Sunday, 30 September 2018


 कहानी 'शुभ्रक' की......
कुतुबुद्दीन घोड़े से गिर कर मरा, यह तो सब जानते हैं, लेकिन कैसे ? महाराणा प्रताप जी का 'चेतक' सबको याद है,लेकिन 'शुभ्रक' नहीं !
 कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया, और उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया। कुंवर का 'शुभ्रक' नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था,जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।
एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई.. और सजा देने के लिए 'जन्नत बाग' में लाया गया। यह तय हुआ कि राजकुंवर का सिर काटकर उससे 'पोलो' (उस समय उस खेल का नाम और खेलने का तरीका कुछ और ही था) खेला जाएगा..कुतुबुद्दीन ख़ुद कुँवर सा के ही घोड़े 'शुभ्रक' पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ 'जन्नत बाग' में आया।
'शुभ्रक' ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। जैसे ही सिर कलम करने के लिए कुँवर सा की जंजीरों को खोला गया, तो 'शुभ्रक' से रहा नहीं गया.. उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए, जिससे कुतुबुद्दीन के प्राण पखेरू उड़ गए! इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए..
. मौके का फायदा उठाकर कुंवर सा सैनिकों से छूटे और 'शुभ्रक' पर सवार हो गए। 'शुभ्रक' ने हवा से बाजी लगा दी.. लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका!
राजकुंवर घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया, तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था.. उसमें प्राण नहीं बचे थे। सिर पर हाथ रखते ही 'शुभ्रक' का निष्प्राण शरीर लुढक गया..
भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता क्योंकि वामपंथी और मुल्लापरस्त लेखक अपने नाजायज बाप की ऐसी दुर्गति वाली मौत बताने से हिचकिचाते हैं! जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।

नमन स्वामीभक्त 'शुभ्रक' को..
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महाराणा प्रताप से सम्बंधित ऐतिहासिक धरोहर मायरा की गुफाः
यह है मेवाड़ की विरासतों में शुमार मायरा की गुफा। प्रकृति ने इस दोहरी कंदरा को कुछ इस तरह गढ़ा है मानो शरीर में नाडिय़ां। इसमें प्रवेश के तीन रास्ते हैं, जो किसी भूल-भुलैया से कम नहीं। हर तरफ से सुरक्षित। यही तो कारण था कि महाराणा प्रताप ने इसे अपना शस्त्रागार बनाया था। मायरा की गुफा में अश्वशाला और रसोई घर भी है। अश्वशाला में चेतक को बांधा जाता था, इसलिए इसे आज भी पूजा जाता है। पास ही मां हिंगलाज का स्थान है। प्रकृति और इतिहास की यह विरासत अरसे से अनदेखी का शिकार है। ध्यान नहीं दिया तो यह वापस प्रकृति में ही विलीन हो जाएगी।.........हल्दी घाटी युद्ध से पहले और बाद में भी महाराणा प्रताप का शस्त्रागार और शरण स्थली, 1572 से 1597 के दौर में वीरवर प्रताप के साथ इस स्थल को पहचान मिली। यहां मां हिंगलाज का प्राचीन स्थान भी है।.., मोड़ी पंचायत (गोगुंदा) उदयपुर से दूरी, करीब 30 किमी.मायरा गुफा में स्थित रसोई संरक्षण के अभाव में प्रकृति में विलीन होती जा रही है।
महाराणा प्रताप से सम्बंधित इस ऐतिहासिक धरोहर की यह हालत चिंताजनक हैं।


क्या भारत कही गायब था?
हमें गलत क्यूं पढ़ाया जाता है कि भारत की खोज वास्कोडिगामा ने किया,
आज से लगभग ५०० साल पहले, वास्को डी गामा आया था हिंदुस्तान. इतिहास की चोपड़ी में, इतिहास की किताब में हमसब ने पढ़ा होगा कि सन. १४९८ में मई की २० तारीख को वास्को डी गामा हिंदुस्तान आया था. इतिहास की चोपड़ी में हमको ये बताया गया कि वास्को डी गामा ने हिंदुस्तान की खोज की, पर ऐसा लगता है कि जैसे वास्को डी गामा ने जब हिंदुस्तान की खोज की, तो शायद उसके पहले हिंदुस्तान था ही नहीं. हज़ारो साल का ये देश है, जो वास्को डी गामा के बाप दादाओं के पहले से मौजूद है इस दुनिया में. तो इतिहास कि चोपड़ी में ऐसा क्यों कहा जाता है कि वास्को डी गामा ने हिंदुस्तान की खोज की, भारत की खोज की. और मै मानता हु कि वो एकदम गलत है. वास्को डी गामा ने भारत की कोई खोज नहीं की, हिंदुस्तान की भी कोई खोज नहीं की, हिंदुस्तान पहले से था, भारत पहले से था, वास्को डी गामा यहाँ आया था भारतवर्ष को लुटने के लिए, एक बात और जो इतिहास में, मेरे अनुसार बहुत गलत बताई जाती है कि वास्को डी गामा एक बहूत बहादुर नाविक था, बहादुर सेनापति था, बहादुर सैनिक था, और हिंदुस्तान की खोज के अभियान पर निकला था, ऐसा कुछ नहीं था, सच्चाई ये है कि पुर्तगाल का वो उस ज़माने का डॉन था, माफ़िया था. जैसे आज के ज़माने में हिंदुस्तान में बहूत सारे माफ़िया किंग रहे है, उनका नाम लेने की जरुरत नहीं है, क्योकि मंदिर की पवित्रता ख़तम हो जाएगी, ऐसे ही बहूत सारे डॉन और माफ़िया किंग १५ वी सताब्दी में होते थे यूरोप में. और १५ वी. सताब्दी का जो यूरोप था, वहां दो देश बहूत ताकतवर थें उस ज़माने में, एक था स्पेन और दूसरा था पुर्तगाल. तो वास्को डी गामा जो था वो पुर्तगाल का माफ़िया किंग था. १४९० के आस पास से वास्को डी गामा पुर्तगाल में चोरी का काम, लुटेरे का काम, डकैती डालने का काम ये सब किया करता था. और अगर सच्चा इतिहास उसका आप खोजिए तो एक चोर और लुटेरे को हमारे इतिहास में गलत तरीके से हीरो बना कर पेश किया गया. और ऐसा जो डॉन और माफ़िया था उस ज़माने का पुर्तगाल का ऐसा ही एक दुसरा लुटेरा और डॉन था, माफ़िया था उसका नाम था कोलंबस, वो स्पेन का था. तो हुआ क्या था, कोलंबस गया था अमेरिका को लुटने के लिए और वास्को डी गामा आया था भारतवर्ष को लुटने के लिए. लेकिन इन दोनों के दिमाग में ऐसी बात आई कहाँ से, कोलंबस के दिमाग में ये किसने डाला की चलो अमेरिका को लुटा जाए, और वास्को डी गामा के दिमाग में किसने डाला कि चलो भारतवर्ष को लुटा जाए. तो इन दोनों को ये कहने वाले लोग कौन थे?
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वेटिकन देश के महाराज पोप फ्रांसिस ने अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन DC के आर्चबिशप डोनाल्ड वुर्ल का त्यागपत्र स्वीकार कर लिया। डोनाल्ड पर आरोप था कि वे जब पेनसिलवानिया के बिशप थे, तब उन्होंने बच्चों पर कामासक्त रहने वाले पादरियों से निपटने के लिए पर्याप्त कार्रवाई नहीं की थी।डोनाल्ड ने अपने बिशपिया कार्यकाल में यौन उत्पीड़न के ढेरों काण्ड सामने आने पर त्यागपत्र देने की इच्छा प्रकट की थी। पोपराज ने डोनाल्ड की ‘नेकनीयती’ की प्रशंसा करते हुए उनका इस्तीफा लिया। अमेरिकी जूरी की रिपोर्ट में रहस्योद्घाटन हुआ था कि पेनसिलवानिया कैथोलिक चर्च ने चर्चों में हजारों बच्चों के साथ कामुकुकर्मों को बरसों छिपाए रखा।



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न्यूटन_से_भी_पहले_गुरूत्वाकर्षण_बल_के_बारे_में_जानते_थे_आर्यभट्ट: पूर्व_इसरो_प्रमुख

देश के जानेमाने वैज्ञानिक एवं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर ने कहा है कि वेद के कुछ श्लोकों में चंद्रमा पर जल की मौजूदगी का जिक्र है और आर्यभट्ट जैसे खगोलविद् आइजैक न्यूटन से भी कहीं पहले गुरूत्वाकर्षण बल के बारे में जानते थे।

पद्म विभूषण से नवाजे जा चुके नायर सर ने कहा कि भारतीय वेदों और प्राचीन हस्तलेखों में भी धातुकर्म, बीजगणित, खगोल विज्ञान, गणित, वास्तुकला एवं ज्योतिष-शास्त्र के बारे में सूचना थी और यह जानकारी उस वक्त से थी जब पश्चिमी देशों को इनके बारे में पता तक नहीं था।


वेदों पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए नायर ने कहा कि वेदों में दी गई जानकारी ‘संक्षिप्त स्वरूप’ में थी जिससे आधुनिक विज्ञान के लिए उन्हें स्वीकार करना मुश्किल हो गया।

नायर ने कहा, ‘एक वेद के कुछ श्लोकों में कहा गया है कि चंद्रमा पर जल है, लेकिन किसी ने इस पर भरोसा नहीं किया। हमारे चंद्रयान मिशन के जरिए हम इसका पता लगा सके और यह पता लगाने वाला हमारा देश पहला है।’ उन्होंने कहा कि वेदों में लिखी सारी बातें नहीं समझी जा सकतीं क्योंकि वे क्लिष्ठ संस्कृत में हैं।


