Sunday 23 September 2018

sanskar -nov

21 अक्तूबर1943 को 75 साल पहले
 नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद भारत की पहली  सरकार बनाई थी...

आजाद हिन्द सरकार सिर्फ नाम नहीं था, बल्कि नेताजी के नेतृत्व में इस सरकार द्वारा हर क्षेत्र से जुड़ी योजनाएं बनाई गई थीं। इस सरकार का अपना बैंक था, अपनी मुद्रा थी, अपना डाक टिकट था, अपना गुप्तचर तंत्र था।
आजाद हिंद फौज की 75 वे स्थापना दिवस के मौके पर देश के प्रधान जनसेवक !
आजाद हिंद सेना के बुजुर्ग सैनिक का सम्मान 70 सालो बाद....
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक लाल किले पर दूसरी बार तिरंगा फहराया। दरअसल आज आजाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगांठ थी। आज ही के दिन 21 अक्तूबर1943 को 75 साल पहले नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद भारत की पहली  सरकार बनाई थी। ।
मोदी के संबोधन की खास बातें..........
आजाद हिन्द सरकार सिर्फ नाम नहीं था, बल्कि नेताजी के नेतृत्व में इस सरकार द्वारा हर क्षेत्र से जुड़ी योजनाएं बनाई गई थीं। इस सरकार का अपना बैंक था, अपनी मुद्रा थी, अपना डाक टिकट था, अपना गुप्तचर तंत्र था।
नेताजी का एक ही उद्देश्य था, एक ही मिशन था भारत की आजादी। यही उनकी विचारधारा थी और यही उनका कर्मक्षेत्र था।
आज मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि स्वतंत्र भारत के बाद के दशकों में अगर देश को सुभाष बाबू, सरदार पटेल जैसे व्यक्तित्वों का मार्गदर्शन मिला होता, भारत को देखने के लिए वो विदेशी चश्मा नहीं होता, तो स्थितियां बहुत भिन्न होती।
ये भी दुखद है कि एक परिवार को बड़ा बताने के लिए, देश के अनेक सपूतों, वो चाहें सरदार पटेल हों, बाबा साहेब आंबेडकर हों, उन्हीं की तरह ही, नेताजी के योगदान को भी भुलाने का प्रयास किया गया।
आज मैं उन माता पिता को नमन करता हूं जिन्होंने नेता जी सुभाष चंद्र बोस जैसा सपूत देश को दिया। मैं नतमस्तक हूं उस सैनिकों और परिवारों के आगे जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में खुद को न्योछावर कर दिया।
देश का संतुलित विकास, समाज के प्रत्येक स्तर पर, प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण का अवसर, राष्ट्र की प्रगति में उसकी भूमिका, नेताजी के वृहद विजन का हिस्सा थी।
आज़ादी के लिए जो समर्पित हुए वो उनका सौभाग्य था, हम जैसे लोग जिन्हें ये अवसर नहीं मिला, हमारे पास देश के लिए जीने का, विकास के लिए समर्पित होने का मौका है।
हमारी सैन्य ताकत हमेशा से आत्मरक्षा के लिए रही है और आगे भी रहेगी। हमें कभी किसी दूसरे की भूमि का लालच नहीं रहा, लेकिन भारत की संप्रभुता के लिए जो भी चुनौती बनेगा, उसको दोगुनी ताकत से जवाब मिलेगा।
प्रधानमन्त्री मोदी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की यादो को सम्मान देने के लिए जल्दी ही अंडमान निकोवार की यात्रा पर जायेगे !
,,,,box,,,'आज़ाद हिंद सरकार'  21 अक्टूबर 1943 को बनी थी. उस वक्त 9 देशों की सरकारों ने ,सुभाष चंद्र बोस की सरकार को अपनी मान्यता दी थी . जापान ने 23 अक्टूबर 1943 को आज़ाद हिंद सरकार को मान्यता दी . उसके बाद जर्मनी, फिलीपींस, थाईलैंड, मंचूरिया, और क्रोएशिया ने भी आज़ाद हिंद सरकार को अपनी मान्यता दे दी . सुभाष चंद्र बोस ने बर्मा की राजधानी रंगून को अपना हेडक्वार्टर बनाया,
सुभाष चंद्र बोस, आज़ाद हिंद सरकार के पहले प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री थे . लेफ्टिनेंट कर्नल ए सी चटर्जी आज़ाद हिंद सरकार के वित्त मंत्री थे . एस ए अय्यर आज़ाद हिंद सरकार के प्रचार मंत्री थे . रास बिहारी बोस को आज़ाद हिंद सरकार का सलाहकार बनाया गया था . इस सरकार की स्थापना करते वक्त नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने ये शपथ ली थी कि 'ईश्वर के नाम पर मैं ये पवित्र शपथ लेता हूं कि भारत और उसके 38 करोड़ लोगों को आज़ाद करवाऊँगा'
आज़ाद हिंद सरकार ने ये तय किया था कि तिरंगा झंडा, भारत का राष्ट्रीय ध्वज होगा . विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार रवींद्र नाथ टैगोर का जन-गण-मन भारत का राष्ट्रगान होगा . और लोग एक दूसरे से अभिवादन के लिए जय हिंद का प्रयोग करेंगे !,,,,box,,,
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गोबर के लक्ष्मी गणेश ही *क्यों लायें.?
💝 भारत में 5 ऐसे विशेष *सिद्ध मंदिर* हैं जहां गोबर से बनी छवि की अाराधना की जाती है। एक मंदिर तो *4500 साल पुराना* हैं
💝 पुराणों में गोबर से बनी छवि की आराधना का फल *हजारों सिद्ध मंदिरों में पूजा करने के बराबर* बताया गया है और यह प्रमाण अब कई विदेशी शोद्धकर्ता भी दे चुकें हैं कि गोबर से बनी छवि के सामने किसी भी ध्यान साधना मंत्र सिद्धी पूर्णतया: सिद्ध हो जाती है  इसलिय ही भारत के ये मंदिर सभी वैदिक लोगो के लिय विशेष स्थान रखते हैं।।
💝 वास्तु के अनुसार भी गोबर से बने लक्ष्मी गणेश जी से घर में *लक्ष्मी नारायण का प्रभाव* बना रहता है और समस्त *वास्तु दोष भी समाप्त* हो जाते हैं।
💝 भागवत महा पुराण के अनुसार गोमय गोबर के स्पर्श से *घर मे दरिद्रता प्रवेश नही करती।।*
💝 कानपुर गौशाला अनुसंधान केंद्र के अनुसार गोबर के स्पर्श बने रहने से कोई भी *बैक्टीरिया वायरल घर में प्रवेश नहीं करते* हैं। इसलिय आपने देखा होगा हमारे सभी त्योहारों को गोमय गोबर से जोड़ा गया है।
💝 हर किसी वस्तु का एक औरा होता है तो नागपुर अनुसंधान के अनुसार गोबर से जो तरंगे निकलती वह सभी *नकारात्मकता को सकीरात्मकता मे परिवर्तित करने मे निपुण* है। इसलिय काफी सिद्ध पीठ, काली नजर, काला साया को गोबर के माध्यम से खत्म करतें हैं।।
