सैयद अथर दहलवी का। उन्होंने कहा कि देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कमान संभालने के बाद अब पीओके के लोग पाकिस्तान से आजाद होना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि इसकी सबसे बड़ी वजह मोदी की नीति है, जिसके चलते वहां के लोग उनके मुरीद हो गए हैं।
अपने पांच दिन के कश्मीर दौरे से लौटे मौलाना दहलवी ने कहा कि कश्मीर में पीएम मोदी ने जिस तरह से बाढ़ पीडितों की मदद की वह तारीफ के काबिल है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब कश्मीर डूब रहा था उस वक्त भारतीय फौज उनके लिए देवदूत बनकर सामने आई और लोगों काे हर संभव मदद दी। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी का बेहतर प्रशासन और जम्मू कश्मीर के प्रति उनका नजरिया दोनों ही दूसरों से बेहतर हैं।
मौलाना ने कहा कि मोदी की सुशासन देने की अपील का पीओके में जबरदस्त स्वागत किया गया है। यही वजह है कि वह पाकिस्तान से नाता तोड़कर भारत में शामिल होना चाहते हैं। उन्होंने पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि वह लगातार हिमालय के क्षेत्र को अपनी कलोनी के तौर पर बताता आया है। लेकिन अब पीओके के लोग इसको मानने के लिए तैयार नहीं है। प्रेस वार्ता के दौराना उन्होंने कश्मीर के अलगाववादी नेताओं पर भी जमकर भड़ास निकाली। उन्होंने कहा कि उनका वहां कोई वजूद नहीं है और उनकी राजनीतिक जमीन खत्म हो चुकी है।
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2nd News
मंगलवार 1 Sep. को सेना के एक कार्यक्रम में टाइगर डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग मेजर जनरल एस नारायण ने जम्मू में कहा कि कश्मीर के अधिकांश लोग भारत के साथ हैं, कुछ अंगुलियों पर गिने जाने वाले अलगाववादी ही विद्रोही हैं।
और एक हमारे देश के सुपर अलगाववादी राकेट साइंस के नजरिये से पाकिस्तान में जाने को मरे जा रहे हैं।

प्रस्तुति: फरहाना ताज
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Sanjay Dwivedy ने 3 नई फ़ोटो जोड़ी.
ओरंगजेब रोड नाम बदलने पर रोने वाले, एक बार दिल्ली चांदनी चौक मे, लाल किले के सामने श्री गुरूद्वारा शीशगंज व पास मे ही बने भाई मतीदास संग्रहालय मे भी जाकर देख ले, सारा ओरंगजेबी इतिहास पता चल जायेगा..
औरंगज़ेब के शासन काल की बात है। औरंगजेब की हठधर्मिता कि उसे अपने के इस्लाम के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा तक सहन नहीं थी। मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने मंदिर और गुरुद्वारों को तोड़ने और मूर्ती पूजा बंद करवाने के फरमान दिए थे, उसके आदेश के अनुसार कितने ही मंदिर और गुरूद्वारे तोड़े गए , मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ कर टुकड़े कर दिए गए और मंदिरों में गायें काटीं गयीं , औरंगज़ेब ने सबको इस्लाम अपनाने का आदेश दे दिया और संबंधित अधिकारी को यह कार्य सौंप दिया। औरंगजेब ने यह हुक्म दिया कि किसी हिन्दू को राज्य के कार्य में किसी उच्च स्थान पर नियत न किया जाये तथा हिन्दुओं पर जजिया (कर) लगा दिया जाय।
उस समय अनेकों नये कर केवल हिन्दुओं पर लगाये गये। इस भय से अनेकों हिन्दू मुसलमान हो गये। हिन्दुओं के पूजा-आरती आदि सभी धार्मिक कार्य बंद होने लगे। मंदिर गिराये गये, मसजिदें बनवायी गयीं और अनेकों धर्मात्मा मरवा दिये गये। उसी समय की उक्ति है कि 'सवा मन यज्ञोपवीत(जनेऊ) रोजाना उतरवा कर फिर जलाकर तब औरंगजेब रोटी खाता था....' औरंगज़ेब ने कहा -'सबसे कह दो या तो इस्लाम धर्म कबूल करें या मौत को गले लगा लें।' इस प्रकार की ज़बर्दस्ती शुरू हो जाने से अन्य धर्म के लोगों का जीवन कठिन हो गया। हिंदू और सिखों को इस्लाम अपनाने के लिए सभी उपायों , लोभ-लालच, भय-दंड से मजबूर किया गया.