महिलाएं कैसे पा सकती हैं हनुमान जी की कृपा
शास्त्रों में वर्णित है कि चुंकि हनुमान जी समस्त महिलाओं में अपनी माता का रूप देखते हैं अत: वे नहीं चाहते हैं कि महिलाएं उनके समक्ष मस्तक झुकाए, वे स्वयं महिलाओं के सामने अपना मस्तक झुकाते हैं। हनुमान जी ब्रह्मचारी हैं। लेकिन हनुमान जन्मोत्सव पर और अन्य अवसरों पर महिलाएं इस तरह से हनुमान जी की सेवा कर कृपा पा सकती हैं।
हनुमान जी की पूजा में महिलाओं के लिए कुछ नियम हैं।
1 . महिलाएं दीप अर्पित कर सकती हैं।
2. महिलाएं गुगल की धूनी लगा सकती हैं।
3 . महिलाएं हनुमान चालीसा, संकट मोचन, हनुमानाष्टक, सुंदरकांड आदि का पाठ कर सकती हैं।
4. महिलाएं हनुमान जी का भोग अपने हाथों से बनाकर अर्पित कर सकती हैं।
5 . महिलाएं लंबे अनुष्ठान नहीं कर सकती।
6. महिलाएं रजस्वला होने पर हनुमान जी से संबंधित कोई भी कार्य न करें।
7. महिलाएं हनुमान जी को सिंदूर अर्पित नहीं कर सकती है ।
8. महिलाओं को हनुमान जी को चोला भी नहीं चढ़ाना चाहिए ।
9 . महिलाओं को बजरंग बाण का पाठ नहीं करना चाहिए।
10. महिलाओं को पाद्यं अर्थात चरणपादुकाएं अर्पित नहीं करनी चाहिए।
11. महिलाएं हनुमान जी को पंचामृत स्नान नहीं करा सकती।
12. महिलाएं वस्त्र अर्थात कपड़ों का जोड़ा समर्पित नहीं कर सकती।
13. महिलाएं यज्ञोपवित अर्थात जनेऊ अर्पित नहीं कर सकती।

Saturday, 29 September 2018

हर महीने १०-१२ बच्चियों को




आपकी सेक्यूलरिज्म का बोझ आपके बच्चे उठा रहे हैं?
यह रेहान कुरैशी है। अभी तक १०० से अधिक बच्चियों का रेप कर चुका है। हर महीने १०-१२ बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाता था। मुंबई पुलिस ने इस सीरियल रेपिस्ट को पकड़ा है। यह 'रेप-जिहाद' का हिस्सा है।
आपको आश्चर्य होगा कि इस समय अनगिनत 'रेहानों' को शरण देने वाला समूचा यूरोप 'रेप-जिहाद' की चपेट में है। पाकिस्तानियों, सीरियाई शरणार्थियों आदि ने गोरों की छोटी-छोटी बच्चियों का रेप करने के लिए 'ग्रूमिंग-गैंग' बना रखा है। 'रेहानों' की शक्ल में यह 'रेप-जिहादी' भारत में भी बढ़ने का संकेत दे रहे हैं।
यह पूरी तरह से बीमार मानसिकता के लोग हैं! आप इनकी हैवानियत से वाकिफ नहीं है। इसलिए घर के बाहर या अंदर किसी भी 'रेहान कुरैशी' पर भरोसा न करें। अपने बच्चों और घर की महिलाओं के पास इन्हें फटकने न दें।
हमारे पूर्वजों ने तब पर्दा प्रथा, बाल विवाह, रात्रि विवाह अपना कर अपनी बेटियों को 'रेहानों' से बचाया था, आप जागरूकता फैला कर, इनकी किताबी सच्चाई बचपन से अपने बच्चों को बताकर, अपने घर को 'रेहानों' से महफूज बनाइए।
यदि सचमुच आप अपने बच्चों से प्यार करते हैं, उन्हें सुरक्षित रखना और देखना चाहते हैं, तो जगिए और जगाइए! अन्यथा रोते रहिएगा, क्योंकि यदि ऐसे 'रेहान' को जेहाद की बीमारी लगी है तो आपको कुछ न समझने वाली 'सेक्यूलरिज्म' की! याद रखिए आपके सेक्यूलरिज्म का बोझ आपके बच्चों को उठाना पड़ेगा!
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ब्लैकमेलिंग.....
 11 सूत्रीय मांगों को लेकर कथित किसानों का हज़ारों किसानों का जत्था अपनी मांगों को लेकर दिनाक 23 सितंबर से रवाना हुआ था...यह तथाकथित किसान हरिद्वार,रुड़की मुज़फ्फरनगर ,मेरठ होते हुए कल गाज़ियाबाद में इकट्ठे हो गए थे...और  दिल्ली कूंच की तैयारी थी... कुछ किसान नेता कह रहे थे कि वह चरणसिंह की समाधि पर पुष्प चढ़ाने जा रहे थे तो कुछ गांधी समाधि पर बैठकर सरकार को अपनी 11 सूत्री मांगे मानने के लिए विवश करेंगे. 1 अक्टूबर से मेरठ रोड, NH-24,साहिबाबाद हिंडौन ब्रिज इत्यादि को कथित किसानों ने घेर लिया था...रोडवेज बसें और ट्रैफिक का सत्यानाश हो गया...लाखों लोग इस अराजकता से दुखी और प्रताड़ित है !!

खबरे योगी जी तक पहुचीं,योगी जी ने गाज़ियाबाद पहुचकर आंदोलन के नेताओं को बुलाया ,बात सुनी मगर यह मांगे नहीं, 2019 को लेकर खुली ब्लैक मेलिंग हैं...
पिछले वर्ष ही 36000 करोड़ का किसानों का ऋण माफ किया गया,अब नए और शेष ऋणों की माफी भी चाहिए...प्रत्येक किसान को 100 % फ्री बिजली चाहिए...MSP, लागत से नए फार्मूले के हिसाब से ढाई गुना चाहिए... प्रत्येक किसान जो अपने खेत मे काम करेगा... वह एक मजदूर के रूप में मनरेगा के तहत मजदूरी भी सरकार से लेगा...दस साल से ज़्यादा पुराना ट्रैक्टर प्रयोग करेगा...फसल बीमा भी और फ़ायदेदार होना चाहिए...किसान को पेंशन भी मिले... इन किसानों में अधिकतर अजित सिंह समर्थक... भाजपा विरोधी और सेकुलर-मुस्लिम गठजोड़ वाले लोग सक्रिय हैं...

सुबह वही हुआ जो सेकुलर,केजरीवाल और कांगी चाहते हैं.. किसानों ने 100 से ज़्यादा ट्रैक्टरों से बैरिकेडिंग लगभग तोड़ दी...पुलिस ने बल प्रयोग न के बराबर किया,सिर्फ वाटर कैनन का प्रयोग हुआ,उससे किसानों पर कोई फर्क नहीं पड़ा...प्रत्येक किसान लाठी डंडों से लैस था..कथित किसानों ने लाठी डंडों से पुलिस की पिटाई शुरू कर दी....कुछ किसान तो वाकई अखाड़े में जैसे लाठी चलाई जाती है,वैसे लाठियां भांज रहे थे...जब पथराव शुरू हुआ तो पुलिस ने आंसू गैस छोड़ी और बेहद हल्का लाठी चार्ज किया...पैरों को निशाने पर लेकर चंद रबड़ की गोलिया चलाईं....मीडिया के भेड़िए तैयार थे....चीखना शुरू कर दिया कि "अन्नदाता पर लाठीचार्ज किया जा रहा है" .....कुत्तों को हड्डी मिल गई....

 इस सरकार ने जो किया है वह अप्रतिम है...सारी योजनाएं किसानों को केंद्र में रखकर बनाई गईं हैं...ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम 16 घंटे की फुल वोल्टेज के साथ बिजली आपूर्ति हो रही है... उज्ज्वला योजना,प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वास्थ्य बीमा ,यूरिया की शानदार सप्लाई ,बीज और स्वाइल टेस्टिंग इत्यादि जैसी योजनाएं किसानों को केंद्र में रखकर बनाई गईं हैं...36000 करोड़ एक प्रदेश के लिए छोटी रकम नहीं होती ,उसे माफ़ किया गया....अहसान फरामोशी की हद होती है..
 आंदोलन के नेता राकेश टिकैत सरकार 7 बड़ी मांगे माने जाने से संतुष्ट दिखे.....मगर आंदोलन में घुसे हुए 'सेकुलर तत्व' हिंसा भड़काने पर आमादा

Pawan Saxena

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महाभारत से पहले कृष्ण भी गए थे दुर्योधन के दरबार में. यह प्रस्ताव लेकर, कि हम युद्ध नहीं चाहते. तुम पूरा राज्य रखो. पाँडवों को सिर्फ पाँच गाँव दे दो.. दुर्योधन कितना अनरीजनेबल, कितना अन्यायी था. वे पाँडवों को सिर्फ यह दिखाने गए थे, कि देख लो बेटा...युद्ध तो तुमको लड़ना ही होगा...हर हाल में. तुम कितना भी संतोषी हो जाओ, कितना भी चाहो कि घर में चैन से बैठूँ, दुर्योधन तुमसे हर हाल में लड़ेगा ही.
लड़ना या ना लड़ना तुम्हारा ऑप्शन नहीं है...
फिर भी बेचारे अर्जुन को आखिर तक शंका रही...
कृष्ण ने सत्रह अध्याय तक फंडा दिया... फिर भी शंका थी..
ज्यादा अक्ल वालों को ही ज्यादा शंका होती है...
दुर्योधन को कभी शंका नही थी,उसे हमेशा पता था कि उसे युद्ध करना ही है...उसने गणित लगा रखा था.
हिन्दुओं को भी समझ लेना है... conflict होगा या नहीं, यह आपका ऑप्शन नहीं है...
आपने तो पाँच गाँव का प्रोपोजल भी देकर देख लिया...
देश के टुकड़े मंजूर कर लिए, हर बात पर विशेषाधिकार देकर देख लिया. हज के लिए सबसीडी देकर देख ली, उनके लिए अलग नियम कानून बनवा कर देख लिए..
आप चाहे जो कर लीजिए, उनकी माँगें नहीं रुकने वाली. उन्हें सबसे स्वादिष्ट उसी गौमाता का माँस लगेगा जो आपके लिए पवित्र है, उसके बिना उन्हें भयानक कुपोषण हो रहा है. उन्हें सबसे प्यारी वहीं मस्जिदें हैं, जो आपके मंदिरों को तोड़ कर बनी हैं. उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी उसी आवाज से है जो मंदिरों और पूजा-पंडालों से है.
यह माँगें गाय को काटने तक नहीं रुकेंगी...
यह समस्या मंदिरों तक नहीं रहने वाली,
यह आपके घर तक आने वाली है...
आपकी बहू-बेटियों तक जाने वाली है...
आज का तर्क है, तुम्हें गाय इतनी प्यारी है तो सड़कों पर क्यों घूम रही है, हम तो काट कर खाएँगे.
कल कहेंगे, तुम्हारी बेटी की इतनी इज्जत है तो वह घर से क्यों निकलती है, हम तो उठा कर ले जाएँगे.
उन्हें समस्या गाय से नहीं है, तुम्हारे अस्तित्व से है.
तुम जब तक हो, उन्हें कुछ bना कुछ प्रॉब्लम रहेगी.
इसलिए अर्जुन, और डाउट मत पालो...
कृष्ण घंटे भर की क्लास बार-बार नहीं लगाते..देवेश कुमार त्यागी





vyang

अगर मोदी जी 2014 में नहीं आते, तो राहुल के जीजा का अपना खुद का एक राज्य बन गया होता जिसका नाम होता जीजांचल प्रदेश

