1.
सैनिक और हत्यारे में क्या अंतर है? हत्यारा व्यक्तिगत कारण से किसी के प्राण लेता है किन्तु सैनिक सदैव राष्ट्र के हित के लिये शत्रु के प्राण लेता है. उसके कारण हम सुरक्षित होते हैं. हत्यारे को व्यवस्था प्राणदंड देती है किन्तु सैनिक को वीर-चक्र, महावीर-चक्र, परमवीर-चक्र देती है. उसकी समाधि पर प्रधानमंत्री सैल्यूट करते हैं. समाज फूल चढ़ाता है. केवल लक्ष्य के अंतर से एक उपेक्षा और दूसरा प्रशंसा पाता है.
देश को नष्ट करने का प्रयास करने वाले को हम शत्रु मान कर व्यवहार करते हैं किन्तु जिसके कारण देश का एक तिहाई भाग ग़ुलाम बन गया, करोड़ों लोग विस्थापित हुए, लाखों लोग मारे गये, हिन्दू समाज पर इतिहास की सबसे बड़ी विपत्ति आयी, जिसके कारण सर्वाधिक हिन्दू नष्ट हुए, जिसने 1948 में देश पर पाकिस्तानी आक्रमण के समय पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिलवाने के लिये आमरण-अनशन किया, उसको हम बिना सच जाने सर पर बैठाये हुए हैं.
जी, मैं गांधी जी की बात कर रहा हूँ. उनको दंड देने का कार्य राज्य का था मगर राज्य ने यह कार्य नहीं किया अतः जिस व्यक्ति ने ये आवश्यक कार्य किया वो समाज की उपेक्षा का शिकार है. नथु राम गोडसे की कोई निजी शत्रुता गांधी जी से नहीं थी. वो सुशिक्षित वकील थे, समाचारपत्र के सम्पादक थे.
वो जानते थे गांधी जी को प्राणदंड देते ही मैं नष्ट कर दिया जाऊंगा. मेरा परिवार नष्ट कर दिया जायेगा मगर किसी को भी मातृभूमि के विभाजन का घोर पाप करने का अधिकार नहीं है. ऐसे पापी को दण्डित करने का और कोई उपाय नहीं था अतः मैंने गांधी जी का वध करने का निश्चय किया. मैं गांधी जी पर गोली चलाने के बाद भागा नहीं और तबसे अनासक्त की भांति जीवन जी रहा हूँ. यदि देशभक्ति पाप है तो मैं स्वयं को पापी मानता हूँ और पुण्य तो मैं स्वयं को उस प्रशंसा का अधिकारी मानता हूँ!
हमारे हित के लिये अपने परिवार सहित स्वयं को बलिदान कर देने वाले महापुरुष की छवि उज्जवल हो इतना तो हमें करना ही चाहिये. उस परमवीर महापुरुष नथु राम गोडसे को शत-शत प्रणाम
2.
देश-वासियो!
कोई भी काम अपने लक्ष्य के कारण छोटा/ बड़ा/ महान होता है. हम सब अपनी संपत्ति, परिवार, जीवन की रक्षा करते हैं मगर सम्मान सैनिक को मिलता है चूँकि वो निजी काम की जगह समष्टि की रक्षा करता है.
यहाँ ध्यान रहे, सैनिक का काम उसे जीवन-यापन भी कराता है, अर्थात देश की रक्षा में लगे सैनिक और उसके परिवार का जीवन सैनिक के वेतन पर निर्भर होता है. उसे कठिन जीवन जीना होता है मगर बलिदान हो जाना कोई आवश्यक नहीं होता. तो उस सामान्य मनुष्य को क्या कहेंगे जिसने अपना जीवन राष्ट्र के लिए बलिदान कर दिया.
एक ऐसा व्यक्ति जिसे अपना सम्मान प्राणों से भी प्यारा था, जिसे पता था कि उसके गोली चलाते ही उसका, उसके परिवार का जीवन पूर्णतः नष्ट कर दिया जाये, लोग उस पर थू-थू करेंगे मगर देश और राष्ट्र के हित में उसने अपना बलिदान कर दिया? महान राष्ट्र भक्त नथु राम गोडसे के अतिरिक्त ऐसा पूज्य योद्धा कौन है?
राष्ट्र के इतिहास में अगर किसी एक व्यक्ति का नाम ढूंढा जाये, जिसके कारण लाखों लोग हिन्दू मारे गए, करोड़ों हिंदुओं को अपनी संपत्ति, भूमि, व्यापार छोड़ कर अनजाने क्षितिज की और आना पड़ा, जिसके कारण पवित्र मातृभूमि का बंटवारा हुआ, किसके कारण वेदों के प्रकट होने का स्थान ग़ुलाम हो गया, जिसके कारण भारत का ध्वज स्वर्ण गैरिक भगवा के स्थान पर तिरंगा हुआ, जिसके कारण वंदेमातरम् की जगह चाटुकारिता का गीत जन-मन-गण हम पर लाद दिया गया तो केवल एक मात्र गांधी जी का नाम आयेगा.
जितने भयानक हत्याकांड 300 वर्ष का मुस्लिम शासन भी नहीं कर पाया था, उससे अधिक के निमित्त गांधी जी बने. ऐसे पापी का वध करने वाला योद्धा क्या महापुरुष कहलाने का अधिकारी नहीं है? ये उस महापुरुष की विडम्बना है कि उसने हिन्दू समाज के लिये बलिदान दिया. कहीं वो मुसलमान होते तो मुस्लिम समाज कृतज्ञता से उनके पैर धो धो कर पीता.
Tags: Tufail Chaturvedi
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