💝 दीपावली पर माँ लक्ष्मी के साथ करे गौमाता का भी *पूजन*,..क्योंकि समुंद्र मंथन कथा के अनुसार *सुबह के समय गौमाता* और संध्या के समय माँ लक्ष्मी का प्राकाट्य हुआ है। इसलिय दीपावली पूजन संध्या के समय किया जाता है।
💝 वैसे तो लक्ष्मी कहीं नहीं ठहरती पर *गोबर में है लक्ष्मी का स्थाई निवास।पौराणिक कथा के अनुसार जब सभी देवी देवता गौमाता में निवास पा रहे थे तो माँ गंगा और माँ लक्ष्मी को आने में बहुत देर हो गयी। जिससे गोबर गोमूत्र के अलावा उनके लिय कोई स्थान शेष नहीं बचा। इसलिय गौमूत्र में गंगा और गोबर में लक्ष्मी का स्थाई स्थान माना गया है।
💝 गोबर के गणेश~ गोबर गणेश -- गणेश जी का प्राकाट्य भी गोबर से हुआ है आइये जानते है कैसे माँ गौरी पार्वती ने अपने मैल से गणेश जी को बनाया ऐसी कथा कही जाती है। माँ गौ + री अर्थात् गौ जैसी .. गाय सी माँ ने अपने मल(गोबर) से गणेश जी को बनाया। महाराज जी द्वारा इसका सीधा सा तात्पर्य यह दर्शाया गया है कि *गाय के गोबर से माँ पार्वती द्वारा गणेश का प्राक्टय हुआ है।।*
💝 दिवाली भारत में और मनाता चीन हैं क्योंकि हम  *POP* के शास्त्र अनुसार अशुद्ध लक्ष्मी गणेश* घर ले आते हैं क्योंकि वो जरा ज्यादा सुंदर होते हैं भारत की लक्ष्मी को भारत में रहने दीजिए और भारत की हर गौशाला को समृद्ध बनाए*
विशेष:- लक्ष्मी गणेश जी की सेवा, जहां आपके घर लक्ष्मी संग गणेशजी भी आ रहे और गौसेवा के माध्यम से 33 कोटी देव गौमाता जी की कृपा भी घर आंगन बरस रही। Gift Pack, धार्मिक आयोजन प्रतीक चिन्ह , विवाह, पूजा, शुभ मुहूर्त उदधाटन आदि में भी गोबर से बनी छवि उपयोग करें*,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जहां प्रवेश मात्र से तत्क्षण पाप का नाश हो
 उस प्रयागराज का इतिहास..!
“प्रयागस्य प्रवेशाद्धै पापं नश्यति: तत्क्षणात्” अर्थात प्रयाग में प्रवेश मात्र से तत्क्षण सभी पापों का नाश हो जाता है। तभी तो इसे तीर्थों का राजा प्रयागराज कहा जाता है।
*...box.... अल्लाह का घर बनाने के लिए ही मुगल बादशाह अकबर ने 1575 में प्रयाग का नाम बदलकर इलाहाबास किया था... मुगलों की बादशाहत खत्म होते ही अंग्रेज शासकों ने प्रयाग का नाम इलाहाबास से बदल कर इलाहाबाद कर दिया... करीब तीन सौ साल पहले नाम बदले जाने के बावजूद लोगों के हृदय में प्रयाग नाम ही अंकित रहा .....box.....
जगत की रचना करने वाले ब्रह्मा की प्रथम यज्ञस्थली के रूप में आकार लेने वाले प्रयाग का सरकारी नाम समय-समय पर जो भी रखा गया हो लेकिन लोगों की जेहन में प्रयाग उसी रूप में बसा रहा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोगों के हृदय में अंकित प्रयाग का नाम सरकारी दस्तावेज में चढ़ाया है।
सरकारी दस्तावेज में प्रयागराज का नाम अंकित करना कोई छोटी बात नहीं है, इसके लिए आंतरिक सामर्थ्य चाहिए। देश के कई ऐसे शहर हैं जिसे बड़े-बड़े हिंदू हृदय सम्राट कहे जाने वालों को नाम बदलने की हिम्मत तक नहीं हो पायी, लेकिन योग आदित्यनाथ ने अपने दो साल के कार्यकाल के दौरान न सिर्फ मुगलसराय का नाम बदल कर पंडित दीनदयाल उपाध्याय किया बल्कि मदन मोहन मालवीय के समय से इलाहाबाद का नाम बदलने की मांग को साकार करते हुए उसे प्रयागराज कर दिया। जबकि बाला साहेब ठाकरे जैसे हिंदू हृदय सम्राट कहे जाने वाले बाला साहब ठाकरे भी अपने राज्य में औरंगाबाद को संभाजी नहीं कर पाए।
।प्रयागराज  वही सिद्ध नगरी है जहां के जल से देश-विदेश के राजाओं का अभिषेक हुआ करता था। यह पुराने समय में कोशल और अवध की राजधानी रही है। लेकिन मुगल आक्रांताओं ने इस विशेष नगरी प्रयागराज की आध्यात्मिकता और पौराणिकता पर हमला किया। 
 1575 में प्रयाग को सामरिक दृष्टि के साथ ही धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानकर मुगल बादशाह अकबर ने इसका नाम बदल दिया। उन्होंने इस नगरी को अपने अल्लाह का बास (घर) बनाना चाहता था। इसलिए उसने प्रयाग का नाम बदल कर इलाहाबास कर दिया। जिसका मतलब होता है जो अल्लाह का बास हो। इसलिए उन्होंने यहां एक किला भी बनवाया जो अकबर का सबसे बड़ा किला माना जाता है। लेकिन मुगलों की बादशाहत खत्म होने बाद 1858 में अंग्रेज शासक ने प्रयागराज का नाम को इलाहाबास से बदल कर इलाहाबाद कर दिया। तथा इसे आगरा-अवध संयुक्त प्रांत की राजधानी भी बना दिया।
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 बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक...काशी विश्वनाथ
यह मंदिर पिछले कई हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्‍वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्‍ट स्‍थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्‍वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं। यहि पर सन्त एकनाथ जी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्री एकनाथी भागवत लिखकर पुरा किया और काशी नरेश तथा विद्वतजनो द्वारा उस ग्रन्थ कि हाथी पर से शोभायात्रा खुब धुम-धाम से निकाली गयी।महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है। 
बाबा विश्वनाथ जी क मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थापित सबसे प्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों में से एक है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर बना हुआ है और साथ ही भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहाँ भगवान शिव की मुख्य प्रतिमा को विश्वनाथ का नाम दिया गया है, जिसका अर्थ ब्रह्माण्ड के शासक से होता है।