#अद्वितीय.
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मोदी जी को चैम्पियंस ऑफ द अर्थ अवाॅर्ड मिलने का मजाक वो लोग उड़ा रहे हैं।
जिनके प्रधानमंत्री खुद को ही भारत रत्न दे देते थे।
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दशहरे की इतनी बधाइयाँ मिल चुकी हैं कि
लगता है रावण को मैंने ही मारा था....
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बिना अर्धांगिनी के जरूरी नही आप,,
मोदी,अटल,योगी या कलाम ही बने
पप्पू भी बन सकते हो...?
-अरून शुक्ला
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आजकल बेटिय़ाँ भी बेटो से कम नही है ..........मजाल है घर का कोई काम कर ले l,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
क्या आप....?
मैं कल निकटस्थ मारुती कार शो रुम में गया। वहां उपस्थित कर्मचारियों ने मुझे पानी पिलाया। वातानुकूलित हॉल में आरामदायक सोफा पर बैठाकर मेरा शाब्दिक स्वागत किया।
मैंने उन्हें बताया कि, मैं आपका पुराना ग्राहक हूँ। फिर प्रमाण के रूप में मैंने सन 2007 में उन्ही के शोरूम से लिया हुवा मारुति सुजुकी 800 (स्टैंडर्ड मॉडल) का कोटेशन एवं पक्का बिल भी बताया। उन सभी का आनंद द्विगुणित हो गया।
फिर मैंने उन्हें कहा कि, मुझे एक नई मारुति सुजुकी 800 खरीदनी है। उन्होंने मेरी पसंद का वाहन उपलब्ध है ऐसा कहकर उसकी समस्त विशेषताएं बता दी।
वह गाडी युरो-4 + CNG + A/C + DVD + Sound System + Reverse Camara + अलॉय व्हील्स + एलईडी लैंप्स + पावर स्टेयरिंग + सेंट्रल लॉक आदि सुविधाओं से युक्त थी।
मैंने गाड़ी पसंद करके उसकी कीमत पूछी। उन्होंने कहा यह गाड़ी आपको 04.00 लाख ₹ में मिल जाएगी।
मैंने नाराज होकर उन्हें सन 2007 का उन्ही के शो रूम का कोटेशन बताया, जिसमें गाड़ी की कीमत केवल 1.70 लाख ₹ लिखी हुई थी।
इसपर उन्होंने बताया कि, आपने जब यह गाड़ी खरीदी थी, तब उसमें इनमें से कोई भी आधुनिक सुविधा उपलब्ध नहीं थी।
मैंने कहा :- मुझे इसी पुराने कोटेशन के दाम में दोगे, तो मैं गाड़ी लेने तैयार हूं।
उन्होंने पूछा :- क्या आप पप्पू के मित्र हैं ?
मैंने कहा :- नही तो।
वे बोले :- तो शायद आप यू ट्यूब पर उनके सभी भाषण सुनते हैं ?
मैंने पूछा :- पर आप यह सब कैसे जानते हैं ?
वे बोले :- आपके परममित्र भी 2007 की कीमतों में फुल्ली लोडेड राफेल मांग रहे हैं ना, तभी पूछा।🤣🤣🤣🤣🤣🤣




डाटा बेचकर पैसा बनाता फेसबुक..
दुनिया में तकरीबन 220 करोड़ लोग फेसबुक के एक्टिव यूजर्स हैं, लेकिन ये यूजर्स फेसबुक को एक रुपये का भुगतान नहीं करते. ऐसे में सवाल उठता है कि फेसबुक कंपनी चलाने के लिए पैसा कहां से लाती है. जानते हैं फेसबुक की कमाई का राज
आइडिया बनी कंपनी
होस्टल से कमरे से शुरू हुआ एक छोटा आइडिया आज एक ग्लोबल प्रोजेक्ट बन गया है, दुनिया की लगभग एक चौथाई जनसंख्या आज फेसबुक की रजिस्टर्ड यूजर में शामिल है.रोजाना तकरीबन 200 करोड़ लोग फेसबुक पर लाइक, कमेंट के साथ-साथ तस्वीरें भी डालते हैं.
कंपनी की आय
मोटा-मोटी फेसबुक पर औसतन हर एक यूजर दिन के करीब 42 मिनट बिताता है. पिछले कुछ सालों में कंपनी की कुल आय, तीन गुना तक बढ़ी है और आज की तारीख में इसकी नेट इनकम करीब 1500 करोड़ यूरो तक पहुंच गई है.
मुफ्त सेवायें
अब सवाल है कि जब फेसबुक की सारी सुविधायें यूजर्स के लिए फ्री हैं तो पैसा कहां से आता है. सीधे तौर पर बेशक फेसबुक अपने यूजर्स से पैसा नहीं लेता लेकिन ये यूजर्स के डाटा बेस को इकट्ठा करता है और उन्हें कारोबारी कंपनियों को बेचता है. आपका हर एक क्लिक आपको किसी न किसी कंपनी से जोड़ता है.
डाटा के बदले पैसा
फेसबुक अपने यूजर डाटा बेचकर कंपनियों से पैसे कमाता है. मसलन कई बार आपसे किसी साइट या किसी कंपनी में रजिस्टर होने से पहले पूछा जाता है कि क्या आप बतौर फेसबुक यूजर ही आगे जाना चाहते हैं और अगर आप हां करते हैं तो वह साइट या कंपनी आपकी सारी जानकारी फेसबुक से ले लेती है.
विज्ञापनों का खेल
दूसरा तरीका है विज्ञापन, अपने गौर किया होगा कि आपको अपने पसंदीदा उत्पादों से जुड़े विज्ञापन ही फेसबुक पर नजर आते होंगे. मसलन अगर आपने पसंदीदा जानवर में बिल्ली डाला तो आपके पास बिल्लियों के खाने से लेकर उनके स्वास्थ्य से जुड़े तमाम विज्ञापन आयेंगे
ऑडियंस टारगेटिंग
सारा खेल इन विज्ञापनों की प्लेसिंग का है. इस प्रक्रिया को टारगेटिंग कहते हैं. फेसबुक मानवीय व्यवहार से जुड़ा ये डाटा न सिर्फ कंपनियों को उपलब्ध कराता है बल्कि तमाम राजनीतिक समूहों को भी उपलब्ध कराता है. मसलन ब्रेक्जिट के दौरान उन लोगों की टारगेटिंग की गई थी जो मत्स्य उद्योग से जुड़े हुए हैं.
कौन होता प्रभावित
इन सब के बीच ये अब तक साफ नहीं हुआ है कि कौन किसको कितना प्रभावित कर रहा है और कंपनियों को फेसबुक के साथ विज्ञापन प्रक्रिया में शामिल होकर कितना लाभ मिल रहा है. साथ ही डाटा खरीदने-बेचने की इस प्रक्रिया में कितने पैसे का लेन-देन होता है।
कोई जिम्मेदारी नहीं
फेसबुक किसी डाटा की जिम्मेदारी नहीं लेती और न ही इसकी सत्यता की गारंटी देता हैं. डिजिटल स्पेस की यह कंपनी अब तक दुनिया का पांचवा सबसे कीमती ब्रांड बन गया है. कंपनी ने कई छोटी कंपनियों को खरीद कर बाजार में अपनी एक धाकड़ छवि बना ली है.


#Reuters,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
‘मेक इन इंडिया’ को समर्पित
फिल्म ‘सुई-धागा’!
 2014 में नई सरकार आने के बाद हथकरघा उद्योग में एक नया सूर्य उदय हुआ। प्रधानमंत्री की मेक इन इंडिया योजना के तहत हथकरघा उद्योग के नव उदय के लिए भागीरथी प्रयास किये गए। यशराज फिल्म्स की ‘सुई-धागा’ मेक इन इंडिया अभियान को समर्पित की गई है।
मौजी एक सेठ के यहाँ दर्जी का काम करता है। एक दिन सेठ उसे धक्के मारकर नौकरी से निकाल देता है। ठीक वैसे ही जैसे अंग्रेज़ों ने हमारे फलते-फूलते हथकरघा उद्योग को लात मारकर बाहर कर दिया था। है तो वह कहानी का पात्र  लेकिन देशभर के हथकरघा उद्योग के मजबूर कामगार का ‘प्रतीक’ है।
 कहानी ‘ढाका की मलमल’ से शुरू हुई। ये इतनी महीन होती थी कि आप ढाका की मलमल वाली चादर को एक अंगूठी से निकाल सकते थे। इस मलमल की मांग विश्व के कोने-कोने में हुआ करती थी। ब्रिटिश शासन ने इस उद्योग का गला ही घोंट दिया। उन्होंने सत्ता सँभालते ही हथकरघा उद्योग को बंद करने का निर्णय ले लिया। भारत की कपास ढाका की जगह ब्रिटेन भेजी जाने लगी। वहां से मशीनों का आया सस्ता कपडा स्वीकार कर लिया गया। हमने अंग्रेज़ी कपड़ा पहनना स्वीकार किया और हमारे बुनकर भाइयों को खाने के लाले पड़ने लगे। देश की अधिकांश जनता ये नहीं जानती कि 2015 से ही हर साल के 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने की शुरुआत कर दी गई है।
हमें सिनेमा को ‘लार्जर देन लाइफ’ देखने की लत इतनी भारी पड़ी है कि आम आदमी का किरदार फिल्म में देखते ही हम नाक भौ सिकोड़ लेते हैं। परदे पर साइकिल चलाते आम आदमी की जद्दोज़हद हमारे महंगे कोक और पॉपकॉर्न का लुत्फ़ बिगाड़ देती है। इसमें तो वास्तविकता की पथरीली ज़मीन पर उग आए सपने की कहानी है।
मौजी एक प्रतिभावान दर्जी है। मौजी के दादा सिलाई का काम करते थे मगर आर्थिक हालात बिगड़ने से काम बंद हो गया। इस कारण मौजी और उसके पिता को नौकरी करनी पड़ती है। मौजी की पत्नी उसे खुद का व्यापार करने के लिए प्रेरित करती है। जब मौजी अपनी सिलाई मशीन लेकर बाहर निकलता है तो हालात और बिगड़ते हैं। नौबत यहाँ तक आ जाती है कि मौजी की अपनी सिलाई मशीन भी उससे छीन ली जाती है। विपरीत परिस्थितियों में मौजी और ममता कैसे कामयाब होते हैं, यही सुई धागा की कहानी है। लेखक और निर्देशक शरत कटारिया ने अपनी कहानी के रेशे वास्तविकता के महीन धागों से बुने हैं। इस कहानी में कोई ‘उलटफेर’ नहीं है, कोई ‘ट्विस्ट’ नहीं है। ये आम कहानी है जो सीधी पगडण्डी पर चलकर अपने घर पहुँच जाती है, बिना किसी आडंबर, बिना किसी लाग-लपेट के।
अनुष्का शर्मा ने सामाजिक सरोकार वाली इस फिल्म को अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ दिया है। ममता के चरित्र को उन्होंने इस कदर अपने भीतर ढाला है कि कोई चूक, कोई कसर बाकी नहीं रहती। उनका ‘अंडरप्ले’ कमाल का रहा है। एक गंवई महिला की भूमिका निभाते हुए वे ओवरएक्ट का शिकार नहीं होती। वे आँखों से बोलती हैं। वे चलती हैं तो अनुष्का नहीं ‘ममता’ होती हैं। इस बार अभिनय का राष्ट्रपति पुरस्कार और फिल्म फेयर उन्हें नज़रअंदाज़ कर पाए, ये मुश्किल लगता है।
 एक दर्जी कैंची कैसे पकड़ेगा, मशीन कैसे चलाएगा, कैसे कपडा काटेगा, इसके लिए वरुण धवन ने बाकायदा प्रशिक्षण लिया है। वरुण धवन इस फिल्म में अनुष्का से कुछ पीछे रह गए हैं लेकिन फिर भी प्रभावित करते हैं। मौजी के पिता की भूमिका में रघुवीर यादव कमाल करते हैं। नामित दास और गोविन्द पांडेय ने भी अपने पात्रों  के साथ पूरा न्याय किया है।
निर्देशक शरत कटारिया बधाई के पात्र हैं। उन्होंने ये फिल्म प्रधानमंत्री के महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को समर्पित की है। सुई धागा गहराई से बताती है कि इस देश में एक गरीब आदमी को स्टार्टअप खड़े करने के लिए आग का दरिया पार करना पड़ता है। फिल्म का सकारात्मक पक्ष ये है कि ये बेहद सच्चाई के साथ आम आदमी की कहानी को दर्शक के सामने रखती है। फिल्म देखकर निकले दर्शक अच्छी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। इससे समझ आता है कि फिल्म को दर्शक ने स्वीकार कर लिया है, ख़ास तौर से युवा दर्शकों ने।
सच्चाई के धागों से बुनी ये फिल्म आपको आनंद के निर्मल आनंद में जरूर डूबा देगी। आप न देखें तो भी ये एक बेहतरीन फिल्म है और जबरदस्त ढंग से हिट है।





