“हज़ार चौरासी की माँ”...
JNU के एक तथाकथित वामपंथी संगठन AISA के कन्हैया कुमार गिरफ्तार हो गए हैं | कल तक आधिकारिक तौर पर AISA कहती रही कि उसे घटना के बारे में नहीं पता | विडियो उनके झूठ से पर्दा उठा देता है | किसी फांसी का विरोध करना एक बात है, वो लोग देश के टुकड़े टुकड़े करने के नारे लगा रहे थे | देशद्रोह के इस अपराधी के घर तक कुछ ही समय में पत्रकार और पुलिस उनके घर तक भी जांच करने पहुँच जायेगी | जब पुलिस और पत्रकार घर पहुंचेंगे तो कन्हैया कुमार कि माता जी कि हालत भी “1084 की माँ” वाली होने वाली है | मुझे यकीन है कि उन्हें बेटे की पढाई का तो पता होगा लेकिन उसकी बाकी कि गतिविधियों का उन्हें कोई अंदाजा नहीं होगा | कई बार लोगों को लगता है कि राजनीती जैसे कुछ मुद्दे घर के बाहर ही ठीक होते हैं |
अगर आप भी अपने बच्चों के राजनैतिक रुझान के बारे में नहीं जानते तो संभल जाइए | कम्युनिस्ट विचारधारा स्पष्ट कहती है catch them young ! जैसे बच्चों को आपने टीवी पर आतंकी संगठनो के साथ हवा में हथियार लहराते देखा है, वैसे ही कम उम्र के बच्चों को कम्युनिस्ट बनाने कि बात करती है ये विचारधारा | गलत और सही का फर्क घर में ही बच्चों को समझाइए | शैक्षणिक संस्थानों पर तथाकथित वाम का और घोषित प्रगतिशील लोगों का कब्ज़ा है | वो राष्ट्र कि अवधारणा नहीं मानते |
इतनी मेहनत आप ना करना चाहें अपने बच्चों के लिए तो भी ठीक ही है | आखिर पढाई के लिए भी तो tuition लगवाते ही हैं ना आप ? बाकी “हज़ार चौरासी की माँ” देख या पढ़ लीजिये | कम से कम कल सदमा तो नहीं लगेगा |
................फ़िल्म का अच्छा होना, कई बार उस फिल्म में मौजूद कलाकारों के नाम पर भी निर्भर करता है | जया बच्चन, अनुपम खेर, सीमा विश्वास, मिलिंद गुणाजी और नंदिता दास जैसे कलाकार जिस फिल्म में भरे हों उसमें जबरदस्त एक्टिंग तो जरूर देखने के लिए मिल जाती है | ऐसे ही कलाकारों कि फिल्म है “हज़ार चौरासी की माँ” | सन 1998 में रिलीज हुई ये फिल्म गोविन्द निहलानी द्वारा निर्देशित है |
फिल्म की कहानी सत्तर के दशक के आस पास बुनी गई है | जहाँ एक बंगाली परिवार जिसमें दिब्यानाथ चटर्जी, उनकी पत्नी सुजाता और छोटा बेटा रहता है | सुजाता का किरदार जया बच्चन ने निभाया है, और उनके पति, दिब्यानाथ चटर्जी बने हैं अनुपम खेर | फिल्म में उनका छोटा बेटा अभी अभी स्कूल से निकला है और कॉलेज कि पढाई उसने शुरू ही की है | माँ-बाप अपने बच्चे की पढाई में तरक्की से खुश हैं | सुजाता कम बोलने वाली, धार्मिक हिन्दू महिला है और काफ़ी भावुक भी है | अपने बच्चे कि पढाई-लिखाई की फ़िक्र, और बाकि रोज़मर्रा जैसे परिवारों का ही जीवन है |
एक दिन अचानक पुलिस उन्हें सूचित करती है कि उनका बेटा मारा गया ! रोते पिटते पुलिस के पास पहुंचे दिब्यनाथ और सुजाता अपने बेटे की लाश पहचानने पहुँचते हैं | ये एक दुर्घटना अचानक उनका परिचय ही बदल देती है ! अपने नाम से जाने जाने वाले लोग अचानक एक लाश के माँ बाप हो जाते हैं | सुजाता एक पल में ही “1084 की माँ” हो जाती है | पुलिस उन्हें बताती है कि उनका बेटा एक नक्सली था और पुलिस मुडभेड़ में मारा गया है |
अब तक सुजाता ये समझ रही थी कि वो तो अपने बेटे से उसकी पढाई, कॉलेज सबकी बात करती रही है ! अचानक उसका बेटा नक्सली कब हो गया ? उसे पता कैसे नहीं चला कि उसका बेटा करता क्या है ? उसकी मौत कि तह में पहुँचने कि कोशिश करती सुजाता बेटे के दोस्तों से एक एक करके मिलना शुरू कर देती है | इस क्रम में कुछ ही समय में उसे पता चलता है कि उसके बेटे कि एक गर्ल फ्रेंड भी है | सुजाता कि मुलाकात नंदिनी मित्रा से होती है | अपने बेटे कि प्रेमिका के साथ ही वो अपने बेटे की सोच उसके नक्सल हो जाने कि कहानी जानती है | इस वक्त उसे ये नहीं पता होता कि ये जांच उसके खुद के जीवन को भी खतरे में डाल देगी | आखिर एक दिन उनकी तलाश, उन्हें भी एक नंबर का टैग लगी हुई लाश बना देती है |
ये फिल्म ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका महाश्वेता देवी के उपन्यास “1084 की माँ” पर आधारित है | एक्टिंग से संन्यास ले चुकी जया बच्चन इसी फिल्म से 18 साल बाद वापिस एक्टिंग में लौटी थीं |
Anand Kumar
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