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालम्ॐकारममलेश्वरम्॥१॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमाशंकरम्।
सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥२॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारम् घुश्मेशं च शिवालये॥३॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥४॥
ज्योतिर्लिंग में ही भगवान शिव की आधा सच छुपा हुआ है, जिसे वे प्रकट भी हुए थे। सूत्रों के अनुसार शिव के 64 प्रकार है, लेकिन आपको ज्योतिर्लिंग के बारे में सोचकर ज्यादा विचलित होने की कोई जरुरत नही है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से सभी ज्योतिर्लिंग का अपना एक अलग नाम है।लेकिन भगवान के शिव के सभी ज्योतिर्लिंगों में उनका एक लिंग जरुर होता है जो उनके अनंत रूप को दर्शाता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग गुजरात के सोमनाथ, आंध्रप्रदेश के मल्लिकार्जुन, मध्यप्रदेश के उज्जैन के महाकालेश्वर, मध्यप्रदेश के ओम्कारेश्वर, हिमालय के केदारनाथ, महाराष्ट्र के भिमशंकर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी के विश्वनाथ, महाराष्ट्र के त्रिंबकेश्वर, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, देवघर के देवगढ़, झारखण्ड, गुजरात के द्वारका के नागेश्वर, तमिलनाडु के रामेश्वरम के रामेश्वर और महाराष्ट्र के औरंगाबाद के ग्रिश्नेश्वर में है। काशी विश्वनाथ के मंदिर के पास गंगा नदी के किनारे पर बने मणिकर्णिका घाट को शक्ति पीठ के नाम से भी जाना जाता है, वहाँ लोग उर्जा पाने के लिए भी भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते है। कहा जाता है की सती देवी की मृत्यु के बाद भगवान शिव मणिकर्णिका से होते हुए ही काशी विश्वनाथ आए थे।