Friday, 28 September 2018



1669 मे औरंगजेब के हाथों विध्वस्त हो जाने के बाद 1775 तक काशी मे विश्वनाथजी का मन्दिर ही ना रहा।
1775 मे अहिल्या बाई ने ज्ञानव्यापी मस्जिद के बगल मे रहने वाले बहुत ही छोटे से मण्डप मे एक छोटी सी रचना का निर्माण करवाया जिसे आजकल मन्दिर कहा जाता है। 1857 के सैन्य संग्राम मे मुसलमानों ने विश्वेश्वर जी के इस छोटे से मन्दिर पर हरा झण्डा फहराने की कोशिश की थी। उससे अंग्रेजों को ही फायदा पहुंचा था।
अपनी हुकुमत को बनाये रखने के लिये अंग्रेजों ने धार्मिक संतुलन का जो सुत्र अपनाया था, उसी को अधिकार ग्रहण करने वाले भारत के राजकारण के मुखियाओं ने संविधान का पवित्र नियम सा बना डाला।
इससे मुसलमानों को यह तर्क प्रस्तुत करने का अवसर मिल गया कि इससे पहले अपने हाथों विध्वस्त किये गये हिन्दुओं के मन्दिरों के पवित्र स्थानों को वापस हिन्दुओं को नहीं लौटाने का कानूनी हक तथा सविंधान का समर्थन उन्हे प्राप्त हुआ है।

1803 मे लॉर्ड वेलेंशिया नाम के अंग्रेज अफसर ने लिखा था " औरंगजेब की मस्जिद की ऊंची मिनारों को देखने के बाद, मेरे मन मे एक हिन्दु की भावना जगी। मैने विचार किया की आंखों मे व्यथा भर देने वाले इस झगडे को समाप्त करके इस पवित्र नगर के इस स्थल को उसके पुराने मालिकों के हाथों सौंप देना चाहिये।

( जार्ज वैंकाउट वेलेंशिया: Voyage and Travels of Lord Valentia Pt. 1; P.90; London,1811)

मुसलमानों की हुकुमत समाप्त होने के बाद भी तीर्थक्षेत्रों की पौर-सभायें इस यात्रा शुल्क को वसूल करती आ रही हैं। विदेशी हुकुमतों के हाथों ढाये गये इस हीन आचरण को समाप्त करने के बदले,उसको जारी रखते हुये आने वाले स्वदेश के हुकुमत परस्तों की विवेकहीनता के बारे मे क्या कहें ???

---#समाधानblogspot

चित्र ज्ञानवापी मस्जिद में शिव मन्दिर का
भग्नावशेष !!

Wednesday, 26 September 2018



जगदम्बा की पूजा रोकने के भयंकर षडयंत्र....
महाराष्ट्र में हिंदू धर्म के कतिपय विरोधियों ने जिनको हिंदू विरोधी ईसाई मिशनरियों और मुस्लिम समूहों का समर्थन प्राप्त है ,अचानक एक नया प्रयास शुरू हुआ है कि आयुक्त और जिलाधिकारी महोदय को ज्ञापन देकर यह कहा जाए कि महिषासुर हमारे पूर्वज हैं। जगदंबा के द्वारा उनका मर्दन दिखाना हमारी धार्मिक भावनाओं का अपमान है ।
इस विषय में हमने प्रख्यात समाज वैज्ञानिक प्रोफेसर कुसुमलता केडिया जी से बात की तो उनका कहना निम्नांकित है:-
" पूरा विषय यह है कि यह एक बहुत बड़ा ईसाई और इस्लामिक षड्यंत्र है ।क्योंकि वहां देवता और देवी स्त्री रूप में नहीं है और जो डी विंची कोड आया था ,उस में भी यह सत्य वर्णित है कि जो स्त्री शक्ति है, जिसका रेनेसां के बाद यूरोपमें पुनः उदयहुआ और जो पुराने यूरोपमें सर्वमान्य थी ,जिसे चर्च ने नष्टकिया,उसी स्त्री शक्तिके पुनः उत्कर्ष से घबराकर यह स्त्री शक्तिका षडयंत्रपूर्ण विरोध है और उसी स्त्री शक्ति के खंडन का यह इसाई इस्लामिक प्रयास है ।
महिषासुर कोई ऐतिहासिक चरित नहीँ है । वह मिथकीय चरित्र है।वह तो भगवान विष्णु के 2 पार्षद हैं जो शाप वश अवतार लेते हैं और जगदंबा उनका हनन करती है और वह अपने भगवान के पास फिर पहुंच जाते हैं ।
न तो वे किसीके पूर्वज हैं, न कोई उनका वंशज । वंशज पूर्वज होने का कोई सवाल ही नहीं है ।एक पौराणिक गाथा है और अस्मिता का प्रयोजन है बुरी शक्तियों का विनाश सत शक्ति द्वारा।ं चिन्मयी सत शक्तिजगदंबा उनका हनन करती हैं।
इन विरोधियों का यह सीधे-सीधे दो विषय है :एक जगदंबा की पूजा को बाधित करना और दूसरा स्त्रियों के शक्ति रूप होने को खंडित करना । जिसका ही एक लक्ष्य है कि यह जो स्त्रियों के साथ एकदम कच्ची उम्र से लेकर वृद्धा के साथ जो बलात्कार की घटनाएं बढ़ गई है ,वह स्वयं इन दुष्टों पापियों का नाश कर सकती हैं ,इस बात को स्त्रियों के चित्त से हटा देना ।
तो इसका हम स्त्रियां भयंकर विरोध करें कि जगदम्बा की पूजा रोकनेके प्रयास के पीछे यह स्त्री शक्ति विरोधी समूहोंका भयंकर षडयंत्र है।
रामेश्वर मिश्र पंकज
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संयुक्त राष्ट्र का सबसे बड़ा सम्मान मिला है। पीएम मोदी को पर्यावरण के क्षेत्र में अहम फैसलों के लिए यूएन के चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। पर्यावरण के क्षेत्र में यूएन का यह सबसे बड़ा सम्मान है

