रक्षाबंधन की सबसे प्राचीन कथा -
“येन बद्धो, बलि राजा दान विन्द्रो महाबलम।
तेन-त्वाम अनुबन्धामी, रक्षे मां चला मां चलम।।“
अर्थात मैं यह रक्षा सूत्र बांध रही हूं, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार लक्ष्मी जी ने असुरराज बलि को बांधा था और अपनी रक्षा करने का वचन लिया था। इसी समय से रक्षा सूत्र बांधने का नियम बना जिसे आज भी बहन अपने भाई को कलाई पर बांधकर परंपरा को निर्वाह कर रही है। कथा इस प्रकार है कि प्रहलाद का पुत्र और हिरण्यकश्यप का पौत्र बलि महान पराक्रमी था। उसने सभी लोकों पर विजय प्राप्त कर ली। इससे देवता घबरा गए और विष्णु जी की शरण में गए| विष्णु जी ने बटुक ब्राह्मण का रूप धारण किया और बलि के द्वार की ओर चले।
असुरराज बलि विष्णु जी के अनन्य भक्त थे तथा शुक्राचार्य के शिष्य थे। जब बटुक स्वरूप विष्णु वहाँ पहुँचे तो बलि एक अनुष्ठान कर रहे थे। जैसे कि हे ब्राह्मण मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ। बटुक ने कहा मुझे तीन पग भूमि चाहिए।
महाराज बलि ने जल लेकर संकल्प किया और ‘तीन पग‘ भूमि देने को तैयार हो गए। तभी बटुक स्वरूप विष्णु अपने असली रूप में प्रकट हुए। उन्होंने दो पग में सारा ब्रह्माण्ड नाप लिया तथा तीसरा पग रखने के लिए कुछ स्थान न बचा। तभी बलि ने अपने सिर आगे कर दिया। इस प्रकार असुर को विष्णु जी ने जीत लिया और उस पर प्रसन्न हो गये। उसे पाताल में नागलोक भेज दिया। विष्णु जी बोले मैं तुम से प्रसन्न हूँ मांगों क्या मांगते हो? तब बलि ने कहा कि जब तक मैं नागलोक में रहूंगा आप मेरे द्वारपाल रहें। विष्णु जी मान गए और उसके द्वारपाल बन गए। कुछ दिन बीते लक्ष्मी जी ने विष्णु जी को ढूंढना आरंभ किया तो ज्ञात हुआ कि प्रभु तो बलि के द्वारपाल बने हैं। उन्हें एक युक्ति सूझी।
श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन उन्होंने बलि की कलाई पर एक पवित्र धागा बांधकर उसे भाई बना लिया। बलि ने भी उन्हें बहन मानते हुए कहा कि बहन मैं इस पवित्र बंधन से बहुत प्रभावित हुआ और बोला मैं तुम्हें एक वरदान देना चाहता हूं बहन! मांगो? लक्ष्मी जी को अपना उद्देश्यपूर्ण करना था, उन्होंने बताया जो तुम्हारे द्वारपाल है, वे मेरे पति हैं, उन्हें अपने घर जाने की आज्ञा दो। लक्ष्मी जी ने यह कहा कि ये ही भगवान विष्णु हैं। बलि को जब यह पता चला तो उसने तुरन्त भगवान विष्णु को उनके निवास की और रवाना किया।
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“येन बद्धो, बलि राजा दान विन्द्रो महाबलम।
तेन-त्वाम अनुबन्धामी, रक्षे मां चला मां चलम।।“
अर्थात मैं यह रक्षा सूत्र बांध रही हूं, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार लक्ष्मी जी ने असुरराज बलि को बांधा था और अपनी रक्षा करने का वचन लिया था। इसी समय से रक्षा सूत्र बांधने का नियम बना जिसे आज भी बहन अपने भाई को कलाई पर बांधकर परंपरा को निर्वाह कर रही है। कथा इस प्रकार है कि प्रहलाद का पुत्र और हिरण्यकश्यप का पौत्र बलि महान पराक्रमी था। उसने सभी लोकों पर विजय प्राप्त कर ली। इससे देवता घबरा गए और विष्णु जी की शरण में गए| विष्णु जी ने बटुक ब्राह्मण का रूप धारण किया और बलि के द्वार की ओर चले।
असुरराज बलि विष्णु जी के अनन्य भक्त थे तथा शुक्राचार्य के शिष्य थे। जब बटुक स्वरूप विष्णु वहाँ पहुँचे तो बलि एक अनुष्ठान कर रहे थे। जैसे कि हे ब्राह्मण मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ। बटुक ने कहा मुझे तीन पग भूमि चाहिए।
महाराज बलि ने जल लेकर संकल्प किया और ‘तीन पग‘ भूमि देने को तैयार हो गए। तभी बटुक स्वरूप विष्णु अपने असली रूप में प्रकट हुए। उन्होंने दो पग में सारा ब्रह्माण्ड नाप लिया तथा तीसरा पग रखने के लिए कुछ स्थान न बचा। तभी बलि ने अपने सिर आगे कर दिया। इस प्रकार असुर को विष्णु जी ने जीत लिया और उस पर प्रसन्न हो गये। उसे पाताल में नागलोक भेज दिया। विष्णु जी बोले मैं तुम से प्रसन्न हूँ मांगों क्या मांगते हो? तब बलि ने कहा कि जब तक मैं नागलोक में रहूंगा आप मेरे द्वारपाल रहें। विष्णु जी मान गए और उसके द्वारपाल बन गए। कुछ दिन बीते लक्ष्मी जी ने विष्णु जी को ढूंढना आरंभ किया तो ज्ञात हुआ कि प्रभु तो बलि के द्वारपाल बने हैं। उन्हें एक युक्ति सूझी।