जब गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने से मना कर दिया तो उनको औरंगजेब के हुक्म से गिरफ्तार कर लिया गया था। गुरुजी के साथ तीन सिख वीर दयाला जी, भाई मतीदास और सतीदास भी दिल्ली में कैद थे। जब उनके शिष्य मतिदास औरंगजेब के पास पहुँचे तब औरंगजेब ने कहाः
"यदि तुम लोग इस्लाम धर्म कबूल नहीं करोगे तो कत्ल कर दिये जाओगे।"
मतिदासः "शरीर तो नश्वर है और आत्मा का कभी कत्ल नहीं हो सकता।"
औरंगजेब गुर्राया और उसने भाई मतिदास को धर्म-परिवर्तन करने के लिए विवश करने के उद्देश्य से अनेक प्रकार की यातनाएँ देने की धमकी दी। खौलते हुए गरम तेल के कड़ाहे दिखाकर उनके मन में भय उत्पन्न करने का प्रयत्न किया, परंतु धर्मवीर पुरुष अपने प्राणों की चिन्ता नहीं किया करते। धर्म के लिए वे अपना जीवन उत्सर्ग कर देना श्रेष्ठ समझते हैं।
जब औरंगजेब की सभी धमकियाँ बेकार गयीं, सभी प्रयत्न असफल रहे, तो वह चिढ़ गया। उसने काजी को बुलाकर पूछा, "बताओ इसे क्या सजा दी जाये ?"
काजी ने कुरान की आयतों का हवाला देकर हुक्म सुनाया कि 'इस काफिर को इस्लाम ग्रहण न करने के आरोप में आरे से लकड़ी की तरह चीर दिया जाये।'
औरंगजेब ने सिपाहियों को काजी के आदेश का पालन करने का हुक्म जारी कर दिया। दिल्ली के चाँदनी चौक में भाई मतिदास को दो खंभों के बीच रस्सों से कसकर बाँध दिया गया और सिपाहियों ने ऊपर से आरे के द्वारा उन्हें चीरना प्रारंभ किया। किंतु उन्होंने 'सी' तक नहीं की।
औरंगजेब ने पाँच मिनट बाद फिर कहा- "अभी भी समय है। यदि तुम इस्लाम कबूल कर लो, तो तुम्हें छोड़ दिया जायेगा और धन-दौलत से मालामाल कर दिया जायेगा।" वीर मतिदास ने निर्भय होकर कहा- "मैं जीते जी अपना धर्म नहीं छोड़ूँगा।" ऐसे थे धर्मवीर मतिदास ! तब औरंगजेब ने क्रोधित होकर मतिदास को आरे से चिरवा दिया।
यह देखकर दयाला बोलाः "औरंगजेब ! तूने बाबर वंश को और अपनी बादशाहियत को चिरवाया है।" यह सुनकर औरंगजेब ने दयाला को उबलते पानी के कढाहे में डलवाकर जिंदा ही जला दिया। भाई दयाला जी को गुरु तेगबहादुर जी की मौजूदगी में एक बड़ी देग, जो पानी से भरी थी, में बैठाया गया। देग को आग लगाई गई उबलते पानी में दयाला जी की शहादत हुई।
भाई सतीदास के शरीर पर रुई लपेटकर आग लगा दी गयी, पर उसने भी धर्म त्याग करकर इस्लाम कबूल करने से इनकार कर दिया।
भाई मतिदास,सतीदास और दयाला जी की वीरता और शहादत पर इन हिन्दू वीरों के चरणों में शत् शत् नमन।


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