Monday, 24 September 2018

पाकिस्तान का हाँथ राहुल गांधी और कांग्रेस के साथ ...//
 26-11 को मुम्बई में पाकिस्तान द्वारा किये आतंकी हमले याद है?.जिसमे कसाब  ज़िंदा पकड़ा गया था  उस समय पाकिस्तान ने उस आतंकी हमले में खुद हिन्दुस्तान का हाँथ बताया था . उस समय कांग्रेस ने मुम्बई में हुए आतंकी हमले के पीछे आरएसएस का नाम बताया था .पाकिस्तान के पूर्व गृह मंत्री रहमान मलिक ने.  आतंकी घटना के पीछे भारत का हाँथ बताया था ...आज वही रहमान मलिक भारत से मोदी सरकार की बिदाई चाहता है मलिक ने कहा है कि राहुल गांधी देश के अगले पीएम होंगे, इसलिए उसकी इज्जत करो…और कुछ दिनों पहले पाकिस्तान के पत्रकार मुबाशेर लुकमान ने लिखा भी था, “अगर मोदी 2019 में इंडिया में फिर जीत गया तो फिर हम पाकिस्तानियों के पास कोई काम नहीं बचेगा, और पाकिस्तान कहीं का भी नहीं रहेगा।“2019 में मोदी को हारने के लिए जो लोग इंडिया में मोदी के खिलाफ खड़े हुए हैं, हमें उनकी सभी किस्म की मदद करनी चाहिए, ताकि हम सब मिलकर मोदी को 2019 में हरा सके।”
तारिक पीरजादा ने भी कुछ दिनों पहले कहा था, “मोदी को रोकने के लिए इंडिया में हमें हिंदुओं को जातियों में तोड़ देना होगा।” वह पाकिस्तान और कांग्रेस का कनेक्शन साबित करने को काफी है...अब इस्लामाबाद से हो रहा भारत में चुनाव प्रचार, पाकिस्तानी नेता कर रहे राहुल की तारीफ और बता रहे उन्हें भारत का अगला पीएम....
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"कनाडा" की एक महिला मानवाधिकार कार्यकर्ता लगातार "कनाडा सरकार" को पत्र लिखकर, अफ़गानिस्तान में कैद किए गए तालिबानी और अल-कायदा आतंकवादियों की अमानवीय  हालत, जेलों में उनके साथ बुरे सलूक इत्यादि के बारे में परेशान करती रहती थी…
अन्ततः कनाडा के रक्षा मंत्री ने उस महिला को जवाब में एक पत्र लिखा,
"मोहतरमा, आपको यह जानकर खुशी होगी कि आतंकवादियों के प्रति आपकी मानवीय चिंताओं को देखते हुए सरकार ने निर्णय लिया है कि मोहम्मद बिन मेहमूद नामक आतंकवादी अब आपकी निगरानी में आपके घर पर ही रहेगा, ताकि आप उसके साथ मानवीय एवं उचित व्यवहार कर सकें। सरकार की तरफ़ से मैं आपको सिर्फ़ कुछ दिशानिर्देश देना चाहता हूँ, ताकि आपकी परेशानी कम की जा सके,
1· बिन मेहमूद, एक खतरनाक, हिंसक और पागल किस्म का आतंकवादी है,
लेकिन मुझे उम्मीद है कि आप अपने सद्व्यवहार और मानवाधिकारवादी वचनों से उसे सुधार लेंगी।
2· जो आतंकवादी हम आपकी निगरानी में भेज रहे हैं, वह साबुन, पेंसिल और कीलों का उपयोग करके एक घातक बम बनाने में माहिर है. अतः कृपया आप अपने मानवाधिकार और सदव्यवहार का उपयोग करते हुए अपने घर के कमरों में यह वस्तुएं ना रखें.
3· चूंकि वह अफ़गानिस्तान से आपके यहाँ भेजा जा रहा है, अतः आप और आपकी "बेटी" को अपने ड्रेस-कोड का विशेष खयाल रखना होगा, परन्तु हमें विश्वास है कि आतंकवादी को सुधारने के लिए आप इतना त्याग तो कर ही लेंगी.
कृपया अपनी सुविधानुसार एक तारीख बताएं ताकि उस दिन हम बिन महमूद को आपकी निगरानी में दे सकें और आप मानवाधिकारों सहित उसका पूरा खयाल रख सकें.
उस दिन के बाद से कनाडा सरकार को "मानवाधिकार" सम्बन्धी लेक्चर से भरा, उस महिला का कोई पत्र नहीं मिला।
हिंदुस्तान के कथित मानवाधिकारवादियों को ऐसे ही जवाब की आवश्यकता है
Sanjay Agrawal
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माँ की गुप्त बीमारी,गुप्त इलाज,
गुप्त देश की यात्रा गुप्त रहेगी तो रक्षा सौदे की जानकारी भी 
देशहित में सदा गुप्त ही रहेगी.....
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सोच सोच कर दिमाग खराब हो गया
जब से एक दोस्त ने कहा .... इस देश का क्या हाल होता यदि सोनिया के भी लालू की तरह 12 - 13 बच्चे होते..?
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सारे चोर ...चौकीदार को हटाना चाहते है,
मतलब ....चौकीदार चोरी नही करने दे रहा...ईमानदार है...//
😎😁😁😁😎






Sunday, 23 September 2018

sanskar -nov

21 अक्तूबर1943 को 75 साल पहले
 नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद भारत की पहली  सरकार बनाई थी...

आजाद हिन्द सरकार सिर्फ नाम नहीं था, बल्कि नेताजी के नेतृत्व में इस सरकार द्वारा हर क्षेत्र से जुड़ी योजनाएं बनाई गई थीं। इस सरकार का अपना बैंक था, अपनी मुद्रा थी, अपना डाक टिकट था, अपना गुप्तचर तंत्र था।
आजाद हिंद फौज की 75 वे स्थापना दिवस के मौके पर देश के प्रधान जनसेवक !
आजाद हिंद सेना के बुजुर्ग सैनिक का सम्मान 70 सालो बाद....
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक लाल किले पर दूसरी बार तिरंगा फहराया। दरअसल आज आजाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगांठ थी। आज ही के दिन 21 अक्तूबर1943 को 75 साल पहले नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद भारत की पहली  सरकार बनाई थी। ।
मोदी के संबोधन की खास बातें..........
आजाद हिन्द सरकार सिर्फ नाम नहीं था, बल्कि नेताजी के नेतृत्व में इस सरकार द्वारा हर क्षेत्र से जुड़ी योजनाएं बनाई गई थीं। इस सरकार का अपना बैंक था, अपनी मुद्रा थी, अपना डाक टिकट था, अपना गुप्तचर तंत्र था।
नेताजी का एक ही उद्देश्य था, एक ही मिशन था भारत की आजादी। यही उनकी विचारधारा थी और यही उनका कर्मक्षेत्र था।
आज मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि स्वतंत्र भारत के बाद के दशकों में अगर देश को सुभाष बाबू, सरदार पटेल जैसे व्यक्तित्वों का मार्गदर्शन मिला होता, भारत को देखने के लिए वो विदेशी चश्मा नहीं होता, तो स्थितियां बहुत भिन्न होती।
ये भी दुखद है कि एक परिवार को बड़ा बताने के लिए, देश के अनेक सपूतों, वो चाहें सरदार पटेल हों, बाबा साहेब आंबेडकर हों, उन्हीं की तरह ही, नेताजी के योगदान को भी भुलाने का प्रयास किया गया।
आज मैं उन माता पिता को नमन करता हूं जिन्होंने नेता जी सुभाष चंद्र बोस जैसा सपूत देश को दिया। मैं नतमस्तक हूं उस सैनिकों और परिवारों के आगे जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में खुद को न्योछावर कर दिया।
देश का संतुलित विकास, समाज के प्रत्येक स्तर पर, प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण का अवसर, राष्ट्र की प्रगति में उसकी भूमिका, नेताजी के वृहद विजन का हिस्सा थी।
आज़ादी के लिए जो समर्पित हुए वो उनका सौभाग्य था, हम जैसे लोग जिन्हें ये अवसर नहीं मिला, हमारे पास देश के लिए जीने का, विकास के लिए समर्पित होने का मौका है।
हमारी सैन्य ताकत हमेशा से आत्मरक्षा के लिए रही है और आगे भी रहेगी। हमें कभी किसी दूसरे की भूमि का लालच नहीं रहा, लेकिन भारत की संप्रभुता के लिए जो भी चुनौती बनेगा, उसको दोगुनी ताकत से जवाब मिलेगा।
प्रधानमन्त्री मोदी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की यादो को सम्मान देने के लिए जल्दी ही अंडमान निकोवार की यात्रा पर जायेगे !
,,,,box,,,'आज़ाद हिंद सरकार'  21 अक्टूबर 1943 को बनी थी. उस वक्त 9 देशों की सरकारों ने ,सुभाष चंद्र बोस की सरकार को अपनी मान्यता दी थी . जापान ने 23 अक्टूबर 1943 को आज़ाद हिंद सरकार को मान्यता दी . उसके बाद जर्मनी, फिलीपींस, थाईलैंड, मंचूरिया, और क्रोएशिया ने भी आज़ाद हिंद सरकार को अपनी मान्यता दे दी . सुभाष चंद्र बोस ने बर्मा की राजधानी रंगून को अपना हेडक्वार्टर बनाया,
सुभाष चंद्र बोस, आज़ाद हिंद सरकार के पहले प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री थे . लेफ्टिनेंट कर्नल ए सी चटर्जी आज़ाद हिंद सरकार के वित्त मंत्री थे . एस ए अय्यर आज़ाद हिंद सरकार के प्रचार मंत्री थे . रास बिहारी बोस को आज़ाद हिंद सरकार का सलाहकार बनाया गया था . इस सरकार की स्थापना करते वक्त नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने ये शपथ ली थी कि 'ईश्वर के नाम पर मैं ये पवित्र शपथ लेता हूं कि भारत और उसके 38 करोड़ लोगों को आज़ाद करवाऊँगा'
आज़ाद हिंद सरकार ने ये तय किया था कि तिरंगा झंडा, भारत का राष्ट्रीय ध्वज होगा . विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार रवींद्र नाथ टैगोर का जन-गण-मन भारत का राष्ट्रगान होगा . और लोग एक दूसरे से अभिवादन के लिए जय हिंद का प्रयोग करेंगे !,,,,box,,,
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गोबर के लक्ष्मी गणेश ही *क्यों लायें.?
💝 भारत में 5 ऐसे विशेष *सिद्ध मंदिर* हैं जहां गोबर से बनी छवि की अाराधना की जाती है। एक मंदिर तो *4500 साल पुराना* हैं
💝 पुराणों में गोबर से बनी छवि की आराधना का फल *हजारों सिद्ध मंदिरों में पूजा करने के बराबर* बताया गया है और यह प्रमाण अब कई विदेशी शोद्धकर्ता भी दे चुकें हैं कि गोबर से बनी छवि के सामने किसी भी ध्यान साधना मंत्र सिद्धी पूर्णतया: सिद्ध हो जाती है  इसलिय ही भारत के ये मंदिर सभी वैदिक लोगो के लिय विशेष स्थान रखते हैं।।
💝 वास्तु के अनुसार भी गोबर से बने लक्ष्मी गणेश जी से घर में *लक्ष्मी नारायण का प्रभाव* बना रहता है और समस्त *वास्तु दोष भी समाप्त* हो जाते हैं।
💝 भागवत महा पुराण के अनुसार गोमय गोबर के स्पर्श से *घर मे दरिद्रता प्रवेश नही करती।।*
💝 कानपुर गौशाला अनुसंधान केंद्र के अनुसार गोबर के स्पर्श बने रहने से कोई भी *बैक्टीरिया वायरल घर में प्रवेश नहीं करते* हैं। इसलिय आपने देखा होगा हमारे सभी त्योहारों को गोमय गोबर से जोड़ा गया है।
💝 हर किसी वस्तु का एक औरा होता है तो नागपुर अनुसंधान के अनुसार गोबर से जो तरंगे निकलती वह सभी *नकारात्मकता को सकीरात्मकता मे परिवर्तित करने मे निपुण* है। इसलिय काफी सिद्ध पीठ, काली नजर, काला साया को गोबर के माध्यम से खत्म करतें हैं।।
💝 दीपावली पर माँ लक्ष्मी के साथ करे गौमाता का भी *पूजन*,..क्योंकि समुंद्र मंथन कथा के अनुसार *सुबह के समय गौमाता* और संध्या के समय माँ लक्ष्मी का प्राकाट्य हुआ है। इसलिय दीपावली पूजन संध्या के समय किया जाता है।
💝 वैसे तो लक्ष्मी कहीं नहीं ठहरती पर *गोबर में है लक्ष्मी का स्थाई निवास।पौराणिक कथा के अनुसार जब सभी देवी देवता गौमाता में निवास पा रहे थे तो माँ गंगा और माँ लक्ष्मी को आने में बहुत देर हो गयी। जिससे गोबर गोमूत्र के अलावा उनके लिय कोई स्थान शेष नहीं बचा। इसलिय गौमूत्र में गंगा और गोबर में लक्ष्मी का स्थाई स्थान माना गया है।
💝 गोबर के गणेश~ गोबर गणेश -- गणेश जी का प्राकाट्य भी गोबर से हुआ है आइये जानते है कैसे माँ गौरी पार्वती ने अपने मैल से गणेश जी को बनाया ऐसी कथा कही जाती है। माँ गौ + री अर्थात् गौ जैसी .. गाय सी माँ ने अपने मल(गोबर) से गणेश जी को बनाया। महाराज जी द्वारा इसका सीधा सा तात्पर्य यह दर्शाया गया है कि *गाय के गोबर से माँ पार्वती द्वारा गणेश का प्राक्टय हुआ है।।*
💝 दिवाली भारत में और मनाता चीन हैं क्योंकि हम  *POP* के शास्त्र अनुसार अशुद्ध लक्ष्मी गणेश* घर ले आते हैं क्योंकि वो जरा ज्यादा सुंदर होते हैं भारत की लक्ष्मी को भारत में रहने दीजिए और भारत की हर गौशाला को समृद्ध बनाए*
विशेष:- लक्ष्मी गणेश जी की सेवा, जहां आपके घर लक्ष्मी संग गणेशजी भी आ रहे और गौसेवा के माध्यम से 33 कोटी देव गौमाता जी की कृपा भी घर आंगन बरस रही। Gift Pack, धार्मिक आयोजन प्रतीक चिन्ह , विवाह, पूजा, शुभ मुहूर्त उदधाटन आदि में भी गोबर से बनी छवि उपयोग करें*,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जहां प्रवेश मात्र से तत्क्षण पाप का नाश हो
 उस प्रयागराज का इतिहास..!
“प्रयागस्य प्रवेशाद्धै पापं नश्यति: तत्क्षणात्” अर्थात प्रयाग में प्रवेश मात्र से तत्क्षण सभी पापों का नाश हो जाता है। तभी तो इसे तीर्थों का राजा प्रयागराज कहा जाता है।
*...box.... अल्लाह का घर बनाने के लिए ही मुगल बादशाह अकबर ने 1575 में प्रयाग का नाम बदलकर इलाहाबास किया था... मुगलों की बादशाहत खत्म होते ही अंग्रेज शासकों ने प्रयाग का नाम इलाहाबास से बदल कर इलाहाबाद कर दिया... करीब तीन सौ साल पहले नाम बदले जाने के बावजूद लोगों के हृदय में प्रयाग नाम ही अंकित रहा .....box.....
जगत की रचना करने वाले ब्रह्मा की प्रथम यज्ञस्थली के रूप में आकार लेने वाले प्रयाग का सरकारी नाम समय-समय पर जो भी रखा गया हो लेकिन लोगों की जेहन में प्रयाग उसी रूप में बसा रहा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोगों के हृदय में अंकित प्रयाग का नाम सरकारी दस्तावेज में चढ़ाया है।
सरकारी दस्तावेज में प्रयागराज का नाम अंकित करना कोई छोटी बात नहीं है, इसके लिए आंतरिक सामर्थ्य चाहिए। देश के कई ऐसे शहर हैं जिसे बड़े-बड़े हिंदू हृदय सम्राट कहे जाने वालों को नाम बदलने की हिम्मत तक नहीं हो पायी, लेकिन योग आदित्यनाथ ने अपने दो साल के कार्यकाल के दौरान न सिर्फ मुगलसराय का नाम बदल कर पंडित दीनदयाल उपाध्याय किया बल्कि मदन मोहन मालवीय के समय से इलाहाबाद का नाम बदलने की मांग को साकार करते हुए उसे प्रयागराज कर दिया। जबकि बाला साहेब ठाकरे जैसे हिंदू हृदय सम्राट कहे जाने वाले बाला साहब ठाकरे भी अपने राज्य में औरंगाबाद को संभाजी नहीं कर पाए।
।प्रयागराज  वही सिद्ध नगरी है जहां के जल से देश-विदेश के राजाओं का अभिषेक हुआ करता था। यह पुराने समय में कोशल और अवध की राजधानी रही है। लेकिन मुगल आक्रांताओं ने इस विशेष नगरी प्रयागराज की आध्यात्मिकता और पौराणिकता पर हमला किया। 
 1575 में प्रयाग को सामरिक दृष्टि के साथ ही धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानकर मुगल बादशाह अकबर ने इसका नाम बदल दिया। उन्होंने इस नगरी को अपने अल्लाह का बास (घर) बनाना चाहता था। इसलिए उसने प्रयाग का नाम बदल कर इलाहाबास कर दिया। जिसका मतलब होता है जो अल्लाह का बास हो। इसलिए उन्होंने यहां एक किला भी बनवाया जो अकबर का सबसे बड़ा किला माना जाता है। लेकिन मुगलों की बादशाहत खत्म होने बाद 1858 में अंग्रेज शासक ने प्रयागराज का नाम को इलाहाबास से बदल कर इलाहाबाद कर दिया। तथा इसे आगरा-अवध संयुक्त प्रांत की राजधानी भी बना दिया।
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 बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक...काशी विश्वनाथ
यह मंदिर पिछले कई हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्‍वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्‍ट स्‍थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्‍वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं। यहि पर सन्त एकनाथ जी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्री एकनाथी भागवत लिखकर पुरा किया और काशी नरेश तथा विद्वतजनो द्वारा उस ग्रन्थ कि हाथी पर से शोभायात्रा खुब धुम-धाम से निकाली गयी।महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है। 
बाबा विश्वनाथ जी क मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थापित सबसे प्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों में से एक है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर बना हुआ है और साथ ही भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहाँ भगवान शिव की मुख्य प्रतिमा को विश्वनाथ का नाम दिया गया है, जिसका अर्थ ब्रह्माण्ड के शासक से होता है।