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32 साल की पैरा एथलीट #श्वेता_शर्मा की कमर के नीचे का हिस्सा बेजान (Paralysis) हैं। 3 साल पहले तक कभी खेलने की कोशिश भी नहीं की थी। अब उनके नाम 14 मेडल हैं। वे एशियन पैरा गेम्स की तैयारी में हैं। ये खेल 8 अक्टूबर से इंडोनेशिया के जकार्ता में चल रहे हैं
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देशभक्ती
जापान से लोटे एक भारतीय ने जापान के नागरीक की एक दिल छु देनी वाली कहानी बताई थी....
एक दिन जब अपना भारतीय भाई जापान के ट्रेन में ओसाका की ओर सफर कर रहा था तो उसने अपने बगल में बेठे जापानी को कुछ करता देख उत्सुकता से पुछा के क्या कर रहे हो ,तो उस जापानी ने जवाब दिया के में एक टेयलर हु ओर मेरी बेठने वाली सीट थोड़ी सी फटी थी जिसे सी रहा हु, इसपर भारतीय बोला के यह काम तो सरकार का हे जिसपर उस जापानी ने मुस्कुराते हुये कहा की जापान का हर नागरिक सरकार हे ओर हम अपने सरकारी चीजों का उतना ही ख्याल रखते हैं। जितना के अपने घर के चीजों का, यह जवाब सुन कर अपने भाई को ऎसा लगा जेसे किसी ने जोर से गाल पे तमाचा मारा हो.......
पिछले दिनों जब यह खबर सुनी के अपने देश में अपने लोगों ने अपने ही रेलवे के लाखों चीजें को चुराया था तो दिल बहुत दुखित हुआ के केसे कोई अपने ही घर में अपनी ही चीजें चुरा सकता हे.....
देशभक्ति का अर्थ सिर्फ देश की जयजयकार करने में ही नहीं बल्कि देश की सम्पति की सुरक्षा में भी हे, देश विकसित होता हे उसके नागरिकों न के सरकार या फिर सरकारी नीतियों से, जो देश विकसित नहीं हुआ उसका पहला कारण उसका नागरिक हे...


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राम-मंदिर बनने से पहले "राममय हो रही है अयोध्या"
दीपावली से पहले अयोध्या नगर निगम की पहल पर देशभर के चित्रकार राम नगरी की दीवारों में रामायण के विभिन्न प्रसंगों से भगवान राम के जीवन के विषय का चित्रण कर त्रेतायुग को जीवंत करने में जुट गए हैं।
अयोध्या मेयर ऋषिकेश उपाध्याय ने कहा, 'बाहरी पर्यटक रामायण कालीन समय की अनुभूति कर सकें इसलिए यह प्रतियोगिता आयोजित की गई है और आने वाले वर्ष में इस प्रतियोगिता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया जाएगा।'
तीन दिवसीय कला महोत्सव कार्यक्रम में देश से सैकड़ों चित्रकार प्रतियोगिता में हिस्सा लेने पहुंचे। सफल आयोजन के लिए शुक्रवार को बिड़ला धर्मशाला में सांस्कृतिक आयोजनों के बीच कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि रामवल्लभा कुंज के अधिकारी राजकुमार दास, विशिष्ट अतिथि मेयर ऋषिकेश उपाध्याय और पुजारी रामदास समेत कई अन्य लोग मौजूद रहे।
 'तीन दिनों में देश के 10 राज्यों के 150 चित्रकार अयोध्या की 100 दीवारों पर रामायण के आठ खंड... बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, सुंदरकांड, अयोध्याकांड, उत्तरकांड, लवकुशकांड एवं राम दरबार के विभिन्न प्रसंग दीवार पर उकेरेंगे।यह चित्रण सरयू घाट, नया घाट, राम घाट, राम जन्मभूमि कार्यशाला, बिड़ला धर्मशाला, हनुमानगढ़ी, कनक भवन समेत कई अन्य जगहों पर किया जा रहा है।'
राम जन्मभूमि यानी अयोध्या में यह आयोजन युवा फाउंडेशन, आरोहनम, आईआईपी फाउंडेशन और नगर निगम अयोध्या द्वारा किया गया है। रामायण थीम पर चित्र बनाने वाले स्कूली छात्रों को भी इसके लिए पुरस्कृत किया जाएगा
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*चंदखुरी ..जहाँ लक्ष्मण की जान बचाने वाले वैद्य ने त्यागे थे प्राण
 रामायण के अनुसार सुषेण वैद्य लंका के राजा राक्षस-राज रावण का राजवैद्य था। जब रावण के पुत्र मेघनाद के साथ हुए भीषण युद्ध में लक्ष्मण मूर्छित हो गए, तब सुषेण वैद्य ने ही लक्ष्मण की चिकित्सा की थी। उसके यह कहने पर कि मात्र संजीवनी बूटी के प्रयोग से ही लक्ष्मण के प्राण बचाए जा सकते हैं, राम भक्त हनुमान ने वह बूटी लाकर दी और लक्ष्मण के प्राण बचाए जा सका। 
कहा जाता है कि लंका से भगवान राम के साथ सुषेण वैद्य भी आए थे और यहां चंदखुरी में उन्होने बहुत दिनों तक निवास किया था, औषधियों का विस्तार किया था....आज भी चंदखुरी में बहुत से औषधीय पौधे मिलते हैं।सुषैण वैद्य ने यहीं प्राण त्यागा था।
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अंग्रेज़ो ने हर चीज को खुद के नाम से पेटेंट कराने की कोशिश की...और कई में वो कामयाब भी हुए:

