हिन्दुस्तान का सबसे पहला खुला रंगमंच
ग्वालियर शहर से 27 किलोमीटर दूरी पर बरई में बना रासलीला घर हिन्दुस्तान का सबसे पहला खुला रंगमंच है। राजा मानसिंह तोमर ने वर्ष 1486 से 1516 के मध्य इसका निर्माण कराया था। यह राजपूत शैली में तैयार किया गया था।
बरई ग्राम के दक्षिण-पश्चिम की ओर रासलीला घर (रास मंडप) बना है। यह 216 फीट व्यास का है, जो 24 खंडों में विभाजित है। हर खंड के सिरे पर 10 फीट की ऊंची मीनारें बनी है। हर मीनार पर नौ फीट ऊंची गुम्बद थी, जो देखरेख के अभाव में टूट चुकी हैं। यहीं पर 25 फीट चौड़े गोलाकार में एक मंजिल भवन भी बने थे। इन भवनों के सामने रंगमंच के बीच 25 फीट स्थान खाली छोड़ा गया था। यहां 100 फीट व्यास का रंगमंच बना है।
राजा मानसिंह तोमर को शिकार का बहुत शौक था। तोमर कालीन राजा कीर्ति सिंह ने मानसिंह के लिए शिकार की व्यवस्था की थी। उन्होंने दो पहाड़ों के बीच एक बांध बनवाया था। यहां मानसिंह शिकार खेलते थे। शिकार से लौटते वक्त अपनी थकान मिटाने के लिए अक्सर मानसिंह रासलीला घर पहुंचते थे। उनके आने पर कृष्ण रासलीला का आयोजन होता था।
रासलीला घर के अंदर बनी मीनारों के ऊपर नगाड़े और वाद्ययंत्र रखे रहते थे। उन्हें कलाकार कार्यक्रम के दौरान बजाते थे। यहीं पर बीच में नौ फीट का दीप स्तंभ भी बना है।
रासलीला घर को बनाने वालों ने एक प्लानिंग के तहत निर्माण किया था। यहां एक सुरंग भी बनाई गई थी, जिससे किसी आपातकालीन स्थिति में राजा को सुरक्षित निकालकर ग्वालियर के महल में लाया जा सके। हालांकि यह सुरंग आज भी बनी हुई है, लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से पुरातत्व विभाग ने इसे बंद कर दिया है।
राज्य सरकार के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग ने बरई के रासलीला घर का महत्व को देखते हुए राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया है। राज्य संरक्षित स्मारक बनने के बाद यहां अभी तक पांच लाख रुपए से ज्यादा के काम हो चुके हैं। पर्यटकों के लिए गार्डन और बैठक व्यवस्था की गई है। जहां-जहां ऐतिहासिक इमारत खराब थी, उसे ठीक कर दिया गया है। अब पर्यटक इस ऐतिहासिक इमारत को देखने पहुंचते हैं।
ग्वालियर शहर से 27 किलोमीटर दूरी पर बरई में बना रासलीला घर हिन्दुस्तान का सबसे पहला खुला रंगमंच है। राजा मानसिंह तोमर ने वर्ष 1486 से 1516 के मध्य इसका निर्माण कराया था। यह राजपूत शैली में तैयार किया गया था।
बरई ग्राम के दक्षिण-पश्चिम की ओर रासलीला घर (रास मंडप) बना है। यह 216 फीट व्यास का है, जो 24 खंडों में विभाजित है। हर खंड के सिरे पर 10 फीट की ऊंची मीनारें बनी है। हर मीनार पर नौ फीट ऊंची गुम्बद थी, जो देखरेख के अभाव में टूट चुकी हैं। यहीं पर 25 फीट चौड़े गोलाकार में एक मंजिल भवन भी बने थे। इन भवनों के सामने रंगमंच के बीच 25 फीट स्थान खाली छोड़ा गया था। यहां 100 फीट व्यास का रंगमंच बना है।
राजा मानसिंह तोमर को शिकार का बहुत शौक था। तोमर कालीन राजा कीर्ति सिंह ने मानसिंह के लिए शिकार की व्यवस्था की थी। उन्होंने दो पहाड़ों के बीच एक बांध बनवाया था। यहां मानसिंह शिकार खेलते थे। शिकार से लौटते वक्त अपनी थकान मिटाने के लिए अक्सर मानसिंह रासलीला घर पहुंचते थे। उनके आने पर कृष्ण रासलीला का आयोजन होता था।
रासलीला घर के अंदर बनी मीनारों के ऊपर नगाड़े और वाद्ययंत्र रखे रहते थे। उन्हें कलाकार कार्यक्रम के दौरान बजाते थे। यहीं पर बीच में नौ फीट का दीप स्तंभ भी बना है।
रासलीला घर को बनाने वालों ने एक प्लानिंग के तहत निर्माण किया था। यहां एक सुरंग भी बनाई गई थी, जिससे किसी आपातकालीन स्थिति में राजा को सुरक्षित निकालकर ग्वालियर के महल में लाया जा सके। हालांकि यह सुरंग आज भी बनी हुई है, लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से पुरातत्व विभाग ने इसे बंद कर दिया है।
राज्य सरकार के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग ने बरई के रासलीला घर का महत्व को देखते हुए राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया है। राज्य संरक्षित स्मारक बनने के बाद यहां अभी तक पांच लाख रुपए से ज्यादा के काम हो चुके हैं। पर्यटकों के लिए गार्डन और बैठक व्यवस्था की गई है। जहां-जहां ऐतिहासिक इमारत खराब थी, उसे ठीक कर दिया गया है। अब पर्यटक इस ऐतिहासिक इमारत को देखने पहुंचते हैं।
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