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालम्ॐकारममलेश्वरम्॥१॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमाशंकरम्।
सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥२॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारम् घुश्मेशं च शिवालये॥३॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥४॥
ज्योतिर्लिंग में ही भगवान शिव की आधा सच छुपा हुआ है, जिसे वे प्रकट भी हुए थे। सूत्रों के अनुसार शिव के 64 प्रकार है, लेकिन आपको ज्योतिर्लिंग के बारे में सोचकर ज्यादा विचलित होने की कोई जरुरत नही है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से सभी ज्योतिर्लिंग का अपना एक अलग नाम है।लेकिन भगवान के शिव के सभी ज्योतिर्लिंगों में उनका एक लिंग जरुर होता है जो उनके अनंत रूप को दर्शाता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग गुजरात के सोमनाथ, आंध्रप्रदेश के मल्लिकार्जुन, मध्यप्रदेश के उज्जैन के महाकालेश्वर, मध्यप्रदेश के ओम्कारेश्वर, हिमालय के केदारनाथ, महाराष्ट्र के भिमशंकर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी के विश्वनाथ, महाराष्ट्र के त्रिंबकेश्वर, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, देवघर के देवगढ़, झारखण्ड, गुजरात के द्वारका के नागेश्वर, तमिलनाडु के रामेश्वरम के रामेश्वर और महाराष्ट्र के औरंगाबाद के ग्रिश्नेश्वर में है। काशी विश्वनाथ के मंदिर के पास गंगा नदी के किनारे पर बने मणिकर्णिका घाट को शक्ति पीठ के नाम से भी जाना जाता है, वहाँ लोग उर्जा पाने के लिए भी भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते है। कहा जाता है की सती देवी की मृत्यु के बाद भगवान शिव मणिकर्णिका से होते हुए ही काशी विश्वनाथ आए थे।

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32 साल की पैरा एथलीट #श्वेता_शर्मा की कमर के नीचे का हिस्सा बेजान (Paralysis) हैं। 3 साल पहले तक कभी खेलने की कोशिश भी नहीं की थी। अब उनके नाम 14 मेडल हैं। वे एशियन पैरा गेम्स की तैयारी में हैं। ये खेल 8 अक्टूबर से इंडोनेशिया के जकार्ता में चल रहे हैं
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देशभक्ती
जापान से लोटे एक भारतीय ने जापान के नागरीक की एक दिल छु देनी वाली कहानी बताई थी....
एक दिन जब अपना भारतीय भाई जापान के ट्रेन में ओसाका की ओर सफर कर रहा था तो उसने अपने बगल में बेठे जापानी को कुछ करता देख उत्सुकता से पुछा के क्या कर रहे हो ,तो उस जापानी ने जवाब दिया के में एक टेयलर हु ओर मेरी बेठने वाली सीट थोड़ी सी फटी थी जिसे सी रहा हु, इसपर भारतीय बोला के यह काम तो सरकार का हे जिसपर उस जापानी ने मुस्कुराते हुये कहा की जापान का हर नागरिक सरकार हे ओर हम अपने सरकारी चीजों का उतना ही ख्याल रखते हैं। जितना के अपने घर के चीजों का, यह जवाब सुन कर अपने भाई को ऎसा लगा जेसे किसी ने जोर से गाल पे तमाचा मारा हो.......
पिछले दिनों जब यह खबर सुनी के अपने देश में अपने लोगों ने अपने ही रेलवे के लाखों चीजें को चुराया था तो दिल बहुत दुखित हुआ के केसे कोई अपने ही घर में अपनी ही चीजें चुरा सकता हे.....
देशभक्ति का अर्थ सिर्फ देश की जयजयकार करने में ही नहीं बल्कि देश की सम्पति की सुरक्षा में भी हे, देश विकसित होता हे उसके नागरिकों न के सरकार या फिर सरकारी नीतियों से, जो देश विकसित नहीं हुआ उसका पहला कारण उसका नागरिक हे...