माउंट एवेरेस्ट का नाम सागरमाथा था लेकिन एवेरेस्ट नाम के फिरंगी ने उसे अपना नाम दे दिया.. क्योंकि हिमालय पर्वत आज जिस जगह पर है वहां कभी अरबो साल पहले एक महासागर था..बाद में वही महासागर जमने लगा और उसी से हिमालय पर्वत बना..इसीलिए सागर+माथा(मथना) ,यानि सागरमाथा नाम पड़ा...और एवेरेस्ट हिमालय की ही पर्वत श्रृंखला है तो नेपाल के लोग उसको सागरमाथा कहते थे...

मगर फिरंगी अपनी अधिपत्य जमाने की निति से बाज नहीं आना चाहते थे...
रामसेतु को मेकाले ने एडम ब्रिज नाम दिया ..ये कहते हुए की एडम भारत से श्री लंका इसी पुल से गया था... अब ईसाईयो का एडम भारत में कब आया भाई?? वो रामसेतु तो हु बहु वैसा ही बना है जैसा रामायण में जिक्र था..रामेश्वर शिवलिंग से थोड़ी दूरी पर स्थित है रामसेतु..रामेश्वरम की स्थापना भगवान राम ने की थी युद्ध के पहले....उसके बाद रामसेतु बनाया था..
फिर इसको एडम ब्रिज क्यों बोलने लगे फिरंगी...??
जगदीश चंद बोस एक वैज्ञानिक थे जिन्होंने वेदों में पढ़ा था की पेड़ पौधे जीवित होते है..लेकिन फिरंगी माने ही नहीं. बाद में जब जगदीश बोस ने साबित करने की कोशिश की तो चालाक फिरंगियो ने इंजेक्शन ही बदल दिया था..गुस्से में आकर वो इंजेक्शन जगदीश बोस ने खुद को लगा लिया था.. ये बात 11th क्लास में बायोलॉजी के स्टूडेंट को बताई जाती है जो बोटनी पढ़ते है...
ऐसे कई अविष्कारों को फिरंगियो ने खुद के नाम से पेटेंट करवा लिया जबकि उनकी खोज भारत के ऋषि मुनियो ने की थी..
इस देश का दुर्भाग्य है देश में आज भी शिक्षा पद्वति इन फिरंगियो की चल रही है।
फिरंगी यानी झूठे / मक्कार / धोखेबाज़ / चालाक / बलात्कारी / भ्रष्टाचारी / स्वार्थी / हत्यारे / लफंगे जितनी भी इनकी तारीफ की जाएं कम है।आज यही ज्ञान भारत की नई पीढ़ी को मिल रहा है।

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चम्‍बल की ऐतिहासिक पुरा सम्‍पदा-
-दुर्लभ चौसठ योगनी शिव मंदिर !!

यह भी सुविख्‍यात तथ्‍य है कि भारत की संसद का डिजायन इसी मंदिर की अनुकृति कर बनाया गया है ।
म.प्र. के मुरैना जिला में मितावली नामक स्‍थान पर स्थित विश्‍वविख्‍यात चौंसठ योगिनी और विशाल शिव मन्दिर का अदभुत व विहंगम दृश्‍य !

