बाबा विश्वनाथ जी क मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थापित सबसे प्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों में से एक है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर बना हुआ है और साथ ही भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहाँ भगवान शिव की मुख्य प्रतिमा को विश्वनाथ का नाम दिया गया है, जिसका अर्थ ब्रह्माण्ड के शासक से होता है।
ज्योतिर्लिंग में ही भगवान शिव की आधा सच छुपा हुआ है, जिसे वे प्रकट भी हुए थे। सूत्रों के अनुसार शिव के 64 प्रकार है, लेकिन आपको ज्योतिर्लिंग के बारे में सोचकर ज्यादा विचलित होने की कोई जरुरत नही है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से सभी ज्योतिर्लिंग का अपना एक अलग नाम है।लेकिन भगवान के शिव के सभी ज्योतिर्लिंगों में उनका एक लिंग जरुर होता है जो उनके अनंत रूप को दर्शाता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग गुजरात के सोमनाथ, आंध्रप्रदेश के मल्लिकार्जुन, मध्यप्रदेश के उज्जैन के महाकालेश्वर, मध्यप्रदेश के ओम्कारेश्वर, हिमालय के केदारनाथ, महाराष्ट्र के भिमशंकर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी के विश्वनाथ, महाराष्ट्र के त्रिंबकेश्वर, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, देवघर के देवगढ़, झारखण्ड, गुजरात के द्वारका के नागेश्वर, तमिलनाडु के रामेश्वरम के रामेश्वर और महाराष्ट्र के औरंगाबाद के ग्रिश्नेश्वर में है। काशी विश्वनाथ के मंदिर के पास गंगा नदी के किनारे पर बने मणिकर्णिका घाट को शक्ति पीठ के नाम से भी जाना जाता है, वहाँ लोग उर्जा पाने के लिए भी भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते है। कहा जाता है की सती देवी की मृत्यु के बाद भगवान शिव मणिकर्णिका से होते हुए ही काशी विश्वनाथ आए थे।
=========================
32 साल की पैरा एथलीट #श्वेता_शर्मा की कमर के नीचे का हिस्सा बेजान (Paralysis) हैं। 3 साल पहले तक कभी खेलने की कोशिश भी नहीं की थी। अब उनके नाम 14 मेडल हैं। वे एशियन पैरा गेम्स की तैयारी में हैं। ये खेल 8 अक्टूबर से इंडोनेशिया के जकार्ता में चल रहे हैं
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
देशभक्ती
जापान से लोटे एक भारतीय ने जापान के नागरीक की एक दिल छु देनी वाली कहानी बताई थी....
एक दिन जब अपना भारतीय भाई जापान के ट्रेन में ओसाका की ओर सफर कर रहा था तो उसने अपने बगल में बेठे जापानी को कुछ करता देख उत्सुकता से पुछा के क्या कर रहे हो ,तो उस जापानी ने जवाब दिया के में एक टेयलर हु ओर मेरी बेठने वाली सीट थोड़ी सी फटी थी जिसे सी रहा हु, इसपर भारतीय बोला के यह काम तो सरकार का हे जिसपर उस जापानी ने मुस्कुराते हुये कहा की जापान का हर नागरिक सरकार हे ओर हम अपने सरकारी चीजों का उतना ही ख्याल रखते हैं। जितना के अपने घर के चीजों का, यह जवाब सुन कर अपने भाई को ऎसा लगा जेसे किसी ने जोर से गाल पे तमाचा मारा हो.......
पिछले दिनों जब यह खबर सुनी के अपने देश में अपने लोगों ने अपने ही रेलवे के लाखों चीजें को चुराया था तो दिल बहुत दुखित हुआ के केसे कोई अपने ही घर में अपनी ही चीजें चुरा सकता हे.....
देशभक्ति का अर्थ सिर्फ देश की जयजयकार करने में ही नहीं बल्कि देश की सम्पति की सुरक्षा में भी हे, देश विकसित होता हे उसके नागरिकों न के सरकार या फिर सरकारी नीतियों से, जो देश विकसित नहीं हुआ उसका पहला कारण उसका नागरिक हे...
