Wednesday 17 June 2015

"योग"- स्वस्थ शरीर -स्वस्थ मष्तिष्क का प्रदाता -----------
यद्यपि शरीर भी संसार का ही अंग है परन्तु संसार को जानने,समझने और भोगने का एकमात्र साधन भी यही है। बड़ी पुरानी कहावत है -"स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मष्तिष्क रहता है। " यह स्वाभाविक ही है क्योंकि मष्तिष्क शरीर का ही अंग है। स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मष्तिष्क ही सुखी जीवन की कुंजी है और सामाजिक सामूहिकता में ये समाज को सुखी बनाने का मूल मन्त्र है। 
भारतीय चिंतन में शरीर की संरचना का सूक्ष्मतम अध्ययन और उसकी उपयोगिता का गंभीरतम विश्लेषण किया गया है। शरीर को इस संसार से पार जाने का साधन कहा गया है। जहाँ "शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम् " कहकर उसकी उपयोगिता का महत्व रेखांकित किया गया है वहीँ " शरीरं व्याधि मन्दिरम् " कहकर भावी संकटों के प्रति आगाह भी किया गया है।
भारतीय मनीषा ने सौ वर्ष तक स्वस्थ जीवन जीने की कामना ही नहीं की है अपितु उसकी प्राप्ति के साधन का भी अविष्कार किया है जिसका नाम है "योग"। हमारे जीने के लिए ठोस,तरल और वायु तीन प्रकार के आहार आवश्यक हैं। हमारा सबसे अधिक जोर खाद्य पदार्थ के रूप में ठोस वस्तुओं पर रहता है जिनकी मात्रा धरती पर सीमित है,और जिसके बिना हम २-३ माह तक जीवित रह सकते हैं। तरल या जल पृथ्वी पर कहीं अधिक मात्रा में उपलब्ध है जिसके बगैर हम कुछ ही दिनों तक जीवित रह सकते हैं। तीसरा आहार वायु है जो प्रचुरतम मात्रा में उपलब्ध है ,जिसके बगैर हम कुछ ही क्षणों के मेहमान हैं। अर्थात जीवन के लिए सबसे अधिक आवश्यक वायु है और परमात्मा ने उसे इसीलिए प्रचुर मात्र में उपलब्ध कराया है। परन्तु जिसका उपयोग सबसे उपेक्षित है। "योग" में इस पर सर्वाधिक जोर दिया गया है और इसका अधिकतम लाभ लेने के लिए "प्राणायाम" को आवश्यक बताया है। प्राण ही इस शरीर को संचालित करने के कारण इसका स्वामी है। प्राणायाम प्राण को नए आयाम देने की विधि है। शक्तिशाली संतुलित प्राण शरीर को स्वस्थ , शक्तिशाली और संतुलित बनता है। ये मष्तिष्क को भी स्वस्थ करके मानसिक दुर्गुणों और व्याधियों से मुक्ति दिलाता है। हम प्राणायाम के माध्यम से स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मष्तिष्क के स्वामी होकर समस्त सांसारिक सुखों का उपभोग ,दूसरों को बगैर कष्ट पहुंचाए करने में समर्थ हो सकते हैं। आईये "योग" की शरण में। योग ही इस लोक से परलोक, पशु से नर और नर से नारायण तक की यात्रा सफलता पूर्वक कराने में समर्थ है। जो अज्ञानी हैं उनके लिए शोक की आवश्यकता नहीं है।

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