यह मंदिर जहॉं सदियों पुराना होकर चम्‍बल के ऐतिहासिक वैभव और महत्‍व का प्रतीक है वहीं,तंत्र की दृष्टि से भी यह अपने आप में एकमात्र व दुर्लभ एवं विलक्षण तंत्र साधना स्‍थल है,जहॉं शिव व शक्ति से संबंधित तथा अन्‍य तंत्र महाग्रन्‍थों में जैसे शाक्‍त प्रमोद, तंत्र महार्णव, तंत्र महौदधि आदि में वर्णित तंत्र साधनायें व/क्रियायें यहीं सम्‍पन्‍न की जा सकतीं हैं ।
यह मंदिर 64 योगिनी को समर्पित है जो देवी माँ के रूप है। यह मंदिर कई तरह से अद्वितीय है। स्थानीय ग्रेनाइट से बना यह एकमात्र मंदिर है। इस मंदिर का डिज़ाइन साधारण और बिना किसी सजावट के है। इसकी दीवारों पर खजुराहो के मंदिरों की तरह नक्काशी की कमी है।

इस मंदिर में 67 तीर्थ हैं जिनमें से 64 प्रत्येक योगिनी के निवास स्थान के रूप में उपयोग किया जाते हैं। एक बड़ा मंदिर महिषासुर मर्दिनि के रूप में देवी दुर्गा को समर्पित है। बाकी मंदिर मैत्रिका ब्राह्मणी और महेश्वरी के लिए है। यह भारत का सबसे पुराना योगिनी मंदिर है। यह मंदिर क्षत्रिय राजपूत राजाओं (महाभारत कालीन- कतिपय किंवदन्‍तीवश त्रेतायुग का)द्वारा निर्मित है।

इकंतेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर कभी तांत्रिक अनुष्ठान के लिए जाना जाता था। इसलिए इसे तांत्रिक विश्वविद्यालय भी कहते हैं। इस विश्वविद्यालय में न तो कोई प्रोफेसर है और न ही कोई स्टूडेंट। इसके बाद भी यहां लोग तांत्रिक कर्मकांड के लिए अक्सर रात में आते हैं।
करीब 1200 साल पहले 9वीं सदी (वर्ष 801 से 900 के बीच) में प्रतिहार वंश के राजाओं द्वारा बनाए गए इस मंदिर में 101 खंबे और 64 कमरों में एक-एक शिवलिंग है। मंदिर के मुख्य परिसर में भी एक बड़ा शिवलिंग स्थापित है।मंदिर के हर कमरे में शिवलिंग के साथ देवी योगिनी की मूर्ति साथ थी, लेकिन अब ये योगिनियां वहां न होते हुए दिल्ली के संग्रहालय में सुरक्षित खी हैं। इसी आधार पर इसका नाम चौसठ योगिनी मंदिर पड़ा।

पिछले कुछ वर्षों से यहां टूरिस्टों की तेजी से बढ़ोतरी हुई है। यह भी सुविख्‍यात तथ्‍य है कि भारत की संसद का डिजायन इसी मंदिर की अनुकृति कर बनाया गया है।

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खल्लारी का पुरातात्विक वैभव 
खल्लारी मध्य एवं उत्तर भारत का एकमात्र स्थल है जहाँ एक चर्मकार द्वारा भगवान् विष्णु का बनाया गया मंदिर विद्यमान है | वर्तमान में जिस मंदिर को " जगन्नाथ मंदिर " कहा जाता है उसे देवपाल चर्मकार ने लगभग 600 वर्ष पूर्व १४ सदी में बनवाया था | कहा जाता है कि इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर कलचुरी राजा हरि ब्रह्मदेव स्वयं उपस्थित थे और उनके पुरोहित दामोदर मिश्र ने देवपाल के तीन पीढ़ियों का यशोगान लिखा था, जो शिलालेख के रूप में आज भी महंत घासीदास संग्रहालय में सुरक्षित है |
तब खल्लारी कलचुरी राजाओं की राजधानी थी और खल्वाटिका के नाम से जाना जाता था | उस मंदिर के नारायण भगवान ( विष्णु ) की प्रतिमा कहाँ गया ? यह अज्ञात है लेकिन अब उसके स्थान पर भगवान् जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्ति विराजमान है |
बस्ती के निकट की पहाड़ी स्थित खल्लारी माता मंदिर को सुअरमार के जमींदार सन्मान सिंह ने लगभग २०० वर्ष पूर्व बनवाया था जो अब अधिक चर्चित है |
खल्वाटिका का नाम कब और क्यों खल्लारी हुआ था ? यह शोध का विषय है


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इजरायल की कुछ खासियतें
 जो शायद आप नहीं जानते हैं –