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
दीपावली से पहले अयोध्या नगर निगम की पहल पर देशभर के चित्रकार राम नगरी की दीवारों में रामायण के विभिन्न प्रसंगों से भगवान राम के जीवन के विषय का चित्रण कर त्रेतायुग को जीवंत करने में जुट गए हैं।
..............................................
रामायण के अनुसार सुषेण वैद्य लंका के राजा राक्षस-राज रावण का राजवैद्य था। जब रावण के पुत्र मेघनाद के साथ हुए भीषण युद्ध में लक्ष्मण मूर्छित हो गए, तब सुषेण वैद्य ने ही लक्ष्मण की चिकित्सा की थी। उसके यह कहने पर कि मात्र संजीवनी बूटी के प्रयोग से ही लक्ष्मण के प्राण बचाए जा सकते हैं, राम भक्त हनुमान ने वह बूटी लाकर दी और लक्ष्मण के प्राण बचाए जा सका।
कहा जाता है कि लंका से भगवान राम के साथ सुषेण वैद्य भी आए थे और यहां चंदखुरी में उन्होने बहुत दिनों तक निवास किया था, औषधियों का विस्तार किया था....आज भी चंदखुरी में बहुत से औषधीय पौधे मिलते हैं।सुषैण वैद्य ने यहीं प्राण त्यागा था।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अंग्रेज़ो ने हर चीज को खुद के नाम से पेटेंट कराने की कोशिश की...और कई में वो कामयाब भी हुए:
माउंट एवेरेस्ट का नाम सागरमाथा था लेकिन एवेरेस्ट नाम के फिरंगी ने उसे अपना नाम दे दिया.. क्योंकि हिमालय पर्वत आज जिस जगह पर है वहां कभी अरबो साल पहले एक महासागर था..बाद में वही महासागर जमने लगा और उसी से हिमालय पर्वत बना..इसीलिए सागर+माथा(मथना) ,यानि सागरमाथा नाम पड़ा...और एवेरेस्ट हिमालय की ही पर्वत श्रृंखला है तो नेपाल के लोग उसको सागरमाथा कहते थे...
मगर फिरंगी अपनी अधिपत्य जमाने की निति से बाज नहीं आना चाहते थे...
रामसेतु को मेकाले ने एडम ब्रिज नाम दिया ..ये कहते हुए की एडम भारत से श्री लंका इसी पुल से गया था... अब ईसाईयो का एडम भारत में कब आया भाई?? वो रामसेतु तो हु बहु वैसा ही बना है जैसा रामायण में जिक्र था..रामेश्वर शिवलिंग से थोड़ी दूरी पर स्थित है रामसेतु..रामेश्वरम की स्थापना भगवान राम ने की थी युद्ध के पहले....उसके बाद रामसेतु बनाया था..
फिर इसको एडम ब्रिज क्यों बोलने लगे फिरंगी...??
जगदीश चंद बोस एक वैज्ञानिक थे जिन्होंने वेदों में पढ़ा था की पेड़ पौधे जीवित होते है..लेकिन फिरंगी माने ही नहीं. बाद में जब जगदीश बोस ने साबित करने की कोशिश की तो चालाक फिरंगियो ने इंजेक्शन ही बदल दिया था..गुस्से में आकर वो इंजेक्शन जगदीश बोस ने खुद को लगा लिया था.. ये बात 11th क्लास में बायोलॉजी के स्टूडेंट को बताई जाती है जो बोटनी पढ़ते है...
ऐसे कई अविष्कारों को फिरंगियो ने खुद के नाम से पेटेंट करवा लिया जबकि उनकी खोज भारत के ऋषि मुनियो ने की थी..
इस देश का दुर्भाग्य है देश में आज भी शिक्षा पद्वति इन फिरंगियो की चल रही है।
फिरंगी यानी झूठे / मक्कार / धोखेबाज़ / चालाक / बलात्कारी / भ्रष्टाचारी / स्वार्थी / हत्यारे / लफंगे जितनी भी इनकी तारीफ की जाएं कम है।आज यही ज्ञान भारत की नई पीढ़ी को मिल रहा है।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
चम्बल की ऐतिहासिक पुरा सम्पदा-
-दुर्लभ चौसठ योगनी शिव मंदिर !!
