Sunday 11 October 2015

सेक्युलर होने और धर्म-निरपेक्षता के नाम पर कुछ नामी-गिरामी लेखक एक समुदाय विशेष का ही समर्थन करते हैं ! केवल उसी समुदाय के साथ सहानुभूति रखते हैं और हिन्दू समाज की उपेक्षा करते हैं ! साहित्य अकादमी के पुरस्कार लौटाकर ये साबित क्या करना चाहते हैं ? क्या ये सब धमकी देने के हथकंडे नहीं ? जब चौरासी के दंगों में सिक्खों पर अत्याचार हुए तब किसी ने अपने अवार्ड क्यों नहीं लौटाए ! जब " कोसी के दंगे " हुए , तब किसी सेक्युलर को दर्द नहीं हुआ , तब किसी ने अपने अवार्ड क्यों नहीं लौटाए? शहीदों की शहादत और देशप्रेम पर इनकी लेखनियां क्यों नहीं चलतीं ? कहाँ चला जाता है इनके ह्रदय का जज़्बा और प्रेम? क्या सारा का सारा प्रेम इनके दिलों में एक समुदाय विशेष के लिए ही है? सेक्युलर बनने का ढोंग क्यों और पुरस्कार लौटाने की धमकी क्यों ? साहित्यिक पुरस्कारों को राजनितिक और धार्मिक घटनाओं से जोड़ने की कोशिश क्यों? सारी दरियादिली इस समुदाय विशेष के लिए ही है ? और किसी के साथ कुछ भी घटे ये लोग तिलमिलाते नहीं?
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Vithal Vyas

वो जिनका कलेजा दिल्ली में 3 दिन के अंदर छह हजार सिक्खों के मारे जाने पर नही फटा !!!
वो जिनका कलेजा लाखों कश्मीरी पण्डितों के कत्लेआम पर नही फटा !!
वो जिनका कलेजा अयोध्या में कारसेवकों के कत्लेआम पर भी नही फटा !!!!!
वो एक अकलाख की मौत पर अपने पुरुस्कार वापस कर रहे है !!!
जयचन्द भी तुम्हारे इन कर्मों से शर्मिंदा होकर कहीं सर झुकाये आँसू बहा रहा होगा 
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मलेशिया के पास समंदर की गहराइयों में 2000 वर्ष पुरानी शिवजी और नारायण भगवान की मुर्तिया मिली। ये है सबुत हमारी विरासत का जो दुनिया भर में सनातन धर्म को दुनिया के आरंभ का वक़्त वक़्त पर अहसास करवाती रहती है।
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72-हूरों की तलाश में ‪#‎शांतिदूत‬ अपनी ही ‪#‎बम‬ से खुद को उड़ा कर ‪#‎जन्नत‬ जाते थे... अब इन्हे जन्नत भेजने का काम ‪#‎पुतिन‬ अपने खर्चे से कर रहे है ...
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