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राम-मंदिर बनने से पहले "राममय हो रही है अयोध्या"
दीपावली से पहले अयोध्या नगर निगम की पहल पर देशभर के चित्रकार राम नगरी की दीवारों में रामायण के विभिन्न प्रसंगों से भगवान राम के जीवन के विषय का चित्रण कर त्रेतायुग को जीवंत करने में जुट गए हैं।
अयोध्या मेयर ऋषिकेश उपाध्याय ने कहा, 'बाहरी पर्यटक रामायण कालीन समय की अनुभूति कर सकें इसलिए यह प्रतियोगिता आयोजित की गई है और आने वाले वर्ष में इस प्रतियोगिता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया जाएगा।'
तीन दिवसीय कला महोत्सव कार्यक्रम में देश से सैकड़ों चित्रकार प्रतियोगिता में हिस्सा लेने पहुंचे। सफल आयोजन के लिए शुक्रवार को बिड़ला धर्मशाला में सांस्कृतिक आयोजनों के बीच कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि रामवल्लभा कुंज के अधिकारी राजकुमार दास, विशिष्ट अतिथि मेयर ऋषिकेश उपाध्याय और पुजारी रामदास समेत कई अन्य लोग मौजूद रहे।
 'तीन दिनों में देश के 10 राज्यों के 150 चित्रकार अयोध्या की 100 दीवारों पर रामायण के आठ खंड... बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, सुंदरकांड, अयोध्याकांड, उत्तरकांड, लवकुशकांड एवं राम दरबार के विभिन्न प्रसंग दीवार पर उकेरेंगे।यह चित्रण सरयू घाट, नया घाट, राम घाट, राम जन्मभूमि कार्यशाला, बिड़ला धर्मशाला, हनुमानगढ़ी, कनक भवन समेत कई अन्य जगहों पर किया जा रहा है।'
राम जन्मभूमि यानी अयोध्या में यह आयोजन युवा फाउंडेशन, आरोहनम, आईआईपी फाउंडेशन और नगर निगम अयोध्या द्वारा किया गया है। रामायण थीम पर चित्र बनाने वाले स्कूली छात्रों को भी इसके लिए पुरस्कृत किया जाएगा
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*चंदखुरी ..जहाँ लक्ष्मण की जान बचाने वाले वैद्य ने त्यागे थे प्राण
 रामायण के अनुसार सुषेण वैद्य लंका के राजा राक्षस-राज रावण का राजवैद्य था। जब रावण के पुत्र मेघनाद के साथ हुए भीषण युद्ध में लक्ष्मण मूर्छित हो गए, तब सुषेण वैद्य ने ही लक्ष्मण की चिकित्सा की थी। उसके यह कहने पर कि मात्र संजीवनी बूटी के प्रयोग से ही लक्ष्मण के प्राण बचाए जा सकते हैं, राम भक्त हनुमान ने वह बूटी लाकर दी और लक्ष्मण के प्राण बचाए जा सका। 
कहा जाता है कि लंका से भगवान राम के साथ सुषेण वैद्य भी आए थे और यहां चंदखुरी में उन्होने बहुत दिनों तक निवास किया था, औषधियों का विस्तार किया था....आज भी चंदखुरी में बहुत से औषधीय पौधे मिलते हैं।सुषैण वैद्य ने यहीं प्राण त्यागा था।
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अंग्रेज़ो ने हर चीज को खुद के नाम से पेटेंट कराने की कोशिश की...और कई में वो कामयाब भी हुए:

माउंट एवेरेस्ट का नाम सागरमाथा था लेकिन एवेरेस्ट नाम के फिरंगी ने उसे अपना नाम दे दिया.. क्योंकि हिमालय पर्वत आज जिस जगह पर है वहां कभी अरबो साल पहले एक महासागर था..बाद में वही महासागर जमने लगा और उसी से हिमालय पर्वत बना..इसीलिए सागर+माथा(मथना) ,यानि सागरमाथा नाम पड़ा...और एवेरेस्ट हिमालय की ही पर्वत श्रृंखला है तो नेपाल के लोग उसको सागरमाथा कहते थे...

मगर फिरंगी अपनी अधिपत्य जमाने की निति से बाज नहीं आना चाहते थे...
रामसेतु को मेकाले ने एडम ब्रिज नाम दिया ..ये कहते हुए की एडम भारत से श्री लंका इसी पुल से गया था... अब ईसाईयो का एडम भारत में कब आया भाई?? वो रामसेतु तो हु बहु वैसा ही बना है जैसा रामायण में जिक्र था..रामेश्वर शिवलिंग से थोड़ी दूरी पर स्थित है रामसेतु..रामेश्वरम की स्थापना भगवान राम ने की थी युद्ध के पहले....उसके बाद रामसेतु बनाया था..
फिर इसको एडम ब्रिज क्यों बोलने लगे फिरंगी...??
जगदीश चंद बोस एक वैज्ञानिक थे जिन्होंने वेदों में पढ़ा था की पेड़ पौधे जीवित होते है..लेकिन फिरंगी माने ही नहीं. बाद में जब जगदीश बोस ने साबित करने की कोशिश की तो चालाक फिरंगियो ने इंजेक्शन ही बदल दिया था..गुस्से में आकर वो इंजेक्शन जगदीश बोस ने खुद को लगा लिया था.. ये बात 11th क्लास में बायोलॉजी के स्टूडेंट को बताई जाती है जो बोटनी पढ़ते है...
ऐसे कई अविष्कारों को फिरंगियो ने खुद के नाम से पेटेंट करवा लिया जबकि उनकी खोज भारत के ऋषि मुनियो ने की थी..
इस देश का दुर्भाग्य है देश में आज भी शिक्षा पद्वति इन फिरंगियो की चल रही है।
फिरंगी यानी झूठे / मक्कार / धोखेबाज़ / चालाक / बलात्कारी / भ्रष्टाचारी / स्वार्थी / हत्यारे / लफंगे जितनी भी इनकी तारीफ की जाएं कम है।आज यही ज्ञान भारत की नई पीढ़ी को मिल रहा है।

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चम्‍बल की ऐतिहासिक पुरा सम्‍पदा-
-दुर्लभ चौसठ योगनी शिव मंदिर !!

यह भी सुविख्‍यात तथ्‍य है कि भारत की संसद का डिजायन इसी मंदिर की अनुकृति कर बनाया गया है ।
म.प्र. के मुरैना जिला में मितावली नामक स्‍थान पर स्थित विश्‍वविख्‍यात चौंसठ योगिनी और विशाल शिव मन्दिर का अदभुत व विहंगम दृश्‍य !

यह मंदिर जहॉं सदियों पुराना होकर चम्‍बल के ऐतिहासिक वैभव और महत्‍व का प्रतीक है वहीं,तंत्र की दृष्टि से भी यह अपने आप में एकमात्र व दुर्लभ एवं विलक्षण तंत्र साधना स्‍थल है,जहॉं शिव व शक्ति से संबंधित तथा अन्‍य तंत्र महाग्रन्‍थों में जैसे शाक्‍त प्रमोद, तंत्र महार्णव, तंत्र महौदधि आदि में वर्णित तंत्र साधनायें व/क्रियायें यहीं सम्‍पन्‍न की जा सकतीं हैं ।
यह मंदिर 64 योगिनी को समर्पित है जो देवी माँ के रूप है। यह मंदिर कई तरह से अद्वितीय है। स्थानीय ग्रेनाइट से बना यह एकमात्र मंदिर है। इस मंदिर का डिज़ाइन साधारण और बिना किसी सजावट के है। इसकी दीवारों पर खजुराहो के मंदिरों की तरह नक्काशी की कमी है।

इस मंदिर में 67 तीर्थ हैं जिनमें से 64 प्रत्येक योगिनी के निवास स्थान के रूप में उपयोग किया जाते हैं। एक बड़ा मंदिर महिषासुर मर्दिनि के रूप में देवी दुर्गा को समर्पित है। बाकी मंदिर मैत्रिका ब्राह्मणी और महेश्वरी के लिए है। यह भारत का सबसे पुराना योगिनी मंदिर है। यह मंदिर क्षत्रिय राजपूत राजाओं (महाभारत कालीन- कतिपय किंवदन्‍तीवश त्रेतायुग का)द्वारा निर्मित है।

इकंतेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर कभी तांत्रिक अनुष्ठान के लिए जाना जाता था। इसलिए इसे तांत्रिक विश्वविद्यालय भी कहते हैं। इस विश्वविद्यालय में न तो कोई प्रोफेसर है और न ही कोई स्टूडेंट। इसके बाद भी यहां लोग तांत्रिक कर्मकांड के लिए अक्सर रात में आते हैं।
करीब 1200 साल पहले 9वीं सदी (वर्ष 801 से 900 के बीच) में प्रतिहार वंश के राजाओं द्वारा बनाए गए इस मंदिर में 101 खंबे और 64 कमरों में एक-एक शिवलिंग है। मंदिर के मुख्य परिसर में भी एक बड़ा शिवलिंग स्थापित है।मंदिर के हर कमरे में शिवलिंग के साथ देवी योगिनी की मूर्ति साथ थी, लेकिन अब ये योगिनियां वहां न होते हुए दिल्ली के संग्रहालय में सुरक्षित खी हैं। इसी आधार पर इसका नाम चौसठ योगिनी मंदिर पड़ा।

पिछले कुछ वर्षों से यहां टूरिस्टों की तेजी से बढ़ोतरी हुई है। यह भी सुविख्‍यात तथ्‍य है कि भारत की संसद का डिजायन इसी मंदिर की अनुकृति कर बनाया गया है।

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खल्लारी का पुरातात्विक वैभव 
खल्लारी मध्य एवं उत्तर भारत का एकमात्र स्थल है जहाँ एक चर्मकार द्वारा भगवान् विष्णु का बनाया गया मंदिर विद्यमान है | वर्तमान में जिस मंदिर को " जगन्नाथ मंदिर " कहा जाता है उसे देवपाल चर्मकार ने लगभग 600 वर्ष पूर्व १४ सदी में बनवाया था | कहा जाता है कि इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर कलचुरी राजा हरि ब्रह्मदेव स्वयं उपस्थित थे और उनके पुरोहित दामोदर मिश्र ने देवपाल के तीन पीढ़ियों का यशोगान लिखा था, जो शिलालेख के रूप में आज भी महंत घासीदास संग्रहालय में सुरक्षित है |
तब खल्लारी कलचुरी राजाओं की राजधानी थी और खल्वाटिका के नाम से जाना जाता था | उस मंदिर के नारायण भगवान ( विष्णु ) की प्रतिमा कहाँ गया ? यह अज्ञात है लेकिन अब उसके स्थान पर भगवान् जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्ति विराजमान है |
बस्ती के निकट की पहाड़ी स्थित खल्लारी माता मंदिर को सुअरमार के जमींदार सन्मान सिंह ने लगभग २०० वर्ष पूर्व बनवाया था जो अब अधिक चर्चित है |
खल्वाटिका का नाम कब और क्यों खल्लारी हुआ था ? यह शोध का विषय है


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इजरायल की कुछ खासियतें
 जो शायद आप नहीं जानते हैं –