• इजरायल मिडल-ईस्ट का एकमात्र लोकतांत्रिक देश है.
• इजरायल की आधिकारिक भाषा तीन हैं – हिब्रू, अंग्रेजी और अरबी.
• इजरायल यूरोविजन सॉन्ग कॉन्टेस्ट 3 बार जीत चुका है.
• इजरायल के पास दुनिया में प्रति व्यक्ति बड़ी केंद्रीकृत हाई-टेक कंपनियां हैं.
• दुनिया में प्रति व्यक्ति नई किताबें प्रकाशित करने में इजरायल का स्थान दूसरा है.
• एनएएसडीएक्यू से जुड़ी कंपनियों की संख्या को लेकर इजरायल का अमेरिका के बाद दूसरा स्थान है.
• दुनिया में प्रति व्यक्ति अधिक संख्या में साइंटिफिक आर्टिकल्स प्रकाशित करने में इजरायल सबसे आगे है.
• इंटेल प्लैटिनम प्रोसेसर को इजरायल में डिवेलप किया गया.
• इजरायल का आकार लगभग मिजोरम के समान है.
• दुनिया के किसी भी देश की तुलना में इजरायल के पास प्रति व्यक्ति म्यूजियम की संख्या सबसे अधिक है.
• दुनिया में प्रति व्यक्ति पेटेंट कराने वालों में इजरायलियों का स्थान पहला है.
• हाइफा में मोटोरोला का सबसे बड़ा रिसर्च सेंटर है. यहां पहले सेल्युलर फोन का विकास भी हुआ था.
• दुनिया में किसी भी देश की तुलना में प्रति व्यक्ति इंजीनियर और साइंटिस्ट की संख्या इजरालय में सबसे अधिक है.
• माइक्रोसॉफ्ट ने माइक्रोसॉफ्ट विंडो एक्सपी को इजरायल डिवेलपमेंट सेंटर में विकसित किया था.
• पहला एंटी-वायरस सॉफ्टवेयर साल 1979 में इजरायल में डिवेलप किया गया था.
• इजरायल की फॉर्मास्युटिकल कंपनी टीईवीए दुनिया की 20 सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है.
• पूरी दुनिया में संकट की घड़ियों में इजरायल कई बार मानवीय सहायता भेज चुका है. जैसे, तुर्की का ट्रेन हादसा, भारत में सुनामी, हैती भूकंप, पेरु भूंकप आदि.
• मृत सागर पृथ्वी पर सबसे निचला स्थान है. इस सागर में औषधिय तत्व पाए जाते हैं.
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 भोजन में विज्ञान  का घमंड और अंधविश्वास

विज्ञान नामक मजहब के घमंड भरे अंधविश्वासों के बारे में एक पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है
 संक्षेप में सिर्फ चार मामूली उदाहरण
1. भोजन में वसा की मात्रा
 भोजन में वसा की मात्रा और बीमारी के सम्बंध के बारे में पचास वर्षों से दुनिया भर को दी गई ”वैज्ञानिक” सलाह का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। फिर भी दुनिया भर की वैज्ञानिक संस्थाओं ने बिना किसी ठोस evidence के इस बात का प्रचार gospel truth की तरह किया। जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी भक्त डॉक्टरों ने पूरे भक्तिभाव से क़ुरान और बाइबिल की तरह रटा और जनता तक पहुंचाया और जनता ने आदर्श धर्मावलम्बियों की तरह आँख मूँद कर स्वीकार किया।
 नतीजा यह हुआ कि लोगों ने भोजन में वसा की मात्रा कम कर उसकी जगह कार्बोहाइड्रेट अधिक खाना शुरु किया। ग़ौर करने की बात है कि भोजन में कैलोरी के तीन ही स्रोत हैं : वसा, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन।
ज़ाहिर सी बात है कि यदि इनमें से एक की मात्रा कम की जाएगी तो उसकी भरपाई कहीं और से होगी, आदमी भूखा तो रहेगा नहीं। तो बस यही हुआ। दुनिया भर के बाजार कम वसा पर चीनी और नमक से लदी पैकेज्ड खाद्य सामग्रियों से लद गए।
अब विज्ञान का कहना है कि दुनिया भर में मोटापे, मोटापे से सम्बंधित दूसरी बीमारियाँ, कैंसर और मधुमेह की महामारी का कारण पचास वर्षों से विज्ञान के नाम पर फैलाया गया अंधविश्वास है जिसके कारण लोगों ने भोजन में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ा दी।
2. मदिरापान की मात्रा
पचास वर्षों से बिना किसी ठोस आधार के “वैज्ञानिक“ सलाह दी जा रही है कि थोड़ी मात्रा में किए गए मदिरा के सेवन के बहुत सारे स्वास्थ्यवर्धक परिणाम हैं। पर अब कहा जा रहा है कि मदिरा पीने की कोई सुरक्षित न्यूनतम सीमा नहीं है। मदिरापान की मात्रा और कैंसर का सम्बंध linear है और कोई न्यूनतम फायदेमंद या सुरक्षित तक cut off स्तर नहीं है।
3. शिशु को पेट के बल सुलाना
कोई पैंतीस वर्ष पूर्व दुनिया भर के शिशु रोग के पंडितों और उनकी संस्थाओं ने cot death को शिशु के पीठ के बल सोने से जोड़ा – बिना किसी पक्के सबूत के। माँ बाप को कहा गया कि बच्चे को पेट के बल सुलाएँ । यहां तक कि यदि माँ बाप ने यह सलाह नहीं मानी और शिशु की मृत्यु हुई तो माँ बाप को क़रीब क़रीब इसके लिए उत्तरदायी ठहराया गया और उनके अंदर जीवन पर्यंत पापबोध भर दिया गया। अब वही धुरंधर विशेषज्ञ अब ठीक उल्टी बात कर रहे हैं – यानी कि शिशु को पेट के बल सुलाना ख़तरनाक है!
4. रासायनिक खाद
रासायनिक खाद का दुनिया भर में ज़ोर शोर से विज्ञान के नाम पर प्रचार हुआ। मुझे याद है कि मेरे बचपन मे यदि कोई अनपढ़ किसान कहता कि रासायनिक खाद के इस्तेमाल से धरती बंजर हो जाएगी, तो उसे मूर्ख समझ कर उसका मज़ाक़ उड़ाया जाता था। और अब! अब पता चला कि वह अनपढ़ किसान सही था और ये कृषि वैज्ञानिक विज्ञान के मज़हब का अंधविश्वास फैला रहे थे।
यहां विस्तार से बात रखने की जगह नहीं है पर बताता चलूँ कि जिस मक्खन और घी को इतनी गालियाँ दी गईं और मार्जरीन वगैरह से बाज़ार पाट दिया गया, वह भी विज्ञान के मज़हब के अंधविश्वास का नमूना है। डालडा और मार्जरीन ने न जाने कितने लोगों को दिल के दौरे और पक्षाघात से मार दिया। अब उनका धंधा बंद होगा और मक्खन वापस आएगा।
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गुड़मार