यह भी सुविख्यात तथ्य है कि भारत की संसद का डिजायन इसी मंदिर की अनुकृति कर बनाया गया है ।
म.प्र. के मुरैना जिला में मितावली नामक स्थान पर स्थित विश्वविख्यात चौंसठ योगिनी और विशाल शिव मन्दिर का अदभुत व विहंगम दृश्य !
यह मंदिर जहॉं सदियों पुराना होकर चम्बल के ऐतिहासिक वैभव और महत्व का प्रतीक है वहीं,तंत्र की दृष्टि से भी यह अपने आप में एकमात्र व दुर्लभ एवं विलक्षण तंत्र साधना स्थल है,जहॉं शिव व शक्ति से संबंधित तथा अन्य तंत्र महाग्रन्थों में जैसे शाक्त प्रमोद, तंत्र महार्णव, तंत्र महौदधि आदि में वर्णित तंत्र साधनायें व/क्रियायें यहीं सम्पन्न की जा सकतीं हैं ।
यह मंदिर 64 योगिनी को समर्पित है जो देवी माँ के रूप है। यह मंदिर कई तरह से अद्वितीय है। स्थानीय ग्रेनाइट से बना यह एकमात्र मंदिर है। इस मंदिर का डिज़ाइन साधारण और बिना किसी सजावट के है। इसकी दीवारों पर खजुराहो के मंदिरों की तरह नक्काशी की कमी है।
इस मंदिर में 67 तीर्थ हैं जिनमें से 64 प्रत्येक योगिनी के निवास स्थान के रूप में उपयोग किया जाते हैं। एक बड़ा मंदिर महिषासुर मर्दिनि के रूप में देवी दुर्गा को समर्पित है। बाकी मंदिर मैत्रिका ब्राह्मणी और महेश्वरी के लिए है। यह भारत का सबसे पुराना योगिनी मंदिर है। यह मंदिर क्षत्रिय राजपूत राजाओं (महाभारत कालीन- कतिपय किंवदन्तीवश त्रेतायुग का)द्वारा निर्मित है।
इकंतेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर कभी तांत्रिक अनुष्ठान के लिए जाना जाता था। इसलिए इसे तांत्रिक विश्वविद्यालय भी कहते हैं। इस विश्वविद्यालय में न तो कोई प्रोफेसर है और न ही कोई स्टूडेंट। इसके बाद भी यहां लोग तांत्रिक कर्मकांड के लिए अक्सर रात में आते हैं।
करीब 1200 साल पहले 9वीं सदी (वर्ष 801 से 900 के बीच) में प्रतिहार वंश के राजाओं द्वारा बनाए गए इस मंदिर में 101 खंबे और 64 कमरों में एक-एक शिवलिंग है। मंदिर के मुख्य परिसर में भी एक बड़ा शिवलिंग स्थापित है।मंदिर के हर कमरे में शिवलिंग के साथ देवी योगिनी की मूर्ति साथ थी, लेकिन अब ये योगिनियां वहां न होते हुए दिल्ली के संग्रहालय में सुरक्षित खी हैं। इसी आधार पर इसका नाम चौसठ योगिनी मंदिर पड़ा।
पिछले कुछ वर्षों से यहां टूरिस्टों की तेजी से बढ़ोतरी हुई है। यह भी सुविख्यात तथ्य है कि भारत की संसद का डिजायन इसी मंदिर की अनुकृति कर बनाया गया है।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
खल्लारी का पुरातात्विक वैभव
खल्लारी मध्य एवं उत्तर भारत का एकमात्र स्थल है जहाँ एक चर्मकार द्वारा भगवान् विष्णु का बनाया गया मंदिर विद्यमान है | वर्तमान में जिस मंदिर को " जगन्नाथ मंदिर " कहा जाता है उसे देवपाल चर्मकार ने लगभग 600 वर्ष पूर्व १४ सदी में बनवाया था | कहा जाता है कि इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर कलचुरी राजा हरि ब्रह्मदेव स्वयं उपस्थित थे और उनके पुरोहित दामोदर मिश्र ने देवपाल के तीन पीढ़ियों का यशोगान लिखा था, जो शिलालेख के रूप में आज भी महंत घासीदास संग्रहालय में सुरक्षित है |
तब खल्लारी कलचुरी राजाओं की राजधानी थी और खल्वाटिका के नाम से जाना जाता था | उस मंदिर के नारायण भगवान ( विष्णु ) की प्रतिमा कहाँ गया ? यह अज्ञात है लेकिन अब उसके स्थान पर भगवान् जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्ति विराजमान है |
बस्ती के निकट की पहाड़ी स्थित खल्लारी माता मंदिर को सुअरमार के जमींदार सन्मान सिंह ने लगभग २०० वर्ष पूर्व बनवाया था जो अब अधिक चर्चित है |
खल्वाटिका का नाम कब और क्यों खल्लारी हुआ था ? यह शोध का विषय है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इजरायल की कुछ खासियतें
जो शायद आप नहीं जानते हैं –
• इजरायल मिडल-ईस्ट का एकमात्र लोकतांत्रिक देश है.