• इजरायल मिडल-ईस्ट का एकमात्र लोकतांत्रिक देश है.
• इजरायल की आधिकारिक भाषा तीन हैं – हिब्रू, अंग्रेजी और अरबी.
• इजरायल यूरोविजन सॉन्ग कॉन्टेस्ट 3 बार जीत चुका है.
• इजरायल के पास दुनिया में प्रति व्यक्ति बड़ी केंद्रीकृत हाई-टेक कंपनियां हैं.
• दुनिया में प्रति व्यक्ति नई किताबें प्रकाशित करने में इजरायल का स्थान दूसरा है.
• एनएएसडीएक्यू से जुड़ी कंपनियों की संख्या को लेकर इजरायल का अमेरिका के बाद दूसरा स्थान है.
• दुनिया में प्रति व्यक्ति अधिक संख्या में साइंटिफिक आर्टिकल्स प्रकाशित करने में इजरायल सबसे आगे है.
• इंटेल प्लैटिनम प्रोसेसर को इजरायल में डिवेलप किया गया.
• इजरायल का आकार लगभग मिजोरम के समान है.
• दुनिया के किसी भी देश की तुलना में इजरायल के पास प्रति व्यक्ति म्यूजियम की संख्या सबसे अधिक है.
• दुनिया में प्रति व्यक्ति पेटेंट कराने वालों में इजरायलियों का स्थान पहला है.
• हाइफा में मोटोरोला का सबसे बड़ा रिसर्च सेंटर है. यहां पहले सेल्युलर फोन का विकास भी हुआ था.
• दुनिया में किसी भी देश की तुलना में प्रति व्यक्ति इंजीनियर और साइंटिस्ट की संख्या इजरालय में सबसे अधिक है.
• माइक्रोसॉफ्ट ने माइक्रोसॉफ्ट विंडो एक्सपी को इजरायल डिवेलपमेंट सेंटर में विकसित किया था.
• पहला एंटी-वायरस सॉफ्टवेयर साल 1979 में इजरायल में डिवेलप किया गया था.
• इजरायल की फॉर्मास्युटिकल कंपनी टीईवीए दुनिया की 20 सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है.
• पूरी दुनिया में संकट की घड़ियों में इजरायल कई बार मानवीय सहायता भेज चुका है. जैसे, तुर्की का ट्रेन हादसा, भारत में सुनामी, हैती भूकंप, पेरु भूंकप आदि.
• मृत सागर पृथ्वी पर सबसे निचला स्थान है. इस सागर में औषधिय तत्व पाए जाते हैं.
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 भोजन में विज्ञान  का घमंड और अंधविश्वास

विज्ञान नामक मजहब के घमंड भरे अंधविश्वासों के बारे में एक पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है
 संक्षेप में सिर्फ चार मामूली उदाहरण
1. भोजन में वसा की मात्रा
 भोजन में वसा की मात्रा और बीमारी के सम्बंध के बारे में पचास वर्षों से दुनिया भर को दी गई ”वैज्ञानिक” सलाह का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। फिर भी दुनिया भर की वैज्ञानिक संस्थाओं ने बिना किसी ठोस evidence के इस बात का प्रचार gospel truth की तरह किया। जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी भक्त डॉक्टरों ने पूरे भक्तिभाव से क़ुरान और बाइबिल की तरह रटा और जनता तक पहुंचाया और जनता ने आदर्श धर्मावलम्बियों की तरह आँख मूँद कर स्वीकार किया।
 नतीजा यह हुआ कि लोगों ने भोजन में वसा की मात्रा कम कर उसकी जगह कार्बोहाइड्रेट अधिक खाना शुरु किया। ग़ौर करने की बात है कि भोजन में कैलोरी के तीन ही स्रोत हैं : वसा, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन।
ज़ाहिर सी बात है कि यदि इनमें से एक की मात्रा कम की जाएगी तो उसकी भरपाई कहीं और से होगी, आदमी भूखा तो रहेगा नहीं। तो बस यही हुआ। दुनिया भर के बाजार कम वसा पर चीनी और नमक से लदी पैकेज्ड खाद्य सामग्रियों से लद गए।
अब विज्ञान का कहना है कि दुनिया भर में मोटापे, मोटापे से सम्बंधित दूसरी बीमारियाँ, कैंसर और मधुमेह की महामारी का कारण पचास वर्षों से विज्ञान के नाम पर फैलाया गया अंधविश्वास है जिसके कारण लोगों ने भोजन में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ा दी।
2. मदिरापान की मात्रा
पचास वर्षों से बिना किसी ठोस आधार के “वैज्ञानिक“ सलाह दी जा रही है कि थोड़ी मात्रा में किए गए मदिरा के सेवन के बहुत सारे स्वास्थ्यवर्धक परिणाम हैं। पर अब कहा जा रहा है कि मदिरा पीने की कोई सुरक्षित न्यूनतम सीमा नहीं है। मदिरापान की मात्रा और कैंसर का सम्बंध linear है और कोई न्यूनतम फायदेमंद या सुरक्षित तक cut off स्तर नहीं है।
3. शिशु को पेट के बल सुलाना
कोई पैंतीस वर्ष पूर्व दुनिया भर के शिशु रोग के पंडितों और उनकी संस्थाओं ने cot death को शिशु के पीठ के बल सोने से जोड़ा – बिना किसी पक्के सबूत के। माँ बाप को कहा गया कि बच्चे को पेट के बल सुलाएँ । यहां तक कि यदि माँ बाप ने यह सलाह नहीं मानी और शिशु की मृत्यु हुई तो माँ बाप को क़रीब क़रीब इसके लिए उत्तरदायी ठहराया गया और उनके अंदर जीवन पर्यंत पापबोध भर दिया गया। अब वही धुरंधर विशेषज्ञ अब ठीक उल्टी बात कर रहे हैं – यानी कि शिशु को पेट के बल सुलाना ख़तरनाक है!
4. रासायनिक खाद
रासायनिक खाद का दुनिया भर में ज़ोर शोर से विज्ञान के नाम पर प्रचार हुआ। मुझे याद है कि मेरे बचपन मे यदि कोई अनपढ़ किसान कहता कि रासायनिक खाद के इस्तेमाल से धरती बंजर हो जाएगी, तो उसे मूर्ख समझ कर उसका मज़ाक़ उड़ाया जाता था। और अब! अब पता चला कि वह अनपढ़ किसान सही था और ये कृषि वैज्ञानिक विज्ञान के मज़हब का अंधविश्वास फैला रहे थे।
यहां विस्तार से बात रखने की जगह नहीं है पर बताता चलूँ कि जिस मक्खन और घी को इतनी गालियाँ दी गईं और मार्जरीन वगैरह से बाज़ार पाट दिया गया, वह भी विज्ञान के मज़हब के अंधविश्वास का नमूना है। डालडा और मार्जरीन ने न जाने कितने लोगों को दिल के दौरे और पक्षाघात से मार दिया। अब उनका धंधा बंद होगा और मक्खन वापस आएगा।
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गुड़मार


गुड़मार को मधुनाशनी,अजश्रंगी,मेड़ासिंगी, कावकी, शिरुकुरूज आदि नामों से जाना जाता हैं..... इसकी पत्तियों को चबाने से जीभ की स्वाद ग्रहणशक्ति नष्ट हो जाती हैं जिससे एक दो घण्टे तक मधुर या तित्त का स्वाद मालूम नही पड़ता,इसी कारण इसे गुड़मार या मधुनाशनी कहते है....गुड़मार एक औषधीय लता है...यह बहुमूल्य औषधीय पौधों में शुमार है...गुड़मार कि शाखाओं पर सूक्ष्म रोंये पाए जाते है..पत्ते अभिमुखी मृदुरोमेंश आगे कि तरफ नोकिले होते है..अगस्त-सितंबर के महीने में इस पर पीले रंग के गुच्छेनुमा फूल लगते हैं.. इस पर उगने वाले फल लगभग 2 इंच लंबे और कठोर होते है... इसके अंदर बीजों के साथ रुई लगी होती है तथा बीज छोटे काले-भूरे रंग के होते हैं...।
औषधीय लाभ:
गुड़मार कि पत्तियों का उपयोग मुख्य रुप से मधुमेह नियंत्रण,औषधियों के निर्माण में किया जाता है... इसके सेवन से रक्तगत शर्करा कि मात्रा कम हो जाती है साथ ही पेशाब में शर्करा का आना स्वंय ही बंद हो जाता है... गुड़मार कि जड़ को पीसकर या काढ़ा पिलाने से सर्परोग से लाभ मिलता है...पत्ती या छाल का रस पेट के कीड़े मारने में काम आता है..गुड़मार यकृत को उत्तेजित करता है और प्रत्यक्ष रुप से अग्नाशय कि इनसूलिन स्‍त्राव करने वाली ग्रंथियो कि सहायता करता है...जड़ो का इस्तेमाल हृद्य रोग,पुराने ज्वर,वात रोग तथा सफेद दाग के उपचार हेतु किया जाता है...।






लाजवंती ( छुई-मुई )


बच्चों का अति प्रिय पौधा छुई-मुई कोई साधरण पौधा नही...इसकी जड़ों से लेकर बीज,पत्तियाँ,फूल सभी का औषधीय उपयोग होता आया है .......छुई मुई पुरे भारत वर्ष में आसानी से मिल जाती हैं..... नमी वाली जगह छुई मुई के लिए अधिक उपयुक्त होती है.... इस पर सुंदर गुलाबी फूल लगते है .....छुईमुई की पत्तियों को आप जैसे छुएंगे वैसे ही इसकी पत्तियां शर्माकर सिकुड़ने लगती हैं .....इसकी इसी ख़ूबी के कारण इसे लाजवंती, लजौली, शर्मीली या छुईमुई भी कहकर पुकारते हैं।


#औषधीय_उपयोग.....

एक शोध के अनुसार छुई-मुई की पत्तियों और जड़ों में एंटीवायरल और एंटीफंगल गुण होने के कारण यह कई रोगों से लड़ने में सक्षम है.......खांसी होने पर इसके जड़ के टुकड़ों के माला बना कर गले में पहन ले..जड़ के टुकड़े त्वचा को छूते रहें,बस इतने भर से खांसी व गला ठीक हो जाता है ..... इसकी जड़ चूसने से खांसी ठीक होती है .....व पत्तियां चबाने से भी गले में आराम आता है .........#मधुमेह के रोगियों को छुई-मुई का काढ़ा पिलाने से आराम मिलता है........... नपुंसकता व शारीरिक कमजोरी में इसका सेवन काफी लाभप्रद हैं…यदि किसी को घाव हो जाए तो छुई मुई की जड़ का 2 ग्राम चूर्ण दिन में तीन बार गुनगुने पानी के साथ पीने से घाव जल्दी भरने लगता हैं.......#टॉन्सिल्स की समस्या होने पर छुई मुई की पतियों को पीस कर दिन में दो बार गले पर लगाने से तुरंत राहत मिलता है...।