श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन उन्होंने बलि की कलाई पर एक पवित्र धागा बांधकर उसे भाई बना लिया। बलि ने भी उन्हें बहन मानते हुए कहा कि बहन मैं इस पवित्र बंधन से बहुत प्रभावित हुआ और बोला मैं तुम्हें एक वरदान देना चाहता हूं बहन! मांगो? लक्ष्मी जी को अपना उद्देश्यपूर्ण करना था, उन्होंने बताया जो तुम्हारे द्वारपाल है, वे मेरे पति हैं, उन्हें अपने घर जाने की आज्ञा दो। लक्ष्मी जी ने यह कहा कि ये ही भगवान विष्णु हैं। बलि को जब यह पता चला तो उसने तुरन्त भगवान विष्णु को उनके निवास की और रवाना किया।
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हुआ कुछ यूँ था कि......... मालवा और गुजरात में राज्य कर रहा बहादुरशाह........ दिल्ली के मुग़ल बादशाह हुमायूँ का जानी दुश्मन था.... क्योंकि., बहादुरशाह ने हुमायूँ के जानी दुश्मनों को अपने राज्य में शरण दे रखी थी...... जिनमे प्रमुख था ..... इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खाँ..... हुमायूँ की सौतेली बहन मासूमा सुल्तान के पति मोहम्मद जमाँ मिर्जा और हुमायूँ के खून का प्यासा बाबर का ही अपना सगा बहनोई मीर मोहम्मद मेंहदी ख्वाजा.... ( याद रखें कि मुस्लिमों में ये बहुत आम है )
इधर बहादुरशाह ने हुमायूँ से दुश्मनी के कारण ...हुमायूँ के सारे के सारे दुश्मनों को अपने पास बैठा रखे थे...
इस तरह ..... बहादुरशाह.......हुमायूँ का नम्बर एक का दुश्मन बन गया था....... क्योंकि, बहादुरशाह से ..... हुमायूँ की जान और राज-पाट के जाने का खतरा था...... इसलिये, हुमायूँ ...बहादुरशाह को किसी भी हालत में समाप्त करना चाहता था.... और, वो इसके लिए उचित मौके की तलाश में था.
सौभाग्य से .....इसी बीच उसे मौका मिल गया....!
क्योंकि .... जब बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर हमला किया और चित्तौड़ के किले को घेर लिया. .. तो, धर्मपरायण रानी कर्णवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर... उसे राखी भाई बना लिया और उस से सहायता करने की गुहार लगाई.
इस मौके को पाते ही....हुमायूँ ने.... जो पहले से बहादुरशाह के लिये घात लगाये था......मौके का फायदा उठाने की गरज से ... ये सोचा कि .... कि बहादुरशाह राजपूतों से उलझा है.... और, ऐसे में उस पर .....अचानक हमला कर दो और दुश्मन को खत्म कर दो.
और.... इसी इरादे से हुमायूँ दिल्ली से पूरे लाव-लश्कर के साथ चला............ न कि कर्णवती की रक्षा के लिये.
यही कारण था कि..... हुमायूँ दिल्ली से चल तो दिया......लेकिन, रानी कर्णवती की राखी की लाज बचाने के स्थान पर वह रास्ते में डेरा ड़ालकर बैठ गया और .... बहादुरशाह के कमजोर होने का इंतज़ार करता रहा ....!
इधर ....चित्तौड़ की रानी ने उस हुमायूँ को ....सन्देश पर सन्देश भेजा......... लेकिन, हुमायूँ अपनी जगह से टस से मस नही हुआ... और, दूर में ही बैठा मौजमस्ती मनाता रहा क्योंकि अपनी बहन से ही शारीरिक सम्बन्ध बनाने वाला......हुमायूँ क्या जाने राखी.... अथवा , अपनी बहन की अस्मिता को ...????
उसे तो सिर्फ मतलब था ...... अपने दुश्मन बहादुरशाह से. ......
इधर......बहादुरशाह ने रानी कर्णवती के चित्तौड़ किले को जीतकर..........उसे जी भर कर लूटा.....!
इस तरह..... रानी कर्णवती की राखी की लाज .........मुसलमान घुड़सवारों की टापों के नीचे कुचल गयी......
इसके बाद ..... जब बहादुरशाह .... चित्तौड़ को लूट कर जब जाने लगा तो...... हुमायूँ ने लूट का माल हड़पने तथा, कमजोर हो चुके बहादुरशाह का खत्म करने के लिए उसका गुजरात तक पीछा किया.
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इस तरह की एक दूसरी राखी........... भोपाल की रानी कमलावती ने........ दोस्त मोहम्मद को बाँधी थी कि .....वह उसकी राखी की लाज रखे और उसके पति के हत्यारे बाड़ी बरेली के राजा का वध करे.
और, दोस्त मोहम्मद ने बाड़ी बरेली के राजा का कत्ल कर भी दिया... जिसके बदले में रानी ने .....अपने इस राखी भाई को जागीर और बहुत सा धन दिया.
परन्तु..... धन और जागीर पाने के बाद और शक्तिशाली हो गये....... दोस्त मोहम्मद ने...... भोपाल की रानी और अपनी राखी बहन कमलावती का सफ़ाया कर ......पूरे भोपाल राज्य को ही हड़प लिया.
यही हकीकत है ..... इन ऐतिहासिक हिन्दु-मुस्लिम राखी भाई-बहनों की.....
जागो हिन्दू ... और, अपनी आँखें खोलो....
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