• इजरायल की आधिकारिक भाषा तीन हैं – हिब्रू, अंग्रेजी और अरबी.
• इजरायल यूरोविजन सॉन्ग कॉन्टेस्ट 3 बार जीत चुका है.
• इजरायल के पास दुनिया में प्रति व्यक्ति बड़ी केंद्रीकृत हाई-टेक कंपनियां हैं.
• दुनिया में प्रति व्यक्ति नई किताबें प्रकाशित करने में इजरायल का स्थान दूसरा है.
• एनएएसडीएक्यू से जुड़ी कंपनियों की संख्या को लेकर इजरायल का अमेरिका के बाद दूसरा स्थान है.
• दुनिया में प्रति व्यक्ति अधिक संख्या में साइंटिफिक आर्टिकल्स प्रकाशित करने में इजरायल सबसे आगे है.
• इंटेल प्लैटिनम प्रोसेसर को इजरायल में डिवेलप किया गया.
• इजरायल का आकार लगभग मिजोरम के समान है.
• दुनिया के किसी भी देश की तुलना में इजरायल के पास प्रति व्यक्ति म्यूजियम की संख्या सबसे अधिक है.
• दुनिया में प्रति व्यक्ति पेटेंट कराने वालों में इजरायलियों का स्थान पहला है.
• हाइफा में मोटोरोला का सबसे बड़ा रिसर्च सेंटर है. यहां पहले सेल्युलर फोन का विकास भी हुआ था.
• दुनिया में किसी भी देश की तुलना में प्रति व्यक्ति इंजीनियर और साइंटिस्ट की संख्या इजरालय में सबसे अधिक है.
• माइक्रोसॉफ्ट ने माइक्रोसॉफ्ट विंडो एक्सपी को इजरायल डिवेलपमेंट सेंटर में विकसित किया था.
• पहला एंटी-वायरस सॉफ्टवेयर साल 1979 में इजरायल में डिवेलप किया गया था.
• इजरायल की फॉर्मास्युटिकल कंपनी टीईवीए दुनिया की 20 सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है.
• पूरी दुनिया में संकट की घड़ियों में इजरायल कई बार मानवीय सहायता भेज चुका है. जैसे, तुर्की का ट्रेन हादसा, भारत में सुनामी, हैती भूकंप, पेरु भूंकप आदि.
• मृत सागर पृथ्वी पर सबसे निचला स्थान है. इस सागर में औषधिय तत्व पाए जाते हैं.