गुड़मार को मधुनाशनी,अजश्रंगी,मेड़ासिंगी, कावकी, शिरुकुरूज आदि नामों से जाना जाता हैं..... इसकी पत्तियों को चबाने से जीभ की स्वाद ग्रहणशक्ति नष्ट हो जाती हैं जिससे एक दो घण्टे तक मधुर या तित्त का स्वाद मालूम नही पड़ता,इसी कारण इसे गुड़मार या मधुनाशनी कहते है....गुड़मार एक औषधीय लता है...यह बहुमूल्य औषधीय पौधों में शुमार है...गुड़मार कि शाखाओं पर सूक्ष्म रोंये पाए जाते है..पत्ते अभिमुखी मृदुरोमेंश आगे कि तरफ नोकिले होते है..अगस्त-सितंबर के महीने में इस पर पीले रंग के गुच्छेनुमा फूल लगते हैं.. इस पर उगने वाले फल लगभग 2 इंच लंबे और कठोर होते है... इसके अंदर बीजों के साथ रुई लगी होती है तथा बीज छोटे काले-भूरे रंग के होते हैं...।
औषधीय लाभ:
गुड़मार कि पत्तियों का उपयोग मुख्य रुप से मधुमेह नियंत्रण,औषधियों के निर्माण में किया जाता है... इसके सेवन से रक्तगत शर्करा कि मात्रा कम हो जाती है साथ ही पेशाब में शर्करा का आना स्वंय ही बंद हो जाता है... गुड़मार कि जड़ को पीसकर या काढ़ा पिलाने से सर्परोग से लाभ मिलता है...पत्ती या छाल का रस पेट के कीड़े मारने में काम आता है..गुड़मार यकृत को उत्तेजित करता है और प्रत्यक्ष रुप से अग्नाशय कि इनसूलिन स्‍त्राव करने वाली ग्रंथियो कि सहायता करता है...जड़ो का इस्तेमाल हृद्य रोग,पुराने ज्वर,वात रोग तथा सफेद दाग के उपचार हेतु किया जाता है...।






लाजवंती ( छुई-मुई )


बच्चों का अति प्रिय पौधा छुई-मुई कोई साधरण पौधा नही...इसकी जड़ों से लेकर बीज,पत्तियाँ,फूल सभी का औषधीय उपयोग होता आया है .......छुई मुई पुरे भारत वर्ष में आसानी से मिल जाती हैं..... नमी वाली जगह छुई मुई के लिए अधिक उपयुक्त होती है.... इस पर सुंदर गुलाबी फूल लगते है .....छुईमुई की पत्तियों को आप जैसे छुएंगे वैसे ही इसकी पत्तियां शर्माकर सिकुड़ने लगती हैं .....इसकी इसी ख़ूबी के कारण इसे लाजवंती, लजौली, शर्मीली या छुईमुई भी कहकर पुकारते हैं।


#औषधीय_उपयोग.....

एक शोध के अनुसार छुई-मुई की पत्तियों और जड़ों में एंटीवायरल और एंटीफंगल गुण होने के कारण यह कई रोगों से लड़ने में सक्षम है.......खांसी होने पर इसके जड़ के टुकड़ों के माला बना कर गले में पहन ले..जड़ के टुकड़े त्वचा को छूते रहें,बस इतने भर से खांसी व गला ठीक हो जाता है ..... इसकी जड़ चूसने से खांसी ठीक होती है .....व पत्तियां चबाने से भी गले में आराम आता है .........#मधुमेह के रोगियों को छुई-मुई का काढ़ा पिलाने से आराम मिलता है........... नपुंसकता व शारीरिक कमजोरी में इसका सेवन काफी लाभप्रद हैं…यदि किसी को घाव हो जाए तो छुई मुई की जड़ का 2 ग्राम चूर्ण दिन में तीन बार गुनगुने पानी के साथ पीने से घाव जल्दी भरने लगता हैं.......#टॉन्सिल्स की समस्या होने पर छुई मुई की पतियों को पीस कर दिन में दो बार गले पर लगाने से तुरंत राहत मिलता है...।

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