भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर के अंत में जन्म लिया। पंचांगों के अनुसार कलियुग के बीते 5114 वर्ष और द्वापर के अंत में भगवान श्रीकृष्ण की धरती पर 125 वर्ष तक रहे है. इस बार भगवान श्रीकृष्ण 5239 वर्ष पूर्ण कर 5240 वें वर्ष में प्रवेश करेंगे।
इस बार द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय जिस तरह की नौ ग्रहों की स्थिति थी वैसे ही इस वर्ष छह ग्रहों का संयोग बन रहा है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष, वृष राशि का चंद्रमा, सिंह राशि का सूर्य, सिंह राशि का बुध, कर्क राशि में गुरु, राहु कन्या राशि के साथ केतु मीन राशि में मौजूद रहेगा। इसके अलावा मध्य रात्रि वृषभ लग्न भी रहेगा। जो द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय थी.
योगेश्वर श्रीकृष्ण जी की 1600 नारियाँ (गोपिया ) नहीं थी.>>>>>>
श्रीकृष्ण योगेश्वर थे.. उनकी 1600 रानियाँ (गोपियाँ) नहीं थी.पुराणों में लिखी हुयी कथाये तो सरलता के लिए हमारे ऋषियों ने लिख दिया.मुग़ल काल में पुराणों की कथाओ को बहुत बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ करके गलत लिखा गया.
श्री कृष्ण जी चन्द्रमा की 16 कलाओ से युक्त थे...योगिराज योगेश्वर थे. विराट स्वरूप भी अर्जुन को दिखाया..प्राप्त कथाओ के अनुसार 3 मुख्य रानियाँ थी.जिसमे सत्यभामा उनकी प्रिय रानी थी..ऐसा कहा जाता है..
वास्तविकता क्या है ? >>>>>>>>>
श्रीकृष्ण जी ने 1600 नाड़ियों को जागृत किया था..इसी '''नाड़ी''' शब्द की जगह '''नारी''' बना कर बाद में इसको गोपियों से जोड़ दिया गया. यही नारी शब्द को रानी बना दिया.
श्रीकृष्ण जी ने 1600 नाड़ियों को जागृत किया था..इसी '''नाड़ी''' शब्द की जगह '''नारी''' बना कर बाद में इसको गोपियों से जोड़ दिया गया. यही नारी शब्द को रानी बना दिया.
3 मुख्य रानियाँ थी..जिसमे सत्यभामा उनकी प्रिय रानी थी ? >>>>
जो भी साधना करता है उसका 3 मुख्य नाड़ी होती है...इड़ा.पिंगला,सुषुम्ना नाड़ी...मुख्य सुषुम्ना नाड़ी शरीर के बीचो बीच चलती है..बाकि दोनों नाड़िया दाए .बाए रहती है.इसी सुषुम्ना नाड़ी को सत्यभामा कहते है. शिव स्वरोदय तंत्र में श्वास के समय इस सुषुम्ना (सत्यभामा )नाड़ी का बहुत बड़ा महत्त्व होता है.
गोपियों के साथ रासलीला की कहानी का सत्य यह है >>>>
प्राचीन पुराणों के अनुसार ''शरदपूर्णिमा'' की एक सुहावनी रात को गोपियों ने कृष्ण के साथ मिलकर नृत्य-गान किया। इसका नाम रास प्रसिद्ध हुआ.
प्राचीन पुराणों के अनुसार ''शरदपूर्णिमा'' की एक सुहावनी रात को गोपियों ने कृष्ण के साथ मिलकर नृत्य-गान किया। इसका नाम रास प्रसिद्ध हुआ.
इसका अर्थ यह है कि शरद पूर्णिमा की अर्धरात्रि को चन्द्रमा अपने 16 कलाओ से युक्त होता. इस दिन भारत के कुछ हिस्सों में कोझागिरी का पर्व भी मनाया जाता है.इस दिन चंद्रमा से अमृत तत्व की प्राप्ति होती है..लोग रात्रि में चन्द्र के प्रकाश के निचे खीर बनाकर खाते है..पूर्ण चन्द्रमा (पूर्णमासी) के समय ''नाड़ी'''का जागरण बहुत अच्छी प्रकार से होता है..योगी या साधक लोग आज भी ध्यान लगाते है.तथा अपनी नाड़ी जागृत करते है..भगवान योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज ने इसी शरद पूर्णिमा को अपनी 1600 नाड़ियों को जागृत करते थे..इसी को महारास कहा जाता है.TP Shukla
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