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
भोजन में विज्ञान का घमंड और अंधविश्वास
विज्ञान नामक मजहब के घमंड भरे अंधविश्वासों के बारे में एक पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है
संक्षेप में सिर्फ चार मामूली उदाहरण
1. भोजन में वसा की मात्रा
भोजन में वसा की मात्रा और बीमारी के सम्बंध के बारे में पचास वर्षों से दुनिया भर को दी गई ”वैज्ञानिक” सलाह का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। फिर भी दुनिया भर की वैज्ञानिक संस्थाओं ने बिना किसी ठोस evidence के इस बात का प्रचार gospel truth की तरह किया। जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी भक्त डॉक्टरों ने पूरे भक्तिभाव से क़ुरान और बाइबिल की तरह रटा और जनता तक पहुंचाया और जनता ने आदर्श धर्मावलम्बियों की तरह आँख मूँद कर स्वीकार किया।
नतीजा यह हुआ कि लोगों ने भोजन में वसा की मात्रा कम कर उसकी जगह कार्बोहाइड्रेट अधिक खाना शुरु किया। ग़ौर करने की बात है कि भोजन में कैलोरी के तीन ही स्रोत हैं : वसा, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन।
ज़ाहिर सी बात है कि यदि इनमें से एक की मात्रा कम की जाएगी तो उसकी भरपाई कहीं और से होगी, आदमी भूखा तो रहेगा नहीं। तो बस यही हुआ। दुनिया भर के बाजार कम वसा पर चीनी और नमक से लदी पैकेज्ड खाद्य सामग्रियों से लद गए।
अब विज्ञान का कहना है कि दुनिया भर में मोटापे, मोटापे से सम्बंधित दूसरी बीमारियाँ, कैंसर और मधुमेह की महामारी का कारण पचास वर्षों से विज्ञान के नाम पर फैलाया गया अंधविश्वास है जिसके कारण लोगों ने भोजन में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ा दी।
2. मदिरापान की मात्रा
पचास वर्षों से बिना किसी ठोस आधार के “वैज्ञानिक“ सलाह दी जा रही है कि थोड़ी मात्रा में किए गए मदिरा के सेवन के बहुत सारे स्वास्थ्यवर्धक परिणाम हैं। पर अब कहा जा रहा है कि मदिरा पीने की कोई सुरक्षित न्यूनतम सीमा नहीं है। मदिरापान की मात्रा और कैंसर का सम्बंध linear है और कोई न्यूनतम फायदेमंद या सुरक्षित तक cut off स्तर नहीं है।
3. शिशु को पेट के बल सुलाना
कोई पैंतीस वर्ष पूर्व दुनिया भर के शिशु रोग के पंडितों और उनकी संस्थाओं ने cot death को शिशु के पीठ के बल सोने से जोड़ा – बिना किसी पक्के सबूत के। माँ बाप को कहा गया कि बच्चे को पेट के बल सुलाएँ । यहां तक कि यदि माँ बाप ने यह सलाह नहीं मानी और शिशु की मृत्यु हुई तो माँ बाप को क़रीब क़रीब इसके लिए उत्तरदायी ठहराया गया और उनके अंदर जीवन पर्यंत पापबोध भर दिया गया। अब वही धुरंधर विशेषज्ञ अब ठीक उल्टी बात कर रहे हैं – यानी कि शिशु को पेट के बल सुलाना ख़तरनाक है!
