Thursday 8 October 2015

आजकल कई बुद्धिजीवी हमें बताने लगे हैं कि "देश में सेकुलरिज़्म कमज़ोर होने लगा है"...,
(Selective) किस्म की अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के झंडाबरदार हमें बताने लगे हैं कि आजकल विरोधियों की आवाज़ बन्द की जा रही है... उनकी बात तो सही है... लेकिन इसका एकमात्र कारण यही है कि अब "हिन्दू" जवाब देने लगा है...
जब इखलाक के परिवार को 45 लाख रूपए मिल जाते हैं, और बाटला हाउस के शहीद मोहनचंद्र शर्मा को "संदिग्ध" के रूप में पेश किया जाता हो... जब अफज़ल गूरू और याकूब के लिए धड़ाधड़ माफी याचिकाएँ दायर की जाएँ, और कैंसर से पीड़ित एक महिला साध्वी बिना चार्जशीट के वर्षों जेल में सड़े... जब पूरी बेशर्मी से 26/11 को RSS की साज़िश बताया जाए और आज़ाद मैदान देशद्रोह के बाद रज़ा अकादमी पर चुप्पी साध ली जाए... तो स्वाभाविक है कि "सेकुलरिज़्म"(??? हा हा हा हा हा हा) कमज़ोर होगा ही...
रही बात विरोधी आवाज़ दबाने की... तो प्रगतिशील बुद्धिजीवी महोदय ये भी आपका भ्रम है... अंतर सिर्फ इतना आया है कि पहले आप जो "किस्से-कहानियाँ" सुनाते रहे, उसे हिन्दू चुपचाप मान लेते थे, सुन लेते थे... जबकि अब आपकी किसी भी "सेकुलर उल्टी" के दस मिनट बाद ही सोशल मीडिया में उसकी पोल खोल दी जाती है, जो आप सहन नहीं कर पाते...
संक्षेप में तात्पर्य यही है कि अब "हिन्दू जाग रहा है, मुँह खोलने लगा है, जवाब देने लगा है, एकत्रित होने लगा है, आपकी बकवास सुनता नहीं है..." - यही आपकी बेचैनी का विषय है कि लगातार लात खाने वाले नौकर ने आँखें दिखाना क्यों शुरू कर दिया?? स्वाभाविक है कि आपको सेकुलरिज़्म, अभिव्यक्ति वगैरह खतरे में दिखाई दे रहे हैं...

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