4. रासायनिक खाद
रासायनिक खाद का दुनिया भर में ज़ोर शोर से विज्ञान के नाम पर प्रचार हुआ। मुझे याद है कि मेरे बचपन मे यदि कोई अनपढ़ किसान कहता कि रासायनिक खाद के इस्तेमाल से धरती बंजर हो जाएगी, तो उसे मूर्ख समझ कर उसका मज़ाक़ उड़ाया जाता था। और अब! अब पता चला कि वह अनपढ़ किसान सही था और ये कृषि वैज्ञानिक विज्ञान के मज़हब का अंधविश्वास फैला रहे थे।
यहां विस्तार से बात रखने की जगह नहीं है पर बताता चलूँ कि जिस मक्खन और घी को इतनी गालियाँ दी गईं और मार्जरीन वगैरह से बाज़ार पाट दिया गया, वह भी विज्ञान के मज़हब के अंधविश्वास का नमूना है। डालडा और मार्जरीन ने न जाने कितने लोगों को दिल के दौरे और पक्षाघात से मार दिया। अब उनका धंधा बंद होगा और मक्खन वापस आएगा।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गुड़मार
गुड़मार को मधुनाशनी,अजश्रंगी,मेड़ासिंगी, कावकी, शिरुकुरूज आदि नामों से जाना जाता हैं..... इसकी पत्तियों को चबाने से जीभ की स्वाद ग्रहणशक्ति नष्ट हो जाती हैं जिससे एक दो घण्टे तक मधुर या तित्त का स्वाद मालूम नही पड़ता,इसी कारण इसे गुड़मार या मधुनाशनी कहते है....गुड़मार एक औषधीय लता है...यह बहुमूल्य औषधीय पौधों में शुमार है...गुड़मार कि शाखाओं पर सूक्ष्म रोंये पाए जाते है..पत्ते अभिमुखी मृदुरोमेंश आगे कि तरफ नोकिले होते है..अगस्त-सितंबर के महीने में इस पर पीले रंग के गुच्छेनुमा फूल लगते हैं.. इस पर उगने वाले फल लगभग 2 इंच लंबे और कठोर होते है... इसके अंदर बीजों के साथ रुई लगी होती है तथा बीज छोटे काले-भूरे रंग के होते हैं...।
औषधीय लाभ:
गुड़मार कि पत्तियों का उपयोग मुख्य रुप से मधुमेह नियंत्रण,औषधियों के निर्माण में किया जाता है... इसके सेवन से रक्तगत शर्करा कि मात्रा कम हो जाती है साथ ही पेशाब में शर्करा का आना स्वंय ही बंद हो जाता है... गुड़मार कि जड़ को पीसकर या काढ़ा पिलाने से सर्परोग से लाभ मिलता है...पत्ती या छाल का रस पेट के कीड़े मारने में काम आता है..गुड़मार यकृत को उत्तेजित करता है और प्रत्यक्ष रुप से अग्नाशय कि इनसूलिन स्त्राव करने वाली ग्रंथियो कि सहायता करता है...जड़ो का इस्तेमाल हृद्य रोग,पुराने ज्वर,वात रोग तथा सफेद दाग के उपचार हेतु किया जाता है...।
लाजवंती ( छुई-मुई )
बच्चों का अति प्रिय पौधा छुई-मुई कोई साधरण पौधा नही...इसकी जड़ों से लेकर बीज,पत्तियाँ,फूल सभी का औषधीय उपयोग होता आया है .......छुई मुई पुरे भारत वर्ष में आसानी से मिल जाती हैं..... नमी वाली जगह छुई मुई के लिए अधिक उपयुक्त होती है.... इस पर सुंदर गुलाबी फूल लगते है .....छुईमुई की पत्तियों को आप जैसे छुएंगे वैसे ही इसकी पत्तियां शर्माकर सिकुड़ने लगती हैं .....इसकी इसी ख़ूबी के कारण इसे लाजवंती, लजौली, शर्मीली या छुईमुई भी कहकर पुकारते हैं।
#औषधीय_उपयोग.....
एक शोध के अनुसार छुई-मुई की पत्तियों और जड़ों में एंटीवायरल और एंटीफंगल गुण होने के कारण यह कई रोगों से लड़ने में सक्षम है.......खांसी होने पर इसके जड़ के टुकड़ों के माला बना कर गले में पहन ले..जड़ के टुकड़े त्वचा को छूते रहें,बस इतने भर से खांसी व गला ठीक हो जाता है ..... इसकी जड़ चूसने से खांसी ठीक होती है .....व पत्तियां चबाने से भी गले में आराम आता है .........
#मधुमेह के रोगियों को छुई-मुई का काढ़ा पिलाने से आराम मिलता है........... नपुंसकता व शारीरिक कमजोरी में इसका सेवन काफी लाभप्रद हैं…यदि किसी को घाव हो जाए तो छुई मुई की जड़ का 2 ग्राम चूर्ण दिन में तीन बार गुनगुने पानी के साथ पीने से घाव जल्दी भरने लगता हैं.......
#टॉन्सिल्स की समस्या होने पर छुई मुई की पतियों को पीस कर दिन में दो बार गले पर लगाने से तुरंत राहत मिलता है...।